सीप (लैमेलीडेन्स - Lamellidens): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


सीप (लैमेलीडेन्स - Lamellidens): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन
सीप (लैमेलीडेन्स - Lamellidens): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

सीप (लैमेलीडेन्स - Lamellidens)
सीप ऐसे जीव होते हैं जो मुख्यतः समुद्र के किनारे रेत में गड़े हुए या फिर समुद्र की गहराइयों में पाए जाते हैं। इनका शरीर कैल्शियम के आवरण द्वारा ढका रहता है क्योंकि यदि इनका शरीर का नहीं रहेगा तो यह जीवित नहीं रह पाएंगे। सीप के शरीर में ही मोती का निर्माण होता है। इससे संबंधित अन्य तथ्यों के बारे में हम नीचे जानेंगे।

वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)              -           जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                 -           यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)              -           बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)    -           प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                 -           यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                   -           मोलस्का  (Mollusca)
वर्ग (Class)                       -           बाइवाल्विया (Bivalvia)
उपवर्ग (Subclass)             -           लैमेलीब्रेन्किऐटा (Lamelli branchiata);
गण (Order)                      -           शाइजोडोन्टा (Schizodonta)

सीप (लैमेलीडेन्स - Lamellidens): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

लक्षण (Characteristics)
सीप के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  1. यह मुख्यतः तालाबों, झीलों, सरिताओं, आदि के किनारे की रेत में गड़ी बड़ी सीप होती है। 
  2. इनका शरीर पार्श्व में चपटा, मोटे व कठोर, द्विपाटीय (bivalved) कैल्सियमयुक्त कवच में बन्द रहता है। इसके दोनों कपाट मध्यपृष्ठ रेखा पर एक कब्जा सन्धि (hinge joint) द्वारा जुड़े रहते हैं, परन्तु आगे की तरफ से पृथक् रहते हैं। प्रत्येक पर अग्रपृष्ठ भाग में एक सफेद सा फूला भाग होता है जिसे अम्बो (umbo) कहते हैं और इसके नीचे, लम्बाई में फैली, अनेक समकेन्द्रीय (concentric) वृद्धि रेखाएँ (growth lines) होती हैं।
  3. इनका पैर मोटा व मांसल युक्त तथा कीलक-सदृश (wedge-shaped) होता है। 
  4. इसके पिछले सिरे पर दो छोटी नलिकाएँ होती है। आगे वाली नलिका को अन्तर्वाही नाल (inhalent siphon) कहते हैं जिसके द्वारा बाहरी जल द्विकपाटीय प्रावरण के बीच की प्रावरणीय गुहा (mantle cavity) में आता है। पीछे वाली नलिका को अपवाही नाल (exhalent siphon) कहते है। इसमें से होकर जल वापस बाहर निकलता है।
  5. इनमें श्वसन के लिए प्रत्येक ओर की प्रावरणीय गुहा में लटका हुआ एक लम्बा, चपटा व खोखला, "W" की आकृति का, पत्ती जैसा जल-क्लोम (gill) उपस्थित रहता है।
  6. इनके शरीर में आगे वाले छोर पर स्थित मुखद्वार से लेकर पीछे वाले छोर पर स्थित गुदा तक फैली लम्बी आहारनाल होती है। 
  7. इनका आमाशय एक बड़ी पाचन ग्रन्थि (digestive gland) से घिरा रहता है। मलाशय हृदयावरणी गुहा (pericardial cavity) में से गुजरता है और हृदय के भाग इसे घेरे रहते हैं। 
  8. इनमें उत्सर्जन के लिए पेरीकार्डियम के नीचे दो बड़े वृक्क उपस्थित रहते हैं।
  9. इनके तन्त्रिका तन्त्र में तीन जोड़ी प्रमुख गुच्छक (ganglia) तथा इन्हें जोड़ने वाली तन्त्रिकाएँ उपस्थित रहती हैं तथा इनमें निम्न कोटि के स्पर्श, प्रकाश, सन्तुलन एवं रसायन संवेदांग भी उपस्थित रहते हैं।
  10. यह जीव एकलिंगी होते हैं तथा इनमें एक जोड़ी जनद पाए जाते हैं। इनमें सहायक जननांग (accessory reproductive organs) नहीं होते है। नर परिपक्व शुक्राणुओं को जल में मुक्त करते हैं जो जल-प्रवाह के साथ मादा के शरीर में चले जाते हैं तथा ये शुक्राणु अण्डाणुओं का संसेचन करते हैं। इसके बाद भ्रूणीय परिवर्धन मादा के शरीर में होता है। जिसके फलस्वरूप ग्लोकीडियम लार्वा (Glochidium larva) बनता है जो जल में मुक्त होकर किसी मछली के शरीर पर बाह्य परजीवी (ectoparasitic) जैसा जीवन व्यतीत करता है। फिर यह वयस्क में रूपान्तरित होकर पोषद से पृथक् हो जाता है।


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