विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) : परिचय, उदाहरण|hindi


विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) : परिचय, उदाहरण

विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) : परिचय, उदाहरण|hindi

ओस्टेंड ने सन् 1820 में यह आविष्कार किया था कि जब किसी चालक में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। फैराडे ने यह विचार दिया कि इसका विपरीत प्रभाव भी पाया जाना चाहिये अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र से वैद्युत धारा उत्पन्न हो जानी चाहिये। इसकी खोज में सन् 1831 में फैराडे ने इंग्लैंड में तथा लगभग उसी समय हैनरी ने अमेरिका में अनेक प्रयोग किये। फैराडे के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं :

प्रयोग 1 : नीचे चित्र में तार की एक कुण्डली के दोनों सिरे एक धारामापी में जुड़े हैं। जब हम छड़-चुम्बक के उत्तरी ध्रुव (N) को कुण्डली की ओर को चलाते हैं तो धारामापी में एक क्षणिक विक्षेप होता है। इससे पता चलता है कि चुम्बक की गति से कुण्डली में वैद्युत धारा प्रवाहित होती है। चुम्बक को कुण्डली से दूर ले जाने पर धारामापी में क्षणिक विक्षेप विपरीत दिशा में होता है (चित्र b) अर्थात् अब कुण्डली में धारा पहले से विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है।

विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) : परिचय, उदाहरण|hindi


इसी प्रकार, यदि चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव (S) को कुण्डली के समीप लायें अथवा दूर हटायें तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप पहले से विपरीत दिशाओं में होते हैं (चित्र c तथा d)।

धारामापी में विक्षेप केवल तब तक होता है जब तक कि चुम्बक गतिशील है। चुम्बक के रुकते ही विक्षेप भी लुप्त हो जाता तह अर्थात् धारा बन्द हो जाती है।

यदि चुम्बक को स्थिर रखकर कुण्डली को चुम्बक की ओर लायें अथवा चुम्बक से दूर ले जाये तब भी धारामापी में उसी प्रकार विक्षेप होते हैं। इससे यह पता चलता है कि कुण्डली में धारा कुण्डली तथा चुम्बक के बीच "सापेक्ष" गति से उत्पन्न होती इसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता कि चुम्बक गतिशील हैं अथवा कुण्डली ।

चुम्बक अथवा कुण्डली को जितनी तेजी से चलाया जाता है धारामापी में उतना ही अधिक विक्षेप होता है अर्थात् धारा उतनी ही अधिक प्रबल होती है।

यदि कुण्डली में फेरों की संख्या बढ़ा दें अथवा कुण्डली के भीतर नर्म लोहे की छड़ रख दें तो भी धारा की प्रबलता बढ़ जाती है ।


फैराडे के प्रयोगों की व्याख्या : फैराडे ने इस प्रयोग की व्याख्या चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन के आधार पर की।
जब एक कुण्डली को किसी चुम्बक से कुछ दूरी पर रखते हैं तो चुम्बक की फ्लक्स रेखाओं की एक निश्चित संख्या कुण्डली में से होकर गुजरती है। यदि चुम्बक तथा कुण्डली में से किसी एक को चलायें तो कुण्डली में से होकर गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं की संख्या (चुम्बकीय फ्लक्स) में परिवर्तन होने लगता है। कुण्डली को चुम्बक के समीप लाने पर कुण्डली में से गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं की संख्या बढ़ने लगती है तथा दूर ले जाने पर घटने लगती है। इसी फ्लक्स-परिवर्तन के कारण कुण्डली में एक वि० वा० ब० (विद्युत वाहक बल) स्थापित होता है तथा धारा प्रवाहित होती है। इस वि० वा० ब० को 'प्रेरित वि० वा० ब०' (induced e. m. f.) तथा धारा को 'प्रेरित धारा' (induced current) कहते हैं। चुम्बकीय फ्लक्स परिवर्तन के कारण वि० वा० - ब० के प्रेरित होने की घटना को 'विद्युतचुम्बकीय प्रेरण' कहते हैं।

विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) : परिचय, उदाहरण|hindi


प्रयोग 2 : इसमें दो कुण्डलियाँ एक दूसरे के समीप रखी हैं। पहली कुण्डली के सिरों को सेल व कुंजी से तथा दूसरी के सिरों को धारामापी से जोड़ा गया है। जब कुंजी को दबाकर पहली कुण्डली में धारा प्रवाहित करते हैं तो दूसरी कुण्डली से जुड़े धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है। इसका कारण यह है कि कुंजी दबाने पर पहली कुण्डली में धारा प्रारम्भ होती है जिससे चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र की चुम्बकीय फ्लक्स रेखायें दूसरी कुण्डली में से भी गुजरती हैं। इस प्रकार, कुंजी दबाने पर दूसरी कुण्डली में चुम्बकीय फ्लक्स शून्य से एक निश्चित मान तक बढ़ता है। चुम्बकीय फ्लक्स में होने वाले इस परिवर्तन के दौरान दूसरी कुण्डली में वि० वा० ब० प्रेरित होता है तथा धारा प्रवाहित होती है। अतः धारामापी में एक क्षणिक विक्षेप होता है।

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इसी प्रकार, जब कुंजी को छोड़ते हैं तो पहली कुण्डली में धारा बन्द हो जाती है तथा दूसरी कुण्डली में चुम्बकीय फ्लक्स घट कर शून्य हो जाता । अब पुनः दूसरी कुण्डली में क्षणिक विक्षेप विपरीत दिशा में होता है।

यदि हम कुंजी को देर तक दबायें रहें तो विक्षेप शून्य बना रहेगा क्योंकि धारा केवल फ्लक्स-परिवर्तन के दौरान प्रेरित होती है।


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