संयोजी ऊतक के प्रकार (Types of Connective Tissue)
संयोजी ऊतक जन्तुओं के अंगों को बांधने का काम करती है। जिसके कारण यह लगभग सभी अंगों में पाई जाती हैं। यह आठ प्रकार की होते हैं। जिनके वर्णन इस प्रकार हैं-1. अन्तरालीय या एरिओलर ऊतक (Areolar Tissue)
अन्तरालीय या एरिओलर ऊतक को सामान्य, ढीला संयोजी ऊतक (simple, loose connective tissue) भी कहते हैं। यह पूरे शरीर में व्यापक रूप से फैला रहता है।
स्थिति (Location) : यह पतली झिल्ली के रूप में शरीर के कई आन्तरिक अंगों; जैसे-आमाशय, श्वासनली, त्वचा, उपकला या एपिथीलियम के नीचे तथा रुधिर वाहिनियों, धमनियों और शिराओं की भित्ति के ऊपर पाया जाता है।
2. एडिपोस या वसा ऊतक (Adipose Tissue)
एडिपोस या वसा ऊतक एरिओलर (अन्तरालीय) ऊतक का ही रूपान्तरण होता है जिसमें फाइब्रोसाइट्स वसा का संचय करते हैं।स्थिति (Location)
एडिपोस ऊतक स्तनियों की त्वचा की डर्मिस तथा सबक्युटेनियस ऊतक, मेसेन्टरीज या आँत योजनियों (mesenteries), वृक्को, हृदय एवं नेत्र गोलकों (eye balls) के चारों ओर, गर्दन तथा वंक्षणों के आस-पास, उदर के निचले भाग, नितम्बों, जाँघों, कांख आदि में पाया जाता है। पुरुष के शरीर के कुल भार का 20% तथा स्त्रियों में 25% एडिपोस ऊतक होता है। व्हेल में त्वचा के नीचे इस ऊतक की एक मोटी परत होती है। ऊँट का कूबड़ तथा मैराइनो भेड़ (marino sheep) की मोटी पूँछ भी वसा संचय के कारण ही होती है।
संरचना (Structure)
- एडिपोस या वसा ऊतक में बड़ी-बड़ी गोल या अण्डाकार वसा कोशिकाएँ (fat cells or adipocytes) मैट्रिक्स में पड़ी रहती हैं। यह मैट्रिक्स बहुत काम मात्रा में होता हैं।
- प्रत्येक वसा कोशिका प्रारम्भ में फाइब्रोब्लास्ट (fibroblast) जैसी होती है। इसमें पहले वसा की छोटी-छोटी बूँदें बनती हैं जो मिलकर एक बड़ी वसा गोलिका (fat globule) बना लेती हैं।
- वसा गोलिका के कारण कोशिकाद्रव्य परिधीय भाग में एक पतला सा स्तर बनाता है। जिसमें केन्द्रक भी स्थित होता है।
- वसा कोशिकाओं के निकट महीन रुधिर वाहिनियों एवं मास्ट कोशिकाओं का जमाव होता है। कुछ कोलेजन एवं इलास्टिन तन्तु भी होते हैं किन्तु ये एक-दूसरे से स्पष्ट नहीं होते हैं।
कार्य (Functions)
एडिपोस या वसोतक के निम्नलिखित कार्य हैं:
1. वसा ऊतक महत्त्वपूर्ण खाद्य भण्डार का कार्य करता है। इसमें संचित वसा अपेक्षाकृत हल्की होती है और उपापचय में ग्लूकोज व प्रोटीन्स की तुलना में दोगुनी ऊर्जा उपलब्ध होती है।
2. यह आन्तरांगों को अत्यधिक दबाव, खिंचाव व धक्कों से बचाता है।
3. वसा ऊतक तापरोधक (insulating) स्तर का काम करता है।
4. यह शरीर की रूप-रेखा को बनाये रखता है।
1. वसा ऊतक महत्त्वपूर्ण खाद्य भण्डार का कार्य करता है। इसमें संचित वसा अपेक्षाकृत हल्की होती है और उपापचय में ग्लूकोज व प्रोटीन्स की तुलना में दोगुनी ऊर्जा उपलब्ध होती है।
2. यह आन्तरांगों को अत्यधिक दबाव, खिंचाव व धक्कों से बचाता है।
3. वसा ऊतक तापरोधक (insulating) स्तर का काम करता है।
4. यह शरीर की रूप-रेखा को बनाये रखता है।
3. जालिका या रेटिकुलर ऊतक (Reticular Tissue)
स्थिति (Location)
जालिका ऊतक लसीका ग्रन्थियों, अस्थि मज्जा (bone marrow), प्लीहा (spleen), टॉन्सिल, थाइमस ग्रन्थि आदि में पाया जाता है।
संरचना (Structure)
ऊतक के मैट्रिक्स में शाखान्वित तन्तुओं का जाल-सा फैला होता है। इन कोशिकाओं को जालिका कोशिकाएँ (reticular cells) कहते हैं। इनकी शाखाएँ आपस में जुड़कर एक जाल-सा बनाती हैं।
रेटिकुलो-एण्डोथीलियल तन्त्र (Reticuloendothelial System)
शरीर में हानिकारक जीवाणुओं, मृत कोशिकाओं के मलबे तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को रुधिर, लसीका एवं ऊतक द्रव से भक्षण करके (phagocytise) नष्ट करने वाली भक्षी कोशिकाएँ, जो शरीर के कई भागों में पायी जाती हैं, मिलकर शरीर की सुरक्षा के लिए यह सुरक्षा तन्त्र (defensive system) बनाती हैं।
सामान्य संयोजी ऊतक की मैक्रोफेज, जालमय संयोजी ऊतक की रेटिकुलो-एण्डोथीलियल कोशिकाएँ, जिगर की कुफ्फर कोशिकाएँ (Kupffer cells), वायु नालों एवं फेफड़ों की धूल कोशिकाएँ (dust cells), रक्त की मोनोसाइट्स (monocytes) आदि सब ऐसी ही कोशिकाएँ होती हैं।
4. श्लेष्मिक संयोजी ऊतक (Mucous Connective Tissue)
स्तनियों की नाभि रज्जु (umbilical cord) तथा मुर्गी की कलगी (comb) में, म्यूकोपॉलिसैकेराइड (mucopolysaccharide) का बना एक चिपचिपा, जैलीनुमा संयोजी ऊतक होता है। इसे व्हारटन की जैली (Wharton's jelly) कहते हैं। नेत्रगोलकों के विट्रियस काय (vitreous body) में भी यही ऊतक भरा होता है।5. वर्णक ऊतक (Pigment Tissue)
वर्णक ऊतक नेत्र के कोरॉयड तथा आइरिस भाग में तथा त्वचा में भी पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ बड़ी एवं शाखान्वित होती है। ये क्रोमेटोफोर्स (chromatophores) कहलाती हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में वर्णक कणिकाएँ (pigment granules) निलम्बित रहती हैं।त्वचा की वर्णक कणिकाओं को मिलेनिन तथा वर्णक कोशिकाओं को मिलेनोसाइट्स कहते हैं। इनके सिकुड़ने-फैलने से त्वचा का रंग हल्का व गहरा हो सकता है।
6. श्वेत रेशीय या तन्तुवत् संयोजी ऊतक (White Fibrous Connective Tissue)
स्थिति (Location)
श्वेत रेशीय या तन्तुवत् ऊतक त्वचा की डर्मिस, पेशियों तथा तन्त्रिकाओं के आवरण तथा वृक्कों, यकृत, वृषणों, नेत्र गोलकों (eye balls), रुधिर वाहिनियों, ग्रन्थियों एवं कई अन्य अंगों के तन्तुमय खोलों में कोलेजन तन्तुओं के गुच्छों के रूप में होता है।
कार्टिलेज के पेरिकॉन्ड्रियम तथा अस्थि के पेरिओस्टियम में भी पेशियों को आपस में या अस्थियों से जोड़ने वाली मजबूत व सफेद डोरियों के समान कंडराओं (tendons) तथा अस्थियों को एक-दूसरे से जोड़ने वाले स्नायु (ligaments) भी कोलेजन तन्तुओं से परस्पर सटे हुए समान्तर गुच्छे के रूप में होते हैं।
कंडराओं एवं स्नायुओं में इसीलिए पेशियों के संकुचन एवं अस्थियों की गति का खिंचाव सहने की अत्यधिक क्षमता होती है। स्नायु के आवश्यकता से अधिक खिंच जाने को मोच (sprain) कहते हैं।
कार्य (Functions):
श्वेत रेशीय या तन्तुवत् ऊतक कंडराओं तथा वृक्कों, यकृत, पेशियों, रुधिर वाहिनियों व तन्त्रिकाओं के चारों ओर एक आवरण बनाकर उन्हें अत्यधिक तनन सामर्थ्य प्रदान करता है। कोलेजन तन्तुओं की अधिकता के कारण ही बड़े स्तनियों की त्वचा की डर्मिस से चमड़ा बनाया जाता है।
7. टेंडन अर्थात् कंडराएँ (Tendons)
Tendons कोलेजन तन्तुओं के पूलों (बण्डलों) की बनी होती हैं। प्रत्येक बण्डल के तन्तु एक मैट्रिक्स के द्वारा आपस में जुड़े रहते जिसे Tendomucoid कहते हैं। बण्डलों के बीच फाइब्रोसाइट (fibrocyte) कोशिकाएँ भी होती हैं। कोलेजन तन्तुओं के बण्डलों एवं इनसे बनी कंडरा के चारों ओर फाइब्रोइलास्टिक (fibro elastic) ऊतक का आवरण होता है। Tendons तन्तु कंडरा को लचीलापन एवं दृढ़ता प्रदान करते हैं।कार्य (Function) :
Tendons अस्थियों को कंकाल पेशियों से जोड़ने का कार्य करती हैं।
8. स्नायु (Ligaments)
Ligaments में कोलेजन तन्तु बहुत कम होते हैं परन्तु इसमें पीले इलास्टिन तन्तु पाए जाते हैं। इसीलिए स्नायु पीला-सा और बहुत लचीला होता है। और कुछ लम्बी चपटी फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ तन्तुओं के बीच फैली रहती हैं।कार्य (Functions) :
स्नायु अस्थियों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं और उन्हें अपने स्थान पर बनाये रखते हैं। इन्हीं लचीले स्नायुओं की सहायता से हम गर्दन, हाथ, अंगुलियाँ आदि आसानी से हिला-डुला अथवा मोड़ सकते हैं। वाक रज्जुओं (vocal cords), श्वासनली एवं रुधिर वाहिनियों की दीवार, स्प्लीन या प्लीहा के बाह्य खोल तथा फेफड़ों में भी यह ऊतक होता है।
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