आहारनाल की ऊतकीय संरचना (Histology of Alimentary Canal)|hindi


आहारनाल की ऊतकीय संरचना (Histology of Alimentary Canal)
आहारनाल की ऊतकीय संरचना (Histology of Alimentary Canal)|hindi

ग्रसनी के बाद, आहारनाल के शेष भागों (ग्रासनली, आमाशय एवं आँत) की दीवार की औतिक संरचना मूलतः समान होती है; केवल कार्यों के अनुसार, विभिन्न भागों के बीच कुछ विभिन्नताएँ होती हैं। पूर्ण दीवार में बाहर से भीतर की ओर पाँच स्तर (coats) होते हैं—लस्य स्तर
  1. बाह्य पेशी स्तर
  2. अध:श्लेष्मिका
  3. श्लेष्मिक पेशी स्तर
  4. श्लेष्मिका
1. लस्य स्तर (Serous Layer or Serosa) : इसमें दो स्तर होते हैं—(1) बाहर सतह पर चपटी एवं शल्की (squamous) कोशिकाओं की महीन, इकहरी परत होती है जिसे मीसोथीलियम (mesothelium) कहते हैं तथा (2) इसके नीचे अर्थात् भीतर की ओर अन्तराली संयोजी ऊतक (areolar connective tissue) का स्तर होता है। ये दोनों मिलकर लस्य स्तर बनाते हैं जो देहगुहीय आवरण का ही विसरल स्तर अर्थात् अंतरंग पेरिटोनियम (visceral peritoneum) होता है। स्पष्ट है कि यह स्तर नाल को देहगुहीय द्रव्य से अलग करता है। ऐसे लस्य स्तर का आवरण आहारनाल के उदरगुहीय भाग अर्थात् आमाशय तथा आँत पर ही होता है। केवल ग्रीवा एवं वक्ष भाग के मध्यावकाश (mediastinal space) में फैली होने के कारण, ग्रासनली पर ऐसा लस्य स्तर नहीं होता, बल्कि इसके स्थान पर केवल ढीले अन्तराली संयोजी ऊतक (areolar connective tissue) का बाह्य स्तर (adventitia externa) होता है।

2. बाह्य पेशी स्तर (Muscularis Externa) : मुख-ग्रासन गुहिका तथा ग्रासनली के कुछ प्रारम्भिक भाग की दीवार में रेखित (striped) पेशियाँ होती हैं, परन्तु आहारनाल के शेष भाग में पेशियाँ अरेखित (smooth or unstriped) होती हैं। दीवार के बाह्य पेशी स्तर में दो स्पष्ट स्तर होते हैं—भीतरी, कुछ मोटा, वर्तुल पेशी स्तर (circular muscle layer) तथा बाहरी अनुलम्ब पेशी स्तर (longitudinal muscle layer)। अनुलम्ब पेशी स्तर में पेशी तन्तु नाल की लम्बाई में तथा circular muscle layer में गोलाई में फैले होते हैं। अनुलम्ब पेशियों के सिकुड़ने से नाल का प्रभावित भाग छोटा एवं मोटा हो जाता है और इसकी गुहा चौड़ी हो जाती है। इसके विपरीत, वर्तुल पेशियों के सिकुड़ने से प्रभावित भाग लम्बा एवं पतला तथा गुहा सँकरी हो जाती है। स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (autonomic nervous system) के नियन्त्रण में अनुलम्ब एवं वर्तुल पेशियों के एकान्तरित संकुचन एवं शिथिलन (alternate contraction and relaxation) से नाल की दीवार में ऊपर से नीचे की ओर सिकुड़ने एवं फैलने की लहर अर्थात् क्रमाकुंचन (peristalsis) उत्पन्न होता है, जिससे इसमें भोजन नीचे की ओर खिसकता है। आहारनाल के कुछ खण्डों की पेशियों में ऐसे संकुचन भी होते हैं जिनसे इन्हीं खण्डों में आगे-पीछे दोलनी गतियाँ (segmentary pendular movements) होती हैं। ये गतियाँ भोजन को मथने और इसे पाचक रसों में भली-भाँति सानने का काम करती हैं।

3. अध: श्लेष्मिका (Submucosa) : यह वर्तुल पेशी स्तर के नीचे ढीले से संयोजी ऊतक का स्तर होता है। इसमें अनेक महीन रुधिर एवं लसिकावाहिनियाँ, स्वायत्त तन्त्रिका तन्तुओं का जाल, दूर-दूर छितरे परानुकम्पी (parasympathetic) तन्त्रिका तन्त्र की कोशिकाओं के कोशिकाकाय (cell bodies), लसिका पिण्ड, तथा बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ होती हैं।

4. श्लेष्मिक पेशी स्तर (Muscularis Mucosae) : इसमें भी बाह्य पेशी स्तर की भाँति, भीतरी वर्तुल एवं बाहरी पेशी स्तर होते हैं, परन्तु ये काफी पतले होते हैं। ये श्लेष्मिका को सहारा देते और संकुचन द्वारा इसे सिकोड़ते हैं।

5. श्लेष्मिका (Mucosa): इसमें भीतर की ओर, नाल की गुहा के चारों ओर, एक श्लेष्मिक कला (mucous membrane) होती है तथा इसके बाहर ढीले संयोजी ऊतक का बना महीन-सा आधार पटल (lamina propria) होता है। ग्रासनली (oesophagus) तथा गुदनाल (anal canal) में श्लेष्मिक कला स्तृत शल्की एपिथीलियम होती है, क्योंकि यहाँ इसका कार्य सुरक्षात्मक होता है। नाल के शेष भाग में श्लेष्मिक कला सामान्य स्तम्भी एपिथीलियम होती है। इसकी कोशिकाएँ स्रावी (secretory) या अवशोषी (absorptive) होती हैं। अवशोषी कोशिकाओं के स्वतन्त्र तल पर ब्रुश की भाँति के प्रवर्ध अर्थात् सूक्ष्मरसांकुर (microvilli) उभरे होते हैं (brush border)। स्रावी कोशिकाओं में से एक प्रकार की कोशिकाएँ श्लेष्म का स्रावण करती हैं। इन्हें चपक कोशिकाएँ (goblet cells) कहते हैं, क्योंकि इनमें स्वतन्त्र छोर के पास स्थित एक बड़ी अण्डाकार रिक्तिका (vacuole) में श्लेष्म अर्थात् म्यूसिजेन (mucigen) भरा रहता है। यह श्लेष्म श्लेष्मिका (म्यूकोसा) को चिकना बनाए रखता है। आधार पटल एपिथीलियम को सहारा देता है।

आहारनाल के अधिकांश भाग की दीवार में आधार पटल या अधःश्लेष्मिका में स्थित तथा श्लेष्मिक कला के अन्तर्वलन से बनी बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ भी होती हैं। ये श्लेष्म या पाचक रसों का स्रावण करती हैं। पाचन एवं पचे हुए पदार्थों के अवशोषण को बढ़ाने के लिए, आहारनाल की भीतरी सतह का क्षेत्रफल प्रायः स्पष्ट भंजों (folds) और अंगुली-सदृश प्रवर्धी के कारण कई गुणा बढ़ा रहता है।

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