कुल- क्रूसीफेरी (Cruciferae = Brassicaceae) लक्षण, उदाहरण,आर्थिक महत्त्व|hindi


कुल- क्रूसीफेरी (Family — Cruciferae = Brassicaceae) लक्षण, उदाहरण, आर्थिक महत्त्व 
कुल- क्रूसीफेरी (Cruciferae = Brassicaceae) लक्षण, उदाहरण,आर्थिक महत्त्व|hindi

कुल क्रूसीफेरी के लक्षण तथा उनके Floral formula का वर्णन इस प्रकार हैं-
  1. स्वभाव (Habit)— यह प्रायः एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाक पौधे होते हैं।
  2. मूल (Root)– इस कुल के पौधों में मूसला जड़ (tap root system) होती है।
  3. स्तम्भ (Stem) - इनका stem शाकीय, शाखीय, उच्छीर्ष (erect), ठोस, बेलनाकार, पर्वसन्धियाँ तथा पर्व (nodes and internodes) स्पष्ट होता है।
  4. पत्ती (Leaf) - पत्तियाँ सरल, एकान्तर मूलज (radical) या स्तम्भिक (cauline), प्राय: अभिन्न (entire), कभी-कभी पालिवत् (lobed), सवृन्त, अननुपर्णी, जालिकावत् शिराविन्यास, सरल सतह वाली होती है।
  5. पुष्पक्रम (Inflorescence) - असीमाक्ष (raceme) अथवा समशिखी असीमाक्ष (corymbose raceme), जैसे कैण्डीटफ्ट के पौधे में होता है।
  6. पुष्प (Flower)– असहपत्री, सपुष्पवृन्त, द्विलिंगी, प्रायः actinomorphic परन्तु कभी-कभी zygomorphic, अधोजाय (hypogynous), द्वितयी (dimerous) या चतुष्टयी (tetramerous), पूर्ण, नियमित होते हैं।
  7. बाह्यदलपुंज (Calyx) – इसके Calyx में 4 बाह्यदल, पृथक्बाह्यदली, दो एकान्तर भ्रमियों में, प्रत्येक भ्रमि में दो बाह्यदल होते हैं (in two alternate whorls of two sepals each), imbricate aestivation होते हैं तथा यह पर्णपाती होते हैं।
  8. दलपुंज (Corolla)– 4 दलीय, दलपुंज बाह्यदलों के एकान्तर एक भ्रमि में विन्यासित होते हैं। प्रत्येक दल दो भागों में विभाजित रहता है। दल का निचला भाग जो संकीर्ण होता है नखर (claw) कहलाता है तथा दल का बाहर की ओर निकला और फैला भाग दल फलक (limb) कहलाता है। इस प्रकार का विन्यास क्रूसीफेरी कुल का विशेष लक्षण है। इसे क्रॉसरूप विन्यास (cruciform arrangement) कहते हैं और इस प्रकार का दलपुंज क्रॉसरूप दलपुंज (cruciform corolla) कहलाता है। इनमें polypetalous तथा valvate aestivation होता है।
  9. पुमंग (Androecium) – 6 पुंकेसर, पृथक्पुंकेसरी (polyandrous), दो भ्रमियों में, चतुर्दीर्धी (tetradynamous), बाहरी दो पुंकेसर छोटे और पार्श्वस्थ, भीतरी चार बड़े तथा माध्यमिक तल में, परन्तु सेनेबिरा डाइडिमा (Senebiera didyma) में केवल दो पुंकेसर होते हैं। परागकोश द्विकोष्ठीय, आधारलग्न, अन्तर्मुखी, अनुलम्बीय स्फुटन।
  10. जायांग (Gynoecium) - द्विअण्डपी, युक्ताण्डपी, आरम्भ में एककोष्ठीय (unilocular), परन्तु बाद में कूटपट (pseudoseptum), जिसे रेप्लम (replum) कहते हैं, के बनने के कारण द्विकोष्ठीय (bilocular) हो जाते हैं।  अण्डाशय उत्तरवर्ती (superior), भित्तिलग्न बीजाण्डन्यास (parietal placentation) वाले होते हैं। प्रत्येक कोष्ठ में एक या एक से अधिक बीजाण्ड (ovules) होते हैं जिनमें वर्तिका एक, छोटी तथा वर्तिकाग्र दो पालियों वाली (bilobed stigma) होती है। इसके फल (Fruit) को सिलिक्यूआ (siliqua) या सिलिक्यूला (silicula) कहते हैं।

पुष्पसूत्र (Floral formula)

सरसों – Ebr ⊕ ⚥  K2+2  Cx4  A2+4  G(2)
केण्डीटफ्ट – Ebr %   K2+2  Cx4  A2+4  G(2)

वर्गीकृत स्थान(Systematic Position)

विभाग (Division) - फैनेरोगेमिया (Phanerogamia)
उपविभाग (Subdivision) - एन्जियोस्पर्मी (Angiospermae)
वर्ग (Class) - डाइकोटिलीडनी (Dicotyledonae)
उपवर्ग (Subclass) - पोलीपेटेली (Polypetalae)
श्रेणी (Series) - थैलेमीफ्लोरी (Thalamiflorae)
गण ( Order) - पैराइटेल्स (Parietales)
कुल (Family) - क्रूसीफेरी (Cruciferae)


आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)

(क) भोजन के काम आने वाले पौधे
  1. बेसिका ओलेरेसिया (Brassica oleracea) की कई उपजातियों (varieties) से गोभी प्राप्त होती है, जैसे Brassica oleracea var gemmifera (बटन गोभी), B. oleracea var capitata (पात गोभी=बन्द गोभी), B. oleracea var botrytis (Cauliflower=फूलगोभी) जिसका नवजात पुष्पक्रम खाया जाता है तथा B. oleracea var caulorapa (knol-khol=गाँठगोभी)। ये सभी प्रकार की गोभियाँ पकाकर शाक-भाजी के रूप में प्रयोग की जाती है।
  2. मूली (Raphanus sativus = radish) की जड़ तथा पत्ते, तथा शलजम (Brassica rapa = Turnip) की जड़ों से शाक-सब्जी बनायी जाती है।
  3. पीली सरसों (Brassica campestris) से खाद्य तेल निकाला जाता है तथा शेष बची खली पशुओं के भोजन में काम आती है। इसके अतिरिक्त काली सरसों (B. nigra), सफेद सरसों (B. alba), राई (B. juncea), मसालों में काम आती है।

(ख) औषधि प्रदान करने वाले पौधे
  1. बनारसी राई (Sisymbrium officinale) की पत्तियों तथा तने का प्रयोग स्कर्वी (scurvy) तथा स्क्रोफूला (scrofula) नामक रोगों में किया जाता है।
  2. तरहा (Nasturtium indica) के बीजों का प्रयोग दमें के रोग में किया जाता है।
  3. तारामीन (Eruca sativa) के तेल का प्रयोग जलने या अन्य प्रकार के घावों में किया जाता है।
  4. हालीमा (Lepidium sativum-garden cress) के बीजों का प्रयोग जिगर के रोगों में किया जाता है।

(ग) बगीचों में सजावट के लिये लगाए जाने वाले पौधे
  1. एलीसम (Alyssum)
  2. चेईरन्थस (Cheiranthus )
  3. केण्डीटफ्ट (Candytuft = Iberis amara)
  4. मेथिओला (Mathiola) 


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