आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य|hindi


आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य
आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य|hindi


आमाशय diaphragm के ठीक पीछे, बाईं ओर transversely स्थित, लगभग 25 सेमी लम्बा और आहारनाल का सबसे चौड़ा, हँसिया की आकृति का (sickle-shaped) थैलीनुमा भाग होता है। इसमें भी भीतर दीवार के बहुत से longitudinal folds होते हैं जिनके कारण यह बहुत distensible होता है। folds को वलियाँ अर्थात् rugae कहते हैं। ये रिक्त आमाशय में ही स्पष्ट दिखाई देते हैं। ग्रासनली आमाशय में इसके मध्य भाग से कुछ बाईं ओर हटकर खुलती है। पूर्ण आमाशय चार भागों में विभेदित होता है—कार्डियक, फन्डिक, आमाशयकाय तथा पाइलोरस। 

ग्रासनली के द्वार के आस पास का कुछ भाग कार्डियक भाग (cardiac c part) होता है। इसके बाईं ओर का गोल सा भाग फन्डिक भाग (fundic part or fundus) कहलाता है। बड़ा, मध्यवर्ती भाग आमाशयकाय अर्थात् कॉर्पस (body of stomach or Corpus) होता है। इसके बाद का शेष; दायाँ भाग पाइलोरिक भाग (pyloric region) होता है जो पाइलोरिक छिद्र द्वारा आँत के प्रथम भाग-ग्रहणी (duodenum) में खुलता है। आमाशयकाय तथा पाइलोरिक भाग के बीच आमाशय थोड़ा ऊपर की ओर मुड़ा होता है जिससे यहाँ दीर्घ एवं लघु वक्र (greater and lesser curvatures) बन जाते हैं।

आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य|hindi


ग्रासनली के द्वार को कार्डिया (cardia or gastroesophageal opening) कहते हैं। यह एक मुद्राकार निम्न ग्रासनालीय या कार्डियक संकोचक (lower oesophageal or cardiac sphincter) पेशी द्वारा घिरा होता है। यह पेशी द्वार को सिकोड़कर भोजन की उगाली (regurgitation) को रोकती है, अर्थात् इसे आमाशय से वापस ग्रासनली में नहीं जाने देती। ऐसी ही एक पाइलोरिक संकोचक (pyloric sphincter) पेशी आमाशय एवं ग्रहणी के बीच के पाइलोरिक छिद्र पर भी होती है। यह भोजन को आँत से वापस आमाशय में जाने से रोकती है। जुगाली करने वाले चार पैरों वाले जानवरों (ढोर, भेड़, हिरन आदि) में आमाशय जटिल और चार कक्षों का बना होता है। इनमें से तीन कक्ष, जिन्हें सम्मिलित रूप से रूमेन (rumen) कहते हैं, भोजन का किण्वन (fermentation) करके इसकी लुगदी बनाने के लिए विशिष्टीकृत होते हैं। आराम के समय जुगाली द्वारा इस लुगदी को वापस मुखगुहा में लाकर खूब चबाया जाता है। ऊँटों में रूमेन होता है, परन्तु इसके दो कक्षों के थैलीनुमा प्रवर्गों में, शरीर के उपापचय के फलस्वरूप बने जल (आठ गैलन तक) का भण्डारण (storage) किया जाता है।

आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य|hindi


आमाशय की दीवार काफी मोटी होती है। इसके बाहरी आवरण अर्थात् लस्य स्तर में, बाहर की ओर पेरिटोनियल मीसोथीलियम होती है तथा इसके नीचे अन्तराली संयोजी ऊतक का स्तर होता है। पेशी स्तर आहारनाल के अन्य भागों की तुलना में बहुत मोटा होता है। इसमें मोटे अनुलम्ब एवं कुछ पतले वर्तुल पेशी स्तरों के अतिरिक्त, भीतर की ओर तिरछी पेशियों (oblique muscles) का भी एक सबसे मोटा स्तर होता है, परन्तु पेशी तन्तु सब अरेखित होते हैं। submucosa अपेक्षाकृत पतली होती है। इसमें रुधिर एवं लसिका - वाहिनियों का घना जाल होता है, परन्तु ग्रन्थियाँ नहीं होतीं। श्लेष्मिक पेशी स्तर (muscularis mucosae) कम विकसित तथा श्लेष्मिका (mucosa) मोटी एवं कोमल होती है। श्लेष्मिका के भंज (folds) अधिकांश अनुलम्ब (longitudinal) होते हैं। अनेक स्थानों पर श्लेष्मिक कला भीतर धँसी होती है जिससे मोटे आधार पटल में अनेक महीन जठर गर्त (gastric pits) और इनकी पेंदी में बहुकोशिकीय जठर ग्रन्थियाँ (gastric glands) बन जाती हैं जो जठर रस (gastric juice) का स्रावण करती हैं। श्लेष्मिक कला इकहरी स्तम्भी एपिथीलियम होती है और इसकी कोशिकाएँ श्लेष्म का स्रावण करती हैं। अधिकांश जठर ग्रन्थियाँ शाखान्वित होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के आमाशय की दीवार में अनुमानतः 3.5 करोड़ जठर ग्रन्थियाँ होती हैं।

प्रत्येक जठर ग्रन्थि में स्रावी पदार्थ की प्रकृति के अनुसार, चार प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं-
  1. श्लेष्मिक ग्रीवा कोशिकाएँ (Mucous Neck Cells) : आमाशय की गुहा पर आच्छादित एपिथीलियमी कोशिकाओं की तरह ही, जठर गर्तों की कोशिकाएँ तथा जठर ग्रन्थियों की ग्रीवा (neck) कोशिकाएँ सब श्लेष्म का स्रावण करती हैं।
  2. पैराएटल (ऑक्जिन्टिक) कोशिकाएँ (Parietal or Oxyntic Cells) : ये सबसे बड़ी ग्रन्थिल कोशिकाएँ होती हैं जो हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) तथा एकतात्विक कारक (intrinsic factor) का स्रावण करती हैं।
  3. प्रधान (जाइमोजीनिक) कोशिकाएँ (Chief or Zymogenic Cells) : ये जठर रस में उपस्थित प्रमुख पाचन एन्जाइम-पेप्सिन (pepsin) के पूर्वएन्जाइम अर्थात् के प्रोएन्जाइम (proenzyme) का स्रावण करती हैं जिसे पेप्सिनोजन (pepsinogen) कहते हैं। इसके अतिरिक्त इनके स्राव में जठर लाइपेज (gastric lipase) नामक पाचन एन्जाइम की भी सूक्ष्म मात्रा होती है।
  4. एन्टीरोएण्डोक्राइन कोशिकाएँ (Enteroendocrine Cells) : ये जठर ग्रन्थियों के, गहराई में स्थित, छोरों पर होती हैं और गैस्ट्रिन (gastrin) नामक हॉरमोन का स्रावण करती हैं।
एन्टीरोएण्डोक्राइन कोशिकाओं का स्राव आमाशय की दीवार के ऊतक द्रव्य में स्रावित होकर सीधे रुधिर में चला जाता है, परन्तु अन्य सभी कोशिकाओं द्वारा स्रावित पदार्थ जठर गर्तों में मुक्त होते हैं और इन्हीं का मिश्रण जठर रस (gastric juice) होता है।


आमाशय के कार्य (FUNCTIONS OF STOMACH)

यान्त्रिक कार्य (Mechanical Functions)


अपनी दीवार के भीतरी भंजों (rugae) के कारण आमाशय (stomach) काफी लचीला (elastic) और फैलने वाला (distensible) होता है। भोजन के पहुँचते ही दीवार की पेशियों के शिथिलन से यह फैलने लगता है और भंज समाप्त होने लगते हैं। इसे आमाशय का ग्राही शिथिलन (receptive relaxation) कहते हैं, क्योंकि इसके कारण आमाशय में दो से चार लीटर तक भोजन एकत्रित हो जाता है। इस प्रकार, यह भोजन-पात्र (food reservoir) का काम करता है। इसीलिए, भोजन ग्रहण की आवश्यकता लगातार नहीं, वरन् कई-कई घण्टों बाद होती है। यदि यह पात्र न हो तो हमें हर 20 मिनट बाद भोजन ग्रहण करना पड़े। स्पष्ट है कि आमाशय में भोजन काफी समय तक रुकता है। यहाँ जठर रस में इसका मिश्रण, मन्थन तथा आंशिक पाचन होता है। फिर धीरे-धीरे इसे छोटी आँत में धकेलने की प्रक्रिया होती है।

आमाशय की गतियाँ (Motility of Stomach) : जैसे ही भोजन आमाशय में पहुँचता है, आमाशयकाय (body of stomach) से पाइलोरिक भाग की ओर से क्रमाकुंचन अर्थात् तरंगगतियाँ (peristalsis) प्रारम्भ हो जाती हैं। ये गतियाँ धीमी (3 से 4 बार प्रति मिनट), परन्तु बलवती होती हैं। बन्द पाइलोरिक छिद्र के निकट पहुँचकर प्रत्येक तरंगगति उल्टी दिशा में वापस आमाशयकाय की ओर होने लगती है। इन गतियों के कारण जठरीय रस भोजन में भली-भाँति मिश्रित होकर इसकी एक पतली, लेई-जैसी, सफेद-सी लुगदी बना देता है जिसे काइम (chyme) कहते हैं। आमाशय की इन गतियों को इसीलिए मिश्रण या मन्थन गतियाँ (churning or trituration movements) कहते हैं।

आमाशय की संरचना (Structure of Stomach) तथा कार्य|hindi


भोजन की लुगदी बन जाने के बाद, मन्थन गतियों के अतिरिक्त, थोड़ी-थोड़ी देर में तीव्र तरंगगतियाँ होने लगती हैं। और ऐसी प्रत्येक तरंग काइम की थोड़ी-सी मात्रा को बलपूर्वक पाइलोरिक छिद्र में से ग्रहणी (duodenum) में धकेल देती है। आमाशय की गतियों में लगभग 80% धीमी मन्थन गतियाँ तथा 20% तीव्र तरंगगतियाँ होती हैं।





जैवरासायनिक कार्य (Biochemical Functions)

जठर रस (Gastric Juice) : हमारे आमाशय की दीवार में उपस्थित लगभग 3.5 करोड़ जठर ग्रन्थियाँ दिनभर में लगभग एक से तीन लीटर तक, एक पीले से, उच्च अम्लीय (pH 1.0 से 3.0) जठर रस का स्रावण करती हैं। इस रस में 97 से 99% तक जल, 0.2 से 0.5% तक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) तथा सूक्ष्म मात्रा में पैराएटल कोशिकाओं द्वारा स्रावित एक तात्विक अभिकर्ता (intrinsic factor) और जाइमोजीनिक कोशिकाओं द्वारा स्रावित पेप्सिनोजन (pepsinogen) एवं जठर लाइपेज (gastric lipase) नामक एन्जाइम होते हैं।

जठर रस की उच्च अम्लीयता इसके हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) के कारण ही होती है। HCI की निम्नलिखित उपयोगिता होती है-
  1. यह भोजन के साथ आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
  2. भोजन को सड़ने से रोकता है।
  3. भोजन में उपस्थित कैल्सियमयुक्त कठोर पदार्थों को घुलाकर तथा तन्तुयुक्त (fibrous) खाद्य पदार्थों को तोड़ तोड़कर ढीला बनाता है।
  4. भोजन पर लार के प्रभाव को समाप्त करता है।
  5. शाकाहारी भोजन में उपस्थित पादप ऊतकों से वसा बिन्दुकों (fat globules) को मुक्त करता है।
  6. भोजन में उपस्थित न्यूक्लिओप्रोटीन्स (nucleoproteins) का न्यूक्लीक अम्लों और प्रोटीन्स में विखण्डन करता है।
  7. भोजन की प्रोटीन्स के जटिल अणुओं की वलनों (folds) तथा कुण्डलों (coils) को खोल देता है ताकि इन पर पाचन-क्रिया सुगमतापूर्वक हो सके।
  8. पेप्सिनोजन प्रोएन्जाइम (proenzyme) को सक्रिय पेप्सिन (pepsin) एन्जाइम में बदलता है।
  9. पाइलोरिक संकोचक पेशी (pyloric sphincter muscle) का नियन्त्रण करता है।

जठर रस के तात्विक अभिकर्ता (intrinsic factor) के अणु भोजन में उपस्थित विटामिन B12 के अणुओं से जुड़ जाते हैं। इसके फलस्वरूप आँत में पहुँचने पर B12 का अवशोषण (absorption) सुगम हो जाता है।

जठर रस का पेप्सिनोजन (pepsinogen) एक निष्क्रिय एन्जाइम, अर्थात् प्रोएन्जाइम (proenzyme) होता है। HCI के कारण बने उच्च अम्लीय माध्यम में यह सक्रिय पेप्सिन (pepsin) एन्जाइम में बदलकर भोजन पर प्रतिक्रिया करता है। पेप्सिन एक प्रोटीन-पाचक अर्थात् प्रोटिओलाइटिक (proteolytic) एन्जाइम और एण्डोपेप्टिडेज (endopeptidase) होता है। यह जटिल प्रोटीन अणुओं के भीतरी पेप्टाइड बन्धों को तोड़कर इन्हें बड़े-बड़े टुकड़ों अर्थात् व्युत्पन्न प्रोटीन्स ( derived proteins) प्रोटिओसेस, पेप्टोन्स एवं पोलीपेप्टाइड्स (proteoses, peptones and polypeptides) में तोड़ता है।

जठर रस में जठर लाइपेज (gastric lipase) नामक वसा पाचक एन्जाइम भी होता है। यह भोजन के कुछ छोटे वसा अणुओं, अर्थात् ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) अणुओं को इनके घटक वसीय अम्लों (fatty acids) एवं मोनोग्लिसराइड्स (monoglycerides) में विखण्डित कर देता है।

अनेक स्तनियों के जठर रस में दुग्ध प्रोटीन्स (milk proteins) के पाचन हेतु रेनिन (rennin) नामक प्रोटीन-पाचक एन्जाइम होता है। मानव के जठर रस में इसकी उपस्थिति संदिग्ध है। सम्भवतः शिशुओं के जठर रस में यह होता है, परन्तु वयस्कों के जठर रस में नहीं होता। वयस्कों में दुग्ध-प्रोटीन्स के पाचन का श्रेय पेप्सिन को ही दिया जाता है।


जठरीय श्लेष्मिका की सुरक्षा (Protection of Gastric Mucosa)
आमाशय की श्लेष्मिक कला की कोशिकाएँ तथा जठर ग्रन्थियों की ग्रीवा कोशिकाएँ प्रचुर मात्रा में गाढे, क्षारीय (alkaline) श्लेष्म (mucus) का श्रावण करती रहती हैं। यह श्लेष्म श्लेष्मिक कला पर फैलकर 1 से 3 मिमी मोटा जेली सदृश रक्षात्मक आवरण बनाए रहता है जो पेप्सिन की पाचन क्रिया को तथा HCI के प्रभाव को स्वयं दीवार पर होने से रोकता है। आमाशय में लगातार अधिक अम्लीयता बनी रहे तो अम्लीय पेप्सिन के प्रभाव से आमाशयी दीवार का आंशिक पाचन होने लगता है और दीवार में जगह-जगह घाव या नासूर (peptic ulcers) वन जाते हैं।


वमन (Vomiting or Emesis)
ग्रासनली के निचले अर्थात् आमाशयी छिद्र के नियन्त्रक कार्डियक संकोचक (cardiac sphincter) का प्रमुख कार्य आमाशय से भोजन की उगाली (regurgitation) को रोकना होता है। कभी-कभी, मस्तिष्क के मेड्यूला में स्थित वमन केन्द्र (vomiting centre) के, कई प्रकार की विविध भौतिक या रासायनिक दशाओं द्वारा, उत्तेजित हो जाने से, मितली-सी आने लगती है। इसमें कार्डियक संकोचक तथा आमाशय एवं ग्रासनली की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं और हमें कै हो जाती है। वमन केन्द्र के उत्तेजित होने पर उदर भाग की पेशियों तथा डायफ्राम में अत्यधिक संकुचन होने लगता है। इसी संकुचन के दबाव से आमाशय में भरे भोजन की उगाली होती है और हमें मरोड़ एवं मितली आदि का अनुभव होता है। वमन में प्रायः उदरीय अम्ल होता है जिससे हमें जलन महसूस होती है।

भोजन ग्रहण के बाद कभी-कभी हमें डकार आती है। इसमें आमाशय से ध्वनि के साथ कुछ वायु मुख में होती हुई बाहर निकलती है। यह वायु प्रायः जल्दी-जल्दी भोजन या जल ग्रहण करने के कारण आमाशय में पहुँच जाती है।


आमाशय का रिक्तिकरण (Emptying of Stomach)
आमाशय में तरल तथा ठोस भोजन क्रमशः 1.5 से 2.5 और 3 से 4 घण्टे रुकता है। इस बीच आमाशय की मन्थन गतियों के बीच-बीच में तीव्र क्रमाकुंचन (peristalsis) की तरंगों के कारण पाइलोरिक छिद्र से काइम की थोड़ी-थोड़ी मात्रा रुक-रुककर ग्रहणी में पम्प होने लगती है। इस पम्पिंग के दौरान गैस्ट्रिन हॉरमोन ग्रासनली के कार्डियक संकोचक को सिकोड़ने और पाइलोरिक छिद्र के चारों ओर के पाइलोरिक संकोचक (pyloric sphincter) को फैलाने का काम करता है। साथ ही तन्त्रिकीय नियन्त्रण इस पम्पिंग की दर का नियमन करता है। पाइलोरिक छिद्र साधारणतः थोड़ा-सा खुला रहता है, परन्तु ग्रहणी में काइम का दबाव आमाशय से अधिक हो जाने पर यदि उगाली की नौबत आ जाए तो एक प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया (reflex reaction) के रूप में संकुचित होकर पाइलोरिक संकोचक इसे बन्द कर देता है।

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