पक्षी वर्ग अर्थात् एवीज (class Aves) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi


पक्षी वर्ग अर्थात् एवीज (class Aves) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग

पक्षी वर्ग अर्थात् एवीज (class Aves) : परिचय, लक्षण, उपवर्ग|hindi


महा वर्ग चतुष्पाद के अंतर्गत आने वाले 4 वर्गों में से वर्ग एंफीबिया तथा दूसरे वर्ग सरीसृप के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। आज हम पक्षी वर्ग अर्थात् एवीज के मुख्य लक्षणों के बारे में जानेंगे।

इस वर्ग के अंतर्गत सारे पक्षी (birds) आते हैं। इसमें लगभग 9,000 विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ आती हैं। इस वर्ग के पक्षियों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  1. इनकी त्वचा पर कोमल परों (feathers) का आवरण (plumage) तथा उड़ने के लिए अग्रपादों का पंखों (wings) में रूपान्तरण पक्षियों के दो महत्त्वपूर्ण लक्षण होते हैं। 
  2. इनकी त्वचा कोमल तथा ढीली ढाली होती है। इस पर शल्क (scales) केवल पश्चपादों के निचले भाग पर होते हैं। 
  3. इनके पश्चपाद सामान्य होते हैं जो पेड़ों या भूमि पर बैठने तथा चलने या जल में तैरने के लिए उपयोजित होते हैं। इनमें चार चार पंजेदार अँगुलियाँ होती है। 
  4. इनमें उड़ने में सुविधा हेतु शरीर धारारेखित (streamlined), सिर छोटा, गरदन स्पष्ट एवं लचीली तथा पूँछ भी बहुत छोटी होती है। 
  5. इनके जबड़े दाँतरहित और कठोर हॉर्न (horn) के आवरण सहित चोंच (beak) के रूप में होते हैं। 
  6. इनके नेत्र बड़े होते हैं तथा पार्श्वों में प्रत्येक के चारों ओर स्क्लीरोटिक प्लेटों (sclerotic plates) का बना अस्थिल छल्ला (bony ring) होता है। इनमें कर्णपल्लवरहित बाह्यकर्ण उपस्थित होते हैं। (vii) इनकी हड्डियाँ छिद्रयुक्त (वातिल) और वायु से भरी (pneumatic) होने के कारण हल्की, परन्तु मजबूत होती हैं।
  7. इनकी करोटि में केवल एक ऑक्सिपिटल कोन्डाइल होती है तथा उरोस्थि अर्थात् स्टर्नम बहुत बड़ी होती है। 
  8. इनका हृदय चौवेश्मी होता है। वयस्क में केवल दाहिनी दैहिक चाप (systemic arch) होता है।
  9. इनमें अल्पविकसित वृक्क निर्वाहिका तन्त्र उपस्थित रहता है तथा लाल रुधिराणु केन्द्रकमय होते हैं।  
  10. अन्य वर्ग जैसे मछलियों, ऐम्फिबिया तथा सरीसृपों के विपरीत, ये समतापी (sternothermal, endothermal or homoiothermal) होते हैं अर्थात् गरम रुधिर वाले (warm-blooded) होते हैं। इनका शरीर-ताप वातावरण के ताप से प्रभावित न होकर सदैव एक-सा रहता है। पंख एवं पर ताप नियन्त्रण में सहायक होते हैं। 
  11. इनके श्वसन तन्त्र में फेफड़े बड़े-बड़े वायु कोषों (air-sacs) से सम्बन्धित होते हैं। कोषों को वायु से भरकर शरीर को हल्का बनाया जा सकता है।
  12. इनके स्वर-यन्त्र को साइरिक्स (syrinx) कहते हैं। 
  13. इनके शरीर में जननछिद्र और गुदा पृथक् नहीं होता है। कुछ जातियों के नर में मैथुन अंग। 
  14. इनकी मादाओं में प्रायः केवल बायाँ अण्डाशय विकसित होता है। ये घोंसलों में अण्डे देकर प्रायः इन्हें सेती हैं। इनके अण्डे पीतयुक्त होते हैं तथा भ्रूण में, भ्रूणीय कलाएँ (embryonic membranes) बनती हैं। अनेक पक्षियों में, ऋतु के अनुसार, नियमित देशान्तरण की प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है। 
इन्हें दो उपवर्गों के अन्तर्गत 30 गणों में वर्गीकृत किया गया है-
  1. उपवर्ग आर्किओर्निथीज (Subclass Archaeornithes)
  2. उपवर्ग निओर्निथीज (Subclass Neornithes)
1. उपवर्ग आर्किओर्निथीज (Subclass Archaeornithes): इस उप वर्ग के अंतर्गत लगभग 14 करोड़ वर्ष पहले की जूरैसिक कल्प (Jurassic period) की एक विलुप्त जाति-आर्किओप्टेरिक्स लिथोग्राफिका (Archaeopteryx lithographica) आती है। ये सरीसृपों जैसे पक्षी थे जिनमें लम्बी, परयुक्त (feathered) पूँछ और दोनों जबड़ों में दाँत होते थे। पंखों के सिरों पर अग्रपादों की तीन-तीन पंजेदार अँगुलियाँ स्पष्ट होती थीं तथा इनके मेटाकार्पल्स पृथक् होते थे। इनके पश्चपादों पर भी तीन-तीन पंजेदार अँगुलियाँ होती थीं। इनकी पूँछ में 13 से अधिक पृथक् पुच्छ कशेरुकाएँ होती थीं और जोड़ीदार पार्श्व पर (feathers) होते थे।

2. उपवर्ग निओर्निथीज (Subclass Neornithes) : इस उप वर्ग के अंतर्गत सभी वर्तमान जातियां और कुछ विलुप्त जातियाँ आती है इनके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं- 
  • इनमें दाँत केवल कुछ विलुप्त जातियों में पाया जाता था। 
  • इनके मेटाकार्पल्स परस्पर समेकित रहते हैं।
  • दूसरी अँगुली सबसे लम्बी होती है। 
  • इनकी पुच्छ कशेरुकाएँ अधिकतम् 13 और अधिकांश परस्पर समेकित होकर फालक अर्थात् पाइगोस्टाइल (pygostyle) नामक हड्डी बनाती हैं। 
इस उपवर्ग को दो महागणों (superorders) में बाँटा गया है-

(क) महागण ओडोन्टोग्नैथी (Superorder Odontognathae) : इस महागण के अंतर्गत विलुप्त तथा दाँतयुक्त पक्षी आते हैं जिनमें पुच्छ कशेरुकाएँ पृथक् होती थीं, अर्थात् पाइगोस्टाइल नहीं होता था और अग्रपादों की हड्डियाँ ठीक से विकसित नहीं होती थीं। उरोस्थि (sternum) नौतलित (keeled) नहीं होती थी। उदाहरण-हेस्परॉर्निस (Hesperornis) ।

(ख) महागण नियोग्नैथी (Superorder Neognathae)
  • इस महागण के अंतर्गत आने वाले पक्षी आधुनिक तथा दन्तविहीन होते हैं। इनमें अधिकांश विद्यमान है तथा कुछ विलुप्त जातियां भी हैं।
  • इनमें उरोस्थि अर्थात् स्टर्नम नौतलित (keeled) उपस्थित रहता है।
  • इनमें पाइगोस्टाइल उपस्थित होता है। 
  • अधिकांश पक्षियों में पंख विकसित होते हैं लेकिन कुछ में अवशेषी के रूप में रहते हैं। उदाहरण-बड़े, उड़ न सकने वाले पक्षी जिनमें पंख कम विकसित होते हैं तथा समस्त उड़ने वाले पक्षी जिनमें पंख विकसित होते हैं। उड़ने वाले पक्षियों में मुर्ग (Gallus), कौवा (Corvus), कबूतर (Pigeon-Columba), घरेलू चिड़िया या गौरैया (house sparrow Passer domesticus) सामान्य उदाहरण हैं। ऐसे पक्षियों में मर्मर पक्षी या शकरखोरा (Humming bird or sunbird) फूलों का रस चूसने के लिए प्रसिद्ध है। कोयल (Cuckoo) अपने अण्डे अन्य चिड़ियों के घोंसलों में रखती है। खंजन चिड़िया (Wagtail) भारतवर्ष में केवल जाड़ों में साइबेरिया से पोषण के लिए आती है, जनन के लिए नहीं। उड़ने के अयोग्य पक्षियों में दक्षिणी अमेरिका के रया (Rhea), अफ्रीका का शुतुरमुर्ग (Ostrich— Struthio), आस्ट्रेलिया तथा न्यू गिनी के कैसोवरी (Cassowary Casuarius) एवं एमू (Emu– Dromeaus), न्यूजीलैण्ड का कीवी (Kiwi – Apteryx), बर्फीले समुद्री तटों (ऐन्टार्क्टिका– Antarctica) के पेंग्विन (Penguins), आदि होते हैं। इसी श्रेणी में कबूतर-जैसे डोडो पक्षी (Dodo) का विशेष महत्त्व है, क्योंकि 17वीं सदी में मॉरीसियस (Mauritius) द्वीप के लोगों ने इसे खा-खाकर समाप्त कर दिया। 




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