उपापचय क्रिया (Metabolic reactions): परिभाषा, नियन्त्रण|hindi


उपापचय क्रिया (Metabolic reactions)

उपापचय क्रिया  (Metabolic reactions): परिभाषा, नियन्त्रण|hindi

जीवित प्राणियों में हर समय बहुत-से रासायनिक व भौतिक परिवर्तन होते रहते हैं। उपचयी (anabolic) क्रियाएँ रचनात्मक (synthetic) होती हैं जिनमें सरल पदार्थों से जटिल (complex) पदार्थ बनते रहते हैं इनसे जीवद्रव्य का निर्माण होता है। अपचयी (catabolic) क्रियाएँ विनाशात्मक (destructive) होती हैं। इनसे उपचयी क्रियाओं के विपरीत जटिल पदार्थों के विघटन से सरल पदार्थों का निर्माण होता है तथा विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिये ऊर्जा (energy) मुक्त होती है। उपचयी (anabolic) व अपचयी (catabolic) क्रियाओं के सम्पूर्ण रूप को उपापचय (metabolism) कहते हैं।


उपापचय क्रिया  (Metabolic reactions): परिभाषा, नियन्त्रण|hindi


उपापचय (metabolism) का नियन्त्रण निम्न प्रकार से होता है-


1. एन्जाइम द्वारा नियन्त्रण (Enzymatic control)

विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण मुख्य रूप से किसी विशेष एन्जाइम की क्रियाशीलता के घटने या बढ़ने से होता है। एन्जाइम की सक्रियता प्रत्यक्ष रूप से अनेक कारकों (factors), जैसे क्रियाधार सान्द्रता (substrate concentration), सहकारक (cofactors), निरोधक (inhibitors) तथा तापक्रम (temperature), आदि द्वारा प्रभावित होती है।


जीवधारियों में उपापचय (metabolism) सरल ढंग से नहीं होता है। जीवन के व्यवस्थित रूप से चलने के लिए अपचयी (catabolic) तथा उपचयी (anabolic) पथों में उपापचयों (metabolites) का प्रवाह नियमित होना आवश्यक है। जीवधारियों (living beings) में कई तरह के उपापचयी (metabolic) पथ (routes) होते हैं। जिसमें प्रत्येक पथ को विशेष विकर (enzyme), क्रियाधार (substrate) व सहकारक (cofactor) की आवश्यकता होती है। इसीलिए कोशिका में एक साथ कई हजार क्रियाएँ एक समय में अविरल गति से चलती रहती हैं। 


कुछ उपापचयी अभिक्रियाओं में बहुत-से रासायनिक पदार्थ मध्यस्थ रूप से समान होते हैं। उदाहरण के लिए, ग्लूकोस के ग्लाइकोलाइसिस (glycolysis) में विघटन के द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है तथा ग्लूकोस का संग्रह ग्लाइकोजेनिसिस (glycogenesis) के द्वारा ग्लाइकोजन के बनने में भी हो सकता है या फिर यह पेन्टोस फॉस्फेट पथ (pentose phosphate pathway) के द्वारा NADPH का निर्माण करता है।


A से D के रूपान्तरण की गति उपापचयी पथ के एन्जाइम (e) की सक्रियता पर आधारित है,

     (e1)     (e2)      (e3)
A   →   B   →   →  D


इस पथ का प्रथम मुख्य (key) एन्जाइम (e1) इस उपापचयी पथ का नियन्त्रण करता है। यदि एन्जाइम (e2) की क्रियाशीलता तीव्र है तब B तेजी से समाप्त हो जायेगा। इसीलिए एन्जाइम (e1) कभी भी साम्य (equilibrium) प्राप्त नहीं कर पाता है तथा D के निर्माण की दर एन्जाइम (e1) की सक्रियता पर निर्भर करती है।


दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि A का B में रूपान्तरण असाम्य (non-equilibrium) एन्जाइम (e1) से उत्प्रेरित होता है। इस तरह A का B 'रूपान्तरण, में प्रवाह (flux) उत्पन्न करने वाला पथ है। उपापचयी पथों को प्रथम क्रिया नियन्त्रित करती है। यदि A क्रियाधार (substrate) की सान्द्रता को बढ़ा देते हैं तथा एन्जाइम (e1) पूर्ण रूप से परिपूर्णता (saturation) ग्रहण कर लेता है तो इस उपापचयी पथ की गति पर कोई अन्तर नहीं पड़ता लेकिन यदि एन्जाइम (e1) परिपूर्ण नहीं हो पाया है तो क्रियाधार (substrate) की सान्द्रता बढ़ाने से इस पथ की गति भी बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि एन्जाइम अणु की सतह पर स्थित सभी सक्रिय स्थल (active sites) पर क्रियाधार (substrate) अणुओं का संयोग हो जाता है।


क्रियाधार (substrate) की अति निम्न स्तर की सान्द्रता पर विकर (enzyme) की क्रियाशीलता कम हो जाती है, क्योंकि विकर (enzyme) की सतह पर स्थित सभी सक्रिय स्थलों (active sites) पर क्रियाधार (substrate) का सम्पर्क नहीं हो पाता है।


विकर (enzyme) सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. क्रियाधार सान्द्रता (Concentration of substrate),
  2. विकर सान्द्रता (Concentration of enzyme),
  3. माध्यम का pH मान ( pH of medium),
  4. ताप (Temperature)
  5. हॉर्मोन (Hormone)
  6. भौतिक प्रकृति (Physical nature)
  7. पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet radiation)
  8. ऐमीनो अम्ल (Amino acid)
  9. विकर निरोधक (Enzyme inhibitors)
  10. स्पर्धी निरोधक (Competitive inhibitors)
  11. पुनर्भरण निरोध (Feedback inhibition)

उपरोक्त सभी कारक (factor) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विकरों (enzymes) को प्रभावित करते हैं जिससे उपापचयी (metabolic) पथों (routes) का नियन्त्रण होता है।



2. जीनी नियन्त्रण (Genic control) 

जार्ज बीडल तथा एडवर्ड टॉटम (Beadle and Tatum, 1941) ने “एक जीन-एक एन्जाइम" (one gene-one enzyme) सिद्धान्त दिया जिसके लिए उन्हें 1958 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया।

इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक उपापचयी क्रिया का नियन्त्रण एक विकर (enzyme) द्वारा होता है तथा विकर (enzyme) का संश्लेषण जीन के नियन्त्रण में होता है।

अतः यदि जीन संरचना में परिवर्तन हो जाये तो इसके नियन्त्रण में बनने वाले एन्जाइम का संश्लेषण नहीं होगा, जिसके परिणामस्वरूप उपापचयी क्रिया प्रभावित होगी। इस प्रकार उपापचयी क्रियाएँ अन्ततः जीन्स (genes) द्वारा ही नियन्त्रित होती हैं।



3. हॉर्मोन्स द्वारा नियन्त्रण (Hormonic control) 

नलिकाविहीन ग्रन्थियों (ductless glands) में उत्पन्न होने वाले हॉर्मोन्स, उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं। इन हॉर्मोनों (hormones) में विशिष्ट प्रोटीन उपस्थित रहती हैं जो कि ग्राही (acceptor) कहलाती हैं। ये ग्राही प्रोटीन अनेक क्रियाओं को प्रेरित करती हैं जिससे उपापचयी क्रियाओं की दर में परिवर्तन हो जाता है। अग्नाशय द्वारा स्रावित इन्सुलिन हॉर्मोन, ग्लाइकोजन निर्माण, वसा के संश्लेषण व भण्डारण को प्रेरित करता है। थॉयरॉक्सिन हॉर्मोन वसा के अपघटन को प्रेरित करता है। पिट्यूटरी ग्रन्थि द्वारा स्रावित वृद्धि हॉर्मोन कोशिकाओं में प्रोटीन-संश्लेषण को प्रेरित करता है।

स्टेरॉयड (steroid) व थाइरॉयड (thyroid) हॉर्मोन transcription को प्रभावित करते हैं जिससे एन्जाइम की क्रियाशीलता भी प्रभावित होती है तथा उपापचयी पथों का नियन्त्रण होता है। पॉलिपेप्टाइड हॉर्मोन जीवद्रव्य कला (plasma membrane) पर प्रभाव डालता है जिससे इस कला (membrane) की पारगम्यता (permeability) विशेष उपापचयी (metabolic) पदार्थों के लिए बदल जाती है और उपापचय पथों पर प्रभाव पड़ता है। पादपों में बनने वाले विभिन्न पादप हॉर्मोन्स (जैसे—ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, आदि) उपापचयी क्रियाओं को प्रभावित करके बीज अंकुरण, सामान्य वृद्धि, पुष्पन, विलगन, आदि का नियन्त्रण करते हैं।



4. तन्त्रिका तन्त्र तथा विटामिन्स
 

उपापचयी क्रियाएँ तन्त्रिका तन्त्र, विटामिन्स तथा वातावरण, आदि द्वारा भी नियन्त्रित होती हैं।

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