कृत्रिम परागण (Artificial Pollination) किसे कहते हैं?: परिभाषा, विधि, महत्व|hindi


कृत्रिम परागण (Artificial Pollination) किसे कहते हैं?: परिभाषा, विधि, महत्व
कृत्रिम परागण (Artificial Pollination) किसे कहते हैं?: परिभाषा, विधि, महत्व|hindi

कृत्रिम परागण की परिभाषा (Definition)
कृत्रिम परागण वह होता है जिसमें कृत्रिम रूप से किसी पुष्प के परागणों का निषेचन कराया जाता है अर्थात मनुष्य द्वारा कृत्रिम ढंग से किसी पुष्प के परागकणों को स्वेच्छानुसार किसी दूसरे पौधे के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचाने को कृत्रिम परागण (artificial pollination) कहते हैं। कृत्रिम परागण विभिन्न जाति के पौधों के बीच भी सम्पन्न किया जा सकता है।

विधि (Method) - कृत्रिम परागण में किसी अपरिपक्व (immature) पुष्प में से, जब वह पौधे पर ही लगे रहते हैं, चिमटी द्वारा समस्त पुंकेसर निकाल दिये जाते हैं। इस प्रकार पुष्प में स्व-परागण (self-pollination) की सम्भावना समाप्त कर दी जाती है। अब पुष्प को छिद्रित पॉलीथीन की थैली (polythene bag) के अन्दर बाँध दिया जाता है जिसमें थैली के छिद्र इतने महीन होते हैं कि उनसे होकर केवल वायु ही गुजर सकती है परागकण नहीं। जिससे अन्य पौधों के पुष्पों के परागकणों द्वारा इनका परागण न हो सके। Gynoecium के परिपक्व होने पर थैली को खोलकर किसी इच्छित पौधे के पुष्प के परिपक्व परागकणों को इसके वर्तिकाग्र पर डाला जाता है और इसके बाद पुष्प को फिर से थैली द्वारा पहले की तरह ढक दिया जाता है। कुछ दिनों के बाद Gynoecium से फल बनकर तैयार हो जाता है। फल से बीज एकत्रित किये जाते हैं। बीजों को अनुकूल मौसम में उगाकर इनके गुणों का अध्ययन किया जाता है।

महत्त्व (Importance) - कृत्रिम परागण द्वारा अच्छी नस्ल के बीज बनते हैं जिनसे उत्पन्न पौधे अधिक स्वस्थ एवं अधिक उत्पादन शक्ति वाले होते हैं। इन पौधों में रोग लगने की सम्भावना भी बहुत कम रहती है।

आजकल विश्व में पौधों की उन्नतशील जातियों को पैदा करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि इन जातियों से पैदावार में वृद्धि होती है तथा साथ ही साथ रोग-निरोधक बीज भी प्राप्त होते हैं। हमारे देश में कृषि क्षेत्र में जो हरित क्रान्ति (green revolution) हुई है, उसका बहुत कुछ श्रेय कृत्रिम परागित बीजों को ही जाता है। पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय  द्वारा कृत्रिम परागण रीति से गेहूँ, मक्का, आलू की नई-नई उन्नतशील जातियाँ तैयार की गई हैं जिनसे पैदावार बढ़ी है। फलस्वरूप, देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है।

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