मानव में साँस लेने की क्रिया (Breathing process in humans)|in hindi


श्वासोच्छ्वास (Breathing)

मानव में साँस लेने की क्रिया- श्वासोच्छ्वास (Breathing process in humans)|in hindi


स्तनधारियों में एक जोड़ी फेफड़े (lungs) श्वसन अंग हैं। ये वक्ष गुहा (thoracic cavity) में पसलियों द्वारा बनी एक जोड़ी फुफ्फुसावरणी या प्ल्यूरल गुहाओं (pleural cavities) में बन्द रहते हैं। फुफ्फुसावरणी गुहा airtight होती है और इसका बाहर की वायु से कोई सम्बन्ध नहीं होता। फेफड़ों की वायु कूपिकाएँ (alveoli) श्वासनली द्वारा बाहरी वायु के सम्पर्क में रहती हैं। वायुमण्डल की शुद्ध वायु के फेफड़ों में पहुँचने तथा अशुद्ध वायु के फेफड़ों से बाहर निकलने की क्रिया को श्वासोच्छ्वास (breathing) कहते हैं। फेफड़े suction pump की तरह कार्य करते हैं।

मानव में साँस लेने की क्रिया- श्वासोच्छ्वास (Breathing process in humans)|in hindi


सांस लेने के अंग (Organs of Breathing)


फेफड़ों में वायु का आना-जाना pleural cavities पर निर्भर करता है। जब pleural cavities फैलती हैं तो इनके अन्दर की वायु का दबाव कम हो जाता है और फेफड़ों को फैलने का स्थान मिल जाता है तथा बाहर से वायु फेफड़ों में भर जाती है। जब ये गुहाएँ पिचकती हैं तो फेफड़ों से हवा बाहर निकल जाती है।

Pleural cavities की छत वक्ष कशेरुकों (thoracic vertebrae) की बनी होती है। इसके अधर तल पर स्टर्नम (sternum) पार्श्व में पर्शकाएँ (ribs) तथा पीछे की ओर डायाफ्राम (diaphragm) होता है। 

Ribs ऊपर की ओर कशेरुकों से तथा नीचे की ओर स्टर्नम से जुड़ी होती हैं। वक्षीय गुहा का छोटा व बड़ा होना Ribs से जुड़ी अन्तरापर्शक पेशियों तथा डायाफ्राम की अरीय पेशियों के सिकुड़ने व फैलने पर निर्भर करता है। 

प्रत्येक दो Ribs के बीच दो जोड़ी पेशियाँ होती हैं:

1. बाह्य अन्तरापर्शुक पेशियाँ (External Intercostal Muscles) : इन पेशियों का एक जोड़ा Rib के ऊपरी भाग से निकलकर अपने पीछे वाली पसली के निचले भाग से जुड़ा रहता है।

2. अन्तः अन्तरापर्शुक पेशियाँ (Internal Intercostal Muscles): इन पेशियों का एक बड़ा जोड़ा प्रत्येक पसली के निचले भाग से निकलकर अपने पीछे वाली पसली के ऊपरी भाग से जुड़ा रहता है।


श्वासोच्छ्वास की कार्यविधि (Mechanism of Breathing)


श्वासोच्छ्वास की क्रिया का अध्ययन दो पदों में किया जा सकता है :

1. अन्तःश्वास या प्रश्वसन (Inspiration or Inhalation): Expiration के समय डायाफ्राम के पीछे की ओर खिंचने एवं वक्षीय कंडी के ऊपर उठने से वक्ष गुहा (thoracic cavity) का आयतन चारों ओर बढ़ जाता है।

डायाफ्राम वक्ष गुहा (thoracic cavity) के तल पर स्थित रेडियल पेशियों की एक पतली परत का बना होता है। इसके उपान्त पीछे की ओर तथा पार्श्व में लम्बर कशेरुकाएँ (lumbar vertebrae) से तथा आगे की ओर स्टर्नम से जुड़े होते हैं। 

विश्राम के समय वह गुम्बद के समान (dome-shaped) हो जाता है। Inhalation के समय जब रेडियल पेशियाँ सिकुड़ती हैं तो डायाफ्राम अन्दर की ओर खिंचता है जिससे यह उदर गुहा (abdominal cavity) में नीचे की ओर झुक जाता है। इसके कारण thoracic cavity अग्र-पश्च दिशा में आकार में बड़ी हो जाती है।

Expiration के समय बाह्य इन्टरकॉस्टल पेशियों तथा आन्तरइन्टरकॉस्टल पेशियों के इन्ट्राकार्टिलेजिनस भागों के सिकुड़ने से पसलियाँ आगे तथा बाहर की ओर खिंच जाती हैं जिससे thoracic cavity का आकार बढ़ जाता है जिसके कारण फुफ्फुसावरणी गुहाएँ (pleural cavities) फैल जाती हैं और इनमें इन्ट्राप्ल्यूरल अथवा अन्तःवक्ष दाब कम हो जाता है। 

फेफड़ों को अधिक स्थान मिलने से ये फैल जाते हैं। फलस्वरूप इन्ट्राप्ल्यूरल अथवा अन्तःवक्ष दाब वायुमण्डल दाब से 5 mm कम हो जाता है और एक आशोषण बल उत्पन्न हो जाता है तथा बाहर की वायु श्वसन पथ में से होती हुई फेफड़ों में प्रवेश करती है।

मानव में साँस लेने की क्रिया- श्वासोच्छ्वास (Breathing process in humans)|in hindi



2. निःश्वसन या उच्छ्वसन (Expiration or Exhalation): Expiration के समय ये परिवर्तन निश्वसन के उल्टे होते हैं। डायाफ्राम की रेडियल पेशियों के relaxation तथा अन्तःइन्टरकॉस्टल पेशियों के contraction के कारण डायाफ्राम एवं पसलियाँ अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाती हैं। अब डायाफ्राम गुम्बद के समान हो जाता है। अतः thoracic cavity का आयतन तथा साथ ही प्ल्यूरल गुहाओं का नैगेटिव दाब भी कम हो जाता है। इससे फेफड़ों पर दाब पड़ता है जिससे फेफड़ों में भरी हुई वायु बाहर निकल जाती है। वास्तव में Expiration श्वसन की निष्क्रिय प्रावस्था है।


श्वसन की गति (Respiratory Movements)

फेफड़ों का बार बार वायु से भरकर फूलना तथा फिर पिचककर अपनी सामान्य अवस्था में आना thoracic cavity के आयतन के बढ़ने तथा घटने पर निर्भर करता है। Thoracic cavity के आयतन में वृद्धि होना एवं कम होना दो प्रकार की गतियों पर निर्भर करता है। इन गतियों को श्वसन गतियाँ कहते हैं। इनमें से एक प्रकार की श्वसन गतियों में डायाफ्राम आगे व पीछे की ओर फूलता तथा पिचकता है जबकि दूसरी प्रकार की गतियों में पसलियाँ उठती व नीचे आती हैं। इसका वर्णन इस प्रकार है:

सामान्य व शान्त श्वासोच्छ्‌वास (Normal or Quiet Breathing)


सामान्य श्वासोच्छ्‌वास एक अनैच्छिक क्रिया है। सामान्य अवस्था में कार्य में व्यस्त होने पर हम बिना किसी प्रयास के साँस लेते रहते हैं। अतः यह motionless क्रिया होती है। इसमें डायाफ्राम की पेशियाँ सिकुड़कर वक्ष के आयतन को बढ़ाती हैं। Thoracic cavity की पर्शुका पेशियाँ (intercostal muscles) अधिक क्रियाशील नहीं होती है। अतः शान्त श्वसन में डायाफ्राम की गति अधिक प्रभावी होती है। इसी कारण इसे उदरीय श्वासोच्छ्‌वास (abdominal breathing) भी कहते हैं।

गहरा या तीव्र श्वासोच्छ्‌वास (Deep or Forced Breathing) 


गहरा या तीव्र श्वासोच्छ्वास एक ऐच्छिक क्रिया है। यह motionless भी नहीं होती है इसे सप्रयास करना होता है। 

गहरी साँस लेने में डायाफ्राम की दर चार या पाँच गुना अधिक होती है तथा बाह्य अन्तरापर्शक पेशियाँ पूर्ण सामर्थ्य के साथ सिकुड़ती हैं जिससे पसलियाँ तेजी से ऊपर उठती व नीचे गिरती हैं। अतः गहरा श्वासोच्छ्वास पूर्णतया प्रयासयुक्त होता है। इसमें वक्ष का आयतन 15-20% अधिक बढ़ता है। फलतः साँस श्वासोच्छ्वास की अपेक्षा गहरे श्वासोच्छ्‌वास में काफी अधिक वायु फेफड़ों में भरती है और काफी मात्रा में वायु Exhalation में बाहर निकलती है। गहरे श्वासोच्छ्‌वास को वक्षीय श्वासोच्छ्‌वास (thoracic breathing) भी कहते हैं। यह क्रिया व्यायाम, तेजी से काम करने, क्रोध व हाँफने और घबराहट के समय होती है।

No comments:

Post a Comment