जन्तु परागण (Zoophily) किसे कहते हैं?: परिभाषा, प्रकार, उदाहरण|hindi


जन्तु परागण (Zoophily) किसे कहते हैं?: परिभाषा, प्रकार, उदाहरण
जन्तु परागण (Zoophily) किसे कहते हैं?: परिभाषा, प्रकार, उदाहरण|hindi

जन्तु परागण की परिभाषा
कुछ पुष्प ऐसे होते हैं जिनमें परागण की प्रक्रिया जंतुओं द्वारा होती है अतः पुष्पों में जन्तुओं द्वारा होने वाले ऐसे परागण को जन्तु परागण (zoophily) कहते हैं। जन्तु परागण साधारणतया कीटों, पक्षियों, चमगादड़ों अथवा घोघों द्वारा होता है और इसी आधार पर यह निम्न प्रकार का होता है-
  1. कीट परागण (Entomophily)
  2. पक्षी परागण (Ornithophily)
  3. मैलेकोफिली (Malacophily)
  4. कीरोप्टैरीफिली (Chiropteriphily)

(i) कीट परागण (Entomophily)
अधिकांश पुष्पों में पर-परागण कीटों द्वारा ही होता है। परागण करने वाले कीटों में मधुमक्खी (honeybee), तितली (butterfly), भौंरा (beetle), शलभ (moth), मक्खी (fly), बर्र (wasp), आदि प्रमुख हैं। ये कीट जैसे ही पुष्प पर बैठते हैं इनके रोमयुक्त अंगों पर परागकण चिपक जाते हैं। जब ऐसे कीट किसी अन्य पुष्प पर जाते हैं तो इनके अंगों से परागकण झड़कर वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचते हैं। इस प्रकार परागण की क्रिया सम्पन्न होती है। कुछ प्रमुख कीट एवं उनसे परागित होने वाले पुष्प निम्नलिखित प्रकार के हैं-

(a) मधुमक्खी–बनफसा, लार्कस्पर, ऑर्किड, बोगेनविलिया, अतीस।
(b) शलभ–तम्बाकू, धतूरा, यक्का।
(c) तितली-डाएन्थस, लिली।
(d) मक्खी— रैफ्लीसिया, एरम, स्कोलिओपस।
(e) बर्र–अंजीर।

कीट परागित पुष्पों में कीटों को आकर्षित करने के लिये कुछ विशेषतायें पायी जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं—
  1. आकार (Size) - कीट परागित पुष्प आकार में बड़े होते हैं। जब ये पुष्प छोटे होते हैं तब ये सदैव आकर्षक गुच्छों (पुष्पक्रमों) में पाये जाते हैं जिससे कीट दूर से इन्हें आसानी से देख सकें।
  2. रंग (Colour) - इन पुष्पों के दल बड़े एवं चटकीले रंगों के होते है। जिससे पुष्प कीटों द्वारा सहज देखे जा सकें। विभिन्न प्रकार के कीट भिन्न-भिन्न रंगों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिए, मधुमक्खियाँ प्रायः नीले व पीले, तितलियाँ लाल व नारंगी, भौंरा बैंगनी व नीले तथा बर्र गहरे भूरे रंग की ओर आकर्षित होते हैं। जिन पुष्पों में दलों का रंग आकर्षक नहीं होता उनमें पुष्प के अन्य भाग रंगीन एवं आकर्षित होकर कीटों को लुभाते हैं। उदाहरण के लिए, बोगेनविलिया तथा यूफोर्बिया में सहपत्र (bract) और केला तथा कचालू में पृथुपर्ण (spathe) चटकीले रंग धारण कर कीटों को आकर्षित करते हैं। मुसैण्डा (Mussaenda) में इस कार्य हेतु एक बाह्यदल बड़ा एवं आकर्षक हो जाता है और कीटों को आकर्षित करने के लिये परागण ध्वज (pollination flag) का कार्य करता है।
  3. गन्ध (Odour) - कीटों को लुभाने के लिये अनेक पुष्प सुगन्धित होते हैं। सुगन्धित पुष्प प्रायः रंगहीन होते हैं और रात्रि के समय खिलते हैं। सुगन्ध के कारण ही कीट अन्धेरे में इनकी ओर आकर्षित होते हैं, जैसे रात की रानी (Cestrum), हार सिंगार (Nyctanthes), बेला (Jasminum), मालता (Quisqualis), आदि के फूल। कभी-कभी वह गन्ध जो मनुष्य के लिये घृणित एवं असह्य होती है, उसे कुछ छोटे कीड़े बहुत पसन्द करते हैं, जैसे शवभोजी मक्खियाँ (carrion flies) जमीकन्द (Amorphophallus) के अनुबन्ध (appendix) की ओर, जो एक दुर्गन्ध निकालता है, आकर्षित होती हैं, इसके अतिरिक्त रैफ्लीसिया (Rafflesia) की गन्ध सड़ते हुये माँस जैसी तथा काली एरम (Black arum) की गन्ध मनुष्य के मल जैसी होती है। इनके पुष्पों की ओर भी विभिन्न प्रकार की मक्खियाँ आकर्षित होती है।
  4. मकरन्द (Nectar) - लगभग सभी युक्तदली दलपुंजों (gamopetalous corolla) में मीठे रस का स्रावण होता है। जिसे मकरन्द (nectar) कहते हैं। यह कीटों, विशेषकर मधुमक्खियों एवं मक्खियों के लिये एक आकर्षण होता है। मकरन्द एक विशेष ग्रन्थि में उत्पन्न होता है जिसे मकरन्दकोष (nectary) कहते हैं। कभी-कभी यह एक विशेष संरचना के अन्दर विद्यमान रहता है जिसे दलपुट (spur) कहते हैं, जैसे नैस्टरशियम, लार्कस्पर, गुलमेंहदी, आदि में। जब कीट मकरन्दकोष या दलपुट से मकरन्द एकत्रित करते हैं तो वे प्रसंगवश परागण भी कर देते हैं।
  5. परागकण (Pollen grains) - परागकण संख्या में कम होते हैं तथा चिपचिपे (sticky) या शल्यमय (spiny) होते हैं जिससे ये कीट के शरीर पर आसानी से चिपक जाते हैं। बहुत-से कीटों के लिये परागकण एक उत्तम भोजन भी हैं। पीली कटैली, पोस्त, आलू, आदि के पुष्पों में मकरन्द का अभाव होता है लेकिन परागकण अधिक संख्या में पैदा होते हैं और कीट इन्हीं को खाने के लालच से पुष्प पर आ बैठते हैं।
  6. वर्तिकाग्र (Stigma) - कीट परागित पुष्पों का वर्तिकाग्र प्रायः दलपुंज (corolla) के भीतर स्थित रहता है और यह चिपचिपा व खुरदरा होता है जिससे परागकण इसकी सतह पर आसानी से चिपक सकते हैं।
कुछ प्रमुख पौधों में कीटों द्वारा परागण की विधि 

सैल्विया (Salvia) में कीट परागण - सैल्विया का पुष्प द्वि-ओष्ठि (bilabiate) होता है, ऊपरी ओष्ठ प्रजनन अंगों की रक्षा करता है तथा निचला ओष्ठ मधुमक्खियों के बैठने के लिये एक मंच (stage) का कार्य करता है। पुष्प protandrous होता है, अर्थात् पुंकेसर, स्त्री पुंकेसर से पहले पकता है। इसमें दो पुंकेसर होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर का पुतन्तु छोटा होता है और इसके सिरे पर लीवर की भाँति मुड़ा तथा असामान्य रूप से लम्बा connective होता है जो मध्य से कुछ हटकर पुंतन्तु से जुड़ा होता है। इस प्रकार connective दो असमान खण्डों में बँट जाता है और इसके दोनों सिरों पर एक-एक परागकोश पालि लगी रहती है। इसका ऊपरी खण्ड बड़ा होता है तथा इसके सिरे पर स्थित पालि fertile होती है। निचले छोटे खण्ड के सिरे पर sterile पालि लगी रहती है। दोनों पुंकेसरों की sterile पालियाँ दलपुंज के मुख पर स्थित होती हैं। सैल्विया में परागण क्रिया मधुमक्खी (honeybee) द्वारा सम्पन्न होती है।

जब मकरन्द की खोज में कोई मधुमक्खी दलपुंज की नली में प्रवेश करती है तो निचली sterile परागकोश पालियों को धक्का लगता है जिससे योजी (connective) का ऊपरी खण्ड लीवर की भाँति नीचे झुक जाता है। इसके फलस्वरूप दोनों fertile परागकोश पालियाँ मधुमक्खी की पीठ से टकराकर अपना परागकण इसके ऊपर बिखेर देती हैं। जब यह मधुमक्खी परिपक्व अण्डप वाले किसी दूसरे पुष्प में प्रवेश करती है तो नीचे की ओर मुड़े हुए वर्तिकाग्र (stigma) इसकी पीठ से रगड़ खाकर परागकणों को चिपका लेते हैं और इस प्रकार परागण क्रिया सम्पन्न होती है।

मटर (Pea) में कीट परागण - मटर के पुष्प में नर तथा मादा जननांग पुष्प के दो आगे वाले हिस्से से जुड़कर बनी नाव जैसी संरचना रचना जिसे नौतल (keel) कहते हैं, में छिपे रहते हैं। जब कोई लम्बी जीभ वाला कीट (humble bee) उस पुष्प पर आकर बैठता है तो इसके बोझ से keel नीचे झुक जाता है और पुमंग तथा जायांग दोनों खुल जाते हैं। जब कीट मकरन्द प्राप्त करने के लिये अपनी जीभ पुष्प के अन्दर डालता है तो इसके सिर तथा टाँगों पर परागकण चिपक जाते हैं। जब यह कीट मकरन्द प्राप्ति की खोज में अन्य पुष्प पर जाता है तब इसके शरीर से परागकण झड़कर वर्तिकाग्र पर गिर जाते हैं। रसीला एवं रोमयुक्त होने के कारण वर्तिकाग्र परागकणों को चिपका लेता है।

अंजीर (Fig) में कीट परागण - अंजीर में पुष्प उदुम्बर (hypanthodium) के पुष्पक्रम में लगे रहते हैं। इसमें पुष्प का आकार प्यालेनुमा होता है और इसके ऊपरी सिरे पर एक छिद्र होता है जो शल्क-पत्रों से ढका रहता है। प्याले के अन्दर नर पुष्प ऊपर की ओर तथा मादा पुष्प नीचे स्थित रहते हैं। दोनों प्रकार के पुष्प अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं। अंजीर में परागण साधारणतया मादा बर्रों (wasps) द्वारा होता है।

जब कोई बर्र पुष्पक्रम के छिद्र में प्रवेश करती है तो इसकी रगड़ से नर पुष्पों से परागकण छिटककर इसके रोमयुक्त शरीर पर चिपक जाते हैं। जब यह कीट दूसरे पुष्पक्रम में प्रवेश करता है तो इसके शरीर पर विद्यमान परागकण गिरकर मादा पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँच जाते हैं और परागण सम्पन्न हो जाता है। परिपक्व अवस्था में शल्क पत्र छिद्र को ढक लेते हैं जिससे बर्र पुष्पक्रम के अन्दर ही रह जाती है। कभी-कभी बर्र प्याले के अन्दर अण्डे दे देती है जिनसे बाद में नई बर्रे पैदा हो जाती हैं। इसी कारण अंजीर एवं गूलर (जिसमें उदुम्बर ही पुष्पक्रम होता है) के फलों को तोड़ने पर कभी-कभी अनेक छोटे कीट बाहर निकलते हैं।

प्रिमरोज (Primula) में कीट परागण - प्रिमरोज (Primula) में पुष्प दो प्रकार के होते हैं

(a) दीर्घवर्तिकाग्रीय (Pin-eyed) - इनमें पुंकेसर बहुत छोटे होते हैं और दलपुंज नलिका की ऊँचाई के आधे होते हैं। इसके वर्तिका बहुत लम्बा होता है जिससे वर्तिकाग्र दलपुंज नलिका के मुख पर आ जाता है।

(b) लघुवर्तिकाग्रीय (Thrum-eyed) - इनमें वर्तिका बहुत छोटा होता है जिससे वर्तिकाग्र दलपुंज नलिका की आधी ऊँचाई तक आ जाता है। लेकिन पुंकेसर, लम्बे होने के कारण दलपुंज नलिका के मुख पर स्थित होते हैं।

दोनों प्रकार के पुष्पों में मकरन्द नलिका के आधार पर एकत्रित रहता है। प्रिमरोज में परागण क्रिया मधुमक्खी (honeybee) द्वारा सम्पन्न होती है।

मधुमक्खी जब किसी pin-eyed पुष्प की नलिका में से मकरन्द एकत्रित करने के लिये अपनी proboscis अन्दर डालती है तो परागकण इसकी proboscis पर चिपक जाते हैं। जब यह मक्खी किसी thrum-eyed पुष्प पर जाती है तो मकरन्द एकत्रित करने की कोशिश में जैसे ही अपनी proboscis नलिका के अन्दर डालती है तो proboscis पर चिपके परागकण झड़कर वर्तिकाग्र (stigma) पर गिर जाते हैं और परागण हो जाता है। साथ ही साथ मक्खी के शरीर पर नीचे की ओर परागकण चिपक जाते हैं जो, कीट के अन्य पिन-आइड पुष्प के ऊपर जाने पर, वर्तिकाग्र पर झड़ जाते हैं। मक्खियों के उपलब्ध न होने पर इन पुष्पों में स्व-परागण भी हो में जाता है।

(ii) पक्षी परागण (Ornithophily)
कुछ पुष्पों में पर-परागण की क्रिया पक्षियों द्वारा सम्पन्न होती है। पक्षी द्वारा परागित होने वाले पुष्प बड़े, रंगीन तथा गन्धहीन होते हैं और इनमें मकरन्द का स्राव होता है। बिगनोनिया (Bignonia) में गुंजन करने वाली चिड़ियों (humming birds) द्वारा, स्ट्रैलिट्जया (Strelitzia) में एक शहद की चिड़िया (Nectarina afra) द्वारा तथा सेमल (Bombax) और पांगरा (Erythrina) में कौवा और मैना द्वारा परागण होता है। मधुपान के लिये जब पक्षी दलपुंज की नली में चोंच डालता है तो इसके वक्ष या सिर पर चिपचिपे परागकण लग जाते हैं और इस प्रकार परागकण एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक पहुँचते हैं। पक्षी परागित पुष्प प्रायः लाल रंग के होते हैं।

(iii) मैलेकोफिली (Malacophily)
सूरन कुल के पौधों (arioids), जैसे जमीकन्द (Amorphophallus) और सर्पपादप (Arisaema) में कीटों के अतिरिक्त, घोंघों (snails) द्वारा भी परागण होता है। इन पौधों में पुष्पों का क्रम स्थूलमंजरी (spadix) होता है। मादा पुष्प इसके आधार पर तथा नर पुष्प ऊपर की ओर लगे रहते हैं। इन पुष्पों में मादा पुष्प पहले पकते हैं जिससे परागकणों को दूसरी स्थूलमंजरियों से, जिनमें नर पुष्प भी पक चुके हैं आना पड़ता है।

(iv) कीरोप्टैरीफिली (Chiropteriphily)
कचनार (Bauhinia megalandra), इपैरूआ (Eperua), कदम्ब (Anthocephalus), आदि में चमगादड़ों द्वारा परागण क्रिया सम्पन्न होती है। चमगादड़ रात्रि के समय निकलते हैं और कीट, फल मकरन्द तथा परागकणों की खोज में पेड़ पौधों पर जाते हैं। ये पुष्पों की गन्ध द्वारा ही उन तक पहुँचते हैं, क्योंकि ये रंग देखने में असमर्थ (colour blind) होते हैं।

इस तरह हमने जाना कि पौधों में वायु के अलावा जंतुओं के द्वारा भी परागण होता है। और इनकी क्रियायों के बारे में भी जाना। 

No comments:

Post a Comment