कण्ठ की संरचना तथा ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया (Larynx and Sound Production)|hindi


कण्ठ (Larynx)

कण्ठ की संरचना तथा ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया (Larynx and Sound Production)|hindi


श्वासनली का अगला सिरा एक बक्से के समान रचना बनाता है जिसे कण्ठ या स्वर कोश (laryax) कहते हैं। यही ग्लॉटिस द्वारा ग्रसनी में खुलता है। कण्ठ के अन्दर की गुहा को कण्ठ कोश (laryngeal chamber) कहते हैं। कण्ठ चौथी से छठवीं ग्रीवा कशेरुकाओं के सीध में स्थित होता है और गर्दन की अधर सतह पर उभार के रूप में दिखायी देता है। इस उभार को टेंटुआ या ऐडम्स एप्पल (Adam's apple) कहते हैं। वायुमार्ग का एक भाग होने के कारण यह ध्वनि उत्पादन का काम भी करता है। इसीलिए इसे स्वर यन्त्र (sound box) भी कहते हैं।

कण्ठ की संरचना (Structure of Larynx)

स्वर यन्त्र की दीवार में स्नायुओं (ligaments) और झिल्लियों द्वारा परस्पर जुड़ी नौ उपास्थियाँ होती हैं जिनमें से तीन युग्मित (paired) तथा तीन अयुग्मित (unpaired) होती हैं।


(A) अयुग्मित उपास्थियाँ (Unpaired Cartilages)


1. थाइरॉयड उपास्थि (Thyroid Cartilage): यह ढाल (shield) के आकार की होती है। इसमें दो चपटे टुकड़े होते हैं, जो सामने की ओर जुड़कर कण्ठ उभार (laryngeal prominence) बनाते हैं, जिसे टेंदुआ या ऐडम्स एप्पल (Adam's apple) कहते हैं। पुरुषों में यह उपास्थि महिलाओं की उपास्थि की अपेक्षा लम्बी होती है। यह दूसरी उपास्थियों को आगे और पार्श्व दिशा में घेरे रहती है किन्तु पीछे से नहीं घेरती है।

2. क्रिकॉइड उपास्थि (Cricoid Cartilage): यह उपास्थि थाइरॉयड उपास्थि (thyroid cartilage) के ठीक नीचे होती है और इसका आकार नगदार अंगूठी (signet ring) की भाँति होता है। यह सामने की ओर संकरी तथा पीछे की ओर चौड़ी हो जाती है।

3. घांटी ढक्कन या एपिग्लॉटिस (Epiglottis): यह एक पत्ती के समान उपास्थि होती है जो थाइरॉयड उपास्थि की आन्तरिक सतह से नीचे की ओर जिह्वा की छत पर प्रक्षेपित रहती है। यह कण्ठद्वार के आगे होने के कारण भोजन निगलते समय कण्ठद्वार को ढककर भोजन को उसमें प्रवेश करने से रोकती है।

(B) युग्मित उपास्थियाँ (Paired Cartilages)


ये उपास्थियाँ अपेक्षाकृत छोटी होती हैं। ये तीन जोड़ी होती हैं :

1. ऐरिटेनॉइड उपास्थियाँ (Arytenoid Cartilages) : ये पिरामिड के समान छोटी-छोटी दो उपास्थियाँ होती हैं जो क्रिकॉइड उपास्थि (cricoid cartilage) के चौड़े भाग के शीर्ष पर स्थित होती हैं। इन उपास्थियों से ध्वनि स्नायु (vocal ligaments) जुड़े रहते हैं।

2. कॉर्निकुलेट उपास्थियाँ (Corniculate Cartilages) : ये ग्रन्थिकाओं (nodule) के समान अति छोटी दो उपास्थियों की बनी होती हैं जो ऐरिटेनॉइड उपास्थियों (arytenoid cartilages) की ऊपरी सतह पर जुड़ी रहती हैं।

3. क्यूनीफॉर्म उपास्थियाँ (Cuneiform Cartilages) : ये एक जोड़ी लम्बी तथा संकरी उपास्थियाँ हैं, जो कॉर्निकुलेट उपास्थियों (corniculate cartilages) के ऊपर की ओर पाई जाती हैं।

कण्ठ की संरचना तथा ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया (Larynx and Sound Production)


कण्ठ (लैरिंक्स) की गुहा को कण्ठ कोश (laryngeal chamber) कहते हैं। कण्ठ-कोश में वाक् रज्जु (vocal cords) होते हैं। इसमें पतली, लचीली तथा पीले रंग की झिल्लियों के दो जोड़े होते हैं। 

ये थाइरॉयड तथा ऐरिटेनॉइड कार्टिलेजों के बीच फैले होते हैं। इनका एक जोड़ा ऐरिटेनॉइड के पिछले भाग से थाइरॉयड उपास्थि के अगले भाग तक फैला होता है। ये वास्तविक वाक् रज्जु (true vocal cords) बनाती हैं। 

इन झिल्लियों का दूसरा जोड़ा ऐरिटेनॉइड उपास्थि के अगले सिरे से थाइरॉयड के अगले भाग तक फैला होता है। इनको मिथ्या वाक् रज्जु (false vocal cords) कहते हैं। 

ये कण्ठ कोश की श्लेष्मिका के वलनों (folds) के रूप में होते हैं। दोनों जोड़ी वाक् रज्जु इस प्रकार स्थित होते हैं कि इनके बीच एक संकरी-सी दरार रह जाती है। इसी दरार को घांटी या ग्लॉटिस (glottis) कहते हैं। 

फेफड़ों से बाहर निकलते समय जब वायु वास्तविक वाक् रज्जुओं के बीच से निकलकर घांटीद्वार से बाहर निकलती है तो इन वाक् रज्जुओं में कम्पन होने लगता है और ध्वनि उत्पन्न होती है। 

कृत्रिम वाक् रज्जु ध्वनि उत्पादन में भाग नहीं लेते हैं। कण्ठ उपास्थियों से कुछ पेशियाँ जुड़ी होती हैं जो वाक् रज्जुओं को खींचकर घांटीद्वार को छोटा या बड़ा करती हैं जिससे स्वर धीमा या तेज होता है।



ध्वनि उत्पादन (Sound Production)

जब कण्ठ की आन्तरपेशियों द्वारा ऐरिटेनॉइड (arytenoid) उपास्थियों की स्थिति में परिवर्तन होता है तो वाक् तन्तु एक साथ खिंच जाते हैं और उनके बीच का अन्तराल भी छोटा हो जाता है। 

ऐसी दशा में यदि फेफड़ों में भरी वायु दबाव के साथ इस अन्तराल से बाहर निकलती है तो वाक् तन्तुओं में कम्पन होता है जिसके फलस्वरूप ध्वनि उत्पन्न होती है। 

ध्वनि की तीव्रता वाक् तन्तुओं की लम्बाई एवं तनाव पर निर्भर करती है। वाक् तन्तुओं के अधिक तनाव से ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तथा तनाव के कम होने पर तीव्रता भी कम हो जाती है। 

ध्वनि का ऊँचा या नीचा होना फेफड़ों से बाहर निकलती वायु के दबाव पर निर्भर होता है। अधिक दबाव से अधिक ऊँचा स्वर तथा दबाव कम होने पर स्वर भी कम होता है। 

होंठ, चेहरे की पेशियाँ और जिह्वा की गतियाँ ध्वनि को विभिन्न शब्दों के लिए परिवर्तित कर सकती हैं। बाल्यावस्था में बालक तथा बालिकाओं का स्वर-यन्त्र समान होता है जिससे स्वर के स्तर में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है।

यौवनावस्था (puberty) के आरम्भ में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में कण्ठ वृद्धि करके बड़े हो जाते हैं, इसीलिए लड़कों की ध्वनि लड़कियों की अपेक्षा अधिक तीव्र हो जाती है। पुरुषों की ध्वनि महिलाओं की ध्वनि की अपेक्षा अधिक गम्भीर एवं भारी होती है। ध्वनि के उत्पादन में मुख, नासा गुहिकाएँ और ग्रसनी अनुनाद कक्षों (resonating chambers) की भाँति कार्य करते हैं।

उच्चारण (Phonation) : शब्दयुक्त ध्वनि उत्पन्न करना उच्चारण कहलाता है। यह मस्तिष्क के वाक् केन्द्रों (speech centres) पर निर्भर करता है। अन्य जन्तुओं की तुलना में मानव का वाक् केन्द्र अधिक विकसित होता है। शब्दों का उच्चारण जिह्वा, होंठ तथा निचले जबड़े की गतियों पर निर्भर करता है।

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