संघ कॉर्डेटा (Chordata) : परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, उत्पत्ति|hindi


संघ पृष्ठवंश या कॉर्डेटा (Phylum Chordata) 

संघ कॉर्डेटा (Chordata) : परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, उत्पत्ति|hindi

परिचय एवं परिभाषा (Introduction and Definition)

इस संघ के जंतु द्विपार्वीय एवं ड्यूटरोस्टोमी यूसीलोमैट यूमेटाजोआ होते हैं जिनमें जीवनभर या भ्रूण में, शरीर को सहारा देने हेतु, एक लम्बी, लचीली व दृढ़ अन्तःकंकालीय (endoskeletal) छड़-पृष्ठरज्जु या मेरुदण्ड या नोटोकॉर्ड (notochord) की उपस्थिति एक मूल लक्षण होता है।

कॉर्डेटा संघ की लगभग 55 हजार विद्यमान और 25 हजार विलुप्त जातियाँ ज्ञात हैं। ये भूमि पर, जल या वायु में रहते हैं तथा संसारभर में पाए जाते हैं। मछलियाँ, मेंढक, छिपकलियाँ, सर्प, पक्षी, चूहे, मनुष्य, पालतू पशु, आदि कॉर्डेटा ही होते हैं। ये नॉनकॉर्डेट (nonchordate) जन्तुओं से अधिक विकसित और बड़े (संघ मोलस्का के शीर्षपाद या सिफैलोपोडा (cephalopoda) को छोड़कर) होते हैं।


मूल कॉर्डेट लक्षण (Fundamental Chordate Characters)

कॉर्डेट जन्तुओं के तीन प्राथमिक या मूल, अद्वितीय (diagnostic) लक्षण होते हैं -
  1. मेरुदण्ड अर्थात् नोटोकॉर्ड (Notochord)
  2. पृष्ठ नालवत् केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Dorsal Tubular Central Nervous System)
  3. ग्रसनीय क्लोम दरारें (Pharyngeal Gill Clefts)

1. मेरुदण्ड अर्थात् नोटोकॉर्ड (Notochord): यह भ्रूण की मीसेन्डोडर्म से बनी और मेरुरज्जु एवं आहारनाल के बीच, शरीर की मध्यपृष्ठ रेखा में फैली एक ठोस, अक्षीय (axial) अन्तःकंकाल छड़ होती है। यह बड़ी-बड़ी कोशिकाओं की बनी तथा संयोजी ऊतक के आवरण से ढ़की होती है। कुछ में यह आजीवन होती है, परन्तु अधिकांश में केवल भ्रूणीय प्रावस्था में होती है। वयस्क में, इसके स्थान पर, मेरुरज्जु के चारों ओर, मीसोडर्मी कशेरुकदण्ड (vertebral column) बन जाती है।

2. पृष्ठ नालवत् केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Dorsal Tubular Central Nervous System) : उच्च श्रेणी के नॉनकॉर्डेट जन्तुओं (ऐनेलिडा, आर्थ्रो पोडा, आदि) में तन्त्रिका रज्जु (nerve cord) होती है, परन्तु यह ठोस, प्रायः दोहरी तथा मध्यअधर रेखा में स्थित होती है। कॉर्डेटा में तन्त्रिका रज्जु इकहरी, खोखली (नालवत्) तथा शरीर की मध्यपृष्ठ रेखा में होती है। यह भ्रूण की एक्टोडर्म से बनती है। इसकी गुहा को तन्त्रिका गुहा अर्थात् न्यूरोसील (neurocoel) कहते हैं। अधिकांश कॉर्डेट्स में यह सिर में मस्तिष्क (brain) बनाती है। शेष भाग रीढ़रज्जु, मेरुरज्जु या सुषुम्ना (spinal cord) होती है। दोनों मिलकर केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र बनाते हैं।

3. ग्रसनीय क्लोम दरारें (Pharyngeal Gill Clefts) : प्रत्येक कॉर्डेट के भ्रूण में, ग्रसनी (pharynx) की दीवार में, मूलतः श्वसन के लिए, जोड़ीदार पार्श्व क्लोम दरारें बनती हैं। इनके बनने की विधि विचित्र होती है— ग्रसनी की दीवार से बाहर की ओर तथा देहभित्ति से भीतर की ओर अँगुलीसदृश प्रवर्ध निकलकर परस्पर जुड़ जाते हैं और इनके बीच की भित्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। अतः इन दरारों से ग्रसनी की गुहा बाहर खुल जाती है। जलीय कॉडेंट्स में दरारें प्रायः आजीवन रहतीं और श्वसन में भाग लेती हैं, परन्तु स्थलीय कॉडेंट्स में ये वयस्क अवस्था तक बन्द हो जाती हैं।

उपरोक्त तीन मूल लक्षणों के अतिरिक्त कॉर्डेटा के अन्य विशिष्ट लक्षण निम्नवत् होते हैं जो इस प्रकार 
है- 

4. अधर हृदय (Ventral Heart) : नॉनकॉर्डेटा के विपरीत, कॉर्डेटा के जंतुओं में, देहगुहा के अधरभाग में स्पष्ट, पेशीयुक्त हृदय होता है। यह एक थैलीनुमा हृदयावरण (pericardium) द्वारा घिरा होता है। हृदयावरणी गुहा (pericardial cavity) देहगुहा (coelom) का भाग होती है।

5. रुधिर परिसंचरण तन्त्र (Blood Vascular System) : कॉर्डेटा तथा कुछ उच्च नॉनकॉर्डेटा में रुधिर स्पष्ट रुधिरवाहिनियों एवं केशिकाओं (capillaries) में, एक निश्चित दिशा में, बहता है। ऐसे परिसंचरण तन्त्र को बन्द रुधिर परिसंचरण तन्त्र (closed blood vascular system) कहते हैं। कॉर्डेटा में यह अधिक विकसित होता है। 

नॉनकॉर्डेटा के विपरीत, कॉर्डेटा में, पृष्ठ रुधिरवाहिनी (dorsal blood vessel) में रुधिर आगे से पीछे की ओर तथा प्रमुख अधर रुधिरवाहिनी (ventral blood vessel) में पीछे से आगे की ओर बहता है। इसके अतिरिक्त, कॉर्डेटा में आहारनाल से रुधिर लाने वाली शिरा, हृदय में न जाकर, यकृत में जाती है और इस प्रकार एक यकृती निर्वाहिका तन्त्र (hepatic portal system) बनाती है।

6. लाल रुधिराणु (Red Blood Corpuscles) : कॉर्डेटा के रुधिर में लाल श्वसन रंगा, हीमोग्लोबिन (haemoglobin) होती है। यह एक विशेष प्रकार कोशिकाओं लाल रुधिराणुओं में होती है। स्तनियों के अतिरिक्त, अन्य कॉर्डेटा में, रुधिराणु केन्द्रकमय होते हैं। नॉनकॉर्डेटा में भी कुछ में हीमोग्लोबिन होता है, परन्तु यह प्लाज्मा (plasma) में घुला होता है।

7. पश्च-गुद पुच्छ (Postanal Tail) : नॉनकॉर्डेटा के जंतुओं में शरीर का पिछला, पूँछ जैसा भाग प्रमुख खोखले शरीर का ही भाग होता है और गुदा इसके छोर पर होती है। कॉर्डेटा में पूँछ शरीर का गुदा से पीछे का ठोस, पेशीयुक्त, कंकालयुक्त एवं मूलतः खण्डयुक्त (segmented) भाग होती है। यह मुख्यतः गमन में सहायता करती है।

ऊपर दिए गए लक्षणों के आधार पर कॉर्डेटा के जंतुओं का वर्णन किया जा सकता है। यह जीव नॉनकॉर्डेटा से बहुत भिन्न होते हैं।


संघ कॉर्डेटा (Chordata) : परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, उत्पत्ति|hindi

कॉर्डेटा की उत्पत्ति (Origin of Chordates)

पृष्ठवंश या कॉर्डेटा के सबसे पुराने जीवाश्म पैलिओजोइक महाकल्प (Palaeozoic era) के ऑर्डोवीशियन कल्प (Ordovician period) की चट्टानों में पाए गए हैं। ये जीवाश्म अलवणजलीय मछलियों के हैं। इनकी उत्पत्ति के बारे में दो परिकल्पनाएँ हैं-

1. ऐनेलिड परिकल्पना (Annelid Theory) : ऐसा देखा गया है कि ऐनेलिडा तथा पृष्ठवंशियों में कई समानताएँ होती हैं। जैसे ,द्विपार्श्वीय एवं खण्डयुक्त शरीर, खण्डीय उत्सर्जन अंग, विकसित सीलोम गुहा, बन्द रुधिर परिसंचरण तन्त्र, आदि। यदि किसी ऐनेलिङ को पलटकर उल्टा करदें तो इसकी संरचना पृष्ठवंशियों जैसी ही दिखाई देगी। वैज्ञानिक इस मत का अधिक समर्थन नहीं करते, क्योंकि ऐनेलिडा प्रोटोस्टोमी होते हैं और कॉर्डेटा ड्यूटरोस्टोमी जिससे कि दोनों में भ्रूणीय परिवर्धन का प्रतिरूप (pattern) बहुत भिन्न होता है।

2. एकाइनोडर्म परिकल्पना (Echinoderm Theory) : भ्रूणीय परिवर्धन में कॉर्डेटा अन्य ड्यूटरोस्टोमी संघों— एकाइनोडर्मैटा तथा हेमीकॉर्डेटा से काफी मिलते-जुलते होते हैं। हेमीकॉर्डेटा (Hemichordata) ऐसे कृमिसदृश समुद्री जन्तु होते हैं जिनमें प्रमुख कॉर्डेट लक्षणों के प्रारम्भ होने का आभास मिलता है। इनके जीवन-वृत्त में टॉरनेरिया शिशु प्रावस्था (Tornaria larva stage) होती है। यह एकाइनोडर्मो की बाइपिनैरिया शिशु प्रावस्था (Bipinnaria larva stage) से मिलती-जुलती होती है। 

इसी आधार पर वैज्ञानिक पृष्ठवंश के निम्नलिखित वंशानुक्रम को मानते हैं-

एकाइनोडर्म (बाइपिनैरिया लार्वा) हेमीकॉर्डेट लार्वा → ट्यूनीकेट लार्वा → बैंकियोस्टोमा (ऐम्फीऑक्सस) → ऑस्ट्रैकोडर्म मछलियाँ (ऑर्डोवीशियन कल्प की) → चतुष्पादा (Tetrapoda)


FAQs

1. कॉर्डेटा के बारे में क्या अनोखा है?

कॉर्डेटा के बारे में सबसे अनोखी बात यह है कि इनमें एक नर्व कॉर्ड होता है जो पूरे शरीर में फैला होता है। यह नर्व कॉर्ड मस्तिष्क से जुड़ा होता है और संवेदी और चालक दोनों प्रकार के कार्यों को नियंत्रित करता है। कॉर्डेटा में एक रीढ़ की हड्डी भी होती है जो नर्व कॉर्ड की रक्षा करती है।


2. कॉर्डेटा में कितने जानवर आते हैं?

कॉर्डेटा में लगभग 60,000 प्रजातियों के जानवर आते हैं। इनमें मनुष्य, मछली, पक्षी, सरीसृप, उभयचर और अकशेरुकी शामिल हैं।


3. कौन सा जानवर कॉर्डेट नहीं हैं?

ऐसे जानवर हैं जो कॉर्डेटा के अंतर्गत नहीं आते हैं। जिनमें नर्व कॉर्ड या रीढ़ की हड्डी नहीं पाई जाती हैं। इनमें स्पंज, सीलेंट्रेट्स, नेमाटोड, अकशेरुकी और कुछ अन्य जीव शामिल हैं।


4. कॉर्डेटा की तीन प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

कॉर्डेटा की तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • नर्व कॉर्ड (Nerve cord): यह एक लम्बी, नली जैसी संरचना है जो मस्तिष्क से जुड़ी होती है और संवेदी और चालक दोनों प्रकार के कार्यों को नियंत्रित करती है।
  • रीढ़ की हड्डी (Nerve cord): यह एक कठोर संरचना होती है जो नर्व कॉर्ड की रक्षा करती है।
  • नोटोकॉर्ड (Notochord): यह एक लम्बी, रेशेदार संरचना होती है जो नर्व कॉर्ड के नीचे स्थित होती है और विकास के दौरान रीढ़ की हड्डी का निर्माण करती है।


5. क्या सभी कॉर्डेटा में रीढ़ की हड्डी होती है?

नहीं, सभी कॉर्डेटा में रीढ़ की हड्डी नहीं होती है। कुछ कॉर्डेटा में रीढ़ की हड्डी केवल विकास के दौरान होती है और वयस्कता में गायब हो जाती है। उदाहरण के लिए, हड्डी रहित मछलियों में केवल युवावस्था में रीढ़ की हड्डी होती है।





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