रासायनिक अभिक्रियाओं (chemical reactions) की दर अभिकारकों (reactants) की सान्द्रता, ताप और उत्प्रेरक (catalyst) की उपस्थिति द्वारा प्रभावित होती है। किसी पदार्थ की उपस्थिति से यदि किसी रासायनिक अभिक्रिया की दर परिवर्तित हो जाती है, परन्तु क्रिया के अन्त में पदार्थ स्वयं अपरिवर्तित (unchanged) रहता है तो इसे उत्प्रेरण (catalysis) कहते हैं। जो पदार्थ किसी रासायनिक अभिक्रिया की दर (rate) को परिवर्तित कर देता है, परन्तु स्वयं अभिक्रिया के अन्त में रासायनिक रूप से अपरिवर्तित रहता है उसे उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं।
सजीव कोशाओं में कुछ ऐसे कार्बनिक पदार्थों का निर्माण होता है, जो कोशा में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करते हैं। इन कार्बनिक पदार्थों को विकर (enzymes) अथवा जीव उत्प्रेरक (bio catalysts) कहते हैं। रासायनिक अभिक्रियाओं का एन्जाइमों द्वारा उत्प्रेरण एन्जाइम-उत्प्रेरण (enzyme-catalysis) कहलाता है।
एन्जाइम उच्च अणु भार के, नाइट्रोजनयुक्त, जटिल कार्बनिक यौगिक, प्रोटीन (protein) होते हैं, जो जीवित कोशाओं (living cells) में उत्पन्न होते हैं। ये मुख्यतः जीव-रासायनिक अभिक्रियाओं (bio-chemical reactions) को उत्प्रेरित करते हैं। अतः इन्हें जीव-उत्प्रेरक (bio-catalyst) भी कहते हैं।
एन्जाइम उत्प्रेरण के उदाहरण
1897 में एडुअर्ड एवं बुकनर (Eduard and Büchner) ने देखा कि यीस्ट का सत (extract) ग्लूकोस का किण्वन (fermentation) करता है। उन्होंने बताया कि यीस्ट में कुछ विशिष्ट पदार्थ इस क्रिया को करने में सक्षम हैं, जिन्हें विकर (enzyme) कहा गया। एन्जाइम का अर्थ है 'यीस्ट में' (in yeast) । विषाणुओं (viruses) में भी कुछ विकरों (enzymes) की खोज हुई है। सेक (Cech, 1981) व उसके साथियों ने बताया कि कुछ RNA अणु भी एन्जाइम का कार्य करते हैं। इन RNA अणुओं को जो कि उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करते हैं, राइबोजाइम (ribozyme) कहते हैं।
अधिकांश विकर (enzymes) जिन कोशिकाओं में उत्पन्न होते हैं वहीं पर क्रिया करते हैं इन्हें अन्त: विकर (endoenzyme) कहते हैं। जीवाणुओं, कवक तथा कीटभक्षी पादपों में ये विकर (enzymes) कोशिकाओं से बाहर आकर अभिक्रियाएँ करते हैं इन्हें बाह्य विकर (exoenzyme) कहते हैं।
विकर (enzyme) कोशिकाओं में बिना ताप बढ़ाये ही उपापचयी (metabolic) क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। ये केवल जीवित कोशिकाओं में ही उत्पन्न होते हैं तथा रासायनिक क्रियाओं की गति व विशिष्टता को नियन्त्रित करते हैं।
विकर (enzyme) की परिभाषा निम्न प्रकार से है—
"कोशिकाओं में उपापचयी अभिक्रियाओं (metabolic reactions) की गति को बढ़ाने वाले प्रोटीन के बने कार्बनिक पदार्थों को विकर (enzyme) कहते हैं"।
विकर (enzyme) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कुहने (Kuhne, 1878) ने यीस्ट में उपस्थित उस पदार्थ के लिए किया जिसके द्वारा किण्वन (fermentation) की क्रिया होती है। हैंस बुकनर (Hans Büchner, 1897) ने सबसे पहले यीस्ट से जाइमेस (zymase) नामक एन्जाइम अलग किया। सुमनर (Sumner, 1926) ने लोबिया (jack beans) के बीजों से यूरिएस (urease) नामक एन्जाइम के रवे (crystals) प्राप्त किये। बुकनर व सुमनर को अपने कार्यों के लिए क्रमशः 1903 व 1946 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया।
विकरों का नामकरण (Nomenclature of Enzymes)
जिन पदार्थों पर विकर (enzymes) क्रिया करते हैं उन्हें कार्यद्रव्य अथवा क्रियाधार (substrate) कहते हैं, जैसे शर्करा (sugar) क्रियाधार (substrate) है जिस पर क्रिया करके खमीर (यीस्ट) ऐल्कोहॉल बनाता है। एन्जाइमों का नामकरण उनके क्रियाधार (substrate) के नामों के अन्त में "एस" प्रत्यय (“ase" suffix) लगाकर किया जाता है। इनके नाम का प्रथम भाग उस क्रियाधार (substrate) को व्यक्त करता है जिस पर वह एन्जाइम क्रिया करता है।
उदाहरण के लिए-
कुछ एन्जाइमों के नाम बहुत समय से प्रयोग में आने के कारण सर्वमान्य (accepted) हो चुके हैं। जैसे टायलिन, पेप्सिन, ट्रिप्सिन और इरेप्सिन, आदि।
ऐसे भी कई पदार्थ हैं, जिन पर कई एन्जाइम भिन्न-भिन्न प्रकार से अभिक्रिया करते हैं। डाइपेप्टाइड पर तीन एन्जाइम निम्न प्रकार की अभिक्रियाएँ करते हैं,
जैसे - डाइपेप्टीडेस (dipeptidase) एन्जाइम उसे अमीनो अम्लों में जल अपघटित कर सकता है। दूसरा एन्जाइम उसके मुक्त अमीनो ग्रुप को हटा सकता है और तीसरा एन्जाइम उसके मुक्त कार्बोक्सिलिक समूह को हटाने की अभिक्रिया करता है।
ऐसी दशा में यदि तीनों एन्जाइमों को डाइपेप्टीडेस ही कहें, तो भ्रामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिये कुछ एन्जाइमों का नामकरण उनके कार्यों के आधार पर किया जाता है।
क्रियाधार (substrate) पर आधारित नाम केवल अम्ल-अपघटनी एन्जाइमों (acid hydrolytic enzymes) के लिये दिया जाता है। इस आधार पर ऊपर लिखे तीन एन्जाइमों के नाम क्रमश: डाइपेप्टीडेस (dipeptidase), डीऐमीनेस (deaminase) और डीकार्बोक्सिलेस (decarboxylase) होंगे। क्रियात्मक आधार पर नामकरण पद्धति में अन्य एन्जाइमों में ऐल्डिहाइडेस (aldehydase), डीहाइड्रोजिनेस (dehydrogenase), हाइड्रोलेस (hydrolase) तथा ऑक्सीडेस (oxidase) मुख्य हैं।
विकरों का वर्गीकरण (Classification of Enzymes)
इन्टरनेशनल यूनियन ऑफ बायोकैमिस्ट्स (IUB-1964) के एन्जाइम आयोग ने एन्जाइमों को उनकी कार्यात्मक (functional) विशिष्टता अर्थात् उनकी उत्प्रेरक क्रिया के आधार पर छः मुख्य समूहों (groups) में वर्गीकृत किया है। प्रत्येक समूह को भी उपसमूहों (subgroups) में विभाजित किया गया है जिनमें कई एन्जाइमों को रखा गया है। एन्जाइमों के वर्गीकरण को समझने के लिये उपापचयी (metabolic) क्रियाओं में एन्जाइमों की क्रिया का ज्ञान आवश्यक है।
- माल्टेस (Maltase) - माल्टोस पर अभिक्रिया करते हैं।
- लाइपेस (Lipase) — कुछ लिपिड्स (lipids) पर अभिक्रिया करते हैं।
- एमिलेस (Amylase) – स्टार्च (Amylum) पर अभिक्रिया करते हैं।
- लैक्टेस (Lactase) - लैक्टोस पर अभिक्रिया करते हैं।
- कार्बोहाइड्रेस (Carbohydrases) — कार्बोहाइड्रेट्स पर अभिक्रिया करते हैं।
- प्रोटिएस (Proteases) —bप्रोटीन्स पर अभिक्रिया करते हैं।
कुछ एन्जाइमों के नाम बहुत समय से प्रयोग में आने के कारण सर्वमान्य (accepted) हो चुके हैं। जैसे टायलिन, पेप्सिन, ट्रिप्सिन और इरेप्सिन, आदि।
ऐसे भी कई पदार्थ हैं, जिन पर कई एन्जाइम भिन्न-भिन्न प्रकार से अभिक्रिया करते हैं। डाइपेप्टाइड पर तीन एन्जाइम निम्न प्रकार की अभिक्रियाएँ करते हैं,
जैसे - डाइपेप्टीडेस (dipeptidase) एन्जाइम उसे अमीनो अम्लों में जल अपघटित कर सकता है। दूसरा एन्जाइम उसके मुक्त अमीनो ग्रुप को हटा सकता है और तीसरा एन्जाइम उसके मुक्त कार्बोक्सिलिक समूह को हटाने की अभिक्रिया करता है।
ऐसी दशा में यदि तीनों एन्जाइमों को डाइपेप्टीडेस ही कहें, तो भ्रामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिये कुछ एन्जाइमों का नामकरण उनके कार्यों के आधार पर किया जाता है।
क्रियाधार (substrate) पर आधारित नाम केवल अम्ल-अपघटनी एन्जाइमों (acid hydrolytic enzymes) के लिये दिया जाता है। इस आधार पर ऊपर लिखे तीन एन्जाइमों के नाम क्रमश: डाइपेप्टीडेस (dipeptidase), डीऐमीनेस (deaminase) और डीकार्बोक्सिलेस (decarboxylase) होंगे। क्रियात्मक आधार पर नामकरण पद्धति में अन्य एन्जाइमों में ऐल्डिहाइडेस (aldehydase), डीहाइड्रोजिनेस (dehydrogenase), हाइड्रोलेस (hydrolase) तथा ऑक्सीडेस (oxidase) मुख्य हैं।
विकरों का वर्गीकरण (Classification of Enzymes)
इन्टरनेशनल यूनियन ऑफ बायोकैमिस्ट्स (IUB-1964) के एन्जाइम आयोग ने एन्जाइमों को उनकी कार्यात्मक (functional) विशिष्टता अर्थात् उनकी उत्प्रेरक क्रिया के आधार पर छः मुख्य समूहों (groups) में वर्गीकृत किया है। प्रत्येक समूह को भी उपसमूहों (subgroups) में विभाजित किया गया है जिनमें कई एन्जाइमों को रखा गया है। एन्जाइमों के वर्गीकरण को समझने के लिये उपापचयी (metabolic) क्रियाओं में एन्जाइमों की क्रिया का ज्ञान आवश्यक है।
विकरों की विशेषताएँ (Characteristics of Enzymes)
- विकर (enzymes), उत्प्रेरकों (catalyst) के रूप में कार्य करते हैं और जीवों (living organisms) में अभिक्रिया की दर (rate of reaction) को प्रभावित करते हैं।
- क्रियाधारों (reactants or substrate) को उत्पादों (products) में बदलने के लिये एन्जाइम की बहुत सूक्ष्म मात्रा अथवा सान्द्रता की आवश्यकता होती है।
- एन्जाइम उत्प्रेरक (enzyme catalyst) उच्च अणु भार के, जटिल, नाइट्रोजनी कार्बनिक यौगिक, प्रोटीन होते हैं। जो जीवित कोशिकाओं में उत्पन्न होते हैं। एन्जाइम का अणु उसके क्रियाधार (substrate) के अणु की तुलना में बहुत बड़ा होता है। एन्जाइम का आण्विक भार हजारों से लेकर लाखों तक होता है, जबकि क्रियाधारों का अणु भार प्रायः कुछ सैकडों में ही होता है।
- ये किसी रासायनिक क्रिया को प्रारम्भ नहीं करते बल्कि क्रिया की गति को उत्प्रेरित (catalysed) करते हैं।
- अधिकांश एन्जाइम, जल अथवा नमक के घोल में घुलनशील होते हैं। कोशाद्रव्य में ये कोलॉयडी (colloidal) विलयन बनाते हैं।
- एन्जाइम जीवों में होने वाली समस्त शरीर क्रियात्मक अभिक्रियाओं (physiological reactions), जैसे जल अपघटन, ऑक्सीकरण, अपचयन, अपघटन, आदि को उत्प्रेरित करते हैं।
- एन्जाइम प्रायः विशिष्ट (specific) होते हैं, अर्थात् एक एन्जाइम एक विशेष क्रिया का ही उत्प्रेरण करता है। उदाहरणार्थ, एन्जाइम इन्वर्टेस (invertase) केवल सुक्रोस के जल अपघटन को उत्प्रेरित करता है।
इन्वर्टेस (invertase) एन्जाइम द्वारा माल्टोस का ग्लूकोस में जल अपघटन उत्प्रेरित नहीं होता है।
- एन्जाइम ताप परिवर्तन से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। किसी एन्जाइम की उत्प्रेरक सक्रियता जिस ताप पर सर्वाधिक होती है उसे अनुकूलन ताप (optimum temperature) कहते हैं। अनुकूलन ताप पर अभिक्रिया की दर उच्चतम् होती है। अधिक ताप पर एन्जाइम की विकृति (denatured) हो जाती है, अर्थात् एन्जाइम की प्रोटीन संरचना और उसकी उत्प्रेरक सक्रियता नष्ट हो जाती है। एन्जाइमों का अनुकूलन ताप साधारणतः 25-40°C होता है। बहुत कम ताप पर एन्जाइम निष्क्रिय (deactivate) हो जाते हैं।
- एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की दर pH परिवर्तन से बहुत प्रभावित होती है। प्रत्येक एन्जाइम एक विशेष pH माध्यम में ही पूर्ण सक्रिय होता है। प्रत्येक एन्जाइम की उत्प्रेरक सक्रियता जिस pH पर अधिकतम् होती है उसे अनुकूलन pH (optimum pH) कहते हैं। एन्जाइमों की अनुकूलन pH साधारणतः 5-7 होती है।
- कुछ एन्जाइम अम्लीय माध्यम में तथा कुछ क्षारीय माध्यम में क्रिया करते हैं।
- कुछ एन्जाइम कोशिका के अन्दर सक्रिय होते हैं (endoenzymes) तथा कुछ एन्जाइम कोशा के बाहर भी सक्रिय होते हैं (exoenzymes )।
- एन्जाइम यद्यपि रासायनिक क्रिया में भाग लेते हैं परन्तु क्रिया में प्रयुक्त (used up) नहीं होते। क्रिया के पश्चात् इनकी मात्रा नहीं बदलती और अभिक्रिया के समाप्त होने पर एन्जाइम अप्रभावित (unaffected) बने रहते हैं और ये क्रिया से अलग होकर पुनः उन्हीं अभिक्रियाओं का उत्प्रेरण करते रहते हैं।
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