जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes)

जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


जलोद्भिद पौधे बहुत अधिक जल वाले स्थानों पर पाये जाते हैं। जलोद्भिद पौधे पूर्णतया जल निमग्न (submerged) होते हैं अथवा इनके कुछ भाग, जैसे जड़ (root), प्रकंद (rhizome) आदि पानी के सम्पर्क में रहते हैं। जलीय पौधों में अनेक ऐसी विशेषताएँ अथवा अनुकूलन होते हैं जिनके कारण ही ये जल में रहने के लिये समर्थ होते हैं। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-



(A) जलोद्भिद पौधों में आकारिकीय अनुकूलन (Morphological Adaptations in Hydrophytes)


1. जड़ों (Roots) में अनुकूलन

1.  जलीय पौधों का शरीर जल के सम्पर्क में रहता है, जिससे जल अवशोषण के लिये जड़ों की आवश्यकता नहीं रह जाती है। अतः जड़ें बहुत कम विकसित या अनुपस्थित होती हैं, जैसे वॉल्फिया (Wolffia), सिरेटोफिल्लम (Ceratophyllum) आदि।

2.  जड़ें यदि उपस्थित हैं तो वे प्रायः रेशेदार (fibrous), अपस्थानिक (adventitious) छोटी तथा शाखाविहीन (unbranched) अथवा बहुत कम शाखीय होती हैं। लेम्ना (Lemna) में इनका कार्य केवल सन्तुलन (balancing) तथा तैरने में सहायता करना है।

3.  मूलरोम (root hairs) अनुपस्थित अथवा कम विकसित होते हैं।

4.  मूलटोप (root caps) प्रायः अनुपस्थित होती हैं। कुछ पौधों, जैसे समुद्रसोख (Eichhornia) तथा पिस्टिया (Pistia) में मूलगोप के स्थान पर एक अन्य रचना मूल-‍ -पॉकेट (root-pocket) होती है।

5.  सिंघाड़े (Trapa) की जड़ें स्वांगीकारक (assimilatory) होती हैं, अर्थात् हरी होने के कारण प्रकाश-संश्लेषण करती हैं।


जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


2. तनों (Stems) में अनुकूलन

1.  जल निमग्न पौधों में तने प्रायः लम्बे, पतले, मुलायम तथा स्पंजी होते हैं, जिससे पानी के बहाव के कारण इन्हें हानि नहीं होती है।

2.  स्वतन्त्र तैरक (free floating) पौधों में तना पतला होता है तथा जल की सतह पर क्षैतिज दिशा में तैरता है, जैसे एजोला (Azolla)। समुद्रसोख (Eichhornia) तथा पिस्टिया (Pistia) में तना छोटा, मोटा तथा स्टोलन के रूप में (stoloniferous) होता है।

3.  स्थिर तैरक (fixed floating) पौधों में तना, धरातल पर फैला रहता है, इसे प्रकंद (rhizome) कहते हैं। यह जड़ों द्वारा कीचड़ में स्थिर रहता है, जैसे जलकुम्भी (Nymphaea) तथा निलम्बियम (Nelumbium)।


जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


3. पत्तियों (Leaves) में अनुकूलन

1.  जल निमग्न पौधों में पत्तियाँ पतली होती हैं, वेलिसनेरिया (Vallisneria) में ये लम्बी तथा फीतेनुमा (ribbon shaped), पोटामाजेटोन (Potamogeton) में लम्बी, रेखाकार (linear) तथा सिरेटोफिल्लम (Ceratophyllum) में ये महीन तथा कटी-फटी होती हैं। तैरक पौधों की पत्तियाँ बड़ी, चपटी व पूर्ण होती हैं। जलकुम्भी (Nymphaea) की पत्ती की ऊपरी सतह पर मोमीय पदार्थ की पर्त (waxy coating) होती है तथा पर्णवृन्त लम्बे होते हैं तथा श्लेष्म से ढके रहते हैं।

2.  सिंघाडे (Trapa) तथा समुद्रसोख (Eichhornia) में पर्णवृन्त (petiole) फूला होता है तथा स्पंजी होता है।

3.  कुछ जलस्थली पौधों, जैसे सेजिटेरिया (Sagittaria), जलधनिया (Ranunculus) आदि में विषमपर्णी (heterophylly) दशा होती है। इसमें जल निमग्न पत्तियाँ अधिक लम्बी तथा कटी-फटी होती हैं, जल की सतह पर तैरने वाली पत्तियाँ अथवा वायवीय पत्तियाँ चौड़ी व पूर्ण होती हैं। यह अनुकूलन प्रकाश प्राप्ति के लिये होता है। जल निमग्न पौधों की कटी-फटी पत्तियाँ अधिक प्रकाश ग्रहण करने का प्रयास करती हैं।

जलोद्भिद पौधे (Hydrophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


(4) पुष्प व बीज (Flowers and seeds)

जल निमग्न पौधों में प्रायः पुष्प उत्पन्न नहीं होते हैं। जहाँ पर पुष्प उत्पन्न होते हैं, उनमें बीज नहीं बनते है।



(B) जलोद्भिद पौधों में शारीरिकीय अनुकूलन (Anatomical Adaptations in Hydrophytes)


जलीय पौधों के विभिन्न भागों की आन्तरिक रचना (शारीरिकी) में निम्न विशेषताएँ या अनुकूलन पाये जाते हैं-

1.  बाह्यत्वचा ( Epidermis) – बाह्यत्वचा प्रायः parenchyma कोशिकाओं की बनी इकहरी पर्त के रूप में होती है। इस पर उपत्वचा (cuticle) नहीं होती है, परन्तु तैरने वाली पत्तियों की ऊपरी बाह्यत्वचा पर मोमीय पर्त (जैसे जलकुम्भी - (Nymphaea) अथवा रोमिल पर्त (जैसे साल्विनिया - Salvinia) होती है। बाह्यत्वचा की कोशिकाओं में प्रायः पर्णहरिम (chlorophyll) पाया जाता है। टाइफा (Typha) में बाह्यत्वचा पर cuticle की एक पर्त होती है।

2.  रन्ध्र (Stomata) – जल निमग्न पौधों में रन्ध्र प्रायः अनुपस्थित होते हैं। तैरक पौधों में रन्ध्र प्रायः पत्ती की ऊपरी सतह तक ही सीमित रहते हैं; जबकि जलस्थलीय पौधों की जल से बाहर निकली पत्तियों में रन्ध्र दोनों सतहों पर होते हैं।

3.  अधस्त्वचा (Hypodermis) — जल निमग्न पौधों, जैसे हाइड्रिला (Hydrilla) तथा पोटामाजेटोन (Potamogeton) के तनों में अधस्त्वचा (subcutaneous) अनुपस्थित होती है, यद्यपि कुछ तैरक पौधों व जलस्थलीय (amphibious) पौधों में यह मोटी भित्ति वाली मृदूतकीय कोशिकाओं के रूप में अथवा स्थूलकोण ऊतक के रूप में होती है।

4.  यान्त्रिक ऊतक (Mechanical tissue) -  जलोद्भिदों में यान्त्रिक ऊतक प्रायः अनुपस्थित अथवा बहुत कम विकसित होता है।

5.  वल्कुट (Cortex) – जड़ व तनों में वल्कुट (cortex) सुविकसित होता है तथा पतली भित्ति की parenchyma कोशिकाओं का बना होता है। वल्कुट (cortex) के अधिकांश भाग में बड़ी-बड़ी वायु-गुहिकाएँ (air cavities) उत्पन्न हो जाती हैं। इस ऊतक को वायूतक (aerenchyma) कहते हैं। वायु-गुहिकाओं में भरी वायु के कारण, गैसीय विनिमय सुलभ हो जाता है, पौधे हल्के हो जाते हैं, ताकि पानी में ठहर सकें। इसके अतिरिक्त यह अंगों के मुड़ने के तनाव का प्रतिरोध (resistance to bending stress) करता है।

6.  पत्तियों में पर्णमध्योतक (Mesophyll tissue in leaves) – जल निमग्न पत्तियों में पर्णमध्यक   undifferentiated होता है। तैरक पत्तियों, जैसे जलकुम्भी (Nymphaea) में यह खम्भ ऊतक (palisade tissue)स्पंजी मृदूतक (spongy parenchyma) में भिन्नित होता है, इसमें बड़ी वायु-गुहिकाएँ (air cavities) भी पायी जाती हैं।

7.  संवहन बण्डल (Vascular bundles) - संवहन ऊतक कम विकसित होता है। जल निमग्न पौधों में यह कम भिन्नित होता है। जाइलम में प्रायः वाहिकाएँ (tracheids) ही उपस्थित होती हैं, वाहिनिकाएँ (vessels) कम होती हैं। यद्यपि जलस्थलीय (amphibious) पौधों में संवहन बण्डल अपेक्षाकृत अधिक विकसित तथा जाइलम व फ्लोएम में भिन्नित होते हैं।


(C) अन्य अनुकूलन (Other Adaptations)

1.  जलीय पौधे प्रायः बहुवर्षीय (perennials) होते हैं।

2.  अधिकतर जलीय पौधों में भोजन प्रायः प्रकन्दों (rhizomes) में संचित रहता है।

3.  अधिकांश जलीय पौधों में vegetative reproduction तीव्रता से होता है।

4.  जलीय पौधों में द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) नहीं होती है।

5.  जलीय पौधों में पूर्ण शरीर पर श्लेष्मिक आवरण होता है, जिससे पौधे पानी में गल नहीं पाते हैं।


कुछ जलोद्भिद पौधों के शारीरिकीय लक्षण bazariba (Anatomical Characters of some Hydrophytes)


1. हाइड्रिला (Hydrilla)

यह जल की सतह से नीचे जड़ों द्वारा स्थिर एक जल निमग्न (submerged) पौधा है जिसमें जड़ें अविकसित, तना लम्बा, शाखीय, कोमल तथा कमजोर एवं पत्तियाँ चक्रीय (whorled), पतली तथा लम्बी होती हैं। इनके शारीरिक लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं-

  • इनमें उपत्वचा (cuticle) अनुपस्थित अथवा कम विकसित होती है।
  • रन्ध्र (stomata) अनुपस्थित होते हैं।
  • बाह्यत्वचा की कोशाओं में पर्णहरिम (chlorophyll) होता है।
  • पर्णमध्योतक ऊतक (mesophyll tissue), खम्भ (palisade) तथा स्पंजी (spongy) ऊतकों में विभाजित नहीं होते हैं।
  • वल्कुट (cortex) बहुस्तरीय तथा इसमें वायु-स्थान (air spaces) अधिक होते हैं।
  • यान्त्रिक ऊतक (mechanical tissue) का अभाव अधिक होता है।


2. समुद्रसोख (Eichhornia)

यह एक स्वतन्त्रतापूर्वक तैरने वाला पौधा है जिसमें लम्बी तथा घनी स्पंजी पत्तियाँ और छोटा तना तथा जड़ों में मूल पॉकेट होती है जिनका कार्य जड़ के अग्र भाग की रक्षा करना है। इसके शारीरिकीय (anatomical) लक्षण निम्न प्रकार हैं -

  • पत्ती की ऊपरी सतह पर प्रायः रन्ध्र होते हैं तथा पत्तियों के पर्णवृन्त (petioles) फूले हुए तथा स्पंजी होते हैं।
  • बाह्यत्वचा पर उपत्वचा (cuticle) नहीं होती है। यह Mesophyll खम्भ एवम् स्पंजी मृदूतक में विभाजित अथवा भिन्नित नहीं होता है।
  • बड़े-बड़े वायु-स्थान काफी संख्या में होते हैं तथा यान्त्रिक ऊतकों (mechanical tissues) का अभाव होता है।
  • द्वितीयक वृद्धि तथा कोशाओं में लिग्निन के जमाव (lignification) का अभाव होता है। इनमें ट्राइकोस्क्लेरीड्स (trichosclereids) होते हैं।


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