पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम|hindi


पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम
पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम|hindi

पौधों में वृद्धि, आकार एवं आयतन का चिरस्थायी (irreversible = permanent) वर्धन है जिसके साथ-साथ प्राय: शुष्क भार का तथा जीवद्रव्य (protoplasm) का भी वर्धन होता है। "Growth in plants is, irreversible increase in size which is commonly but not necessarily (i.e., growth of etiolated seedlings), accompanied by an increase in dry weight and in the amount of protoplasm."

किन्तु कुछ अवस्थाएँ ऐसी भी होती हैं, जैसे बीजांकुर की प्रकाश की अनुपस्थिति में वृद्धि के समय, जिसमें वृद्धि के समय पौधे का आकार तो पर्याप्त रूप से बढ़ जाता है, किन्तु शुष्क भार में कमी आ जाती है। वृद्धि सफल उपापचय (successful metabolism) का अन्तिम परिणाम (final product = end product) है। यह एक जटिल क्रिया है जिसमें निर्माण की मात्रा विघटन की मात्रा से अधिक होती है।

पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम|hindi




वृद्धि में विभज्योतकों का कार्य (Role of Meristems in Growth)

निम्न श्रेणी के पौधों (lower plants) में वृद्धि प्रायः उनके पूरे शरीर में होती है। किन्तु उच्च वर्ग (higher plants) के पौधों में यह वृद्धि कुछ विशेष भागों में सीमित रहती है। पौधों में ये विभज्योतक कुछ विशेष स्थानों पर पाये जाते हैं जिसके आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem)
  2. अन्तर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary meristem)
  3. पार्श्व विभज्योतक ( Lateral meristem)
  1. शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem) —आवृतबीजी पौधों में शीर्षस्थ विभज्योतक तने के शीर्ष (shoot apex) तथा जड़ के शीर्ष (root apex) पर पाये जाते हैं। इन शीर्षस्थ विभज्योतकों की क्रिया के फलस्वरूप पौधों के अंग लम्बाई में बढ़ते हैं। आवृतबीजी एवं अनावृतबीजी पौधों में उनके विभज्योतकी भाग में बहुत-सी कोशिकाओं का व्यवस्थित समूह होता है, परन्तु ब्रायोफाइटा तथा टेरिडोफाइटा वर्ग के पौधों में तने के भाग की सभी कोशाओं की उत्पत्ति केवल एक चतुष्फलकीय (tetrahedral) आकार की कोशिका से होती है।
  2. अन्तर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary meristem) - इस प्रकार के विभज्योतक हमेशा पर्वसन्धि (node) के ऊपर पाये जाते हैं। इन विभज्योतकों की क्रिया के फलस्वरूप ही पौधे के तने के पर्व (internode) लम्बाई में वृद्धि करते हैं; उदाहरण–बाँस।
  3. पार्श्व विभज्योतक (Lateral meristem) - इस प्रकार के विभज्योतक ऐसी कोशाओं के बने होते हैं जो केवल radial direction में विभाजित होते हैं। इनके द्वारा नयी ऊतियाँ बनती हैं। काग एधा अथवा कागजन (cork cambium or phellogen) तथा संवहन एधा (vascular cambium) इसी प्रकार के विभज्योतक हैं। पौधे के तनों व जड़ों की मोटाई इन्हीं विभज्योतकों द्वारा होती है।
पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम|hindi



वृद्धि की अवस्थाएँ (Phases of Growth)

ऊपर दिये गये सभी विभज्योतकों में विभाजन क्रिया, सूत्री विभाजन (mitosis) प्रकार की होती है जिसके द्वारा एक कोशिका से उसी प्रकार की दो कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार की बनी कुछ कोशिकाएं विभाजन योग्यता बनाये रखती हैं और बार-बार नयी कोशिकाओं को जन्म देती रहती हैं तथा कुछ कोशिकाओं में विभाजन योग्यता समाप्त हो जाती है। ये कोशिकाएं पहले विवर्धन (elongation) करती हैं और अन्त में विभिन्न गुणों के अनुसार विभेदित (differentiated) तथा व्यवस्थित होकर परिपक्व ऊतकों एवं अंगों (organs) का स्वरूप बनाती हैं। इस प्रकार यदि पौधे के किसी अंग की वृद्धि की विवेचना की जाये तो उसमें तीन प्रमुख भाग दिखलायी देंगे-

  1. कोशिका-निर्माण प्रावस्था (Phase of cell formation)
  2. कोशिका-विवर्धन प्रावस्था (Phase of cell elongation)
  3. परिपक्वता प्रावस्था (Phase of cell maturation = cell differentiation)
  1. कोशिका-निर्माण प्रावस्था (Phase of cell formation) — यह अवस्था तने तथा जड़ के शीर्षस्थ विभज्योतकों (apical meristems) में सीमित रहती है। इस भाग की कोशिकाएं निरन्तर विभाजित होती रहती हैं तथा संख्या में बढ़ती रहती हैं। इन कोशिकाओं में पर्याप्त जीवद्रव्य, बड़ा केन्द्रक तथा पतली सेलुलोस-भित्ति होती है। कोशिकाओं के अन्दर रिक्तिकाएँ (vacuoles) नहीं होती है।
  2. कोशिका-विवर्धन प्रावस्था (Phase of cell elongation) – यह अवस्था निर्माण अवस्था वाली कोशिकाओं के ठीक नीचे पायी जाती है। इस अवस्था में अनेक छोटी-छोटी रिक्तिकाएँ बन जाती हैं। इनमें जल तथा उसमें घुलित पदार्थ एकत्र होते रहते हैं और अन्त में सभी रिक्तिकाएँ जुड़कर एक बड़ी रिक्तिका बनाती हैं। यह बड़ी रिक्तिका कोशिका के केन्द्र में इस प्रकार स्थित होती है कि केन्द्रक एवं कोशाद्रव्य (cytoplasm) कोशिका-भित्ति की आन्तरिक सतह पर एक पतली परत के रूप में सटा रहता है जिसे कोशिका दृति (primordial utricle) कहते हैं।
  3. परिपक्वता प्रावस्था (Phase of cell maturation or cell differentiation) — यह अवस्था दूसरी प्रावस्था के ठीक नीचे की ओर पायी जाती है। यहाँ पर कोशिका एक निश्चित आकार के गुण धर्म को पाकर स्थायी ऊतियों में परिवर्तित हो जाती है तथा कोशिका भित्ति की मोटाई बढ़ती है। कभी-कभी यह मोटाई एक समान नहीं होती, जैसे कि ट्रेकिया (trachea) एवं ट्रेकीड (tracheids) की भित्तियों में विभिन्न प्रकार के स्थूलन उत्पन्न हो जाते हैं।
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वृद्धि -क्रम (Course of Growth)

वृद्धि की दर को प्रभावित करने वाले कारक यदि समान भी हों तब भी एक कोशिका की वृद्धि अथवा पौधे के एक अंग की वृद्धि अथवा पूरे पौधे की वृद्धि सदा एक समान नहीं होती है। प्रारम्भ में वृद्धि की दर पर्याप्त धीमी होती है। तत्पश्चात् यह दर तीव्र हो जाती है और उच्चतम् बिन्दु (maximum point) तक पहुँच जाती है। इसके बाद यह दर धीरे-धीरे कम होती जाती है और अन्त में समाप्त हो जाती है। इस प्रकार से कुल वृद्धि काल (total growth period) को तीन विभिन्न अवस्थाओं में विभक्त कर सकते हैं -
  1. प्रारम्भिक धीमा वृद्धि काल (Initial lag phase)
  2. मध्य तीव्र वृद्धि काल (Middle logarithmic phase)
  3. अन्तिम धीमा वृद्धि काल (Last stationary phase)
पौधों में वृद्धि (growth in plants) : वृद्धि की अवस्थाएँ, वृद्धि -क्रम|hindi


इस कुल समय को जिसमें वृद्धि की तीनों अवस्थाएँ पूरी होती हैं, समग्र वृद्धि काल (grand period of growth) कहते हैं। यदि वृद्धि दर का समय के साथ एक ग्राफ बनाया जाये तब एक S-आकृति वाला (sigmoid curve ) वृद्धि ग्राफ प्राप्त होता है। इसे समग्र वृद्धि काल चाप (grand period of growth curve) कहते हैं।

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