शुष्कोद्भिद् पौधे (Xerophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


शुष्कोद्भिद् (मरुद्भिद्) पौधे (Xerophytes) 

शुष्कोद्भिद् पौधे (Xerophytes) : परिभाषा, अनुकूलन, उदाहरण|hindi


शुष्कोद्भिद् पौधे शुष्क वासस्थानों (xeric habitats) पाये जाने वाले पौधे हैं। ऐसे वातावरण में भूमि में या तो जल वास्तव में उपस्थित ही नहीं होता या बहुत कम होता है। इसको भौतिक शुष्कता (physical dryness) कहते हैं। कभी-कभी जल तो पर्याप्त मात्रा में होता है, परन्तु कई कारणों से पौधा उसको अवशोषित नहीं कर सकता है। इसको कार्यिकीय शुष्कता (physiological dryness) कहते हैं।


वायु में आर्द्रता का अभाव, वायु की तेजी, तापक्रम की उच्चता, प्रकाश की अधिकता तथा उपरोक्त दोनों प्रकार की शुष्कताएँ सभी मिलकर वातावरण को शुष्क बना देते हैं। अतः मरुद्भिदों में इस प्रकार के अनुकूलन या विशेषताएँ उत्पन्न होती हैं, जिनके कारण पौधे मृदा से अधिक जल का अवशोषण करते हैं, वाष्पोत्सर्जन की क्रिया को नियन्त्रित करके पानी की हानि को रोकते हैं तथा जल की अधिक से अधिक मात्रा का संचय करते हैं। इन अनुकूलनों के कारण ही पौधे शुष्क वातावरणीय दशाओं अथवा जल की कमी वाले स्थानों पर रहने के लिए सक्षम (capable) होते हैं। इनमें होने वाले यह अनुकूलन या विशेषताएँ अग्रलिखित हैं —



(A) शुष्कोद्भिद् पौधों में आकारिकीय अनुकूलन (Morphological Adaptations in Xerophytes)


(1) जड़ों (Roots) में अनुकूलन


  • मरुद्भिों में जड़ तंत्र अधिक विकसित होता है। जड़ें लम्बी, शाखीय तथा भूमि में अधिक गहराई तक फैली होती हैं, ताकि अधिक से अधिक जल (विशेष रूप से भूमि की गहराई से) अवशोषित कर सकें। एल्फल्फा (Alfalfa) पौधे की जड़ें लगभग 130 फीट गहराई तक पहुँच जाती हैं।
  • जड़ों में मूलरोम (root hairs) व मूलगोप (root caps) भली प्रकार विकसित होते हैं। नागफनी (Opuntia) में जड़ के शीर्ष पर भी रोम होते हैं।
  • कभी-कभी जड़ें माँसल होकर जल संचय भी करती हैं, जैसे एस्पेरेगस (Asparagus)।


(2) तनों (Stems) में अनुकूलन


  • अधिकांश पौधों में तना प्रायः छोटा, काष्ठीय, शुष्क, कठोर तथा मोटी छाल से ढका होता है।
  • कुछ पौधों में तना घटकर बल्ब का रूप ले लेता है, जैसे हाथीचिंघाडा (Agave)।
  • कभी-कभी तना चौड़ा व माँसल हो जाता है और पत्तियों का कार्य करता है, जिसे पर्णकाय स्तम्भ (phylloclade) कहते हैं। पर्णकाय स्तम्भ में एक से अधिक पर्व (nodes) तथा पर्वसन्धियाँ (internodes) होती हैं, जैसे नागफनी (Opuntia) तथा रसकस (Ruscus)। कुछ पौधों जैसे एस्पेरेगस (Asparagus) में इस प्रकार के तने में केवल एक पर्व होता है, इसे पर्णाभ पर्व (cladode) कहते हैं।

(3) पत्तियों (Leaves) में अनुकूलन


पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया को कम करने के लिये पत्तियों में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ उत्पन्न हो जाती हैं -
  • कुछ पौधों में पत्तियाँ काफी छोटी होती हैं। नागफनी (Opuntia) में ये काँटों में रूपान्तरित हो जाती हैं। ऐकेसिया मिलेनोजाइलॉन (Acacia melanoxylon) तथा पार्किन्सोनिया ऐक्यूलिएटा (Parkinsonia aculeata) में पर्णवृन्त चपटा तथा हरा होकर पर्णफलक के समान प्रतीत होता है और प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है। इसे पर्णाभ वृन्त (phyllode) कहते हैं।
  • कभी-कभी पत्तियाँ माँसल हो जाती हैं और जल संग्रह का कार्य करती हैं, जैसे घीक्वार (Aloe), यक्का (Yucca), आदि। ऐसे गूदेदार पत्तियों वाले पौधों को मृदुपर्णी मरुद्भिद् (malaco phyllous xerophytes) कहते हैं।
  • पत्तियों की सतह प्रायः चिकनी व चमकदार होती है, ताकि जिससे वे प्रकाश किरणों तथा ऊष्मा (heat) को परावर्तित (reflect) कर सकें।



(B) शुष्कोद्भिद् पौधों में शारीरिकीय अनुकूलन (Anatomical Adaptations in Xerophytes)


मरुद्भिद् पौधों के विभिन्न भागों की शारीरिकी में निम्न विशेषताएँ या अनुकूलन होते हैं -

1.  बाह्यत्वचा (Epidermis) –बाह्यत्वचा पूर्ण विकसित होती है। यह मोटी भित्ति की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती है। कनेर (Nerium) की पत्ती में यह बहुस्तरीय (multilayered) होती है। बाह्यत्वचा पर उपत्वचा (cuticle) का मोटा स्तर होता है। कुछ पौधों के तनों व पत्तियों की ऊपरी सतहों पर मोमीय परत भी चढ जाती है, जैसे केपेरिस (Capparis) में। ये सभी अनुकूलन वाष्पोत्सर्जन कम करते हैं।

2.  रन्ध्र (Stomata) - बाह्यत्वचा में रन्ध्र संख्या में कम होते हैं, ये प्रायः गहरे गड्ढों में (sunken stomata) उपस्थित होते हैं, जैसे कनेर (Nerium), कैजुराइना (Casuarina) तथा इफेड्रा (Ephedra) आदि में। पत्तियों में रन्ध्र प्रायः निचली सतह पर ही पाये जाते हैं।

3.  अधस्त्वचा (Hypodermis) - तने में बाह्यत्वचा के नीचे दृढ़ोतक की बनी (sclerenchymatous) बहुस्तरीय अधस्त्वचा होती है।

4.  यान्त्रिक ऊतक (Mechanical tissue) –यान्त्रिक ऊतक पूर्ण विकसित होता है तथा अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होता है।

5.  पर्णमध्योतक (Mesophyll tissue) – पत्तियों में पर्णमध्योतक, खम्भ ऊतक व स्पंजी मृदूतक में भिन्नित होता है।

6.  वल्कुट (Cortex) - यह मृदूतक कोशिकाओं का बना होता है। कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशीय स्थान बहुत कम होता है।

7.  संवहन ऊतक (Vascular tissue) - संवहन ऊतक सुविकसित होता है। जाइलम ऊतक की कोशिकाओं पर लिग्निन का अधिक जमाव रहता है। संवहन बण्डल चारों ओर से बहुस्तरीय बण्डल आच्छद (bundle sheath) द्वारा घिरे रहते हैं। कनेर की पत्ती में मध्यशिरा क्षेत्र के बड़े संवहन बण्डल के अतिरिक्त अन्य अनेक संवहन बण्डल भी होते हैं।

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(C) अन्य अनुकूलन (Other Adaptations)


1.  कुछ मरुस्थलीय घासों में हाइड्रोकेसी (hydrochasy) का एक विशेष गुण होता है। पत्तियों की बाह्यत्वचा में बुलीफॉर्म कोशाएँ (bulliform cells) होती हैं। बहुत अधिक शुष्क परिस्थितियों में ये कोशिकाएं अधिक जल वाष्पन के कारण संकुचित होती हैं जिससे पत्तियाँ ऊपर से अन्दर की ओर मुड़कर लिपट जाती हैं। रन्ध्र बन्द हो जाते हैं तथा पत्ती के अन्दर आ जाते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन रुक जाता है, जैसे ऐमोफिला (Ammophila), एग्रोपाइरॉन (Agropyron) आदि।

2.  कुछ पौधों की कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित गोंद (gum), रेजिन (resin) तथा म्यूसिलेज (mucilage) आदि भी वाष्पोत्सर्जन द्वारा पानी की हानि को कम करते हैं।

3.  अनेक शुष्कोद्भिद् पौधों में कॉर्क (cork) का निर्माण होता है, जो वाष्पोत्सर्जन को कम करने का साधन है। 

4.  माँसल शुष्कोद्भिदों में जल संचय की क्षमता होती है। इसके लिये इनमें विशेष जल संचयी ऊतक (water storage tissue) होते हैं। इनकी कोशिकाओं में स्थित म्यूसिलेज जल को संचित करता है।

5.  कोशिकाएं छोटी तथा कम रिक्तिकाओं वाली होती हैं। रिक्तिका रस की परासरणी सान्द्रता (osmotic concentration) काफी अधिक पायी जाती है।


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