लिपिड (Lipids) क्या है? परिभाषा, रासायनिक संयोजन, वसीय अम्ल|hindi


लिपिड (Lipids) क्या है? परिभाषा, रासायनिक संयोजन, वसीय अम्ल
लिपिड (Lipids) क्या है? परिभाषा, रासायनिक संयोजन, वसीय अम्ल|hindi

लिपिड अनेक प्रकार के तैलीय (oily), स्नेहकीय (greasy) एवं मोमिया (waxy) कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो जीवधारियों में पाए जाते हैं। घी, चर्बी, वनस्पति तैल (vegetable oils), मोम, प्राकृतिक रबर, कोलेस्ट्रॉल (cholesterol), पौधों के रंग पदार्थ (pigments) एवं गन्धयुक्त (odorous) पदार्थ, स्टीरॉएड हॉरमोन्स (steroid hormones), वसा में घुलनशील विटामिन (A, D, E, K) आदि सब लिपिड्स ही होते हैं। लिपिड शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम् जर्मनी के विल्हेम ब्लूर (Wilhelm Bloor-1925), ने किया। उन्हें "आधुनिक लिपिड रासायनी तथा जैव-रासायनी का जनक" कहते हैं। उनके अनुसार, लिपिड्स में इतनी विविधता होने पर भी इन सबके निम्नलिखित दो समान विशिष्ट लक्षण होते हैं-
  1. ये सब वास्तविक या सम्भाव्य रूप से (potentially) वसीय अम्लों के एस्टर (esters of fatty acids) होते हैं।
  2. ये सब अध्रुवीय (nonpolar) होते हैं। अतः ये जल में अघुलनशील होते हैं, परन्तु अध्रुवीय कार्बनिक घोलको जैसे क्लोरोफॉर्म (chloroform), बेन्जीन (benzene), ईथर (ether), ऐसीटोन (acetone), पेट्रोलियम (petroleum), किरोसिन (kerosene) आदि में घुलनशील होते हैं।
सभी लिपिड अणु छोटे जैव अणु (micro biomolecules) होते हैं। इनका अणु भार 750 से 1500 ही होता है।


लिपिड अणुओं का रासायनिक संयोजन (Chemical Composition of Lipid Molecules) 
कार्बोहाइड्रेट्स की तरह ही लिपिड्स भी कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के ही बने होते हैं, परन्तु इनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के परमाणुओं का अनुपात 2 : 1 नहीं होता है। हाइड्रोजन तथा कार्बन के परमाणुओं की संख्या ऑक्सीजन के परमाणुओं से बहुत अधिक होती है। कुछ में फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा सल्फर के भी कुछ परमाणु होते हैं।


वसीय अम्ल (Fatty Acids)
वसीय अम्ल अधिकांश लिपिड्स का प्रमुख भाग बनाते हैं। प्रत्येक वसीय अम्ल के अणु में हाइड्रोकार्बन्स (CH2) की एक अशाखित शृंखला होती है। शृंखला में CH2 की संख्या 4 से 36 तक होती है, परन्तु यह सदैव सम संख्या (even numbers) में होती है। श्रृंखला के एक तरफ के कार्बन परमाणु एक कार्बोक्सिल समूह (carboxyl group— COOH) तथा दूसरे छोर के कार्बन परमाणु से एक मेथिल समूह (methyl group-CH3) जुड़ा होता है। इस प्रकार, वसीय अम्लों का मूलानुपाती सूत्र CH2 (CH2)n COOH होता है। कार्बोक्सिल समूह एक ऋण आवेश (negative charge) के कारण ध्रुवीय (polar) होता है। अतः यह वसीय अम्ल का जल में घुलनशील (hydrophilic) "शीर्ष (head)" भाग बनाता है। अणु का शेष भाग जल में अघुलनशील (hydrophobic) "पुच्छ (tail)" भाग होता है।
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ऐसे अणु जिनमें hydrophilic और hydrophobic, दोनों भाग होते हैं वह amphipathic कहलाते हैं। ऐसे स्वभाव के कारण ही वसीय अम्ल महत्त्वपूर्ण जैव अणु होते हैं।

संतृप्त एवं असंतृप्त वसीय अम्ल (Saturated and Unsaturated Fatty Acids) 
जीवों में प्रायः पाए जाने वाले वसीय अम्लों में कार्बन परमाणुओं की संख्या 12 से 30 होती है। कुछ के अणुओं में सारे कार्बन परमाणु single सहसंयोजी बन्धों द्वारा आगे-पीछे, एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। ये संतृप्त वसीय अम्ल होते हैं। जन्तु वसाओं में प्रायः ऐसे ही वसीय अम्ल होते हैं। अन्य वसीय अम्लों की हाइड्रोकार्बन शृंखलाओं में 1, 2, 3 या 4 निश्चित स्थानों के कार्बन परमाणु double bonds द्वारा जुड़े होते हैं। ऐसा प्रत्येक कार्बन परमाणु एक अतिरिक्त हाइड्रोजन परमाणु से भी जुड़ सकता है। इसलिए इस प्रकार के वसीय अम्ल असंतृप्त होते हैं। पादप वसाओं में प्रायः ऐसे ही वसीय अम्ल होते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण संतृप्त एवं असंतृप्त वसीय अम्ल आगे चार्ट में दिए गए हैं।

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संतृप्त वसीय अम्ल अधिक ताप पर पिघलते हैं, अर्थात् इनके गलनांक (melting points) अधिक होते हैं। अतः सामान्य, कक्ष ताप (room temperature 25°C) पर ये semisolid अवस्था में बने रहते हैं। इसीलिए जन्तु वसाएँ (घी, चर्बी आदि) हमारे रुधिर में कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) बढ़ाती हैं। असंतृप्त वसीय अम्लों के गलनांक कम होते हैं। अतः ये सामान्य ताप पर तरल बने रहते हैं। इसीलिए पादप वसाएँ (vegetable oils) रुधिर में कोलेस्ट्रॉल को कम करती हैं।


तात्विक तथा अतात्विक वसीय अम्ल (Essential and Nonessential Fatty Acids) 
पादपों में, ऐरैकिडोनिक अम्ल के अतिरिक्त, सारे वसीय अम्लों का संश्लेषण होता है। अतः हम अधिकांश वसीय अम्ल भोजन से प्राप्त कर सकते हैं। 
इसके अतिरिक्त, मनुष्य सहित सभी स्तनियों की शरीर कोशिकाओं में विभिन्न वसीय अम्लों का संश्लेषण भी हो जाता है, परन्तु दो असंतृप्त वसीय अम्ल—लाइनोलीक (linoleic) तथा लाइनोलीनिक (linolenic) —सारे स्तनियों को केवल भोजन जैसे वनस्पति तैलों—सोयाबीन, सूरजमुखी, करड़ी, मकई आदि के तेल से ही प्राप्त होते हैं। अतः इन दोनों वसीय अम्लों को Essential Fatty Acids तथा अन्य सभी को Nonessential Fatty Acids कहते हैं।

स्तनियों की देह कोशिकाओं में Nonessential Fatty Acids का संश्लेषण acetyl coenzyme A से होता है जो कि ग्लूकोस ऑक्सीकरण (glucose oxidation) प्रक्रिया में बनता है। ऐरैकिडोनिक अम्ल अकेला ऐसा Nonessential Fatty Acid है जो ऐसीटिल सहएन्जाइम 'ए' से नहीं, बल्कि भोजन से प्राप्त लाइनोलीक अम्ल से बनता है। इसीलिए मनुष्य के लिए लाइनोलीक अम्ल सबसे अधिक अनिवार्य होता है।

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