सांप के काटने (Snake-bite) की पहचान - सर्पदंश, सर्पविष का प्रभाव, उपचार|hindi


सांप के काटने (Snake-bite) की पहचान - सर्पदंश, सर्पविष का प्रभाव, उपचार
सांप के काटने (Snake-bite) की पहचान - सर्पदंश, सर्पविष का प्रभाव, उपचार|hindi

जहाँ साँप काटता है इसके दाँतों के निशान बन जाते हैं। यदि सब निशान छोटे-छोटे ही हैं तो किसी विषहीन साँप ने काटा है, क्योंकि विषैले सर्प के काटने के स्थान पर, छोटे निशानों के अतिरिक्त, एक (तीन तक) जोड़ी विषदन्तों के बड़े, गोल से निशान भी बनते हैं। इस स्थान पर प्रायः जोर की पीड़ा होती है, सूजन हो जाती है, रुधिर रिसने लगता है, निकटवर्ती त्वचा हरी या नीली पड़ जाती है तथा प्रायः मांस भी निर्जीव होकर सड़ने लगता है।


सर्पविष का प्रभाव (Effect of Snake Venom)
सर्पविष सुनहरा-सा, स्वादहीन एवं गन्धहीन पदार्थ होता है। इसमें निम्नलिखित श्रेणियों के घटक पदार्थ हो सकते हैं -
  1. प्रोटिओलाइसिन्स (proteolysins) जो मुख्यतः वाइपर सर्पों के विष में होते हैं। ये स्थानीय पीड़ा व सूजन उत्पन्न करते तथा स्थानीय ऊतकों को मृत कर देते हैं।
  2. कार्डिओटॉक्सिन्स (cardiotoxins) जो मुख्यतः नागों एवं वाइपरों के विष में होते हैं। ये रुधिरदाब को घटाते तथा हृद्स्पंदन को रोक देते हैं।
  3. हीमोगिन (haemorrhagin) जो वाइपरों के विष में होते हैं। ये रुधिर केशिकाओं की दीवार को नष्ट करके ऊतकों में अत्यधिक रुधिरस्राव का कारण बनते हैं।
  4. न्यूरोसाइटोलाइसिन्स (neurocytolysins) जो मुख्यतः नागों एवं करैत के विष में होते हैं और तन्त्रिका ऊतकों को नष्ट करते हैं।
  5. एन्टीवैक्टेरीसाइडम (antibactericidum) जो लगभग सभी विषैले सर्पों के विष में होते हैं। ये श्वेत रुधिराणुओं की भक्षकाणु क्रिया अर्थात् फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) की क्षमता को कम करके जीवाणुओं के विरुद्ध शरीर की सुरक्षा व्यवस्था को क्षीण कर देते हैं।
सर्पविष रुधिर में पहुँचने पर ही घातक होता है। यदि इसे खा लिया जाए तो आहारनाले में यह पच जाता है। यदि नाल में घाव हो तो यह घातक हो सकता है।

सर्पदंश से व्यक्ति इतने भयभीत हो जाते हैं कि विषहीन सर्पों के काटने पर भी अनेक रोगी केवल भय से मर जाते हैं। विष के प्रभाव से ग्रसित रोगी कमजोर होकर बेहोश होने लगता है, साँस लेने में कठिनाई होने लगती है, धीरे-धीरे, लकवे के पहले टाँगें तथा बाद में शेष शरीर के अंग निष्क्रिय होते जाते हैं। अन्त में, प्रायः साँस रुक जाने से, रोगी की मृत्यु कारण, हो जाती है। संसारभर में सर्पदंश से प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है।


सर्पदंश का उपचार (Treatment)
इसे तीन चरणों में बाँटा जा सकता है-

1. विष को शरीर में फैलने से रोकना :
  • यदि सर्पदंश हाथों या पैरों में हुआ है तो काटे गए स्थान से शरीर की ओर कुछ दूर पर अंग को कसकर बाँध देते हैं ताकि रुधिर में विष तेजी से न फैल सके। 
  • काटे गए स्थान पर तेज चाकू या ब्लेड से चीरा लगाकर रुधिर को निकाल देते हैं ताकि रुधिर के साथ विष भी बाहर निकल जाए। 
  • चीरा लगाने के बाद रुधिर एवं विष को चूसकर भी बाहर निकाला जा सकता है, परन्तु चूसने वाले के मुँह में घाव नहीं होना चाहिए। इसके लिए सिंगी का प्रयोग भी करते हैं। 
  • देशी चिकित्सक काटे गए स्थान को जलाकर (डबका लगाना) या दागकर विष को नष्ट करने का प्रयास करते हैं। 
  • यदि सर्पदंश किसी अँगुली, आदि पर हुआ हो तो ऐसे अंग को पूरा काटकर हटा देना हितकर होता है।
2. विष के प्रभाव को कम करना : आजकल सर्पविष के प्रतिविष (antivenom) के इन्जेक्शन दिए जाते हैं। प्रतिविष तैयार करने की विधि अनोखी होती है—स्वस्थ घोड़ों में पहले सर्पविष की थोड़ी-थोड़ी मात्रा इन्जेक्ट करते हैं ताकि इनके रुधिर में विष को नष्ट करने वाले प्रतिविष (antibodies) बन जाएँ। अब इन घोड़ों के रुधिर से सीरम (serum) तैयार करते हैं जो सर्पविष के प्रतिविष होते हैं।

3. विष के प्रभाव की चिकित्सा : रोगी की घबराहट दूर करने के लिए हृदय को बल देने वाली औषधियाँ (ऐड्रीनैलीन, पिट्यूट्रीन, बेनाड्रिल— adrenaline, pituitrine, benadryl, आदि), रुधिरस्राव को रोकने के लिए कैल्सियम क्लोराइड तथा कमजोरी को दूर करने और चैतन्य रखने के लिए दूध, चाय, कॉफी, आदि की थोड़ी-थोड़ी मात्रा दी जाती है। रोगी के शरीर को गर्मी पहुँचाने हेतु कम्बल उढ़ाया जाता है और उसके शरीर की मालिश की जाती है।

उपर्युक्त उपचार को अपनाकर सांप के द्वारा काटे गए रोगी का प्राथमिक इलाज किया जाना चाहिए तथा इसके बाद उसे तुरंत अस्पताल लेकर जाना चाहिए और उसका पूर्ण रूप से इलाज कराना चाहिए।



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