जब किसी वस्तु का दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बनता है तो उसके बनने के लिए निम्नलिखित तीन नियम होते हैं। जिसके द्वारा हम प्रतिबिंब की स्थिति निर्धारित कर सकते हैं। प्रतिबिम्ब की स्थिति निर्धारित करने के लिए इनमें से कोई दो नियमों का प्रयोग किया जाता है।
- दर्पण की मुख्य-अक्ष के समान्तर चलने वाली किरण परावर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस में से या तो होकर जाती है (अवतल दर्पण में)' या मुख्य फोकस से आती हुई प्रतीत होती है (उत्तल दर्पण में)। (चित्र में देखें)
- मुख्य-फोकस में को होकर जाने वाली (अवतल दर्पण में) या मुख्य फोकस की ओर जाने वाली (उत्तल दर्पण में) किरण दर्पण से परावर्तित होकर मुख्य-अक्ष के समान्तर हो जाती है।(चित्र में देखें)
- वक्रता-केन्द्र में को होकर जाने वाली (अवतल दर्पण में) या वक्रता-केन्द्र की ओर जाने वाली (उत्तल दर्पण में) किरण परावर्तन के पश्चात् अपने ही मार्ग पर वापस लौट आती है। (यह किरण दर्पण पर अभिलम्बवत् गिरती है)। (चित्र में देखें)
अब हम इन नियमों की सहायता से वस्तु की भिन्न-भिन्न स्थितियों के लिये दर्पणों से बनने वाले प्रतिबिम्बों की स्थिति, आकार तथा प्रकृति ज्ञात कर सकते हैं। इन सभी चित्रों में दर्पण M1 M2, ध्रुव P, फोकस F तथा वक्रता-केन्द्र C है।
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