मनुष्य का यकृत (Human Liver) : संरचना तथा कार्य
यकृत हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग ही नहीं, बल्कि सबसे बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थि भी होता है। यह लगभग 15 से 22 सेमी लम्बा व चौड़ा तथा भार में लगभग 1.5 किलोग्राम होता है। यह उदरगुहा में, डायफ्राम के ठीक नीचे, आंत्रयोजनी अर्थात् मीसेन्ट्री द्वारा सधा, चाकलेटी रंग का एक बड़ा-सा, कोमल, परन्तु ठोस, द्विपालित (bilobed) अंग होता है। इसकी दाईं व बाईं पालियों को एक हँसियाकार स्नायु (falciform ligament) परस्पर जोड़ता है। यही स्नायु यकृत को डायफ्राम से साधे रखने का काम करता है।
बाईं पाली (left lobe) काफी छोटी और दाईं पाली (right lobe) बड़ी होती है। हल्की खाँचों (furrows) द्वारा दाईं पाली तीन पिण्डों में बँटी होती है—मुख्य दायाँ पिण्ड (main right lobe), क्वाड्रेट पिण्ड (quadrate lobe) तथा कॉडेट पिण्ड (caudate lobe)।
मुख्य दाएँ पिण्ड तथा क्वाड्रेट पिण्ड के आगे की ओर, यकृत के एक छिछले गड्ढे में स्थित, लगभग 7 से 10 सेमी लम्बा थैलीनुमा पित्ताशय (gall bladder) होता है। पित्ताशय से नीचे की ओर, यकृत की सतह पर एक अन्य छिछला गड्ढा होता है जिसे तोरण क्षेत्र (porta) कहते हैं, क्योंकि इसी क्षेत्र में 7 यकृत धमनी (hepatic artery) तथा यकृत निर्वाहिका शिरा (hepatic portal vein) यकृत में आती हैं और यकृत शिरा (hepatic vein) तथा यकृत नाल (hepatic duct) यकृत से बाहर निकलती हैं।
1. पित्त का स्रावण (Secretion of Bile) : पित्त का लगातार स्रावण करना यकृत का प्रमुख कार्य होता है। पित्त (bile) हरे-भूरे रंग का क्षारीय (alkaline) तरल होता है। इसमें पित्त लवण (bile salts), पित्त रंगा (bile pigments), कोलेस्ट्रॉल (cholesterol), लिसाइथिन (lecithin) आदि पदार्थ होते हैं। इसके लवणों में सोडियम बाइकार्बोनेट (sodium (bicarbonate), ग्लाइकोकोलेट (glycocholate) एवं टॉरोकोलेट (taurocholate) प्रमुख होते हैं।
यकृत के कार्य (Functions of Liver)
यकृत कोशिकाओं में राइबोसोम्स, एण्डोप्लाज्मिक जाल, माइटोकॉण्ड्रिया, लाइसोसोम्स आदि कोशिकांग (organelles) अपेक्षाकृत अधिक संख्या में होते हैं। इससे इन कोशिकाओं में उपापचयी (metabolic) सक्रियता का प्रमाण मिलता है। इसीलिए इनमें ग्लाइकोजन कणों, वसा बिन्दुकों, एन्जाइमों, लौहयुक्त पदार्थों के रवों (crystals) आदि से भरी रिक्तिकाएँ (vacuoles) पाई जाती हैं। ये कोशिकाएँ इतनी सक्रिय इसीलिए होती हैं कि यकृत एक पाचन ग्रन्थि ही नहीं होता, बल्कि शरीर की कुशलता के लिए यह कई महत्वपूर्ण कार्य करता है जो निम्नलिखित कई है-1. पित्त का स्रावण (Secretion of Bile) : पित्त का लगातार स्रावण करना यकृत का प्रमुख कार्य होता है। पित्त (bile) हरे-भूरे रंग का क्षारीय (alkaline) तरल होता है। इसमें पित्त लवण (bile salts), पित्त रंगा (bile pigments), कोलेस्ट्रॉल (cholesterol), लिसाइथिन (lecithin) आदि पदार्थ होते हैं। इसके लवणों में सोडियम बाइकार्बोनेट (sodium (bicarbonate), ग्लाइकोकोलेट (glycocholate) एवं टॉरोकोलेट (taurocholate) प्रमुख होते हैं।
प्रमुख रंगा पदार्थ विलिवर्डिन (biliverdin) तथा विलिरुविन (bilirubin) होते हैं जो रुधिर की हीमोग्लोबिन के विखण्डन से बनते हैं। यद्यपि पित्त में पाचक एन्जाइम नहीं होते, फिर भी पित्त लवण भोजन, विशेषतः वसाओं के पाचन के लिए अत्यावश्यक होते हैं।
पित्त भोजन को सड़ने से रोकता है और इसमें उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। क्षारीय होने के कारण यह काइम में जठर रस की अम्लीयता को समाप्त करके इसे क्षारीय बनाता है ताकि छोटी आँत में इस पर अग्न्याशयी रस प्रतिक्रियाएँ हो सकें।
2. कार्बोहाइड्रेट उपापचय (Carbohydrate Metabolism) : आमाशय एवं आँत से पचे हुए पदार्थों को लाने वाली यकृत निर्वाहिका शिरा (hepatic portal vein) हृदय में न जाकर यकृत में जाती है। अतः शरीर के अन्य भागों में पहुँचने से पहले लिपिड्स (lipids) के अतिरिक्त अन्य पचे हुए पदार्थ यकृत में आते हैं।
2. कार्बोहाइड्रेट उपापचय (Carbohydrate Metabolism) : आमाशय एवं आँत से पचे हुए पदार्थों को लाने वाली यकृत निर्वाहिका शिरा (hepatic portal vein) हृदय में न जाकर यकृत में जाती है। अतः शरीर के अन्य भागों में पहुँचने से पहले लिपिड्स (lipids) के अतिरिक्त अन्य पचे हुए पदार्थ यकृत में आते हैं।
यकृत कोशिकाएँ, दक्ष ग्रहणी की भाँति, आवश्यकता से अधिक शर्करा को रुधिर से ले लेती हैं और ग्लाइकोजन में बदलकर इसका संग्रह कर लेती हैं। इसे ग्लाइकोजेनिसिस (glycogenesis) कहते हैं।
रुधिर में शर्करा की कमी पड़ने पर संग्रहित ग्लाइकोजन को वापस शर्करा में बदलकर रुधिर में मुक्त किया जाता है। इसे ग्लाइकोजेनोलिसिस (glycogenolysis) कहते हैं। यही नहीं, यकृत कोशिकाएँ ऐमीनो अम्लों, वसीय अम्लों, ग्लिसरॉल आदि अन्य पदार्थों से भी ग्लूकोस का संश्लेषण कर लेती हैं। इसे ग्लूकोनियोजेनीसिस (gluconeogenesis) कहते हैं।
3. वसा- उपापचय (Fat Metabolism) : यकृत कोशिकाएँ वसा- उपापचय में भी महत्त्वपूर्ण भाग लेती हैं। ये कुछ वसाओं तथा अन्य लिपिड्स का संश्लेषण तथा कुछ वसाओं का भण्डारण करती हैं। कुछ वसीय अम्लों का ये ऐसीटिल सहएन्जाइम ए (acetyl coenzyme A) में विखण्डन करती हैं। रुधिर में लिपिड्स के परिवहन हेतु ये लाइपोप्रोटीन्स (lipoproteins) का निर्माण करती हैं।
4. ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण अर्थात् ऐमीनोहरण (Deamination of Amino Acids) : यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों (amino acids) को रुधिर से लेकर इन्हें पाइरुविक अम्ल एवं अमोनिया (NH3) में विखण्डित कर देती हैं। इसी को ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण (deamination) कहते हैं। पाइरुविक अम्ल का उपयोग ऊर्जा उत्पादन या ग्लूकोनियोजेनीसिस के अन्तर्गत ग्लूकोस के संश्लेषण में होता है।
5. यूरिया का संश्लेषण (Synthesis of Urea) : विऐमीनीकरण प्रक्रिया में बनी अमोनिया को तथा शरीर कोशिकाओं में प्रोटीन उपापचय के फलस्वरूप बनी अमोनिया को रुधिर से लेकर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से ग्रहण की गई CO2 से मिलाकर, यूरिएज (urease) नामक एन्जाइम की सहायता से, यूरिया (urea) का संश्लेषण करती हैं। इसी यूरिया को वृक्क रुधिर से लेकर मूत्र के साथ इसका उत्सर्जन करते हैं -
6. उत्सर्जी पदार्थों का बहिष्कार : यूरिया का संश्लेषण करने के अतिरिक्त, कुछ अन्य निरर्थक पदार्थों (कोलेस्ट्रॉल, धातुओं तथा हीमोग्लोबिन विखण्डन के उत्पाद आदि) के उत्सर्जन में भी यकृत सहायता करता है। ये पदार्थ पित्त से मिलकर duodenum में पहुँचते हैं और मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
7. विषैले पदार्थों का विषहरण (Detoxification): आँत में उपस्थित जीवाणु (bacteria) कुछ विषैले पदार्थ बनाते हैं जो यकृत निर्वाहिका शिरा के रुधिर में मिलकर यकृत में पहुँचते हैं। यकृत कोशिकाएँ इनके विष को नष्ट या निष्क्रिय (neutralise) करके इन्हें अहानिकारक (harmless) पदार्थों में बदल देती हैं। इसी प्रकार, पूरे शरीर में उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक प्रसिक अम्ल (prussic acid) को भी यकृत कोशिकाएँ रुधिर से लेकर निष्क्रिय करती हैं।
8. रुधिराणुओं का निर्माण तथा विखण्डन: कशेरुकियों की भ्रूणावस्था में यकृत रुधिरोत्पादक (haemopoietic) होता है, अर्थात् इसमें लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है। वयस्क अवस्था में, इसके विपरीत, यकृत की कुप्फर कोशिकाएँ (Kupffer cells) निष्क्रिय एवं मृत लाल रुधिराणुओं को तोड़-फोड़कर इनके हीमोग्लोबिन को पित्त रंगाओं में बदलती हैं जो पित्त के साथ ग्रहणी में पहुँचकर मल के साथ बाहर निकल जाती हैं। इस प्रक्रिया में हीमोग्लोबिन का लौह यकृत कोशिकाओं में संचित हो जाता है।
9. अकार्बनिक पदार्थों का संग्रह: लौह के अतिरिक्त, तांबा आदि अन्य पदार्थों का भी यकृत कोशिकाएँ संचय करती हैं।
10. एन्जाइमों का स्रावण : यकृत कोशिकाएँ कुछ ऐसे एन्जाइमों का स्रावण करती हैं जो शरीर में प्रोटीन्स, वसाओं, कार्बोहाइड्रेट्स आदि के उपापचय में महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं।
11. रुधिर की प्रोटीन्स का संश्लेषण : रुधिर प्लाज्मा की अधिकांश प्रोटीन्स का संश्लेषण यकृत कोशिकाओं में ही होता है। इनमें ऐल्बुमिन (albumin), ग्लोब्यूलिन्स (globulins), प्रोथ्रॉम्बिन (prothrombin) तथा फाइब्रिनोजन (fibrinogen) प्रमुख हैं।
12. हिपैरिन का स्रावण : यकृत कोशिकाएँ हिपैरिन (heparin) नामक प्रोटीन का भी संश्लेषण करके रुधिर में मुक्त करती हैं। यह प्रोटीन रुधिरवाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकती है।
13. जीवाणुओं का भक्षण : रुधिर में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं का यकृत की कुप्फर कोशिकाएँ भक्षण करके इन्हें नष्ट कर देती हैं। इस क्रिया को भक्षकाणु क्रिया अर्थात् फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) कहते हैं।
14. विटामिनों का संश्लेषण एवं संचय : सम्भवतः यकृत कोशिकाएँ विटामिन A का संश्लेषण करती हैं। त्वचा, यकृत तथा वृक्क मिलकर विटामिन D का सक्रियकरण करते हैं। अल्प समय के लिए यकृत कोशिकाओं में विटामिन A, B12, D, E तथा K का संचय भी होता है।
15. लसिका-उत्पादन एवं रुधिर-संचय : यकृत में उपस्थित रुधिरपात्र (blood sinusoids) रुधिर के भण्डारण का काम करते हैं।
यकृत के ऊतक की क्षति (damage) को यकृतशोथ (hepatitis) कहते हैं। यह क्षति कुछ वाइरसों के संक्रमण से अथवा कुछ औषधियों या विषैले पदार्थों के सेवन से हो जाती है। इसके फलस्वरूप प्रायः पीलिया रोग (jaundice) हो जाता है। आजकल व्यापक मदिरापान की अधिकता के कारण यकृतशोथ का रोग बढ़ता जा रहा है। तीक्ष्ण यकृतशोथ की दशा को सिरोसिस (cirrhosis) कहते हैं। इसमें यकृत की व्यापक क्षति के कारण प्रायः रोगी की मृत्यु हो जाती है।
3. वसा- उपापचय (Fat Metabolism) : यकृत कोशिकाएँ वसा- उपापचय में भी महत्त्वपूर्ण भाग लेती हैं। ये कुछ वसाओं तथा अन्य लिपिड्स का संश्लेषण तथा कुछ वसाओं का भण्डारण करती हैं। कुछ वसीय अम्लों का ये ऐसीटिल सहएन्जाइम ए (acetyl coenzyme A) में विखण्डन करती हैं। रुधिर में लिपिड्स के परिवहन हेतु ये लाइपोप्रोटीन्स (lipoproteins) का निर्माण करती हैं।
4. ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण अर्थात् ऐमीनोहरण (Deamination of Amino Acids) : यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों (amino acids) को रुधिर से लेकर इन्हें पाइरुविक अम्ल एवं अमोनिया (NH3) में विखण्डित कर देती हैं। इसी को ऐमीनो अम्लों का विऐमीनीकरण (deamination) कहते हैं। पाइरुविक अम्ल का उपयोग ऊर्जा उत्पादन या ग्लूकोनियोजेनीसिस के अन्तर्गत ग्लूकोस के संश्लेषण में होता है।
5. यूरिया का संश्लेषण (Synthesis of Urea) : विऐमीनीकरण प्रक्रिया में बनी अमोनिया को तथा शरीर कोशिकाओं में प्रोटीन उपापचय के फलस्वरूप बनी अमोनिया को रुधिर से लेकर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से ग्रहण की गई CO2 से मिलाकर, यूरिएज (urease) नामक एन्जाइम की सहायता से, यूरिया (urea) का संश्लेषण करती हैं। इसी यूरिया को वृक्क रुधिर से लेकर मूत्र के साथ इसका उत्सर्जन करते हैं -
2NH3 + CO2 → CO(NH2)2 + H2O
6. उत्सर्जी पदार्थों का बहिष्कार : यूरिया का संश्लेषण करने के अतिरिक्त, कुछ अन्य निरर्थक पदार्थों (कोलेस्ट्रॉल, धातुओं तथा हीमोग्लोबिन विखण्डन के उत्पाद आदि) के उत्सर्जन में भी यकृत सहायता करता है। ये पदार्थ पित्त से मिलकर duodenum में पहुँचते हैं और मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
7. विषैले पदार्थों का विषहरण (Detoxification): आँत में उपस्थित जीवाणु (bacteria) कुछ विषैले पदार्थ बनाते हैं जो यकृत निर्वाहिका शिरा के रुधिर में मिलकर यकृत में पहुँचते हैं। यकृत कोशिकाएँ इनके विष को नष्ट या निष्क्रिय (neutralise) करके इन्हें अहानिकारक (harmless) पदार्थों में बदल देती हैं। इसी प्रकार, पूरे शरीर में उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक प्रसिक अम्ल (prussic acid) को भी यकृत कोशिकाएँ रुधिर से लेकर निष्क्रिय करती हैं।
8. रुधिराणुओं का निर्माण तथा विखण्डन: कशेरुकियों की भ्रूणावस्था में यकृत रुधिरोत्पादक (haemopoietic) होता है, अर्थात् इसमें लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है। वयस्क अवस्था में, इसके विपरीत, यकृत की कुप्फर कोशिकाएँ (Kupffer cells) निष्क्रिय एवं मृत लाल रुधिराणुओं को तोड़-फोड़कर इनके हीमोग्लोबिन को पित्त रंगाओं में बदलती हैं जो पित्त के साथ ग्रहणी में पहुँचकर मल के साथ बाहर निकल जाती हैं। इस प्रक्रिया में हीमोग्लोबिन का लौह यकृत कोशिकाओं में संचित हो जाता है।
9. अकार्बनिक पदार्थों का संग्रह: लौह के अतिरिक्त, तांबा आदि अन्य पदार्थों का भी यकृत कोशिकाएँ संचय करती हैं।
10. एन्जाइमों का स्रावण : यकृत कोशिकाएँ कुछ ऐसे एन्जाइमों का स्रावण करती हैं जो शरीर में प्रोटीन्स, वसाओं, कार्बोहाइड्रेट्स आदि के उपापचय में महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं।
11. रुधिर की प्रोटीन्स का संश्लेषण : रुधिर प्लाज्मा की अधिकांश प्रोटीन्स का संश्लेषण यकृत कोशिकाओं में ही होता है। इनमें ऐल्बुमिन (albumin), ग्लोब्यूलिन्स (globulins), प्रोथ्रॉम्बिन (prothrombin) तथा फाइब्रिनोजन (fibrinogen) प्रमुख हैं।
12. हिपैरिन का स्रावण : यकृत कोशिकाएँ हिपैरिन (heparin) नामक प्रोटीन का भी संश्लेषण करके रुधिर में मुक्त करती हैं। यह प्रोटीन रुधिरवाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकती है।
13. जीवाणुओं का भक्षण : रुधिर में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं का यकृत की कुप्फर कोशिकाएँ भक्षण करके इन्हें नष्ट कर देती हैं। इस क्रिया को भक्षकाणु क्रिया अर्थात् फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) कहते हैं।
14. विटामिनों का संश्लेषण एवं संचय : सम्भवतः यकृत कोशिकाएँ विटामिन A का संश्लेषण करती हैं। त्वचा, यकृत तथा वृक्क मिलकर विटामिन D का सक्रियकरण करते हैं। अल्प समय के लिए यकृत कोशिकाओं में विटामिन A, B12, D, E तथा K का संचय भी होता है।
15. लसिका-उत्पादन एवं रुधिर-संचय : यकृत में उपस्थित रुधिरपात्र (blood sinusoids) रुधिर के भण्डारण का काम करते हैं।
यकृत के ऊतक की क्षति (damage) को यकृतशोथ (hepatitis) कहते हैं। यह क्षति कुछ वाइरसों के संक्रमण से अथवा कुछ औषधियों या विषैले पदार्थों के सेवन से हो जाती है। इसके फलस्वरूप प्रायः पीलिया रोग (jaundice) हो जाता है। आजकल व्यापक मदिरापान की अधिकता के कारण यकृतशोथ का रोग बढ़ता जा रहा है। तीक्ष्ण यकृतशोथ की दशा को सिरोसिस (cirrhosis) कहते हैं। इसमें यकृत की व्यापक क्षति के कारण प्रायः रोगी की मृत्यु हो जाती है।
- ग्रसनी या गलतनी गुहा (Pharynx Or Throat Cavity)
- आहारनाल की ऊतकीय संरचना (Histology of Alimentary Canal)
- ग्रासनली की संरचना (Structure of Oesophagus) तथा कार्य
- आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य
- छोटी आँत (small intestine)
- बड़ी आँत (Large Intestine)
- अग्न्याशयी रस (Pancreatic juice) क्या है?
- आन्त्रीय रस (Intestinal juice)क्या है?
- पित्त (BILE) क्या है?
- पाचन एन्जाइमों की श्रेणियाँ (Categories of Digestive Enzymes)
No comments:
Post a Comment