वर्ग एम्फिबिया अर्थात् उभयचर(Amphibia) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi


वर्ग एम्फिबिया अर्थात् उभयचर(Class Amphibia) :  परिचय, लक्षण, उपवर्ग
वर्ग एम्फिबिया अर्थात् उभयचरा(Amphibia) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi


परिचय (Introduction)
एम्फिबियन ऐसे जीव आते हैं जो जल तथा थल दोनों जगहों पर रह सकते हैं। ऐसे जीवों को एम्फिबिया अर्थात् उभयचर जीव कहते हैं। इनके नाम का अर्थ भी यही होता हैं- Amphibia में amphi का अर्थ होता है both तथा bios का अर्थ Life होता है। इनका उदय डिवोनियन कल्प में हुआ। इसके बाद के इनके अनेक जीवाश्म मिले हैं।जिससे इनके बारे में पता चलता हैं। इसकी लगभग 3400 विद्यमान जातियाँ ज्ञात है। इन जीवों से सम्बंधित अन्य तथ्यों के बारे में नीचे जानेंगे।

लक्षण (Characteristic)
एम्फिबिया अर्थात् उभयचर वर्ग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  1. एम्फिबिया अर्थात् उभयचरा वर्ग के सदस्य जलस्थलचर (amphibious) होते हैं अर्थात् यह जलीय एवं स्थलीय दोनों प्रकार के जीवन के लिए उपयोजित होते हैं। 
  2. इनके पैर जल में तैरने और भूमि पर फुदकने के लिए उपयोजित होते हैं।
  3. इनकी त्वचा शल्करहित होती है लेकिन अत्यधिक श्लेष्म के कारण चिकनी व नम होती है जबकि अनेक सदस्यों में  त्वचा श्वसन के लिए उपयोजित होती है। 
  4. इस वर्ग के सदस्यों में करोटि द्विकोण्डाइली (dicondylic) होती है अर्थात् इसमें कशेरुकदण्ड से जुड़ने के लिए दो ऑक्सीपिटल कोण्डाइल्स (occipital condyles) उपस्थित रहते हैं। 
  5. इन जीवो में श्वसन अधिकांश में क्लोमों (gills) द्वारा होता है। कुछ जीवो की वयस्क अवस्था में त्वचा, फेफड़ों तथा मुख-ग्रासन गुहिका द्वारा होता है। 
  6. इनका हृदय त्रिवेश्मी होता है तथा धमनी कांड (truncus arteriosus) विकसित होती है। 
  7. इन जीवो के रक्त में लाल रुधिराणु केन्द्रकयुक्त होते हैं। 
  8. इस वर्ग के जीव असमतापी या शीतरुधिर (poikilothermous or cold-blooded) जन्तु होते हैं। इनके शरीर-ताप वातावरण के ताप के अनुसार घटता-बढ़ता है। अतः अधिक ताप या शीत से बचने के लिए इन्हें सुप्तावस्था (hibernation) का सहारा लेना पड़ता है। 
  9.  इनमें जननछिद्र गुदा से पृथक् नहीं होते हैं। जननवाहिनियाँ अवस्कर मार्ग (cloaca) में खुलती हैं। अतः जनन पदार्थ एवं मल, दोनों ही अवस्कर द्वार (cloacal aperture) से बाहर निकलते हैं। 
  10. अण्डाणुओं का निषेचन (fertilization) तथा भ्रूणीय परिवर्धन मादा के शरीर से बाहर, जल में होता है। 
  11. जीवन-वृत्त में भेकशिशु (tadpole) प्रावस्था प्रायः उपस्थित रहती है।
उभयचरों का उदय डिवोनियन कल्प में हुआ। इसके बाद के इनके अनेक जीवाश्म मिले हैं। इसकी लगभग 3400 विद्यमान जातियाँ ज्ञात है। 
विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ 5 उपवर्गों के अन्तर्गत 10 गणों में वर्गीकृत है जो इस प्रकार है-
  1. उपवर्ग लेबिरिन्थोडोन्शिया (Subclass Labyrinthodontia)
  2. उपवर्ग लीपोस्पोन्डाइली (Subclass Lepospondyli)
  3. उपवर्ग सैलेन्शिया (Subclass Salientia)
  4. उपवर्ग यूरोडीला (Subclass Urodela)

(A) उपवर्ग लेबिरिन्थोडोन्शिया (Subclass Labyrinthodontia) - यह विकास क्रम में सबसे पुरातन उभयचर है तथा इसकी अंतर्गत आने वाली सभी जातियां विलुप्त ही हैं। इसे तीन गणों (orders) में वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण -सेमूरिया (Seymouria)।

(B) उपवर्ग लीपोस्पोन्डाइली (Subclass Lepospondyli)— इस उप वर्ग के अंतर्गत कार्बोनीफेरस एवं परमियन कल्पों (Carboniferous and Permian periods) के विलुप्त पुरातन उभयचर आते हैं। इसे तीन गणों में वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण—डिप्लोकॉलस (Diplocaulus)।

(C) उपवर्ग सैलेन्शिया (Subclass Salientia)— यह उप वर्ग दो गण -प्रोऐन्यूरा (Proanura) विलुप्त तथा ऐन्यूरा (Anura) कुछ विलुप्त और विद्यमान जातियों के लिए जाना जाता है। इसकी विद्यमान जातियाँ मेंढक तथा टोड (frogs and toads) है।
इनके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • वयस्क में पूँछ एवं जलक्लोम अनुपस्थित रहते हैं तथा इनका धड़ छोटा होता है।
  • इनमें करोटि छोटी होती है। इसमें हड्डियों की संख्या कम होती है। 
  • इनके शरीर में कशेरुकाएँ थोड़ी होती है। इनके सेन्ट्रा (centra) लघुकृत होते हैं। कशेरुकाएँ भ्रूणीय नोटोकॉर्ड के चारों ओर पहले उपास्थि के रूप में स्थापित होती है तथा अन्तिम कशेरुका छड़नुमा यूरोस्टाइल (urostyle) के रूप में स्थापित होती है। 
  • इन जीवो के पश्चपाद अग्रपादों से लम्बे होते हैं तथा इनकी अँगुलियाँ जालयुक्त (webbed) होती हैं। 
  • इनके अन्तःकंकाल का काफी भाग उपास्थीय होता है। 
  • इन जंतुओं में अण्डनिक्षेपण, संसेचन एवं भ्रूणीय परिवर्धन जल में होता है। जीवन वृत्त में मछली-सदृश भेकशिशु (tadpole) प्रावस्था उपस्थित रहती है। अतः कायान्तरण (metamorphosis) महत्त्वपूर्ण होता है। उदाहरण- टोड (Bufo), हायला (Hyla), मेंढक (Rana), आदि ।

(D) उपवर्ग यूरोडीला (Subclass Urodela)– इस उप वर्ग के सभी जंतुओं की विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ सब एक ही गण कॉडेटा (Order Caudata) में होती है। इसके अंतर्गत वर्तमान न्यूट्स (Newts) एवं सैलेमैन्डर (Salamanders) आते हैं।
इस उप वर्ग के जीवों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इन जीवों का शरीर सिर, धड़ एवं पूँछ में विभेदित रहता है तथा इनका धड़ लम्बा होता है।  
  • इनमें दोनों जोड़ी पाद लगभग समान लम्बाई के होते हैं। इनसे सम्बन्धित मेखलाएँ (girdles) लगभग उपास्थिल ही होती हैं। 
  • कशेरुकाएँ भ्रूणीय नोटोकॉर्ड के चारों ओर हड्डी के रूप में स्थापित रहती है। 
  • इसके अंतर्गत आने वाले जीवों की जातियाँ कुछ पूर्णरूपेण जलीय तथा कुछ मुख्यतः स्थलीय होती है। इनके श्वसनांग जलीय जातियों में क्लोम कथा स्थलीय में फेफड़े होते हैं। 
  • इनके भेकशिशु (calf) वयस्क जैसे होते हैं। अतः इनमें कायान्तरण महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। उदाहरण—सैलेमैन्डर, नेक्ट्यूरस (Necturus) आदि।

(E) उपवर्ग एवं गण जिम्नोफायना या ऐपोडा (Subclass and Order Gymnophiona or  Apoda)इस उप वर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • यह जीव बिलों में रहने वाले तथा पादविहीन उभयचर होते हैं। 
  • इनका शरीर लम्बा व सँकरा होता है जो देखने में केंचुए जैसा दिखता है। 
  • इनके पैरों की मेखलाएँ भी नहीं होती है।
  • ऐसे जीवो का सिर सुरंग खोदने के लिए मजबूत होता है तथा इस पर नेत्र अर्धविकसित, पलकरहित तथा प्रायः त्वचा से ढके हुए रहते हैं तथा इनके और बाह्य नासाद्वारों के बीच एक छोटा-सा स्पर्शक होता है। 
  • इनकी त्वचा चिकनी होती है जिस पर अनुप्रस्थ झुर्रियाँ उपस्थित रहती हैं।
  • इन जीवो में पूँछ छोटी या अनुपस्थित रहती है।
  • क्लोम (gills) द्वारा श्वसन केवल शिशु में होता है जबकि वयस्क में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। 
  • नर में शरीर के पश्च छोर पर अवस्कर द्वार (cloacal aperture) से बाहर निकलने वाला मैथुन अंग (protrusible copulatory organ) होता है। उदाहरण—इक्थियोफिस (Ichthyophis)।


No comments:

Post a Comment