छोटी आंत में होने वाली पाचन क्रिया के अंतर्गत मुक्त होने वाले पाचक रसों में औसतन लगभग 1.2 से 1.5 लीटर अग्न्याशयी रस हमारी duodenum में प्रतिदिन मुक्त होता है। यह जल की भाँति पतला, रंगहीन और, सोडियम बाइकार्बोनेट के कारण, अत्यधिक क्षारीय (alkaline pH— 7.5 से 8.3) तरल होता है। अतः काइम के duodenum में पहुँचने पर अग्न्याशयी रस काइम की अम्लीयता को समाप्त करके इसमें उपस्थित जठर रस (gastric juice) के पेप्सिन को निष्क्रिय कर देता है। इस रस में 96% जल तथा शेष लवण एवं पाचक एन्जाइम होते हैं। इसे एक पूर्ण पाचक रस कहा गया है, क्योंकि इसमें क्षारीय माध्यम में सभी प्रकार के दीर्घ पोषक पदार्थों—प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स, लिपिड्स एवं न्यूक्लीक अम्लों को पचाने वाले निम्नलिखित एन्जाइम होते हैं-
1. अग्न्याशयी ऐमाइलेज या ऐमाइलोप्सिन (Pancreatic Amylase or Amylopsin) : यह लार के ऐमाइलेज (salivary amylase) एन्जाइम की भाँति, काइम की मण्ड, ग्लाइकोजन एवं अन्य पोलीसैकेराइड्स (सेलुलोस के अतिरिक्त) को माल्टोस (maltose) नामक डाइसैकेराइड शर्करा में तोड़ता है।
(C6H10O5)2n + nH2O (C12H22O11)n
2. अग्न्याशयी लाइपेज या स्टिऐप्सिन (Pancreatic Lipase or Steapsin): भोजन की लिपिड्स के पाचन का प्रमुख श्रेय इसी एन्जाइम को होता है। सामान्यतः भोजन की 90 से 95% लिपिड्स का पाचन होता है। शेष लिपिड्स बिना पचे मल के साथ बाहर निकल जाती हैं। इस पाचन में लाइपेज एन्जाइम पित्त द्वारा इमल्सीकृत (emulsified) वसाओं के बिन्दुकों से प्रतिक्रिया करके वसा अणुओं को मोनोग्लिसराइड्स (monoglycerides) एवं वसीय अम्लो (fatty acids) में विखण्डित करता है। अग्न्याशयी रस में उपस्थित कोलीपेज (colipase) नामक प्रोटीन की सहायता से ही लाइपेज वसा बिन्दुकों तक पहुँचकर इन पर अपनी प्रतिक्रिया कर पाता है।
3. अग्न्याशयी एस्टरेज (Pancreatic Esterase) : भोजन में कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) मुख्यतः कोलेस्टेरिल एस्टरों (cholesteryl esters) के रूप में होता है। एस्टरेज एन्जाइम इन एस्टरों का विखण्डन करके इनसे कोलेस्ट्रॉल को पृथक् कर देता है।
4. फॉस्फोलाइपेज (Phospholipase) : यह फॉस्फोलिपिड्स से वसीय अम्लों को पृथक् करता है।
5. एण्डोपेप्टिडेजेज (Endopeptidases) : अग्न्याशयी रस में, जठर रस के पेप्सिन की भाँति के, दो प्रोटिओलाइटिक एन्जाइम होते हैं—ट्रिप्सिन (trypsin) एवं काइमोट्रिप्सिन (chymotrypsin)। ये काइम की शेष जटिल प्रोटीन्स तथा पेप्टोन्स, प्रोटिओजेज एवं बड़ी-बड़ी पोलीपेप्टाइड शृंखलाओं को छोटी-छोटी पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं में विखण्डित करते हैं। ये पहले निष्क्रिय प्रोएन्जाइम्स क्रमशः ट्रिप्सिनोजन (trypsinogen) एवं काइमोट्रिप्सिनोजन (chymotrypsinogen) के रूप में होते हैं। आन्त्रीय श्लेष्मा की ग्रन्थिल कोशिकाओं द्वारा स्रावित एण्टीरोकाइनेज अर्थात् एण्टीरोपेप्टिडेज (enterokinase or enteropeptidase) नामक एन्जाइम ट्रिप्सिनोजन को सक्रिय ट्रिप्सिन में और फिर ट्रिप्सिन काइमोट्रिप्सिनोजन को सक्रिय काइमोट्रिप्सिन में बदलती है।
6. कार्बोक्सीपेप्टिडेज (Carboxypeptidase) : यह एक जिंकयुक्त एक्सोपेप्टिडेज (exopeptidase) होता है जो पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के कार्बोक्सिल छोर बन्धों का जल अपघटन करके इन्हें ऐमीनो अम्ल एकलकों में तोड़ता है।
7. न्यूक्लिएजेज (Nucleases) : अग्न्याशयी रस में न्यूक्लीक अम्लों (DNA एवं RNA) को पचाने हेतु डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिएज ( deoxyribonuclease) तथा राइबोन्यूक्लिएज (ribonuclease) नामक एन्जाइम भी होते हैं जो इन अम्लों को इनके संघठक न्यूक्लिओटाइड्स (nucleotides) में विखण्डित करके इन न्यूक्लिओटाइड्स को फिर न्यूक्लिओसाइड्स तथा फॉस्फेट्स में तोड़ते हैं।
अग्न्याशयशोथ (Pancreatitis) : अधिक सुरापान, अग्न्याशयी नलिका के मार्ग के अवरोधन, कैंसर, विषाणुओं (viruses) के संक्रमण आदि से अग्न्याशय को क्षति हो जाती है, या ट्रिप्सिन एन्जाइम अग्न्याशय में ही सक्रिय होकर इसके ऊतक को पचाकर गला देता अर्थात् इसका लयन (lysis) कर देता है। इन सब दशाओं को अग्न्याशयशोथ कहते हैं।
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