हमारे देश में विषैले साँप काफी मिलते हैं। 350 भारतीय जातियों में से 69 विषैले साँपों की होती हैं। इनमें 29 जातियाँ समुद्री तथा शेष 40 स्थलीय होती हैं। समुद्री सर्प अधिक विषैले होते हैं। विषैले साँपों में विष ग्रंथियां होती हैं जिसके द्वारा वे जब किसी मनुष्य या जंतु को काटते हैं तो अपना जहर उनके शरीर में डालते हैं जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है। इससे सम्बंधित अन्य तथ्यों के बारे में नीचे जानेंगे।
विषदन्त एवं विष ग्रन्थियों (venom glands) की संरचना
विषैले सर्पों की मुख-ग्रासन (oral cavity) गुहिका में, तालु के अग्र या मध्य भाग से उभरे, 1 से 3 जोड़ी, परन्तु प्रायः केवल एक जोड़ी, नोंकदार विषदन्त होते हैं। ये बड़े मैक्सिलरी दन्त ही होते हैं। प्रत्येक विषदन्त में, विष के बहने के लिए, भीतर एक नलिका होती है या अग्र सतह पर एक गहरी खाँच (groove) होती है। ऊपरी जबड़े में, जबड़ों के जोड़ों के निकट, एक-एक बड़ी विष ग्रन्थियाँ होती हैं। इनकी वाहिनियाँ विषदन्तों की नलिकाओं या दरारों में खुलती हैं। विष ग्रन्थियाँ रूपान्तरित अधरोष्ठ अर्थात् लैवियल ग्रन्थियाँ (labial glands) होती हैं। सम्भवतः ये स्तनियों की पारोटिड लार ग्रन्थियों (parotid salivary glands) के समजात होती हैं। इनमें हल्के सुनहरे रंग का विष बनता है। जब साँप काटता है तो विषदन्तों के शिकार की त्वचा में गड़ते ही विष ग्रन्थियों के चारों ओर की पेशियाँ सिकुडती हैं। ग्रन्थियों पर दबाव पड़ने से इनका विष बलपूर्वक विषदन्तों की गुहा या दरार में स्रावित होकर उसी प्रकार घाव में चला जाता है जैसे इन्जेक्शन की सूई में होकर तरल बहता है।
विषदन्त एवं विष ग्रन्थियों (venom glands) की संरचना
विषैले सर्पों की मुख-ग्रासन (oral cavity) गुहिका में, तालु के अग्र या मध्य भाग से उभरे, 1 से 3 जोड़ी, परन्तु प्रायः केवल एक जोड़ी, नोंकदार विषदन्त होते हैं। ये बड़े मैक्सिलरी दन्त ही होते हैं। प्रत्येक विषदन्त में, विष के बहने के लिए, भीतर एक नलिका होती है या अग्र सतह पर एक गहरी खाँच (groove) होती है। ऊपरी जबड़े में, जबड़ों के जोड़ों के निकट, एक-एक बड़ी विष ग्रन्थियाँ होती हैं। इनकी वाहिनियाँ विषदन्तों की नलिकाओं या दरारों में खुलती हैं। विष ग्रन्थियाँ रूपान्तरित अधरोष्ठ अर्थात् लैवियल ग्रन्थियाँ (labial glands) होती हैं। सम्भवतः ये स्तनियों की पारोटिड लार ग्रन्थियों (parotid salivary glands) के समजात होती हैं। इनमें हल्के सुनहरे रंग का विष बनता है। जब साँप काटता है तो विषदन्तों के शिकार की त्वचा में गड़ते ही विष ग्रन्थियों के चारों ओर की पेशियाँ सिकुडती हैं। ग्रन्थियों पर दबाव पड़ने से इनका विष बलपूर्वक विषदन्तों की गुहा या दरार में स्रावित होकर उसी प्रकार घाव में चला जाता है जैसे इन्जेक्शन की सूई में होकर तरल बहता है।
विषैले सर्पों में पहचान करने की विधि (Method of detection in venomous snakes)
हमारे देश में विषैले साँपों में कोब्रा, करैत, वाइपर तथा समुद्री सर्प प्रमुख होते हैं। विषदन्तों के अतिरिक्त, पूँछ की आकृति, शल्कों के आकार, क्रम व संख्या तथा मुँह की बनावट द्वारा विषैले एवं विषहीन सर्पों में सुगमता से पहचान अग्रलिखित क्रम में की जा सकती है-
- पार्श्वों में चपटी पूँछ वाले सर्प जलीय तथा बेलनाकार पूँछ वाले स्थलीय होते हैं। जलीय जातियों में समुद्री सर्प सब विषैले तथा अलवणजलीय सर्प विषहीन होते हैं। समुद्री सर्पों के सिर पर नेत्रों के बीच की शल्कें बड़ी-बड़ी परन्तु अलवणजंलीय सर्पों में छोटी-छोटी होती हैं
- स्थलीय सर्पों में पृष्ठ एवं अधरतलों पर छोटी-छोटी, एक-सी शल्कों वाले सर्प, जैसे कि दुमुँही, विषहीन होते हैं। अन्य में अधरतलीय शल्कें बड़ी व चौड़ाई में फैली होती हैं। यदि ये पूरी चौड़ाई में आर-पार न फैली हों और इनके पावों में पृष्ठ शल्कें दिखाई देती हों (जैसे अजगर में) साँप विषैला नहीं होता। इसके विपरीत, यदि ये शल्कें पूरी चौड़ाई में आर-पार फैली हों और इनके पार्श्वों में पृष्ठ शल्कें दिखाई न देती हों तो साँप विषैला हो सकता है या विषहीन भी हो सकता है। इसकी पहचान अब सिर की शल्कों से कर सकते हैं।
- यदि सिर पर छोटी-छोटी समान शल्कें हैं तो यह वाइपर (viper) श्रेणी का विषैला सर्प होता है। और यदि सिर पर बड़ी शल्कें हो तो ऐसे सर्प विषैले या विषहीन दोनों हो सकते हैं।
- सिर पर बड़ी शल्कों वाले वे सर्प जिनमें नेत्रों एवं बाह्य नासाद्वारों के बीच एक-एक गड्ढा-सा होता है विषैले पिट वाइपर (pit viper) होते हैं तथा वे जिनमें ऊपरी होंठ के पार्श्वों (sides) की तीसरी शल्कें अपनी-अपनी ओर के नेत्र एवं नासा शल्क (nasal scale), दोनों को ही छूती हैं, नाग या कोब्रा श्रेणी के विषैले सर्प होते हैं।
- यदि ऊपर दिए गए लक्षण किसी सांप में अनुपस्थित होते हैं तो ऐसी स्थिति में उसके पीठ की शल्कें देखी जाती हैं। इसके पीठ पर बीचों-बीच कुछ बड़ी एवं षट्कोण शल्कों की एक पंक्ति वाले सर्प विषैले करैत (Kraits) होते हैं। इनमें सिर की शल्कें बड़ी, पीठ पर अनुप्रस्थ धारियाँ तथा निचले होंठ के पार्श्वों की चौथी शल्कें बड़ी-बड़ी होती हैं।
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