प्रकाशग्राही (Photoreceptors) किसे कहते हैं?
आँखों की स्थिति (Location)
स्तनियों में एक जोड़ी नेत्र सिर पर पृष्ठ-पार्श्व में स्थित होते हैं। ये गोलाकार व कुछ-कुछ गेंद जैसी होते हैं इन्हें नेत्र गोलक (eye ball) कहते हैं। ये सर के मध्य भाग में अस्थिल गड्ढों में स्थित होते हैं। इन गड्ढों को orbits कहते हैं। नेत्र पेशियों (eye muscles) द्वारा नेत्र गोलक को orbits के अन्दर घुमाया जा सकता है। आँख का लगभग 4/5 भाग orbits में धँसा रहता है। नेत्रगोलक के इस उभरे हुए भाग को कॉर्निया (cornea) कहते हैं। प्रत्येक भाग के साथ पलकें तथा कुछ ग्रन्थियाँ भी होती हैं।
पलकें (Eyelids)
आँखों में धूल अथवा अन्य वस्तु न गिरे, इसके लिए दो रोमयुक्त पलकें (eyelids) होती हैं।
ये गतिशील होती हैं और आवश्यकता पड़ने पर बड़ी तेजी से नीचे गिरकर कॉर्निया को बन्द कर लेती हैं। इनको ऊपरी व निचली पलकें कहते हैं।पलकों पर लगे बाल (eyelashes) इस क्रिया में मदद करते हैं।
आँखों की पलकें आँखों में कोई भी गन्दगी को आने नहीं देते हैं।
आँखों की ग्रन्थियाँ (Glands)
आँखों की सफाई के लिए व कॉर्निया को चिकना बनाये रखने के लिए प्रत्येक आँख के साथ तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ पायी जाती है:
1. मीबोमियन ग्रन्थियाँ (Meibomian Glands) : दोनों पलकों के भीतरी किनारों पर मीबोमियन ग्रन्थियों के छिद्र होते हैं। ये तेल के समान द्रव स्रावित करती हैं जो नेत्र श्लेष्मा (conjunctiva) को चिकना बनाती है। इसके दो लाभ हैं :
(a) पलकों को उठाने-गिराने में रुकावट नहीं पड़ती तथा
(b) नेत्र श्लेष्मा पर तेल इस प्रकार फैला होता है कि अश्रु ग्रन्थियों द्वारा स्रावित आँसू आँख के भीतरी कोण की ओर आ जाते हैं और मुख पर नहीं गिर पाते।
2. अश्रु ग्रन्थियाँ (Tear Glands or Lacrimal Glands) : ये आँख के बाहरी कोण पर स्थित होती हैं और जल-सदृश द्रव स्रावित करती हैं। गैस, धुंआ, धूल या तिनका आदि आँख में गिर जाने पर अथवा बहुत भावुक हो जाने पर इन ग्रन्थियों के स्राव से आँखें गीली हो जाती हैं, जिन्हें आँसू कहते हैं।
(a) ऊपरी पलक के झपकने से यह स्राव सारी आँख में फैल जाता है और धूल के कण धुल जाते हैं। यह पलकों की भीतरी सतह और नेत्र गोलक के कंजक्टाइवा की बाहरी सतह को नम रखता है। जन्म के चार महीने बाद मानव शिशु में अश्रु ग्रन्थियाँ सक्रिय होती हैं।
3. अन्य ग्रन्थियाँ (Other Glands) : जीज की ग्रन्थियाँ (glands of zeis) छोटी तैल ग्रन्थियाँ (sebaceous glands) हैं जो पलकों के फॉलिकल्स में खुलती हैं। इन ग्रन्थियों के संक्रमित होने पर हॉर्डियोलम (hordeolum) रोग हो जाता है।
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आँखों में लगे लेन्स (Lens)
आइरिस के पीछे एक पारदर्शी व biconvex लेंस स्थित होता है। इस पर पारदर्शी झिल्ली की एक परत होती है। यह संयोजी ऊतक का बना होता है और इसे लेन्स कैप्सूल (lens- capsule) कहते है।
निलम्बन लिगामेंट (suspensory ligaments) द्वारा लेन्स रक्तकपटल (choroid) की सिलियरी बॉडी से जुड़ा रहता है। निलम्बन लिगामेंट लचीले होते हैं और लेन्स को थोड़ी आगे-पीछे खिसका सकते हैं। लेन्स लचीला होता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ यह कुछ चपटा व कम लचीला और अधिक घना व भूरा-सा हो जाता है। बहुत अधिक अपारदर्शी होने पर दिखाई देना बन्द हो जाता है। मनुष्य में इस अवस्था को मोतियाबिन्द (cataract) कहते हैं।
लेन्स द्वारा नेत्रगोलक की गुहा दो भागों में बँट जाती है :
1. जलीय कक्ष (Aqueous Chamber): कॉर्निया एवं लेंस के बीच का भाग जल-सदृश द्रव से भरा रहता है। इस द्रव को एक्वयस ह्यूमर (aqueous humour) तथा इस कक्ष को जलीय कक्ष कहते हैं। वास्तव में यह कक्ष भी दो कक्षों का बना होता है: कॉर्निया एवं परितारिका (आइरिस) के बीच अग्र कक्ष तथा आइरिस व लेन्स के बीच पश्च कक्ष।
2. काचाभ द्रव कक्ष (Vitreous Chamber): नेत्रगोलक में लेन्स के पीछे की गुहा, जो लेन्स व दृष्टिपटल के बीच होती है, को काचाभ द्रव कक्ष कहते हैं। इसमें अण्डे के श्वेतक (albumin) के समान अथवा जेली सदृश द्रव भरा होता है। इसको काचाभ द्रव (vitreous humour) कहते हैं।
जलीय द्रव (एक्वयस ह्यूमर) तथा काचाभ द्रव (विट्स ह्यूमर) दोनों सिलियरी बॉडी द्वारा स्रावित होते हैं। ये नेत्र की गुहा में निश्चित दबाव बनाये रखते हैं जिससे रेटिना (दृष्टिपटल) व अन्य नेत्रपटल यथास्थान बने रहें। इसके अतिरिक्त ये आँख को सिकुड़ने से रोकते हैं।
आँख की कार्यविधि (Working of Eye)
आँख का कॉर्निया वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणों को उचित कोण पर झुका देता है। ये प्रकाश की किरणें पुतली में से गुजरकर लेन्स पर पड़ती हैं और फोकस होने के पश्चात् रेटिना के पीत बिन्दु पर वस्तु का उल्टा व छोटा प्रतिबिम्ब बनाती हैं।
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