एपिथीलियम या एपिथीलियल ऊतक (Epithelium or Epithelial Tissue)
एपिथीलियम शरीर की सतह पर तथा विभिन्न अंगों, गुहाओं एवं वाहिनियों का बाहरी व भीतरी आवरण बनाती है। सतह पर होने के कारण इस ऊतक में रुधिर केशिकाएँ नहीं होती है। लिम्फ (लसीका) के माध्यम से ही पोषक पदार्थ इस ऊतक में पहुँचते हैं। 'एपिथीलियम' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डच वैज्ञानिक Ruysch ने 18वीं सदी में किया था।
उपकला या एपिथीलियम की उत्पत्ति (Origin of Epithelium)
एपिथीलियम (उपकला) भ्रूण के तीनों प्राथमिक जनन स्तरों (primary germ layers) से उत्पन्न होती है:1. त्वचा की एपिडर्मिस (Skin epidermis): एक्टोडर्म से।
2. देहगुहीय या सीलोमिक एपिथीलियम (Coelomic epithelium): मीसोडर्म से।
3. आहारनाल की श्लेष्मिक उपकला (Mucus epithelium): एण्डोडर्म से।
सामान्य संरचना (General Structure)
1. एपिथीलियम ऊतक की कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी होती हैं। इनके बीच extracellular material बहुत कम होता है।
2. कोशिकाओं के भीतरी सिरे नॉन-सेल्यूलर, पतली आधार कला (basement membrane) पर स्थित होते हैं।
3. इसकी आधार कला (basement membrane) में दो स्तर होते हैं: उपकला (एपिथीलियम) की ओर बेसल लेमिना (basal lamina) तथा नीचे के संयोजी ऊतक की ओर रेटिकुलर लेमिना (reticular lamina)।
4. इसकी आधार कला म्यूकोपॉलिसैकेराइड तथा कोलेजन तन्तुओं की बनी होती है।
5. कोशिकाएँ इन्टरडिजिटेशन (interdigitation), टाइट जंक्शन (tight junctions), डेस्मोसोम (desmosomes) तथा हेमीडेस्मोसोम्स (hemidesmosomes) अर्थात् कोशिका बंधों द्वारा एक-दूसरे से कसकर जुड़ी होती हैं।
6. उपकला ऊतक (epithelial tissue) में महीन तन्त्रिकाएँ होती हैं किन्तु पोषक पदार्थ पहुँचाने हेतु रुधिर वाहिकाओं का अभाव होता है। यह नीचे स्थित संयोजी ऊतक से पोषक पदार्थ प्राप्त करता है।
7. इसकी कोशिकाएँ एक या अधिक स्तरों के रूप में अंगों को बाहर व अन्दर से ढकती हैं। इन कोशिकाओं में विभाजन की अत्यधिक क्षमता होती है।
एपिथीलियम के कार्य (Functions of Epithelium)
1. आवरण (Covering): एपिथीलियम (उपकला) ऊतक त्वचा, खोखले अंगों; जैसे आहारनाल, रुधिर वाहिनियों की सतह तथा अन्य यकृत, श्वसन तन्त्र आन्तरांगों को ढकने का कार्य करती है तथा उनका अस्तर बनाती है।
2. सुरक्षा (Protection): यह त्वचा व उसके नीचे स्थित ऊतकों को चोट, अपघर्षण, रसायनों एवं संक्रमण व शुष्कन से बचाती है।
3. रोध (Barrier) : त्वचा की एपिथीलियम एक अभेद्य रोध का कार्य करती है।
4. पदार्थों का आदान-प्रदान (Exchange of Materials): आन्तरांगों में अपने पर्यावरण से पदार्थों का आदान-प्रदान एपिथीलियम के द्वारा ही होता है। अतः एपिथीलियमी का आवरण चयनात्मक (selective) होता है जिससे अवांछनीय पदार्थ इसके आर-पार नहीं जा सकते हैं।
5. अवशोषण (Absorption): आँत का एपिथीलियल अस्तर पचे हुए भोजन का अवशोषण करता है।
6. उत्सर्जन (Excretion): मूत्रवाहिनियों की एपिथीलियम kidneys से नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन में सहायक होती है।
7. चालन (Conduction): श्वसन पथ (respiratory passages) तथा जनन वाहिनियों (genital ducts) की पक्ष्माभी एपिथीलियम म्यूकस एवं द्रव्यों के चालन में सहायता करती है।
8. स्राव (Secretion): आँत की एपिथीलियम पाचक रसों का स्राव करती है।
9. श्वसन (Respiration): फेफड़ों की कूपिकाओं की एपिथीलियम में से फेफड़ों व बाह्य वायु के बीच ऑक्सीजन एवं CO₂ का आदान-प्रदान होता है।
10. संवेदी प्रकार्य (Sensory Function): संवेदी अंगों एवं त्वचा की एपिथीलियम संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य करती है।
11. पिग्मेन्टेशन (Pigmentation): एपिथीलियल कोशिकाओं में मेलेनिन (melanin) की उपस्थिति के कारण यह त्वचा को Pigmentation प्रदान करती है।
12. युग्मकों का निर्माण (Formation of Gametes): जनन एपिथीलियम की कोशिकाओं से युग्मक बनते हैं।
13. बाह्यकंकाल (Exoskeleton): एपिथीलियम शल्क, बाल, पिच्छ, खुर, नख, पंजे आदि बाह्यकंकालीय रचनाएँ बनाती है।
14. पुनरुद्भवन (Regeneration): क्षतिग्रस्त ऊतकों पर इसकी कोशिकाएँ विभाजन करके एक रक्षात्मक आवरण बनाती हैं तथा घावों के भरने और पुनरुद्भवन में मदद करती हैं।
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