गैसों का आदान प्रदान (Exchange of gases)
फेफड़ों के अन्दर वायु की ऑक्सीजन एवं रुधिर की कार्बन डाइऑक्साइड के विनिमय को बाह्य श्वसन कहते हैं। गैसों का विनिमय कूपिका वायु (alveolar air) तथा कूपिकाओं की दीवार में स्थित पल्मोनरी केशिकाओं के रुधिर के बीच होता है।
श्वास लेने पर स्वच्छ वायु फेफड़ों की कूपिकाओं में भर जाती है। कूपिकाओं की दीवारें बहुत पतली और शल्की एपिथीलियम की बनी होती हैं। ये O2 तथा CO₂ दोनों के लिए पारगम्य होती हैं। इनमें रुधिर केशिकाओं का घना जाल फैला रहता है। केशिकाओं के रुधिर में ऑक्सीजन की सान्द्रता कम होती है किन्तु CO₂ की सान्द्रता अधिक होती है। विसरण द्वारा एल्वियोलाई की वायु से ऑक्सीजन पल्मोनरी केशिकाओं में पारित हो जाती है तथा केशिकाओं की CO₂ एल्वियोलाई की वायु में विसरित हो जाती है। गैसों का विसरण केवल घुलित अवस्था में ही होता है, अतः एल्वियोलाई की भीतरी दीवारें म्यूकस द्वारा नम बनी रहती हैं।
श्वसन सतह की विशेषताएँ (Characteristics of Respiratory Surface)
गैसीय विनिमय की दक्षता के लिए श्वसन सतह में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए :
- श्वसन सतह पतली होनी चाहिए।
- यह म्यूकस या पानी द्वारा सदैव नम बनी रहनी चाहिए।
- श्वसन सतह का क्षेत्रफल अधिक होना चाहिए।
- श्वसन सतह में केशिकाओं का घना जाल होना चाहिए (संवहनीय या वैस्कुलर)।
- यह O2 तथा CO₂ के लिए पारगम्य होनी चाहिए।
- यह जल या वायु (O2 के स्रोत) के सम्पर्क में होनी चाहिए।
मनुष्य के फेफड़ों में लगभग 30 करोड़ वायुकोष्ठक होते हैं। इनकी दीवारों की शल्की एपिथीलियल तथा रुधिर केशिकाओं की एण्डोथीलियम एक-दूसरे से चिपकी होती हैं और श्वसन कला (respiratory membrane) बनाती हैं। मनुष्य में श्वसन कला की सतह का क्षेत्रफल लगभग 70 वर्ग मीटर (शरीर की सतह का लगभग 40 गुना) होता है।
वायु में उपस्थित गैसें (Gases Present in Air)
वायुमण्डल में 20.84% ऑक्सीजन, 0.04% कार्बन डाइऑक्साइड, 78.62% नाइट्रोजन तथा 0.5% जलवाष्प होती है। इनके अतिरिक्त हीलियम, आर्गन एवं नियॉन गैसें भी सूक्ष्म मात्रा में होती हैं। समुद्र की सतह पर वायुमण्डलीय दाब 760 मिमी Hg होता है। इनमें से प्रत्येक गैस का निजी दाब होता है जिसे उस गैस का आंशिक दाब (partial pressure) कहते हैं। इस आंशिक दाब को 100/760 से गुणा करने पर उस गैस का प्रतिशत ज्ञात हो जाता है। आंशिक दाब को P द्वारा व्यक्त करते हैं।
निष्क्रिय भाग (Dead Space)
सामान्य स्थिति में हम प्रत्येक श्वास में 500 mL वायु अन्दर लेते हैं और इतनी ही मात्रा बाहर निकालते हैं। इसमें से केवल 350 mL वायु ही फेफड़ों के उन भागों में पहुँचती है जहाँ गैसों का विनिमय होता है। शेष 150ml वायु ट्रैकिया तथा ब्रौकियल नलिकाओं में रह जाती है। इस वायु का श्वसन में कोई उपयोग नहीं होता हैं। इस वायु को निष्क्रिय भाग (dead space) कहते हैं।
सामान्य स्थिति में प्रत्येक श्वास की 350 mL स्वच्छ वायु फेफड़ों की कूपिकाओं में पहले से ही उपस्थित लगभग 2150-2300 ml वायु में मिल जाती है। इस प्रकार स्वच्छ वायु की बहुत कम मात्रा ही फेफड़ों में पहले से स्थित वायु से मिलती है। श्वसन में इसी वायु का महत्त्व होता है। अन्तःश्वास (inspiration) के समय नासामार्गों से गुजरते समय इसका वातानुकूलन होता है और यह जलसंतृप्त हो जाती है।
उच्छ्वसन या निःश्वसन के समय फेफड़े पूरी तरह से खाली नहीं होते बल्कि इनकी कूपिकाओं में लगभग 2150-2300 mL वायु हर समय भरी रहती है। अन्तःश्वसन की 350 mL वायु इसमें मिल जाती है और निःश्वसन (expiration) के समय 350 mL वायु बाहर निकल जाती है। इससे स्पष्ट है कि श्वसन कला के आर-पार कूपिकाओं की वायु एवं रुधिर के बीच गैसों का विनिमय लगातार होता रहता है।
गैसीय विनिमय की प्रक्रिया
1. कूपिका वायु (alveolar air) में ऑक्सीजन का दाब 100-104 mm Hg और पल्मोनरी शिरा केशिकाओं (pulmonary venous capillaries) के अन्दर रुधिर में 37-40 mm Hg होता है। इसीलिए ऑक्सीजन शिरा केशिकाओं के रुधिर में विसरित होती है। सामान्यतः मनुष्य में 250 mL ऑक्सीजन प्रति मिनट रुधिर में विसरित होती है।
2. शिरा केशिका के रुधिर में CO₂ का दाब 46 mm Hg होता है और कूपिका वायु में CO₂ का दाब 40 mm Hg होता है। अतः CO2 रुधिर से कूपिका वायु में विसरित होती है। लगभग 200 mL CO₂ प्रति मिनट फेफड़ों की वायु में विसरित होती है।
3. मनुष्य के एक फेफड़े में लगभग 15 करोड़ वायु कूपिकाएँ (alveoli) होती हैं। वायु कूपिकाओं की पारगम्य पतली दीवार को श्वसन कला भी कहते हैं। इनमें केवल 350 mL शुद्ध वायु पहुँचती है।
4. स्वस्थ मनुष्य प्रति मिनट 12 से 15 बार साँस लेता है। प्रत्येक साँस में 500 mL वायु फेफड़ों में जाती है और बाहर निकलती है। इस प्रकार 6 लीटर वायु प्रति मिनट श्वसन में अन्दर जाती है। वायु में लगभग 4% ऑक्सीजन होती है अर्थात् प्रति मिनट 250 mL ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुँचती है।
5. प्रत्येक निःश्वसन की 350 mL वायु से 69 mL O2 वायु कूपिकाओं में आती है और उच्छ्वसन (निःश्वसन) के समय वायु कूपिकाओं से वापस बाहर आने वाली 350 mL वायु में 48 mL O2 वापस चली जाती है। अतः प्रति मिनट 4,200mL (350 × 12) वायु साँस द्वारा फेफड़ों में भरती है और उसमें से केवल 250 mL ऑक्सीजन [(69-48 × 12) = (21 x 12) = 250] ही प्राप्त होती है।
प्रत्येक साँस की 350 mL वायु में लगभग 0.12 mL CO₂ वायु कूपिकाओं में पहुँचती है लेकिन उच्छ्वास में निकली 350 mL वायु में CO₂ की मात्रा 18.55 mL होती है। अतः प्रत्येक साँस के बाहर निकलने पर लगभग 18.4 mL (18.55 - 0.12 = 18.43 mL) CO2 शरीर से बाहर निकलती है और एक मिनट में 18.4 × 12 = 220.8 = 221 mL CO₂ मुक्त होती है।
ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण (Formation of Oxyhaemoglobin)
एल्वियोलाई की वायु से रुधिर में विसरित होने पर कुछ ऑक्सीजन (2-3%) तो रुधिर में घुल जाती है और शेष लाल रुधिर कणिकाओं के लाल वर्णक, हीमोग्लोबिन के साथ संयोग करके अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) बनाती है।
Hb + 4O2 ⇌ Hb(O2)4 Oxyhaemoglobin
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