कई सदी पहले के एक जीव वैज्ञानिक ने कहा था कि, "इँगलिस्तान की समृद्धि यहाँ की बूढ़ी दाइयों के कारण है"। उन्होंने कहा, "स्वस्थ अँग्रेज ढोरों (एक प्रकार का जीव) का मांस खाते हैं, ढोर घास खाते हैं, घास का परागण (pollination) bees करती हैं, मक्खियों के बसेरों (nests) को खेत के चूहे नष्ट करते हैं और खेत के चूहों की संख्या बिल्लियों की संख्या पर निर्भर करती है जिन्हें बूढ़ी दाइयाँ पालती हैं। अतः बूढ़ी दाइयों की संख्या का प्रभाव मांस की उपलब्धि पर पड़ता है"। यह बात बड़ी दूरन्दाजी की-सी लगती है, लेकिन इसमें एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक सिद्धान्त छिपा है - अपने-अपने क्षेत्र में सभी जीवों का अन्य जीवों के साथ एक निश्चित सम्बन्ध रहता है, अर्थात् प्रत्येक जीव के जीवन पर अन्य जीवों का प्रभाव पड़ता है। इसीलिए, प्रकृति को हम एक विशाल जैव समाज (biotic community) कह सकते हैं।
इसके अन्तर्गत कई क्रियाएं होती है जिसको हम निम्न बिंदुओं द्वारा समझ सकते हैं-
- इसके अन्तर्गत सारे जीव अपने श्वसन के लिए वातावरण से निरन्तर ऑक्सीजन (O2) लेते और बदले में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) इसमें मुक्त करते रहते हैं, फिर भी प्रकृति में ऑक्सीजन (O2) की कभी कमी नहीं पड़ती और न ही वायुमण्डल कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से पूर्णतः दूषित हो पाता है।
- इसी प्रकार, असंख्य पेड़-पौधे, प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) के लिए, भूमि से नाइट्रोजन एवं लवण तथा वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) निरन्तर लेते रहते हैं, फिर भी इन पदार्थों की कमी नहीं पड़ती और वनस्पतियाँ उगती ही चली जाती हैं।
- इसी प्रकार, असंख्य जन्तु भोजन के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स, वसाओं, लवणों आदि का निरन्तर उपभोग करते रहते हैं, फिर भी प्रकृति में इन पदार्थों की कमी नहीं पड़ती।
- यह सब क्यों? इसलिए नहीं कि प्रकृति का भण्डार असीमित है, बल्कि इसलिए कि जन्तुओं और पौधों के बीच इन पदार्थों का चक्रीय उपभोग (cyclic consumption) होता है।
- पौधों के लिए आवश्यक पदार्थों की सप्लाई जन्तु करते हैं और जन्तुओं के लिए आवश्यक पदार्थों की सप्लाई पौधे करते हैं।
- इस प्रकार, प्रकृति का सीमित भण्डार ही लौट-फिरकर बार-बार जीवों द्वारा ही उपयोग में लाया जाता है।
- वास्तव में यह कभी समाप्त नहीं होता। बड़े जन्तु छोटे जन्तुओं को और छोटे जन्तु कीड़े मकोड़ों को खा सकते हैं, परन्तु देखा जाये तो जन्तु बड़ा हो या छोटा, इसका भोजन सीधे या घुमा-फिराकर हरी वनस्पतियों से ही प्राप्त होता है, क्योंकि प्रकृति में हरी वनस्पतियाँ ही ऐसी हैं जो पोषक पदार्थों का संश्लेषण कर सकती हैं।
- पौधों को स्वपोषी या ऑटोट्रॉफिक (autotrophic) तथा जन्तुओं को परपोषी या हिटरोट्रॉफिक (hetero trophic) इसीलिए कहा गया है क्योंकि हरे पौधों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में बनाए गए पदार्थों से स्वयं इनका, chlorophyll रहित पौधों का तथा समस्त जन्तुओं का पोषण होता है। इसीलिए, इन्हें जीव-जगत् के उत्पादक (producers) और जन्तुओं को उपभोक्ता (consumers) कहा जाता हैं।
- प्रकाश-संश्लेषण के लिए पौधे वायुमण्डल से जितनी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा भूमि से जितनी नाइट्रोजन एवं लवण लेते रहते हैं, उनकी पूर्ति क्रमशः जन्तुओं के श्वसन तथा मल-मूत्र एवं मृत शरीरों से होती रहती है।
- इसी प्रकार, जन्तु जितनी ऑक्सीजन (O2) और पोषक पदार्थ काम में लाते रहते हैं उसकी पूर्ति पौधों के प्रकाश-संश्लेषण से होती रहती है।
- पदार्थों के इसी चक्रीय उपभोग के कारण प्रकृति में इनकी कभी कमी नहीं पड़ती और जीवों को ये निरन्तर मिलते रहते हैं। इसी को प्रकृति का जैव-सन्तुलन कहते हैं।
- ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन (O2) की कुल मात्रा को हरे पौधे लगभग 2000 वर्षों में मुक्त करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की कुल मात्रा को लगभग 300 वर्षों में खपाते हैं।
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