भारतीय गोह—वैरेनस (Varanus) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


भारतीय गोह - वैरेनस (Varanus) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन

भारतीय गोह—वैरेनस (Varanus) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

भारतीय गोह जंगलों में पाए जाने वाली सबसे बड़ी मांसाहारी छिपकली होती है। यह घर में पाए जाने वाले छिपकलियों उसे पूरी तरह से भिन्न होते हैं। यह इसके मुकाबले बड़े जानवरों का शिकार करती हैं। इससे जुड़े अन्य तथ्यों के बारे में हम नीचे जानेंगे।

वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)             -        जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                -        यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)              -         बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)  -         ड्यूटरोस्टोमिया  (Deuterostomia)
खण्ड (Section)                -         यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                  -         कॉर्डेटा  (Chordata)
उपसंघ (Subphylum)      -         वर्टीब्रेटा (Vertebrata)
महावर्ग (Superclass)      -        चतुष्पादा (Tetrapoda)
वर्ग (Class)                       -       सरीसृप (Reptilia)
उपवर्ग (Subclass)           -        लेपिडोसॉरिया (Lepidosauria)
गण (Order)                       -       स्क्वैमैटा (Squa mata)
उपगण (Suborder)          -        लैसरटिलिया या सॉरिया (Lacertilia or Sauria)

भारतीय गोह—वैरेनस (Varanus) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

लक्षण (Characteristic)
भारतीय गोह से संबंधित कुछ लक्षण इस प्रकार हैं-
  1. यह मुख्यतः जंगलों में पाई जाने वाली सबसे बड़ी छिपकली होती है जो कि मांसाहारी होती है तथा बड़े जानवरों का शिकार करती है।
  2. इसका शरीर लगभग 60-90 सेमी लम्बा होता है जो कि सिर, गरदन, धड़ तथा पूँछ में विभेदित रहता है, परन्तु पूँछ अपेक्षाकृत अधिक लम्बी और पार्श्वों में कुछ चपटी सी होती है।
  3. इसके सिर पर नेत्र, बाह्य नासाद्वार, कर्ण तथा मुखद्वार उपस्थित रहते हैं। इनके नेत्रों पर चल पलकें होती हैं तथा कर्णपटह झिल्लियाँ छिछले बाह्यकर्ण गर्तों में विभाजित रहता है।
  4. इसके शरीर पर महीन शल्कें तथा अनेक भूरे से चकत्ते उपस्थित रहते हैं।
  5. इनके पैरों पर पाँच-पाँच पंजेदार अँगुलियाँ उपस्थित रहते हैं। 
  6. इनकी जिह्वा साँपों की जिह्वा के समान लम्बी और आगे से कटी सी रहती है।
  7. यह रात्रिचर होते हैं। यह रात में बिलों से निकलकर कछुओं, चूहों, गिलहरी आदि का शिकार करती है।


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