ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides): वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण| in hindi


ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides)

ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides): वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण| in hindi



ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides) एक गोल कृमि है जो Nematoda संघ में पाया जाता है। यह मनुष्य की छोटी आंत में एक सामान्य परजीवी के रूप में रहता है। इस लेख में हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।

वर्गीकरण (Classification)


प्रभाग (Section): स्यूडोसीलोमैटा (Pseudocoelomata)
संघ (Phylum): निमैटोडा (Nematoda)
गण (Order): ऐस्कैरॉइडिया (Ascaroidea)
श्रेणी (Genus): ऐस्कैरिस (Ascaris)



ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides): वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण| in hindi

प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Habitat and Habits)

ऐस्कैरिस स्तनियों की आँत का एकपोषदीय (monogenetic) परजीवी (parasite) होता है। ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस मनुष्य की छोटी आँत में रहता है। देशी भाषा में लोग इसे केंचुला या गिलवा भी कहते हैं। चिकनी मिट्टी और नम एवं ऊष्ण वातावरण वाले प्रदेशों में रहने वाले अधिकांश जनता इससे संक्रमित (infected) होती है। बच्चे ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris Lumbricoides) से अधिक संक्रमित होते हैं। यह पोषद (host) की आंत की गुहा में स्वतन्त्र रूप से रहता है, यहीं से भोजन प्राप्त करता और थोड़ा-बहुत इधर-उधर रेंग लेता है।


बाह्य लक्षण (External Features)

आकृति माप एवं रंग (Shape, Size and Colour)

ऐस्कैरिस का शरीर लम्बा, पतला एवं नालवत् (tubular) होता है जो बीच में कुछ मोटा और सिरों पर पतला, अर्थात् तर्कुरूपी (spindle shaped) तथा हल्का भूरा या गुलाबी-सा होता है। यह एकलिंगी होते हैं अर्थात इनमें नर एवं मादा सदस्य अलग-अलग होते हैं। मादा ऐस्कैरिस नर ऐस्कैरिस से कुछ बड़ी होती है। इसकी लंबाई 20-40 सेमी और मोटाई 6-8 मिमी होती है। जबकि नर ऐस्कैरिस की लंबाई 15-30 सेमी और मोटाई 3-5 मिमी होती है।


बाह्य रचना (External Morphology)

इसके शरीर पर चमकीली, अर्धपारदर्शक cuticle का आवरण होता है जिस पर हल्की, छल्लेनुमा झुर्रिया और शरीर की लम्बाई में फैली चार स्पष्ट धारियाँ दिखाई देती हैं। दो धारियों में से एक मध्यपृष्ठ धारी (mid-dorsal line) एवं एक मध्यअधर धारी (mid-ventral line) होती है जो सफेद-सी और पतली होती हैं। और दो पार्श्व धारियाँ (lateral lines) होती हैं जो अपेक्षाकृत मोटी एवं भूरी-सी होती हैं।

इसके अग्र छोर पर छोटा, त्रिकोणाकार-सा मुखद्वार होता है। यह तीन अर्धचन्द्राकार से चौड़े होंठों (lips or labia) द्वारा घिरा होता है - एक मध्यपृष्ठ (median dorsal) तथा दो अधर-पार्श्व (ventro-lateral)। प्रत्येक होंठ भ्रूणीय परिवर्धन में दो होंठों के समेकन से बनता है। तीनों होंठों के भीतरी तथा मुखीय किनारों पर उपचर्म (cuticle) के ही बने सूक्ष्म दाँत जैसे उभार होते हैं और बाहरी सतहों पर छोटे-छोटे संवेदी अंकुर (sensory papillae) होते हैं। दाँतों का कार्य अनिश्चित है। संवेदी अंकुर और इन पर स्थित संवेदांग निम्नलिखित होते हैं:

1. मध्यपृष्ठ होंठ पर : दोनों पार्थों में एक-एक बड़ा संवेदी अंकुर होता है। ये अंकुर द्विगुण (double) होते हैं, अर्थात् प्रत्येक पर दो सूक्ष्म संवेदांग होते हैं।

2. अधरपार्श्व होंठों पर : (क) प्रत्येक के अधर भाग पर एक द्विगुण अंकुर (Double papillae) होता है तथा (ख) पृष्ठपार्श्व भाग पर एक छोटा पार्श्व संवेदी अंकुर (lateral sensory papilla) पाया जाता है। पार्श्व संवेदी अंकुर पर केवल एक संवेदांग होता है। इसके निकट एक खाँचेनुमा ग्रन्थिल संवेदांग भी होता है जिसे ऐम्फिड (amphid) कहते हैं।


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इसके मुख से लगभग 2 मिमी पीछे, शरीर के पार्श्वों में, एक-एक सूक्ष्म ग्रीवा संवेदी अंकुर (cervical sensory papillae) भी होते हैं।

इसके शरीर की मध्यअधर रेखा पर, अग्र छोर से लगभग 2 मिमी पीछे, एक छोटा उत्सर्जन छिद्र (excretory pore) होता है। इसी प्रकार, पश्च सिरे से लगभग 2 मिमी आगे, इसी रेखा पर, एक सँकरी अनुप्रस्थ दरार-जैसी गुदा (anus) होती है। नर में गुदा ही जनन छिद्र का भी काम करती है। अतः इसे अवस्कर द्वार (cloacal aperture) कहते हैं। इसमें से उपचर्म की बनी दो महीन सूई-जैसी पीनियल कण्टिकाएँ या शूक (penial spicules or setae) प्रायः बाहर निकली रहती हैं।

नर का पश्च छोर अधरतल की ओर मुड़ा होता है। इसके अधरतल पर, अवस्कर द्वार के आगे, 50 जोड़ी अग्रगुद अंकुर (precloacal papillae) तथा पीछे 5 जोड़ी पश्चगुद अंकुर (postcloacal papillae) होते हैं। ये मैथुनी आलिंगन में सहायता करते हैं।

मादा ऐस्कैरिस में जनन छिद्र, अर्थात् भग (vulva) गुदा से पृथक मध्यअधर रेखा पर अग्र छोर से शरीर की लम्बाई के लगभग 1/3 पीछे स्थित होती है। नर एवं मादा, दोनों में, पश्च छोर के कुछ ही आगे, पार्श्वों में, एक जोड़ी सूक्ष्म गड्ढेनुमा ग्रन्थिल संवेदांग होते हैं। इन्हें फैस्मिड्स (phasmids) कहा जाता हैं।


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नर एवं मादा ऐस्कैरिस के बाह्य लक्षणों में अन्तर


नर ऐस्कैरिस एवं मादा ऐस्कैरिस

1. नर ऐस्कैरिस माप में छोटा होता है। इसकी लंबाई 15-30 सेमी तथा मोटाई 3-5 मिमी होती है। जबकि मादा ऐस्कैरिस माप में बड़ी होती है। इसकी लंबाई 20-40 सेमी तथा मोटाई 6-8 मिमी होती है।

2. नर ऐस्कैरिस का पश्च छोर अधरतल की ओर मुड़ा हुआ होता है। जबकि मादा ऐस्कैरिस का पश्च छोर सीधा होता है।

3. नर ऐस्कैरिस में गुदा एवं जनन छिद्र पृथक् नहीं होते हैं। अवस्कर द्वार शरीर के पश्च छोर के पास होता है। जबकि मादा ऐस्कैरिस में गुदा एवं जनन छिद्र पृथक होते हैं।गुदा पश्च छोर के पास तथा vulva अग्र छोर के पास स्थित होता है।

4. नर ऐस्कैरिस अवस्कर द्वार से एक जोड़ी पीनियल शूक निकले होते हैं। जबकि मादा ऐस्कैरिस में पीनियल शूकों का अभाव होता है।

5. नर ऐस्कैरिस पश्चगुद (postcloacal) एवं अग्रगुद (precloacal) अंकुर उपस्थित। जबकि मादा ऐस्कैरिस में ये अंकुर अनुपस्थित होते हैं।


इस प्रकार नर एवं मादा ऐस्कैरिस में स्पष्ट संरचनात्मक विभिन्नता होती है। इसी को लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) कहते हैं।




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