नाक | घ्राणेन्द्रियाँ (Olfactoreceptors) क्या होती हैं?: उनकी कार्यविधि|in hindi


नाक | घ्राणेन्द्रियाँ (Olfactoreceptors) क्या होती हैं?

नाक | घ्राणेन्द्रियाँ (Olfactoreceptors) क्या होती हैं?: उनकी कार्यविधि|in hindi


नाक (Nose) | घ्राण ग्राही अंग या घ्राणेन्द्रियाँ (Olfactoreceptors) 

नाक द्वारा महक को ग्रहण करने वाली कोशिकाएँ (घ्राणेन्द्रियाँ) नासा वेश्मों (nasal cavity) के ऊपरी भाग की घ्राण उपकला (olfactory epithelium) में स्थित होती हैं। इस epithelium को Schneiderian membrane कहते हैं। यह ethmoturbinal अस्थियों पर लगी रहती है। इसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं: 

(a) लम्बी व सँकरी ग्राही कोशिकाएँ, 
(b) लम्बी व बेलनाकार अवलम्बन कोशिकाएँ (supporting cells) 
(c) छोटी शंक्वाकार आधार कोशिकाएँ (basal cells)। 

प्रत्येक olfactory कोशिका परिवर्तित द्विध्रुवीय (bipolar) तन्त्रिका कोशिका होती है। इसके स्वतन्त्र सिरे से बाल सदृश संवेदी प्रवर्ध निकले रहते हैं जो वाष्पशील रासायनिक पदार्थों से गन्ध ग्रहण करते हैं। इसका दूरस्थ सिरा ऐक्सॉन के रूप में होता है जो अन्य ग्राही कोशिकाओं के ऐक्सॉन के साथ olfactory तन्त्रिका बनाता है। 

कुछ कशेरुकी प्राणियों (सरीसृप वर्ग) में नासा वेश्मों के आधार भाग में दो खोखले वेश्म होते हैं जिन्हें Jacobson's organs कहते हैं। ये olfactory ज्ञान तथा भोजन की पहचान करने में सहायता करते हैं। 


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क्रियाविधि (Working) 

Olfactory receptor वायु में स्थित जल व लिपिड में घुलने वाले वाष्पशील पदार्थों के प्रति संवेदी होते हैं। गन्धयुक्त वायु जब नासामार्गों (nasal passages) में से गुजरती है तो घ्राण ग्राही (Olfactory receptor) कोशिकाओं की सतह गन्ध के अणुओं से उत्तेजित हो जाती है। इन आवेगों को प्राण तन्त्रिका (olfactory nerve) मस्तिष्क में पहुँचाती है। 

एक ही प्रकार की गन्ध के अधिक देर तक बने रहने पर उस गन्ध के प्रति संवेदना कम होती जाती है तथा अन्त में बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है। इसे घ्राण अनुकूलन (olfactory adaptation) कहते हैं। 

नाक | घ्राणेन्द्रियाँ (Olfactoreceptors) क्या होती हैं?: उनकी कार्यविधि|in hindi



नाक की स्वाद में भूमिका (Role of nose in Taste): विभिन्न स्वाद वाले खाद्य पदार्थों का ज्ञान भी olfactory ग्राहियों द्वारा ही होता है। जुकाम के समय नासा पथों की एपिथीलियम सूज जाती है जिससे olfactory receptor गन्ध की संवेदनाएँ ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इसी कारण जुकाम होने पर भोजन की गन्ध का आभास नहीं होता। 

महक के प्रति बहुत अधिक संवेदी जन्तु (Animals with Acute Sense of Smell) 

मनुष्य में 120 लाख से भी अधिक olfactory कोशिकाएँ होती हैं। इसी कारण मनुष्य नाना प्रकार की गन्ध का पता लगा सकता है। इतना होते हुए भी मानव में सूँघने का का सामर्थ कुत्ते, बिल्ली या चूहे की तुलना में काफी कम होता है। कुत्तों में तो यह अत्यधिक विकसित होती है जिसके कारण ये विभिन्न व्यक्तियों की गन्ध को पहचानने में समर्थ होते हैं।


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