दृष्टिज्ञान की रासायनिकी (Chemistry of Vision) क्या है?
आँख द्वारा देखने की प्रक्रिया में कॉर्निया वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणों को उचित कोण पर झुका देता है। ये प्रकाश की किरणें पुतली में से गुजरकर लेंस पर पड़ती है और फोकस होने के पश्चात रेटिना के पीत बिंदु पर वस्तु का उल्टा व छोटा प्रतिबिम्ब बनाती है। मनुष्य की आँखों में प्रकाश की किरणों द्वारा रेटिना की Rods और Cones में आवेग उत्पन्न करना एक रासायनिक घटना है।
A. दृष्टि शलाकाओं में (In Rods): Rods के बाहरी सिरों पर विजुअल पर्पिल (visual purple) नामक एक लाल रंग का प्रकाश-संवेदी वर्णक (light sensitive pigment) होता है। इसका रासायनिक नाम रोडोप्सिन (rhodopsin) है। रुधिर के हीमोग्लोबिन के समान यह भी दो यौगिकों का बना होता है:
(a) ऑप्सिन (opsin) समूह के प्रोटीन जिनको स्कोटोप्सिन (scotopsin) भी कहते हैं,
(b) रेटिनीन (retinene) नामक वर्णक अणु जो वास्तव में Vitamin A का एल्डिहाइड यौगिक है।
1. जब किसी वस्तु से प्रकाश की किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) पर पड़ती हैं तो रोडोप्सिन रेटिनीन एवं ऑप्सिन में विघटित हो जाता है। ये Rods को उत्तेजित करते हैं। ये ही दृष्टि संवेदनाएँ हैं जो ऑप्टिक तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क को ले जायी जाती हैं।
2. रोडोप्सिन के रासायनिक विघटन की क्रिया में दो मध्यवर्ती उत्पाद (intermediate products) बनते हैं। रोडोप्सिन पहले तो बहुलीकरण (polymerisation) द्वारा लूमिरोडोप्सिन (lumirhodopsin) में बदल जाता है। यह अस्थायी यौगिक होता है जो तुरन्त ही मेटारोडोप्सिन (metarhodopsin) में बदल जाता है। इसके बाद मेटारोडोप्सिन ऑप्सिन एवं रेटिनीन में अपघटित हो जाता है। अन्धेरे में या कम प्रकाश में ऑप्सिन एवं रेटिनीन से पुनः रोडोप्सिन संश्लेषित कर लिया जाता है जो पुनः शलाकाओं में एकत्रित हो जाता है।
B. दृष्टि शंकुओं में (In Cones): दृष्टि शंकुओं में रोडोप्सिन के स्थान पर आयोडोप्सिन (iodopsin) या विजुअल वॉयलेट (visual violet) वर्णक होता है जिसमें वर्णक घटक तो रेटिनीन ही होता है किन्तु प्रोटीन घटक ऑप्सिन न होकर फोटोप्सिन होता है। यह वर्णक वस्तुओं के रंगभेद को ग्रहण करता है। यद्यपि शंकुओं की क्रियाविधि का पूर्ण ज्ञान नहीं है किन्तु अनुमान है कि तीनों प्राथमिक रंगों (primary colour: लाल, हरा व नीला) के अनुसार तीन प्रकार के शंकु भी होते हैं। इन तीन प्रकार के शंकुओं में तीन अलग-अलग प्रकार के वर्णक होते हैं। इन तीनों प्राथमिक रंगों के अतिरिक्त अन्य सभी रंग तब दिखाई देते हैं जब जब यह शंकु सम्मिलित रूप से कार्य करते हैं जैसे कि हरे और लाल शंकुओं के समान रूप से संवेदित होने पर मस्तिष्क को पीले रंग के आवेग पहुँचते हैं।
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टैपिटम ल्यूसिडम (Tapetum Lucidum)
गाय, भैंस, बिल्ली, शेर आदि की आँखें रात में खूब चमकती हैं क्योंकि इन सभी और अधिकांश रात्रिचर जन्तुओं की आँख के रक्तपटल (choroid) में रेटिना के ठीक बाहर एक चमकीली परत होती है जिसे टैपिटम ल्यूसिडम (tapetum lucidum) कहते हैं। यह परत चाँदी के समान चमकते हुए संयोजी ऊतक की बनी होती है अथवा ग्वानीन (guanine) या अन्य किसी वर्णक के कणों की। यह रेटिना पर पड़ने वाली अतिरिक्त प्रकाश किरणों को परावर्तित करता है जिससे रात में आंखें चमकीले दिखाई देती हैं।
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