एरिओलर ऊतक (Areolar Tissue)
एरिओलर ऊतक को सामान्य और ढीला संयोजी ऊतक (loose connective tissue) भी कहते हैं जो पूरे शरीर में व्यापक रूप से फैला रहता है।
संरचना (Structure)
इसमें पाया जाने वाला मैट्रिक्स पारदर्शी, चिपचिपा व जैली जैसा होता है। इसमें तन्त्रिका तन्तु, रुधिर व लिम्फ केशिकाओं के अलावा संयोजी ऊतक तन्तु एवं संयोजी ऊतक कोशिकाएँ भी होती हैं।
1. श्वेत कोलेजन तन्तु (White Collagen Fibres) : ये तन्तु सफेद रंग के, मोटे, अशाखित व बण्डलों में बँधे होते हैं। बण्डलों में होने के कारण ये मजबूत एवं लोचरहित (inelastic) होते हैं। ये कोलेजन प्रोटीन (collagen protein) या ट्रोफोकोलेजन (trophocollagen) के बने होते हैं। पानी में उबालने पर ये एक प्रकार का जिलेटीन (gelatine) बनाते हैं।
2. पीले इलैस्टिन तन्तु (Yellow Elastin Fibres): ये पीले रंग के सीधे, शाखित तथा लचीले तन्तु होते हैं। ये इलास्टिन (elastin) प्रोटीन के बने होते हैं। ये मैट्रिक्स में अलग-अलग बिखरे रहते हैं, बण्डलों में नहीं होते। ये एक-दूसरे से जुड़कर जाल-सा बना लेते हैं। इनकी उपस्थिति के कारण ही एरिओलर ऊतक लचीला होता है।
3. जालवत् तन्तु (Reticular Fibres) : ये तन्तु आधार कलाओं तथा घाव भरने वाले अन्तराली ऊतक में पाये जाते हैं। ये महीन, लोचहीन और शाखित होते हैं और रेटिकुलिन प्रोटीन (reticulin protein) के बने होते हैं। एरिओलर ऊतक में इनकी संख्या बहुत कम होती है। ये भ्रूण तथा नवजात शिशु के संयोजी ऊतक में अधिकता से पाये जाते हैं। ये रुधिर वाहिनियों व तन्त्रिकाओं के निर्माण में भी मदद करते हैं।
1. श्वेत कोलेजन तन्तु (White Collagen Fibres) : ये तन्तु सफेद रंग के, मोटे, अशाखित व बण्डलों में बँधे होते हैं। बण्डलों में होने के कारण ये मजबूत एवं लोचरहित (inelastic) होते हैं। ये कोलेजन प्रोटीन (collagen protein) या ट्रोफोकोलेजन (trophocollagen) के बने होते हैं। पानी में उबालने पर ये एक प्रकार का जिलेटीन (gelatine) बनाते हैं।
2. पीले इलैस्टिन तन्तु (Yellow Elastin Fibres): ये पीले रंग के सीधे, शाखित तथा लचीले तन्तु होते हैं। ये इलास्टिन (elastin) प्रोटीन के बने होते हैं। ये मैट्रिक्स में अलग-अलग बिखरे रहते हैं, बण्डलों में नहीं होते। ये एक-दूसरे से जुड़कर जाल-सा बना लेते हैं। इनकी उपस्थिति के कारण ही एरिओलर ऊतक लचीला होता है।
3. जालवत् तन्तु (Reticular Fibres) : ये तन्तु आधार कलाओं तथा घाव भरने वाले अन्तराली ऊतक में पाये जाते हैं। ये महीन, लोचहीन और शाखित होते हैं और रेटिकुलिन प्रोटीन (reticulin protein) के बने होते हैं। एरिओलर ऊतक में इनकी संख्या बहुत कम होती है। ये भ्रूण तथा नवजात शिशु के संयोजी ऊतक में अधिकता से पाये जाते हैं। ये रुधिर वाहिनियों व तन्त्रिकाओं के निर्माण में भी मदद करते हैं।
एरिओलर ऊतक की कोशिकाएँ (Areolar Tissue Cells)
एरिओलर ऊतक में आठ प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं :
1. फाइब्रोब्लास्ट या फाइब्रोसाइट्स (Fibroblasts or Fibrocytes) : ये बड़ी व चपटी कोशिकाएँ होती हैं जो सफेद व पीले तन्तुओं से चिपकी हुई पड़ी रहती हैं। ये मैट्रिक्स तथा तन्तुओं का स्राव करती हैं। श्वेत तन्तुओं को स्रावित करने वाले श्वेत फाइब्रोब्लास्ट पतले व लम्बे होते हैं। पीले तन्तुओं का स्राव करने वाले पीले फाइब्रोब्लास्ट अनियमित आकार के होते हैं।
2. मैक्रोफेज या हिस्टियोसाइट्स (Macrophages or Histiocytes): ये बड़े तथा अनियमित आकार की अमीबाभ (amoeboid) कोशिकाएँ होती हैं। ये मैट्रिक्स में घूमती रहती हैं और श्वेत रुधिर कणिकाओं के समान जीवाणुओं या रोगाणुओं को खा जाती हैं। इन्हें अपमार्जक (scavengers) कहते हैं।
मैक्रोफेज को शरीर के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जानी जाती हैं :
1. फाइब्रोब्लास्ट या फाइब्रोसाइट्स (Fibroblasts or Fibrocytes) : ये बड़ी व चपटी कोशिकाएँ होती हैं जो सफेद व पीले तन्तुओं से चिपकी हुई पड़ी रहती हैं। ये मैट्रिक्स तथा तन्तुओं का स्राव करती हैं। श्वेत तन्तुओं को स्रावित करने वाले श्वेत फाइब्रोब्लास्ट पतले व लम्बे होते हैं। पीले तन्तुओं का स्राव करने वाले पीले फाइब्रोब्लास्ट अनियमित आकार के होते हैं।
2. मैक्रोफेज या हिस्टियोसाइट्स (Macrophages or Histiocytes): ये बड़े तथा अनियमित आकार की अमीबाभ (amoeboid) कोशिकाएँ होती हैं। ये मैट्रिक्स में घूमती रहती हैं और श्वेत रुधिर कणिकाओं के समान जीवाणुओं या रोगाणुओं को खा जाती हैं। इन्हें अपमार्जक (scavengers) कहते हैं।
मैक्रोफेज को शरीर के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जानी जाती हैं :
- फेफड़ों में डस्ट कोशिकाएँ (dust cells)
- यकृत में कुफ्फर कोशिकाएँ (Kupffer cells)
- मस्तिष्क में माइक्रोग्लिया (microglia)
- रुधिर में मोनोसाइट (monocytes) तथा
- रेटिकुलो-एण्डोथीलियल ऊतक में रेटीकुलर कोशिकाएँ (reticular cells)
3. प्लाज्मा कोशिकाएँ (Plasma Cells): ये कोशिकाएँ अपेक्षाकृत छोटी तथा संख्या में बहुत कम होती हैं किन्तु आहारनाल की ट्यूनिका प्रॉप्रिया (tunica propria) में ये बहुत अधिक संख्या में पायी जाती हैं। ये अण्डाकार या अनियमित आकार की होती है। ये लिम्फोसाइट कोशिकाओं से बनी होती है और शरीर की रक्षा के लिए एण्टीबॉडीज (antibodies) बनाती है।
4. मास्ट कोशिकाएँ (Mast Cells): मास्ट कोशिकाएँ अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा थोड़ी बड़ी होती है। मेंढक में ये शाखित एवं अनियमित होती है किन्तु स्तनधारियों में यह गोल अथवा amoeboid होती है। इनका कोशिकाद्रव्य कणिकामय होता है। इससे कई पदार्थ निकलते हैं जिनमें शामिल हैं:
- हिपेरिन (Heparin) : यह रुधिर को जमने से रोकता है।
- हिस्टेमीन (Histamine) : यह एलर्जी की अवस्था में उत्तेजना (irritation) पैदा करता है। यह रुधिर वाहिनियों को फैलाकर (vasodilator) जलन, सूजन व प्रदाह आदि से सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं (inflammatory reactions) को बढ़ाता है।
- सिरोटोनिन (Serotonin) यह वाहिका-संकीर्णक (vaso-constrictor) का कार्य करता है, रुधिर स्राव को कम करता है तथा रक्त दाब को बढ़ाता है।
5. लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes): रुधिर में पाये जाने वाले लिम्फोसाइट्स, इओसिनोफिल्स तथा न्यूट्रोफिल्स भी एरिओलर ऊतक में पाये जाते हैं। ये गोल होते हैं और रोगप्रतिकारक पदार्थ व एण्टीबॉडीज (antibodies) बनाते है।
6. क्रोमेटोफोर (Chromatophores): ये नेत्र, त्वचा आदि कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में स्थित होते हैं। ये अत्यधिक शाखित कोशिकाएँ होती हैं जिनमे मेलेनिन कणिकाएँ (melanin granules) भरी रहती हैं।
7. वसा कोशिकाएँ (Fat Cells): प्रत्येक वसा कोशिका में लिपिड का एक बिन्दुक (droplet) होता है जो कोशिका के अधिकांश भाग को घेरे रहता है। वसा कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य व केन्द्रक उपांतों के साथ-साथ स्थित होते हैं।
8. मेसनकाइमी कोशिकाएं (Mesenchymal Cells): ये संयोजी ऊतक की अविभेदित कोशिकाएँ हैं जो आवश्यकता पड़ने पर किसी भी प्रकार की उपरोक्त कोशिकाओं में रूपान्तरित हो जाती हैं।
एरिओलर ऊतक के कार्य (Functions)
एरिओलर ऊतक के निम्नलिखित कार्य होते हैं:
1. यह शरीर के समस्त अंगो के चारों ओर मिलता है और त्वचा को उसके नीचे स्थित संरचनाओं को बाँधे रखता है। यह एपिथीलियम की परतों को जोड़कर मेसेन्ट्रीज बनाता है।
2. यह आस-पास के अन्य ऊतकों को पोषक पदार्थ प्रदान करता है।
3. इसमें उपस्थित फैगोसाइट्स संक्रमण व अनिष्टकारी पदार्थों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
4. इसमें एक लचीलापन होता है जिसके कारण यह अन्य ऊतकों के तनन में सहायता करता है।
5. रुधिर वाहिनियों के चारों ओर एक आच्छद बनाता है।
No comments:
Post a Comment