ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides) का पाचन तन्त्र (Digestive System)
ऐस्कैरिस के मुखद्वार से गुदा तक फैली एक लम्बी एवं सीधी आहारनाल (alimentary canal) होती है। इसमें चार भाग होते हैं- मुखीय प्रकोष्ठ, ग्रसनी, आँत तथा मलाशय।
1. मुखीय प्रकोष्ठ (Buccal Capsule): यह छोटा-सा त्रिकोणाकार कक्ष (chamber) होता है जिसमें मुख खुलता है।
2. ग्रसनी (Pharynx): यह Capsule के पीछे छोटी-सी पतली नलिका होती है। इसकी दीवार मोटी एवं पेशीयुक्त तथा गुहा त्रिअरीय (triradiate) होती है।
प्रकोष्ठ एवं ग्रसनी भ्रूण की एक्टोडर्म (ectoderm) से, अर्थात् स्टोमोडियम (stomodaeum) से बनते हैं। इसीलिए, इनकी दीवार की भीतरी सतह पर उपचर्म का एक स्तर होता है जो मुखद्वार पर देहभित्ति की उपचर्म से जुड़ा रहता है।
ग्रसनी की दीवार, देहभित्ति की एपिडर्मिस की तरह ही सिन्सिशियल (syncytial) होती है। इसमें, केन्द्रकों के अलावा, दीवार की पूरी मोटाई में फैले, अरीय पेशी तन्तुओं (radial muscles fibres) के अनेक लम्बे गुच्छे तथा तीन, लम्बाई में फैली बड़ी व शाखान्वित ग्रन्थि कोशिकाएँ होती हैं।
गुहा के तीनों कोणों से, संयोजी ऊतक-तन्तुओं के गुच्छे दीवार में सतह तक फैले होते हैं। गुहा triradiate इन्हीं के कारण होती है।
अरीय पेशियों के संकुचन से गुहा फैलती है और उपचर्म एवं संयोजी ऊतक-तन्तुओं के लचीलेपन के कारण संकुचन के बाद अपने आप वापस सामान्य अवस्था में आ जाती है।
इस प्रकार, ग्रसनी एक चूषक अंग (sucking organ) का काम करती है। यह पोषद (host) की आँत से काइम का चूषण करके इसे पीछे आँत में पम्प कर देती है। ग्रन्थि-कोशिकाएँ कुछ पाचक एन्जाइमों का स्रावण करके ग्रसनी की गुहा में मुक्त करती हैं।
3. आँत (Intestine) : ग्रसनी लम्बी एवं मोटी और कुछ चपटी-सी आँत में खुलती है। इनके बीच में एकतरफा valve होता है जो भोजन को ग्रसनी से आँत में जाने देता है लेकिन ग्रसनी में वापस नहीं लौटने देता है।
आँत की दीवार महीन और गुहा चौड़ी होती है। इसकी दीवार में पेशी तन्तु और ग्रन्थियाँ नहीं होती है। यह स्तम्भी (columnar) एण्डोडर्मल कोशिकाओं की इकहरी एपिथीलियम होती है।
ये कोशिकाएँ Cuticle का स्रावण करती हैं जिसका एक महीन आवरण आँत को घेरे रहता है। ये कुछ पाचक एन्जाइम्स का भी स्रावण करती हैं। इनकी भीतरी सतह पर अनेक सूक्ष्मांकुर (microvilli) होते हैं।
वास्तव में ये मुख्यतः अवशोषी (absorptive) होती हैं और गुहा से तरल पोषक पदार्थों का अवशोषण करती हैं। सूक्ष्मांकुर इनके अवशोषण तल को बढ़ाते हैं।
4. मलाशय (Rectum): आँत एक छोटे व संकरे मलाशय में खुलती है। मलाशय की दीवार महीन, एककोशिकीय स्तर के रूप में होती है।
ग्रसनी की भाँति, यह भी भ्रूण की एक्टोडर्म से बनी होती है। इसकी भीतरी सतह पर भी Cuticle का आवरण होता है जो गुदा पर Bodywall की Cuticle से जुड़ा रहता है। इस प्रकार, मलाशय भ्रूण के प्रोक्टोडियम (proctodaeum) से बनता है।
कुछ अरीय (radial) पेशी तन्तुओं के गुच्छे इसकी दीवार को Bodywall से जोड़ते हैं। इन्हें प्रसार पेशियाँ (dilatory muscles) कहते हैं। मादा में मलाशय गुदा (anus) द्वारा सीधा बाहर खुलता है। नर में इसमें जननवाहिनी के खुल जाने से इसका अन्तिम भाग अवस्कर मार्ग (cloaca) बन जाता है जो फिर अवस्कर द्वार (cloacal aperture) से बाहर खुलता है। प्रसार पेशियाँ समय-समय पर संकुचन करके मल को गुदा (मादा) या अवस्कर द्वार (नर में) से बाहर निकालती रहती हैं।
भोजन, इसका अन्तर्ग्रहण एवं पाचन (Food, Feeding and Digestion)
ऐस्कैरिस का भोजन पोषद मनुष्य की आँत की काइम (chyme) होता है। यह काइम को ग्रसनी की पम्पिंग क्रिया द्वारा आहारनाल में खींचता है। पाचन तन्त्र सरल इसलिए होता है कि काइम में इसे लगभग पचा-पचाया तरल भोजन मिलता है।
यदि काइम में कुछ अर्धपचे पोषक पदार्थों के कण होते भी हैं तो ग्रसनी की ग्रन्थि कोशिकाओं एवं आँत की कोशिकाओं द्वारा स्रावित पाचक रस इनका आंशिक पाचन कर देते हैं। इन रसों में प्रोटीन्स, वसाओं एवं कार्बोहाइड्रेट्स आदि सभी पदार्थों को पचाने वाले एन्जाइम्स होते हैं। फिर इन भोजन कणों को आन्त्रीय दीवार की कोशिकाएँ भक्षण (phagocytosis) करके पचा लेती हैं।
पचे हुए पोषक पदार्थों का अवशोषण आन्त्रीय दीवार की कोशिकाएँ ही करती हैं। फिर ये पदार्थ आन्त्रीय दीवार से रिसकर देहगुहीय तरल में पहुँच जाते हैं जो पूरे शरीर में इनका वितरण करता रहता है। आवश्यकता से अधिक पोषक पदार्थों का हाइपोडर्मिस एवं पेशी कोशिकाओं में ग्लाइकोजन एवं वसा के रूप में संग्रहण हो जाता है।
यदि काइम में कुछ अर्धपचे पोषक पदार्थों के कण होते भी हैं तो ग्रसनी की ग्रन्थि कोशिकाओं एवं आँत की कोशिकाओं द्वारा स्रावित पाचक रस इनका आंशिक पाचन कर देते हैं। इन रसों में प्रोटीन्स, वसाओं एवं कार्बोहाइड्रेट्स आदि सभी पदार्थों को पचाने वाले एन्जाइम्स होते हैं। फिर इन भोजन कणों को आन्त्रीय दीवार की कोशिकाएँ भक्षण (phagocytosis) करके पचा लेती हैं।
पचे हुए पोषक पदार्थों का अवशोषण आन्त्रीय दीवार की कोशिकाएँ ही करती हैं। फिर ये पदार्थ आन्त्रीय दीवार से रिसकर देहगुहीय तरल में पहुँच जाते हैं जो पूरे शरीर में इनका वितरण करता रहता है। आवश्यकता से अधिक पोषक पदार्थों का हाइपोडर्मिस एवं पेशी कोशिकाओं में ग्लाइकोजन एवं वसा के रूप में संग्रहण हो जाता है।
ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस में श्वसन (Respiration)
पोषद (host) की आँत में रहने के कारण ऐस्कैरिस में बहुत सक्रिय जैव-क्रियाएँ नहीं होती है। और इन्हें यहाँ ऑक्सीजन (O2) भी नहीं मिलती है। अतः ऐस्कैरिस में ऊर्जा उत्पादन अनॉक्सी या अवायुवीय श्वसन (anaerobic respiration) द्वारा होता है। इसीलिए इनमें श्वसनांग नहीं होते हैं।अवायुवीय श्वसन क्रिया में ग्लूकोस का पहले लैक्टिक अम्ल (lactic acid) में और फिर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) तथा वसीय अम्लों (fatty acids) में विखण्डन होता है जिन्हें Cuticle में से प्रसरण द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। मुख्यतः वसीय अम्लों के कारण ही देहगुहीय द्रव्य बदबूदार होता है। पोषद की आँत में ऑक्सीजन (O2) मिल जाए तो ऐस्कैरिस वायुवीय या ऑक्सी श्वसन (aerobic respiration) भी कर सकता है।
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