कॉर्डेटा का वर्गीकरण (Classifications of Chordata)|hindi


कॉर्डेटा का वर्गीकरण (Classifications of  Chordata)
कॉर्डेटा का वर्गीकरण (Classifications of  Chordata)|hindi

कॉर्डेट के मूल लक्षणों के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। आज हम इसके वर्गीकरण का अध्ययन करेंगे।
कॉर्डेट के तीन मूल लक्षणों के आधार पर इस संघ को तीन उपसंघों में बाँटा गया है
  1. यूरोकॉर्डेटा,
  2. सिफैलोकॉर्डेटा
  3. वर्टीब्रैटा
यूरोकॉर्डेटा एवं सिफैलोकॉर्डेटा में कपाल (cranium) नहीं होता। अतः इन्हें ऐक्रेनिएटा (acraniata) कहते हैं। वर्टीब्रेटा में कपाल होता है। अतः इन्हें क्रैनिएटा (craniata) कहते हैं।

1. उपसंघ यूरोकॉर्डेटा या ट्यूनीकेटा (Subphylum Urochordata or Tunicata)
यह सबसे निम्न कोटि के कॉर्डेटा होते हैं। इस उपसंघ के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  1. इसकी लगभग 2,000 जातियाँ समुद्र में एकाकी या संघीय (colonial) रूप में पाई जाती है। यह मुख्यतः स्वतन्त्र तैरते हुए या चट्टानों आदि से चिपके हुए दिखाई देते हैं। 
  2. वयस्क जीव सूक्ष्म, या व्यास में 30 सेमी तक होते हैं। इनमें ग्रसनीय क्लोम दरारों (pharyngeal gill slits) के अतिरिक्त कोई अन्य महत्त्वपूर्ण कॉर्डेट लक्षण नहीं होता है, परन्तु स्वतन्त्र तैरने वाली भेकशिशु प्रावस्था (tadpole larval stage) में कॉर्डेट लक्षण भी उपस्थित होता है। 
  3. मेरुदण्ड अर्थात् नोटोकॉर्ड (notochord) डिम्भक की पूँछ में सीमित रहता है। 
  4. डिम्भक से वयस्क के कायान्तरण अर्थात् रूपान्तरण (metamorphosis) में, पूँछ के साथ-साथ, नोटोकॉर्ड एवं मेरुरज्जु (spinal cord) का अधिकांश भाग समाप्त हो जाता है। इसीलिए, इसे अधोगामी कायान्तरण (retrogressive metamorphosis) कहते हैं। 
  5. इस उप संघ के जीवो का वयस्क शरीर असममित (asymmetrical) तथा थैलीनुमा होता है।
  6. इस पर ट्यूनीसिन (tunicin) नामक सेलुलोस-सदृश कार्बनिक पदार्थ का एक चिम्मड़ खोल–टेस्ट या ट्यूनिक (test or tunic) होता है।
  7. इन जंतुओं की आहारनाल U के आकार की होती है। 
  8. इनमें ग्रसनी (pharynx) बड़ी, थैलीनुमा होती है। इसकी पार्श्व दीवारों में अनेक क्लोम छिद्र उपस्थित रहते हैं।
  9.  ग्रसनी के बाहर परिकोष्ठ गुहा (atrial cavity) होती है जो बड़े परिकोष्ठ छिद्र द्वारा बाहर खुलती है। 
  10. इनका हृदय अधरतल की ओर होता है।
  11. इनमें विशिष्ट संवेदांग अनुपस्थित रहते हैं। 
  12. इन जीवो के जनन अलैंगिक या लैंगिक सदस्य द्विलिंगी होते हैं। प्रत्येक जनद में नर व मादा भाग (अण्डवृषण या ओवोटेस्टिस ovotestis) उपस्थित रहते हैं।

टेस्ट की रचना, मुख की स्थिति तथा परिकोष्ठ छिद्र एवं गुहा, क्लोम छिद्रों, जीवन-वृत्त, आदि की दशाओं के आधार पर इस उप संघ को तीन वर्ग में बांटा गया है-
  1. वर्ग लार्वेसिया (Class Larvacea)
  2. वर्ग ऐसीडिएसिया (Class Ascidiacea)
  3. वर्ग थैलिऐसिया (Class Thaliacea)

1. वर्ग लार्वेसिया (Class Larvacea)
  • इस वर्ग के जीव सूक्ष्म (5 मिमी तक लम्बे) होते हैं। यह पुच्छयुक्त ट्यूनीकेटा होते हैं जो समुद्र के जल में एकाकी व स्वतन्त्र तैरते (pelagic) हुए पाए जाते हैं। ये, वास्तव में, वयस्क यूरोकॉर्डेट के नहीं, वरन् भेकशिशुओं की भाँति के होते हैं। अतः इनमें प्रमुख कॉर्डेट लक्षण स्पष्ट होते हैं। इनमें जननांग भी होते हैं। स्पष्ट है कि ये ऐसे यूरोकॉर्डेट होते हैं जिनमें कि भेकशिशु प्रावस्था तक भ्रूणीय विकास होकर कायान्तरण नहीं हो पाता और भेकशिशु ही जनन करने योग्य हो जाते हैं। ऐसे भेकशिशु नियोटीनिक (neotenic) कहलाते हैं। स्पष्ट है कि लार्वेसिया में सामान्य वयस्क नहीं बनते। 
  • इनका टेस्ट मोटा, ढीला, कोशिकाविहीन एवं जेली-सदृश सा होता है। इसमें से होकर जल की अविरल धारा बहती है जिसके लिए इसमें एक-एक अन्तर्वाही (incurrent) एवं बहिर्वाही (excurrent) छिद्र होते हैं। 
  • शरीर धड़ व पूँछ में विभेदित रहता है। 
  • इनके शरीर में क्लोम छिद्रों की केवल एक जोड़ी ही उपस्थित रहती है। इनकी परिकोष्ठ   गुहा (cell cavity)  छोटी होती है। 
  • इनमें जनन केवल लैंगिक होता है। उदाहरण–ओइकोप्लूरा (Oikopleura)

2. वर्ग ऐसीडिएसिया (Class Ascidiacea)
  • इस वर्ग के जीव एक ही स्थान पर अर्थात स्थान-बद्ध एवं अवृन्त होते हैं। यह जीव एकाकी (solitary) या संघचारी(colonial) तथा अपेक्षाकृत बड़े ट्यूनीकेटा होते हैं।
  • इनकी टेस्ट में तन्तु एवं कोशिकाएँ उपस्थित रहती है। अतः यह संयोजी ऊतक जैसा, इसमें अन्तर्वाही बैंकिअल (branchial) तथा बहिर्वाही परिकोष्ठ (atrial) छिद्र होता है। 
  • क्लोम छिद्र (स्टिग्मैटा stigmata) संख्या में बहुत अधिक होते हैं तथा परिकोष्ठ गुहा बड़ी होती है। 
  • वयस्क जीवों में पूँछ, नोटोकॉर्ड एवं तन्त्रिका रज्जु का अभाव रहता है। 
  • इनमें जनन अलैंगिक या लैंगिक दोनों प्रकार से होता है। उदाहरण- ऐसीडिया (Acidia), हर्डमैनिया (Herdmania)।

3. वर्ग थैलिऐसिया (Class Thaliacea) 
  • इस वर्ग के जीव समुद्र की सतह के पास एकाकी या समूहों में स्वतन्त्र तैरने वाले मध्यम माप के ट्यूनीकेटा होते हैं। 
  • इनका टेस्ट साफ तथा पारदर्शक होता है। 
  • इनका शरीर लम्बा, नालवत्, प्रायः ढोलकी की आकृति का होता है। बैंकियल या परिकोष्ठ छिद्र इसके विरोधी छोरों पर होते हैं। 
  • इसके देहभित्ति में शरीर के चारों ओर फैली मोटी पेशियाँ होती है। 
  • जीवन-वृत्त में द्विरूपी (dimorphic) अलैंगिक (asexual) एवं लैंगिक (sexual) सदस्यों का पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generations) होता है। उदाहरण–पाइरोसोमा (Pyrosoma); डोलिओलम (Doliolum)।

2. उपसंघ सिफैलोकॉर्डेटा (Subphylum Cephalochordata)
  1. इस उप संघ की लगभग 30 जातियाँ ज्ञात है। 
  2. इसके अंतर्गत आने वाले जीव समुद्र में स्वतन्त्र तैरते हुए या मिट्टी में धँसे हुए; एकाकी रूप में पाए जाते हैं। 
  3. इनका शरीर छोटा (10 सेमी तक लम्बा), पाश्र्व में चपटा, मछली-जैसा होता है। 
  4. इन जीवो में स्पष्ट मूल कॉर्डेट के लक्षण आजीवन उपस्थित रहते हैं। 
  5. इनके शरीर की पूरी लम्बाई में अग्र छोर तक फैली हुई पृष्ठ नालवत् तन्त्रिका रज्जु एवं नोटोकॉर्ड (Cephalos = head; chorda = notochord) होते हैं। 
  6. इनके शरीर में ग्रसनीय क्लोम दरारें स्पष्ट एवं संख्या में अधिक होती है तथा इनका विन्यास खण्डीय होता है। 
  7. इनमें परिकोष्ठ गुहा विशाल होती है।
  8. जल में तैरने के लिए इनके शरीर में पखने (fins) उपस्थित रहते हैं।
  9. यह जीव एकलिंगी होते हैं तथा इनमें जनद खण्डीय होता है। उदाहरण बैंकिओस्टोमा या एम्फिऑक्सस (Branchiostoma or Amphioxus)।

3. उपसंघ कशेरुकी या क्रैनिऐटा (Subphylum Vertebrata or Craniata)
इस उप संघ के जीव अन्य जी उप संघ के जीवो से भिन्न होते हैं। अतः इस उपसर्ग के जीवों के लक्षण भी उनसे भिन्न होते हैं जो इस प्रकार है-
  1. इसके अंतर्गत विकसित कॉर्डेटा आते हैं जिनमें जटिल मस्तिष्क (brain) का क्रमिक विकास हुआ है। 
  2. इनका मस्तिष्क अस्थि या उपास्थि के मस्तिष्क खोल या कपाल अर्थात् क्रैनियम (brain box or cranium) में बन्द रहता है। 
  3. इस उप संघ के जीव में भ्रूणीय नोटोकॉर्ड के स्थान पर, वयस्क में अस्थि या उपास्थि की मुद्राकार कशेरुकाओं (vertebrae) की बनी छड़ के रूप में कशेरुकदण्ड (vertebral column) उपस्थित रहता है। अन्य अस्थियाँ और उपास्थियाँ भी उपस्थित और ये सब मिलकर शरीर को सहारा देने हेतु एक अन्तःकंकाल (endoskeleton) बनाती हैं।
  4. इनमें मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर के अग्र छोर पर, संवेदांगों का विकास हुआ है। अतः अग्र छोर एक स्पष्ट शीर्ष (head) में विभेदित रहता है। शेष शरीर भी, अधिकांश में, ग्रीवा, धड़ एवं पूँछ में विभेदित रहता है। 
  5. ग्रसनीय क्लोम दरारें भ्रूणावस्था में तो सभी कशेरुकियों में बनती हैं, परन्तु वयस्क अवस्था में ये केवल निम्न कोटि के सदस्यों में ही रहती हैं। 
  6. इनमें नालवत् तन्त्रिका रज्जु आजीवन उपस्थित और कशेरुकदण्ड में बन्द रहती हैं। इसी का अग्र छोर मस्तिष्क में विभेदित रहता है। 
  7. त्वचा में बाहरी स्तृत एपीडर्मिस तथा भीतरी स्तृत डर्मिस में विभाजित रहती है। एपीडर्मिस पर प्रायः शल्कों, पिच्छों (feathers) या बालों का बाह्य कंकाल रहता है।
  8. इनमें दो जोड़ी उपांग (appendages)–पखनें (fins) या पाद (limbs) उपस्थित रहते हैं। इनमें संयुक्त अन्तःकंकाल होता है तथा प्रत्येक का अन्तःकंकाल एक मेखला (girdle) द्वारा कशेरुकदण्ड से निलम्बित रहता है।
  9. अन्तःकंकाल से जुड़ी पेशियों द्वारा अंगों की गति एवं गमन होता रहता है। 
  10. कशेरुकदण्ड के नीचे विकसित आहारनाल  तथा इससे जुड़ी यकृत एवं अग्न्याशय नामक बड़ी पाचन ग्रन्थियाँ उपस्थित रहती है। 
  11. हृदय, रुधिरवाहिनियों एवं केशिकाओं (capillaries) का बना बन्द रुधिर परिसंचरण तन्त्र होता है। हृदय अधर तल पर उपस्थित, पेशीय एवं पम्प-सदृश होता है जिसमें रुधिर का बहाव पृष्ठवाहिनियों में पीछे की ओर तथा अधरवाहिनियों में आगे की ओर होता है। रुधिर में श्वेत व लाल कोशिकाएँ (रुधिराणु—corpuscles) होती है तथा लाल रुधिराणुओं में हीमोग्लोबिन उपस्थित रहता है जिसके कारण लाल रहती है। 
  12. जल तथा स्थल दोनों जगहों पर रहने वाले जीवो में श्वसन अलग-अलग प्रक्रिया द्वारा होता है जैसे- जलीय कशेरुकियों में श्वसन जोड़ीदार क्लोमों द्वारा तथा स्थलीय कशेरुकियों में श्वसन एक जोड़ी फेफड़ों द्वारा होता है। 
  13. इनमें उत्सर्जन जोड़ीदार वृक्कों द्वारा होता है। निम्न कोटि के सदस्यों में वृक्क खण्डीय और सीलोम तथा रुधिर, दोनों से सम्बन्धित होता है जबकि विकसित कशेरुकियों में वृक्क खण्डीय नहीं  बल्कि केवल रुधिर से सम्बन्धित होता है। 
  14. यह जीव एकलिंगी होते हैं। इनमें जनद प्रायः एक जोड़ी पाए जाते हैं।
निम्न कोटि की मछलियों से मानव तक सभी जन्तु कशेरुकी होते हैं। इनमें पृष्ठवंशीय लक्षणों का क्रमिक उद्विकास (gradual evolution) हुआ है। यह उद्विकास पहले जलीय जीवन (aquatic life) और फिर स्थलीय जीवन (terrestrial life) की ओर अग्रसर हुआ।

उपसंघ कशेरूकी को दो समूहों में बाँटा गया है-
  1. समूह ऐग्नैथा (Group Agnatha)
  2. समूह नैथोस्टोमैटा (Group Gnathostomata)

(1) समूह ऐग्नैथा (Group Agnatha) : इसके अंतर्गत सबसे निम्न कोटि के कशेरुकी जीव आते हैं।  
  • इनमें नोटोकॉर्ड आजीवन स्थाई होता है तथा इस पर अल्पविकसित कशेरुकाएँ उपस्थित रहती है। 
  • इन जीवो में जबड़े, उपांग, मेखलाएँ एवं जननवाहिनियाँ अनुपस्थित होते हैं। 
  • मुख शरीर के अग्र छोर पर, गोल व कीपनुमा होता है। 
  • शीर्ष पर दो पार्श्व नेत्रों के अतिरिक्त, एक मध्यवर्ती पीनियल नेत्र उपस्थित रहते हैं।
इन्हें मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया है-
  1. वर्ग ओस्ट्रैकोडर्माई (Class Ostracodermi) 
  2. वर्ग चक्रमुखा या साइक्लोस्टोमैटा (Class Cyclostomata)
1. वर्ग ओस्ट्रैकोडर्माई (Class Ostracodermi) 
  • इस वर्ग के अंतर्गत विलुप्त, अलवणजलीय मछलियाँ आती है जिन्हें सबसे प्रथम कशेरुकी माना जाता है। 
  • इनके शरीर पर दृढ़ शल्कों का रक्षात्मक कवच होता था। 
  • अन्तःकर्णो में दो-दो अर्धवर्तुल्य कुल्याएँ होती थी। उदाहरण–सिफैलैस्पिस (Cephalaspis)

2. वर्ग चक्रमुखा या साइक्लोस्टोमैटा (Class Cyclostomata) :
  • इस वर्ग की अधिकांश जीव समुद्री होते हैं जबकि, कुछ अलवणजलीय भी होते हैं। 
  • इनका शरीर लम्बा, सँकरा, नालवत् तथा पूँछ कुछ चपटी सी होती है। 
  • इनका मुख गोल, चूषक जैसा दिखने वाला तथा काटने-खाने योग्य होता है। 
  • पिंकी त्वचा कोमल, चिकनी, शल्करहित होती है। 
  • इनमें जोड़ीदार पखने अनुपस्थित रहते हैं जबकि मध्यपृष्ठ एवं पुच्छ पखने उपस्थित होते हैं।
  • इन जीवों में केवल एक, मध्यवर्ती नथुना उपस्थित रहती है।  
  • अर्धवर्तुल्य कुल्याएँ (semicircular axes) एक-एक या दो-दो होती है।
  • इस वर्ग के जीव एकलिंगी होते हैं तथा इनमें जनद केवल एक ही होता है। संसेचन (impregnation) जल में होता है तथा जीवन वृत्त में डिम्भक प्रावस्था नहीं होती है। उदाहरण लैम्प्रेज (Lampreys) जैसे—पेट्रोमाइजॉन (Petromyzon) तथा हैग मछलियाँ (Hagfishes) जैसे मिक्साइन (Myxine)

(2) समूह नैथोस्टोमैटा (Group Gnathostomata) : इस समूह के जीव मुख्यतः विकसित कशेरुकी होते हैं। 
  • अधिकांश में नोटोकॉर्ड अर्थात् मेरुदण्ड स्थाई नहीं होती है। वयस्क में इसके स्थान पर कशेरुकदण्ड (vertebral column) होता है। 
  • इन जीवो में जबड़े, गमन के लिए जोड़ीदार पखने या पाद तथा इनसे सम्बन्धित मेखलाएँ (girdles) एवं जननवाहिनियाँ उपस्थित रहते हैं। 
  • इनका मुख गोल नहीं होता है।
  • इनमें पीनियल नेत्र अनुपस्थित रहते हैं।
  • इन जीवो का हृदय  2, 3 या 4 कक्ष में विभाजित रहता है। 
  • इनमें श्वसन के लिए क्लोम या फेफड़े उपस्थित रहते हैं। 
  • अन्तःकर्णो में तीन-तीन अर्धवर्तुल्य कुल्याएँ (semicircular axes) उपस्थित रहती हैं। 
  • यह जीव एकलिंगी होते हैं तथा इनमें जोड़ीदार जनद पाए जाते हैं


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