पौधे की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting plant growth)|hindi


पौधे की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting plant growth)
पौधे की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting plant growth)|hindi

पौधों में वृद्धि बहुत-से आन्तरिक एवं बाह्य कारकों के पारस्परिक सम्बन्धों (interactions) के द्वारा प्रभावित होती है।

(A) आन्तरिक कारक (Internal factors)
  • आनुवंशिकीय कारक (Genetical factors)
  • वृद्धि नियामक पदार्थ (Growth regulators)
(B) बाह्य या वातावरणीय कारक (External or environmental factors)



(A) आन्तरिक कारक (INTERNAL FACTORS)

1. आनुवंशिकीय कारक (GENETICAL FACTORS)

पौधों की वृद्धि में आनुवंशिकी का विशेष महत्त्व है। पौधों में बीज का निर्माण, परागण व निषेचन, आदि क्रियाओं के उपरान्त होता है। परागकणों व भ्रूणकोष (embryo sac) का निर्माण अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात् होता है, अतः इनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी (n) रह जाती है। परागकण से बाद में नर युग्मक बनता है जबकि भ्रूणकोष में स्थित अण्डकोशा, मादा युग्मक है। अर्धसूत्री विभाजन में पारगमन (crossing over) की क्रिया होती है, जिसमें समजात गुणसूत्रों के कुछ भाग परस्पर बदल जाते हैं, और नये पुनर्संयोजन (new recombinations) बनते हैं।
निषेचन क्रिया में नर युग्मक व मादा युग्मक के समेकन से युग्मनज (zygote) बनता है, इसका आनुवंशिक संगठन अपनी पैतृक पीढ़ी से भिन्न होता है। युग्मनज से भ्रूणीय विकास होता है, इसके साथ-साथ कुछ अन्य परिवर्तन भी होते हैं और सभी के फलस्वरूप बीज का निर्माण होता है।
बीज के अंकुरण से उस विशेष प्रकार के पौधे की ही उत्पत्ति होती है जिसका वह बीज है, यद्यपि वह पौधा अनेक लक्षणों में अपने पैतृक पौधे से भिन्न हो सकता है। इससे स्पष्ट है कि भ्रूणीय कोशिकाओं में कुछ ऐसी जीन्स (genes) होती हैं जो विशेष प्रकार के विकर (enzymes) संश्लेषित करती हैं और उनसे फिर उन पदार्थों का निर्माण होता है जो वृद्धि में आवश्यक हैं।

भ्रूणीय कोशाओं में स्थित जीन्स प्रभावी (dominant) तथा अप्रभावी (recessive) होती हैं। प्रभावी जीन्स, समयुग्मी तथा विषमयुग्मी दोनों स्थितियों में प्रभाव दिखाती हैं जबकि अप्रभावी जीन्स केवल समयुग्मी दशा में ही अपना प्रभाव दिखाती हैं। पौधों में लम्बाई, पुष्पन, प्रतिरोधक क्षमता, आदि अनेक ऐसे लक्षण हैं, जो सीधे जीन्स के नियन्त्रण में होते हैं। कभी-कभी जीन्स में अकस्मात् परिवर्तन हो जाते हैं, इन्हें उत्परिवर्तन (mutations) कहते हैं, इससे पौधों में वृद्धि तुरन्त ही प्रभावित होती है। आनुवंशिकी के आधार पर ही विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में महत्त्वपूर्ण एवं लाभदायक पौधों की अधिक स्वस्थ, सुदृढ़ जातियाँ उत्पन्न की जा रहीं हैं।


2. वृद्धि नियामक पदार्थ (GROWTH REGULATORS)

वृद्धि हॉर्मोन (Growth Hormones)

हॉर्मोन (Hormones) शब्द का प्रयोग "उत्तेजित करने वाला पदार्थ" (excitant) के रूप में सबसे पहले स्टरलिंग ने 1906 में किया। उनके अनुसार ये पदार्थ मेरुदण्डीय जन्तुओं (vertibrate animals) में कुछ नलिकाविहीन ग्रन्थियों (ductless glands) द्वारा स्रावित (secrete) होते हैं और जन्तुओं के विभिन्न भागों में फैलकर बहुत लघु मात्रा में ही कुछ विशेष क्रियाओं को क्रियान्वित करते हैं।

पादप हॉर्मोन (phytohormone) पौधों की विभज्योतकी कोशाओं (meristematic cells) और विकास करती पत्तियों एवं फलों में प्राकृतिक रूप में उत्पन्न होने वाले विशेष कार्बनिक यौगिक (organic compounds) हैं जो बहुत लघु मात्रा में परिवहन के उपरान्त पौधों के दूसरे अंगों में पहुँचकर वृद्धि एवं अनेक उपापचयी क्रियाओं (metabolic reactions) को प्रभावित एवं नियन्त्रित करते हैं। बहुत से कार्बनिक यौगिक जो प्राकृतिक रूप से पौधों में उत्पन्न नहीं होते, परन्तु पादप-हॉर्मोन के समान ही कार्य करते हैं, उन्हें भी वृद्धि नियन्त्रक पदार्थ (growth regulators-growth substances = growth regulating substances) कहते हैं। ये कार्बनिक यौगिक (कार्बोहाइड्रेट्स, वसा एवं प्रोटीन को छोड़कर जो ऑक्सीकरण ऊर्जा के द्वारा उत्पन्न करते हैं) बहुत लघु मात्रा में उपस्थित होने पर पौधों में वृद्धि करते हैं तथा वृद्धि-रोधन अथवा किसी दूसरे प्रकार से वृद्धि को नियन्त्रित करते हैं। वेण्ट (Went, 1928) के अनुसार, वृद्धि नियन्त्रक पदार्थों की अनुपस्थिति में वृद्धि नहीं होती है।

पादप-हॉर्मोन्स को हम पाँच प्रमुख वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -

1. ऑक्सिन (Auxins) उदाहरण :
इण्डोल ऐसीटिक अम्ल ( Indole Acetic Acid = IAA)
इण्डोल ब्यूटाइरिक अम्ल ( Indole Butyric Acid = IBA)
नेफ्थेलीन ऐसीटिक अम्ल (Naphthalene Acetic Acid – NAA)
2,4-डाइक्लोरो-फीनॉक्सी ऐसीटिक अम्ल (2,4-dichlorophenoxy acetic acid = 2,4-D)

2. जिबरेलिन (Gibberellins)— उदाहरण : जिबरेलिक अम्ल (Gibberellic acid = GA3) । beget
3. साइटोकाइनिन (Cytokinins) - उदाहरण : काइनेटिन (Kinetin), जियेटिन (Zeatin)।
4. एबसिसिक अम्ल (Abscisic acid = ABA)।
5. इथाइलीन (Ethylene)।

एबसिसिक अम्ल एवं इथाइलीन वृद्धिरोधक (inhibitors) हैं।

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(B) बाह्य या वातावरणीय कारक (EXTERNAL OR ENVIRONMENTAL FACTORS)

बाह्य कारकों में किसी पौधे अथवा पादप समुदाय के चारों ओर पाये जाने वाले वे सभी कारक आते हैं जो उस पर प्रत्यक्ष (direct) अथवा अप्रत्यक्ष (indirect) (दूसरे कारकों को प्रभावित करके) रूप में प्रभाव डालते हैं। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है -

(i) जलवायवी कारक (Climatic factors) — प्रकाश, ताप, वर्षा, आर्द्रता, आदि।
(ii) मृदीय कारक (Edaphic factors) – मृदा में उपस्थित खनिज लवण, मृदा जल, मृदा वायु, आदि ।
(iii) स्थलाकृतिक कारक (Topographic factors) — पृथ्वी की ऊँचाई, ढ़लान की मात्रा, ढ़लान की दिशा, आदि।
(iv) जैवीय कारक (Biotic factors) — जीवाणु, कवक, अन्य पौधे, जन्तु, परजीवी, मृतोपजीवी, आदि ।

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