प्रोटीन (Protein)
सामान्य परिचय (General Introduction)
प्रोटीन का यह नाम सन् 1838-1839 में बरजीलियस एवं मूल्डर (Berzelius and Mulder) ने दिया। ये सजीव शरीर का लगभग 14% तथा मृत और सूखे शरीर का 50% तक भाग बनाती हैं। अतः इससे स्पष्ट है कि प्रोटीन्स की मात्रा मनुष्य के मांसाहारी भोजन में सबसे अधिक होती है। शाकाहारी लोगों को प्रोटीन्स अनाज, दूध, दालों आदि से प्राप्त होती हैं। दालों में ये अत्यधिक संघनित होती हैं।
प्रोटीन्स के संयोजन में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के अतिरिक्त, लगभग 16% नाइट्रोजन भी होती है। यही नहीं, इनमें गन्धक, फॉस्फोरस, आयोडीन तथा लौह आदि के अंश भी प्रायः होते हैं। पूर्ण विखण्डन पर शुद्ध प्रोटीन्स के अणु सरल ऐमीनो अम्लों (amino acids) के अणुओं में टूटते हैं। अतः प्रोटीन्स ऐमीनो अम्लों की यौगिक होती हैं, अर्थात् ऐमीनो अम्ल इनकी संयोजक इकाइयाँ या एकलक (monomers) होते हैं।
प्रकृति में लगभग 300 प्रकार के ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं। जीवद्रव्य में भी कई प्रकार के ऐमीनो अम्ल होते हैं, परन्तु इनमें से केवल 20 प्रकार के ऐमीनो अम्ल ही प्रोटीन्स के एकलक होते हैं। इन 20 प्रकार के ऐमीनो अम्लों में से 10 प्रकार के ऐमीनो अम्ल भोजन से भी प्राप्त हो सकते हैं और देह-कोशिकाओं में भी बन सकते हैं। इन्हें अनानिवार्य (nonessential) ऐमीनो अम्ल कहते हैं। शेष 10 प्रकार के ऐमीनो अम्ल हमें केवल भोजन से ही प्राप्त होते हैं। अतः इन्हें अनिवार्य (essential) ऐमीनो अम्ल कहते हैं।
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➤ हमारे आहार की जिन प्रोटीन्स में सभी अनिवार्य ऐमीनो अम्ल होते हैं, पूर्ण प्रोटीन्स (complete proteins) कहलाती हैं। जिस आहार में ऐसी प्रोटीन्स होती हैं उसे पूर्ण आहार (complete food) कहते हैं। इसके विपरीत, जिन प्रोटीन्स में सारे अनिवार्य ऐमीनो अम्ल नहीं होते उन्हें अपूर्ण प्रोटीन्स (incomplete proteins) तथा इनसे युक्त आहार को अपूर्ण आहार (incomplete food) कहते हैं।
➤ भोजन की वे प्रोटीन्स जिनमें संरचनात्मक प्रोटीन्स के संश्लेषण के लिए आवश्यक सब ऐमीनो अम्ल होते हैं, पर्याप्त प्रोटीन्स (adequate proteins) कहलाती हैं। इसके विपरीत, भोजन की वे प्रोटीन्स जिनके ऐमीनो अम्लों का उपयोग केवल ऊर्जा उत्पादन हेतु किया जा सकता है, अपर्याप्त प्रोटीन्स (inadequate proteins) कहलाती हैं।
1. प्रोटीन्स के अणु बहुत बड़े-बड़े और प्रायः त्रिविम (three dimensional) गुरुअणु या बहुलक (macromolecules, or polymers) होते हैं। किन्हीं दो से लेकर बीसों प्रकार के ऐमीनो अम्ल इसके घटक हो सकते हैं।
2. यदि हम अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों के विभिन्न संयोजनों से बने शब्दों का अनुमान लगाएँ तो सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि जीवों में प्रोटीन्स के अणुओं की संख्या और विविधता सर्वाधिक होती है और जीवों की संरचना एवं कार्यिकी में मुख्यतः इन्हीं अणुओं की भूमिकाएँ होती हैं।
3. हमारे शरीर की एक कोशिका में ही 10,000 विभिन्न प्रकार की प्रोटीन्स के अणु हो सकते हैं।
4. हमारे पूर्ण शरीर में अनुमानतः 50,000 से 1,00,000 तक विविध प्रकार की प्रोटीन्स बनती हैं।
5. वैज्ञानिक अब इस निष्कर्ष पर पहुँच रहे हैं कि एक ही जीव-शरीर की किन्हीं दो प्रकार की कोशिकाओं की प्रोटीन्स, किन्हीं दो जन्तु जातियों की प्रोटीन्स तथा किसी जीव-जाति के दो सदस्यों की सारी प्रोटीन्स समान नहीं होतीं। यही नहीं, इनके आधार पर जन्तु-जातियों के उद्विकास- इतिहास को भी जानने का प्रयास किया जा रहा है।
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जैव-प्रोटीन्स की निम्नलिखित तीन प्रमुख श्रेणियाँ और कई उपश्रेणियाँ होती हैं-
1. सरल या शुद्ध प्रोटीन्स (Simple or Pure Proteins)
ये केवल ऐमीनो अम्ल इकाइयों अर्थात् एकलकों की बनी होती हैं। अणुओं (molecules) की संरचना और आकृति के आधार पर इनके दो प्रमुख भेद होते हैं-
➤ गोलाकार प्रोटीन्स (Globular Proteins) : ये जल, नमक, अम्लों और क्षारों के तनु (dilute) घोलों में घुलनशील, परन्तु रचना में जटिल अणुओं वाली प्रोटीन्स होती हैं। अपने घोलकों में ये विसरणशील (diffusible) होती हैं और कोलॉएडलीय घोल बनाती हैं। इनके अणु संकुचनशील नहीं होते, बल्कि वलित (folded) और कुण्डलित (coiled) होकर प्रायः गोल से बने रहते हैं। इनका विशेष महत्त्व उपापचयी (metabolic) अभिक्रियाओं में होता है।
सारे एन्जाइम, कई हॉरमोन (जैसे इन्सुलिन, थाइरॉक्सिन, ACTH आदि), हानिकारक जीवाणुओं एवं पदार्थों को नष्ट करने वाले प्रतिविष या ऐण्टीबॉडीज (antibodies), अण्डों और रुधिर के प्लाज्मा की ऐल्बूमिन तथा ग्लोब्यूलिन्स (albumin and globulins), हीमोग्लोबिन की ग्लोबिन, पेशियों की मायोग्लोबिन (myoglobin), न्यूक्लिओप्रोटीन्स की हिस्टोन्स (histones), अनाज की ग्लूटेलिन्स (glutelins), दालों की प्रोलैमीन्स (prolamines) आदि सब गोलाकार प्रोटीन्स होती हैं। दालों में उपस्थित संघनित (concentrated) प्रोटीन्स प्रोलैमीन्स ही होती हैं। ये शाकाहारी भारतीयों के लिए प्रोटीन्स का प्रमुख स्रोत होती हैं।
➤ तन्तुवत् प्रोटीन्स (Fibrous Proteins) : ये जल में अघुलनशील, संरचनात्मक (structural) प्रोटीन्स होती हैं जो जन्तु शरीर की रचना में प्रमुख भाग लेती हैं। संयोजी ऊतकों, कण्डराओं (tendons), उपास्थियों, हड्डियों आदि की कोलैजन (collagen), इलास्टिन (elastin), एवं रेटिकुलिन (reticulin), त्वचा, सींगों, नाखूनों, पंखों, बालों आदि की किरैटिन (keratin), रेशम की फाइब्रॉइन (fibroin), पेशियों की ऐक्टिन एवं मायोसीन, रुधिर के थक्के की फाइब्रिन (fibrin) आदि सब तन्तुवत् प्रोटीन्स होती हैं। इनके अणु लम्बे, धागेनुमा और संकुचनशील होते हैं।
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2. अनुबद्ध प्रोटीन्स (Conjugated Proteins)
ये सरल प्रोटीन्स तथा किसी अन्य पदार्थ की यौगिक होती हैं। इन अन्य पदार्थों को प्रायः प्रोस्थेटिक समूह (prosthetic groups) कहते हैं। इन्हीं समूहों के रासायनिक संघठन के आधार पर अनुबद्ध प्रोटीन्स की निम्नलिखित उपश्रेणियाँ होती हैं—
◾ फॉस्फोप्रोटीन्स (Phosphoproteins): फॉस्फोरिक अम्ल से जुड़ी प्रोटीन्स, जैसे दूध की कैसीन (casein)।
◾ न्यूक्लिओप्रोटीन्स (Nucleoproteins): न्यूक्लीक अम्लों और हिस्टोन प्रोटीन्स की यौगिक। ये कोशिकाओं के केन्द्रक में क्रोमैटिन (chromatin) नामक पदार्थ बनाती हैं।
◾ ग्लाइकोप्रोटीन्स या म्यूकोप्रोटीन्स (Glycoproteins or Mucoproteins): यह कार्बोहाइड्रेट्स एवं प्रोटीन्स की यौगिक होते हैं। यह संयोजी ऊतकों, उपास्थियों, आहारनाल, लार, साइनोवियल द्रव्य आदि में पाया जाने वाला श्लेष्म (mucus) होते हैं।
◾ क्रोमोप्रोटीन्स (Chromoproteins) : यह प्रोटीन्स एवं रंगा पदार्थों की यौगिक होते हैं। इसके अंतर्गत रुधिर की हीमोग्लोबिन (haemoglobin) तथा हीमोसाएनिन (haemocyanin), माइटोकॉण्ड्रिया की साइटोक्रोम (cytochromes) आदि आते हैं।
◾ लाइपोप्रोटीन्स (Lipoproteins) : यह वसा एवं प्रोटीन्स की यौगिक होते हैं, इसके अंतर्गत अण्डे की जर्दी–लाइपोविटैलिन (lipovitellin) तथा रुधिर में संचरित लाइपोप्रोटीन्स (lipoproteins) आते हैं।
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3. व्युत्पन्न प्रोटीन्स (Derived Proteins)
ये सरल या अनुबद्ध प्रोटीन्स के अधूरे जल-अपघटन से बनी छोटी पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ (small polypeptide chains) होती हैं जो प्रोटीन्स की पाचन प्रक्रिया में बनती हैं। इन्हें प्रोटिओसेस एवं पेप्टोन्स कहते हैं—
proteins → proteases → peptones → peptides → amino acids
हमारे शरीर में प्रोटीन्स का महत्त्व (Importance of proteins in our body)
याद रखो, कोशिकाओं में प्रत्येक प्रोटीन किसी एक जीन (gene) की संकेत सूचना (coded information) के अनुसार संश्लेषित होती है। अतः विविध प्रकार की प्रोटीन्स शरीर के विभिन्न संरचनात्मक एवं क्रियात्मक आनुवंशिक लक्षणों की दृश्यरूप अभिव्यक्ति के लिए जिम्मेवार होती हैं। इसीलिए, शरीर में इनकी उपयोगिता, निम्नलिखित वर्णन के अनुसार, विस्तृत प्रकार की होती है-
➤ कोलॉइडी प्रोटीन्स (Colloidal Proteins) : यह प्रोटीन्स अपेक्षाकृत सरल एवं घुलनशील प्रोटीन्स होती हैं जो कोशिकाओं के जीवद्रव्य के आधारभूत तरल (जल) में घुली रहती हैं और द्रव्य की भौतिक दशाओं (सॉल—sol एवं जेल—gel) का नियन्त्रण करती हैं।
याद रखो, कोशिकाओं में प्रत्येक प्रोटीन किसी एक जीन (gene) की संकेत सूचना (coded information) के अनुसार संश्लेषित होती है। अतः विविध प्रकार की प्रोटीन्स शरीर के विभिन्न संरचनात्मक एवं क्रियात्मक आनुवंशिक लक्षणों की दृश्यरूप अभिव्यक्ति के लिए जिम्मेवार होती हैं। इसीलिए, शरीर में इनकी उपयोगिता, निम्नलिखित वर्णन के अनुसार, विस्तृत प्रकार की होती है-
➤ कोलॉइडी प्रोटीन्स (Colloidal Proteins) : यह प्रोटीन्स अपेक्षाकृत सरल एवं घुलनशील प्रोटीन्स होती हैं जो कोशिकाओं के जीवद्रव्य के आधारभूत तरल (जल) में घुली रहती हैं और द्रव्य की भौतिक दशाओं (सॉल—sol एवं जेल—gel) का नियन्त्रण करती हैं।
➤ संरचनात्मक प्रोटीन्स (Structural Proteins) : तन्तुवत् (fibrous) प्रोटीन्स जो कोशिकाओं के विभिन्न अंगकों (organelles) तथा संयोजी ऊतकों की रचना में प्रमुख भाग लेती हैं। अतः ये वृद्धि एवं मरम्मत (उपचय अर्थात् ऐनैबोलिज्म–anabolism) के लिए आवश्यक होती हैं। संयोजी ऊतकों की कोलैजन, इलास्टिन तथा रेटिकुलिन और त्वचा एवं नाखूनों की किरैटिन ऐसी ही प्रोटीन्स होती हैं।
➤ एन्जाइमी प्रोटीन्स (Enzymatic Proteins) : अनेक जटिल प्रोटीन्स उपापचयी (metabolic) अभिक्रियाओं में उत्प्रेरकों अर्थात् एन्जाइमों (catalysts or enzymes) का काम करती हैं।
➤ नियामक प्रोटीन्स (Regulatory Proteins) : कुछ प्रोटीन्स हॉरमोन्स (hormones) के रूप में, कोशिकाओं की क्रियाओं का नियमन करती हैं।
➤ पोषक प्रोटीन्स (Nutrient Proteins) : प्रोटीन्स जिनके ऐमीनो अम्लों के डीऐमिनेशन (deamination) के बाद कार्बोक्सिल अंश ऊर्जा उत्पादन या वसा-संश्लेषण में भाग लेते हैं।
➤ परिवहन प्रोटीन्स (Transport Proteins) : ये रुधिर में संचरित ऐसी प्रोटीन्स होती हैं जो विशिष्ट पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भागों के बीच लाने-ले जाने का काम करती हैं। उदाहरण के लिए, रुधिर की हीमोग्लोबिन O2 का संवहन करती है। इसी प्रकार, रुधिर प्लाज्मा की लाइपोप्रोटीन्स (lipoproteins) वसाओं का यकृत से वसीय ऊतकों तथा अन्य ऊतकों तक संवहन करती हैं। कोशिकाकला में उपस्थित कुछ प्रोटीन्स विशिष्ट अणुओं का membrane के आर-पार संवहन करती हैं।
➤ सुरक्षात्मक प्रोटीन्स (Defense Proteins) : ये शरीर में पहुँचने वाले हानिकारक पदार्थों तथा आक्रमणकारी जीवाणुओं आदि को नष्ट करके शरीर की सुरक्षा करती हैं। इन्हें प्रतिविष (antibodies) कहते हैं।
➤ न्यूक्लिओप्रोटीन्स (Nucleoproteins) : ये आनुवंशिक लक्षणों के विकास एवं वंशागति का नियन्त्रण करती हैं।
➤ संकुचनशील प्रोटीन्स (Contractile Proteins) : ये पेशियों की ऐक्टिन एवं मायोसीन (actin and myosin) प्रोटीन्स होती हैं जो पेशियों को सिकोड़कर शरीर एवं अंगों को गति प्रदान करती हैं।
➤ फाइब्रिनोजन एवं थ्रॉम्बिन (Fibrinogen and Thrombin) : ये रुधिर में होती हैं और चोट पर रुधिर का थक्का बनाकर रुधिरस्राव को रोकती हैं।
➤ अम्ल क्षार सन्तुलन प्रोटीन्स (Acid-Base Balance Proteins) : ये अम्ल क्षार सन्तुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देती हैं।
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