वर्ग सरीसृप अर्थात् रेप्टीलिया (Class Reptilia) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi


वर्ग सरीसृप अर्थात् रेप्टीलिया (Class Reptilia) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग
वर्ग सरीसृप अर्थात् रेप्टीलिया (Class Reptilia) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi

महा वर्ग चतुष्पाद के अंतर्गत आने वाले 4 वर्गों में से वर्ग एंफीबिया के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। आज हम इसके दूसरे वर्ग सरीसृप के मुख्य लक्षणों के बारे में जानेंगे।

यह एक ऐसा वर्ग है जिसके अंतर्गत मुख्यतः रेंगने वाले जीव आते हैं जैसे छिपकलियाँ, साँप, कछुए, मगरमच्छ, आदि। इसकी लगभग 6,500 विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ ज्ञात है। 


लक्षण (Characteristic)
इस वर्ग के जंतुओं के कई लक्षण होते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
  1. इस वर्ग के जीव मुख्यतः स्थलीय होते हैं। उद्विकास के अनुसार यह यह प्रथम कशेरुकी जीव है जो सूखी धरती पर वास के लिए उपयोजित हुए थे। यह भूमि, दीवारों, पेड़ों, आदि पर रेंगने वाले जीव होते हैं। 
  2. इनकी त्वचा सूखी, खुरदरी होती है जिस पर प्रायः हॉर्नी शल्कों (horny scales) का बाह्यकंकाल होता है। 
  3. इनके पैरों में 5-5 पंजेदार (clawed) अँगुलियाँ होती हैं। जो दौड़ने, रेंगने, चढ़ने-उतरने आदि के लिए उपयोजित होती हैं। जलीय जातियों में तैरने हेतु चप्पुओं जैसे पैर उपस्थित रहते हैं जबकि कुछ में पाद अनुपस्थित रहते हैं। 
  4. इनके करोटि (skull) में केवल एक ऑक्सीपिटल कोण्डाइल (= मोनोकोण्डाइली– monocondylic) उपस्थित रहती है।
  5. इस वर्ग के जंतुओं में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। जबकि ग्रसनीय क्लोम दरारें केवल भ्रूण में उपस्थित रहती हैं। 
  6. इनका हृदय लगभग चौवेश्मी होता है अर्थात यह चार भागों में विभाजित रहता है जिसमें दो स्पष्ट अलिन्द और दो अस्पष्ट निलय होते हैं। लेकिन मगरमच्छों (crocodiles) में निलय का विभाजन भी स्पष्ट रहता है। 
  7. ऐम्फिबिया की भाँति इस वर्ग के जीव भी असमतापी अर्थात् शीतरुधिर (cold-blooded) वाले जन्तु होते हैं जो सुप्तावस्था का सहारा लेते हैं। 
  8. इनमें भी जनन छिद्र गुदा से पृथक् नहीं होता है। अर्थात जननवाहिनियाँ, मूत्रवाहिनियाँ तथा आहारनाल सभी एक ही अवस्कर मार्ग (cloaca) में खुलती हैं। 
  9. नर में एक या एक जोड़ी मैथुन अंग (copulatory organ) उपस्थित रहते हैं। 
  10. इनमें निषेचन (fertilization) मादा की अण्डवाहिनियों के समीपस्थ भाग में होता है। अधिकांश जातियों में मादाएँ अण्डज (oviparous) होती हैं। इनके अण्डे बड़े, पीतकयुक्त (yolky) होते हैं तथा कठोर कैल्सियमयुक्त कवच या खोल (shell) द्वारा ढके रहते हैं। 
  11. इस वर्ग के जंतुओं में डिम्भक प्रावस्था (larval stage) नहीं होती है।

सरीसृपों, पक्षियों और स्तनियों में भ्रूण के चारों ओर चार सुरक्षात्मक भ्रूणीय कलाएँ (embryonic membranes) बनती हैं—ऐम्नियॉन (amnion), ऐलैन्टॉइस (allantois), कोरिऑन (chorion) तथा पीतकोष (yolk sac) । अतः इन तीन वर्गों को ऐम्निओटा (Amniota) तथा मछलियों एवं उभयचरों को ऐनैम्निओटा (Anamniota) कहते हैं।

विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ छ: उपवर्गों में वर्गीकृत हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
  1. उपवर्ग एैनेप्सिडा (Subclass Anapsida)
  2. उपवर्ग यूरेऐप्सिडा (Subclass Euryapsida)
  3. उपवर्ग सिनैप्सिडा (Subclass Synapsida)
  4. उपवर्ग इक्थिओप्टेरीजिया (Subclass Ichthyopterygia)
  5. उपवर्ग लेपिडोसॉरिया (Subclass Lepidosauria)
  6. उपवर्ग आसॉरिया (Subclass Archosauria)
(क) उपवर्ग एैनेप्सिडा (Subclass Anapsida)
इस वर्ग के जंतुओं में इनके करोटि का पृष्ठ भाग पूर्ण, अर्थात् इसके टेम्पोरल क्षेत्र में कोई छिद्र (fossa) नहीं होता है तथा क्वाड्रेट अस्थि, कर्ण अस्थि से समेकित रहती है। यह उप वर्ग तीन गण (orders)में विभाजित रहता है जिसमें दो गण के अंतर्गत केवल विलुप्त जातियाँ आती हैं केवल एक (किलोनिया) में विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ।

गण किलोनिया (Order Chelonia)– इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कछुए (turtles, tortoises and terrapins) आते हैं। इन जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं- 
  • यह जीव मुख्यतः जल में पाए जाते हैं लेकिन कभी-कभी किनारे की नम भूमि पर भी आ जाते हैं।
  • इन जीवो का शरीर चौड़ा होता है जो हॉर्न (horn) एवं अस्थि के बने कठोर खोल (shell) में बन्द रहता है। खोल का पृष्ठभाग पृष्ठवर्म अर्थात् कैरापेस (carapace) तथा अधर भाग प्लास्ट्रोन (plastron) कहलाता है। खोल पर चिम्मड़ त्वचा ढकी रहती है तथा त्वचा सपाट या षट्भुजीय प्रशल्कों (scutes) द्वारा ढकी रहती है। 
  • इनका सिर, पाद एवं पूँछ पूरी तरह से शल्कों से ढके रहता है।  यह अपने शरीर को खोल में समेटकर जन्तु शत्रुओं से अपनी रक्षा करता है। 
  • इनके जबड़े हॉर्न के बने तथा दन्तविहीन होते हैं। 
  • इनमें क्वाड्रेट हड्डी अचल होती है। 
  • इनके शरीर में अवस्कर छिद्र अनुलम्ब दरार के रूप में उपस्थित रहता है। (vii) नर में उत्तेजित होकर तनने वाला मैथुन अंग (copulatory organ) अर्थात्-शिश्न (penis) पाया जाता है।
  • मादा भूमि में गड्ढ़ा बनाकर अण्डे देती और रेत से इन्हें ढक देती है। उदाहरण–ट्रायोनिक्स (Trionyx)– भारतीय नदियों का कछुआ, कीलोन (Chelone), टेस्टुडो (Testudo), आदि।

(ख) उपवर्ग यूरेऐप्सिडा (Subclass Euryapsida)
इसके अंतर्गत विलुप्त जातियाँ आती हैं तथा इस उप वर्ग को दो गण में विभाजित किया गया है। जो कि अज्ञात हैं।

(ग) उपवर्ग सिनैप्सिडा (Subclass Synapsida)
इसके अंतर्गत विलुप्त जातियाँ आती है तथा यह उप वर्ग भी दो वर्गों में विभाजित रहता है। जो कि अज्ञात हैं।

(घ) उपवर्ग इक्थिओप्टेरीजिया (Subclass Ichthyopterygia)
इसके अंतर्गत विलुप्त जातियां आती हैं तथा यह उप वर्ग एक गण में विभाजित रहता है। जो कि अज्ञात हैं।

(ङ) उपवर्ग लेपिडोसॉरिया (Subclass Lepidosauria)
यह उप वर्ग एक विलुप्त तथा दो विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के गण में विभाजित रहता है। इनके करोटि (skull) के टेम्पोरल क्षेत्र में दो जोड़ी टेम्पोरल छिद्र (temporal fossae) पाए जाते हैं। 
विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के दो गण निम्नलिखित हैं-
  1. गण रिंकोसिफैलिया (Order Rhynchocephalia)
  2. गण स्क्वैमैटा (Order Squamata)

1. गण रिंकोसिफैलिया (Order Rhynchocephalia): इसकी अब एक ही जाति पाई जाती है जिसका नाम स्फीनोडॉन पंक्टेटस (Sphenodon punctatus) है जो कि न्यूजीलैण्ड के निकट छोटे-छोटे द्वीपों में पाई जाती है। इसे स्थानीय लोग दुआटरा (Tuatara) कहते हैं। इसके लक्षण विलुप्त सरीसृपों जैसे होते हैं। अतः ये “जिन्दा जीवाश्म (living fossils)" कहलाते हैं। इसका शरीर लगभग 55 सेमी लम्बा छिपकली-जैसा और बहुत सुस्त होता है। यह अपने बिलों से रात्रि में निकलकर (nocturnal) केंचुओं, घोंघों, कीड़ों आदि को खाते हैं। इनकी उपापचय (metabolism) की दर बहुत कम होती है परन्तु आयु लगभग 100 वर्ष की होती है। मध्यवर्ती तीसरा नेत्र तथा त्वचा की शल्कें दोनों के रूप में होता है। नर के शरीर में मैथुन अंग नहीं पाए जाते हैं। इन जीवो के अण्डे छोटे होते हैं तथा इनका अवस्कर छिद्र भी अनुप्रस्थ दरार जैसा होता है।

2. गण स्क्वैमैटा (Order Squamata): इस गण के अंतर्गत छिपकलियाँ (lizards) एवं सर्प (snakes) आते हैं। इन जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  • इसके अंतर्गत आने वाले कुछ जीव जलीय होते हैं जबकि शेष जंगलों, खेतों, घरों, बगीचों, आदि में रहते हैं तथा कुछ बिलों में रहने वाले होते हैं। 
  • इन जीवों में तेजी से रेंगकर शत्रुओं से बचने की क्षमता होती है। 
  • इनकी त्वचा के हॉर्नी शल्कों के आवरण का समय-समय पर टुकड़ों या केंचुल के रूप में त्याग (moulting) होता रहता है। 
  • इन जीवों की पूँछ लम्बी होती है। 
  • इनके जबड़े करोटि से दोनों ओर एक-एक चल क्वाड्रेट हड्डी द्वारा इस प्रकार जुड़े रहते हैं कि मुख-ग्रासन गुहिका बहुत चौड़ी खुल सकती है। दाँत जबड़ों की हड्डियों से समेकित (fused) रहते हैं। 
  • इनकी कशेरुकाएँ अग्रगर्ती (procoelous) होती हैं। 
  • नर में दोहरा मैथुन अंग होता है। 
  • इनके शरीर का अवस्कर छिद्र अनुप्रस्थ दरार जैसा होता है। 
इस गण को दो उपगण में विभाजित किया गया है-
  1. उपगण लैसरटिलिया या सॉरिया (Suborder Lacertilia or Sauria)
  2. उपगण ओफीडिया या सर्पेन्टीज (Suborder Ophidia or Serpentes)

(अ) उपगण लैसरटिलिया या सॉरिया (Suborder Lacertilia or Sauria): इसके उप गण के अंतर्गत छिपकलियाँ आती है। इन के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  • इनके पैर प्रायः विकसित और पंजेदार होते हैं। 
  • इनकी नेत्रों की पलकें प्रायः चल होते हैं। 
  • इनके शरीर में अंसमेखला प्रायः विकसित रहता है। 
  • इनके मुंह के निचले जबड़े के अर्धांश आगे परस्पर समेकित (fused) रहते हैं। 
  • इनमें स्टर्नम, टिम्पैनम एवं मूत्राशय उपस्थित रहता है। 
  • इनका मस्तिष्क खोल आगे से खुला रहता है। उदाहरण -घरेलू छिपकली अर्थात् हेमीडैक्टाइलस (Hemidactylus), गोह अर्थात् वैरेनस (Varanus), साँडा अर्थात् यूरोमैरिटवरा (Uromastix), विषैली छिपकली-हीलोडर्मा अर्थात् गिला मोन्स्टर (Heloderma–Gila monster), आदि।
(ब) उपगण ओफीडिया या सर्पेन्टीज (Suborder Ophidia or Serpentes) : इसको उप गण के अंतर्गत सर्प आते हैं। 
  • इनके शरीर में पैर स्टर्नम, टिम्पैनम, अंसमेखला तथा मूत्राशय प्रायः अनुपस्थित रहता है।
  • इनके मुंह के निचले जबड़े के अर्धांश आगे एक लचीले स्नायु (ligament) द्वारा जुड़े रहते हैं। अतः इनका मुख शिकार को समूचा निगलने के लिए काफी फैल सकता है।
  • इनका मस्तिष्क खोल आगे से बन्द रहता है।
  • इनकी पलकें चल तथा बाह्य कर्णछिद्रों का अभाव होता है। 
  • इनमें प्रायः लम्बी और आगे से कटी हुई जीभ होती है जो संवेदांग का काम करती है। 
  • इनका बायाँ फेफड़ा छोटा या अनुपस्थित होता है। 
  • इनके मुंह में दाँत पतले व नुकीले होते हैं जो इन्हें शिकार में मदद करते हैं। 
  • इनके शरीर में मूत्राशय अनुपस्थित रहता है। उदाहरण—अजगर (Python), काला नाग या कोब्रा (Cobra-Naja), करैत (Bungarus), वाइपर (Viper) ।

(च) उपवर्ग आसॉरिया (Subclass Archosauria)
इस उप वर्ग के अंतर्गत चार विलुप्त जातियों के गण आते हैं। जिसमें से केवल एक गण, क्रोकोडिलिया, में विद्यमान जातियाँ उपस्थित रहती हैं। इसका वर्णन इस प्रकार है-

गण क्रोकोडिलिया या लोरीकैटा (Order Crocodilia or Loricata) : इस गण के जीवों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इस गण के जीव गहरी नदियों, बड़ी झीलों, आदि के वासी होते हैं। 
  • ( ii)इनका शरीर छिपकलियों जैसा होता है, परन्तु बड़ा व भारी होता है। यह है सबसे बड़े वर्तमान रेप्टाइल्स माने जाते हैं। 
  • इनका सिर लम्बा एवं तुण्डाकार होता है। इसके सिरे पर नासाद्वार (nostrils) उपस्थित रहते हैं। 
  • इन जीवो के नेत्र बड़े व उभरे हुए होते हैं तथा नासाद्वार, नेत्र तथा कर्ण एक सीध में उपस्थित रहते हैं। 
  • इनकी त्वचा मोटी व चिम्मड़ होती है जिस पर मोटी शल्कें (scales) उपस्थित रहते हैं। इनकी शल्कों के नीचे, दृढ़ता के लिए, हड्डी की प्लेटें उपस्थित रहते हैं। 
  • इनकी पूँछ लम्बी तथा पार्श्वों में चपटी होती है। 
  • इन जीवो के पैर छोटे होते हैं। इनके पैरों के अग्रपादों में 5-5 तथा पश्चपादों में 4-4 पंजेदार अँगुलियाँ उपस्थित रहते हैं तथा इन अँगुलियों के बीच जाल (web) बना रहता है। यह जालयुक्त पैर तथा चपटी पूँछ तैरने में सहायक होते हैं। 
  • इनकी कशेरुकाएँ उभयगर्ती या अग्रगर्ती दोनों होती हैं। 
  • इनमें क्वाड्रेट स्थिर रहता है। 
  • इनका मुखद्वार चौड़ा होता है तथा इनके जबड़े, दाँत मजबूत कथा भीतर की ओर मुड़ें और नुकीले होते हैं। अवस्कर छिद्र अनुलम्ब कथा दरारनुमा होता है। 
  • मादा भूमि पर गड्ढे खोदकर इनमें अण्डे देती है। 
  • इनके शरीर में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। (xiii) इनमें मूत्राशय अनुपस्थित होता है। तथा इनका चमड़ा बहुत कीमती होता है। उदाहरण-भारतीय घड़ियाल या गैवियेलिस (Gavialis), ऐलीगैटर (Alligator), क्रोकोडाइलस (Crocodilus–मगरमच्छ)।



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