द्वितीयक वृद्धि (SECONDARY GROWTH) : परिचय, वर्णन|hindi


द्वितीयक वृद्धि (SECONDARY GROWTH) : परिचय, वर्णन
द्वितीयक वृद्धि (SECONDARY GROWTH) : परिचय, वर्णन|hindi

बहुवर्षीय पौधों में प्राथमिक ऊतियों (primary tissues) के पूर्णरूप से बन जाने के बाद एधा (cambium) सक्रिय हो जाता है। यह रम्भ (stele) के अन्दर द्वितीयक कोशिकाएं बनाना प्रारम्भ कर देता है जो द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) में भिन्नित हो जाती है। इसके साथ शीघ्र ही रम्भ (stele) के बाहर विभज्योतक (meristem) आ जाते है जिसको कॉर्क कैम्बियम (cork cambium) कहते हैं। यह कॉर्क (cork) तथा द्वितीयक वल्कुट (secondary cortex) का निर्माण करता है। इस प्रकार रम्भ (stele) के अन्दर तथा रम्भ के बाहर क्रमशः कैम्बियम तथा कॉर्क कैम्बियम द्वारा द्वितीयक ऊतकों (secondary tissues) के निर्माण के कारण तने तथा जड़ की मोटाई बढ़ जाती है। इसे द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं।


द्विबीजपत्री तनों में द्वितीयक वृद्धि (SECONDARY GROWTH IN DICOT STEMS)

एक साधारण द्विबीजपत्री तने में द्वितीयक वृद्धि निम्नलिखित विधि से होती है—

1. एधा या कैम्बियम वलय का निर्माण (Formation of cambium ring)

द्विबीजपत्री तनों में संवहन बण्डल बहि: फ्लोएमी (collateral), खुले (open) और एक घेरे में व्यवस्थित होते हैं। संवहन बण्डल में जाइलम तथा फ्लोएम के बीच कैम्बियम पाया जाता है। इस कैम्बियम को पूलीय (fascicular) अथवा अन्तःपूलीय (intrafascicular) कैम्बियम कहते हैं। कैम्बियम के साथ-साथ मध्यक किरणों (medullary rays) की कुछ कोशाएँ भी सक्रिय होकर अन्तरापूलीय (interfascicular) कैम्बियम बनाती हैं। ये दोनों प्रकार के कैम्बियम एक-दूसरे से संयुक्त होकर एक घेरे का निर्माण करते हैं जिसे कैम्बियम वलय (cambium ring) कहते हैं।

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2. रम्भ के अन्दर स्थित कैम्बियम वलय से द्वितीयक ऊतकों का निर्माण (Formation of Secondary Tissues by Stelar Cambium Ring)

कैम्बियम की आयताकार जीवित कोशाएँ जीवद्रव्य से भरपूर होती हैं और सदैव स्पर्श रेखीय समतल (tangential plane) (बाह्यत्वचा के समानान्तर) में विभाजित होती हैं। प्रत्येक कोशिका दो पुत्री कोशिकाओं में विभाजित होती है। इनमें से एक पुत्री कोशिका विभज्योतकी (meristematic) बनी रहती है तथा दूसरी पुत्री कोशिका स्थायी ऊतक (permanent tissue) बनाती है। स्थिति के अनुसार यदि स्थायी ऊतक बनाने वाली कोशिका बाहर की ओर स्थित होती है तो यह फ्लोएम बनाती है और यदि यह भीतर की ओर होती है तो जाइलम बनाती है। कैम्बियम की कोशिकाएं इस प्रकार निरन्तर विभाजित होकर अपने दोनों ओर द्वितीयक ऊतक (द्वितीयक जाइलम तथा द्वितीयक फ्लोएम) का निर्माण करती रहती हैं। साधारणतया द्वितीयक फ्लोएम की अपेक्षा द्वितीयक जाइलम अधिक मात्रा में बनता है। इस कारण एधा वलय (cambium ring) की परिधि की ओर खिसकता रहता है। एधा वलय बहुत समय तक क्रियाशील रहता है। नये द्वितीयक जाइलम और द्वितीयक फ्लोएम के निर्माण के कारण प्राथमिक (primary) जाइलम और फ्लोएम जो अब तक एक-दूसरे के समीप थे, दूर हो जाते हैं और तने की मोटाई बढ़ जाती है।

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द्वितीयक ऊतक (Secondary Tissues)

(क) द्वितीयक फ्लोएम (Secondary phloem) – द्वितीयक फ्लोएम में चालनी कोशाएँ (sieve tubes), सह-कोशाएँ (companion cells), फ्लोएम मृदूतक (phloem parenchyma) तथा कभी-कभी बास्ट तन्तु (bast fibres) बनते हैं। प्राथमिक फ्लोएम कुचल जाता है तथा सक्रिय नहीं रहता।

(ख) द्वितीयक जाइलम (Secondary xylem) —द्वितीयक जाइलम में सोपानवत् (scalariform) तथा गर्ती (pitted). वाहिकाएँ (vessels), वाहिनिकाएँ (tracheids), काष्ठ तन्तु (wood fibres) और जाइलम मृदूतक (xylem parenchyma) पाये जाते हैं। ये द्वितीयक ऊतक, प्राथमिक ऊतकों के समान होते हैं। प्राथमिक जाइलम पिथ की ओर चला जाता है।

जाइलम तथा फ्लोएम किरणें (Xylem and phloem rays) — कहीं-कहीं पर कैम्बियम द्वारा बनी कोशिकाएं जाइलम तथा फ्लोएम का रूप ग्रहण नहीं करती। ये मृदूतक कोशिकाओं की तरह रहती हैं। ये कोशिकाएं एक पूरी पट्टियों के रूप में कैम्बियम से होती हुई जाइलम और फ्लोएम में चली जाती है और इस प्रकार क्रमबद्ध (continuous) संवहन तंत्र (conducting system) का निर्माण करती हैं। इन लम्बी पट्टियों को द्वितीयक मज्जा रश्मियाँ (secondary medullary rays) कहते हैं। ये किरणें अरीय (radial) रूप में विन्यासित configured रहती हैं। primary medullary rays तथा secondary medullary rays भोज्य पदार्थ तथा जल को परिधि की ऊतियों तक पहुँचाती हैं।

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कैम्बियम वलय (cambium ring) में दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं — रश्मि प्रारम्भिक (ray initials) कोशिकाएं तथा फ्यूजीफॉर्म प्रारम्भिक (fusiform initials) कोशिकाएंरश्मि प्रारम्भिक कोशिकाओं से द्वितीयक मज्जा रश्मियों (secondary medullary rays) का निर्माण होता है तथा फ्यूजीफॉर्म प्रारम्भिक कोशाओं से द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम बनते हैं।


वार्षिक वलय (Annual rings) अथवा वृद्धि वलय (Growth rings) — बहुवर्षी (perennial) पौधों के तनों में द्वितीयक जाइलम की परतें संकेन्द्रित (concentric) रूप में बनती हैं। एक अनुप्रस्थ काट में ये rings के रूप में दिखलायी पड़ती हैं। इनको वार्षिक वलय (annual rings) अथवा वृद्धि वलय (growth rings) कहते हैं।

अन्तःकाष्ठ (Heart wood) तथा रस काष्ठ (Sap wood) — तने के पुराने भाग अथवा केन्द्रीय भाग में टैनिन तथा अन्य पदार्थों के कारण यह भाग कठोर हो जाता है। इस भाग को अन्तःकाष्ठ (Heart wood) अथवा डूरेमेन (duramen) कहते हैं। द्वितीयक वृद्धि के साथ-साथ प्रतिवर्ष अन्तःकाष्ठ की मात्रा बढ़ती जाती है। यह भाग टैनिन, गोंद, तेल तथा रेजिन के कारण गहरे बादामी रंग का दिखलायी पड़ता है। इसका मुख्य कार्य दृढ़ता प्रदान करना है । द्वितीयक काष्ठ का परिधि वाला भाग हल्के रंग का होता है। इस भाग को रस काष्ठ (sap wood) अथवा एलबर्नम (alburnum) कहते हैं। यही भाग जल तथा खनिज लवणों को पत्तियों तक पहुँचाने का कार्य करता है। कभी-कभी पौधों के तने खोखले (hollow hearted) हो जाते हैं। इससे उनकी वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि जल का संवहन रस काष्ठ (sap wood) द्वारा होता रहता है।
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टाइलोसिस (Tyloses) — बहुत-से पौधों में जाइलम वाहिकाओं (xylem vessels) में गुब्बारे सदृश (balloon like) फूली हुई outgrowths बन जाती हैं, इन्हें टाइलोसिस कहते हैं। साधारणतया ये रचनाएँ द्वितीयक जाइलम की वाहिकाओं में उत्पन्न होती हैं तथा वाहिका गुहा को लगभग बन्द कर देती हैं। टाइलोसिस का निर्माण जाइलम मृदूतक की भित्ति के गर्त (pits) से होकर वाहिका की गुहा में फूल जाने से होता है। जाइलम मृदूतक कोशिकाओं का केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य इस गुब्बारे सदृश रचना–टाइलोसिस में चला जाता है। पूर्ण विकसित टाइलोसिस में मण्ड, स्फट, रेजिन, गोंद तथा अन्य पदार्थ पाये जाते हैं। साधारणतया टाइलोसिस की भित्ति पतली एवं झिल्लीवत् (membranous) होती है। एक वाहिका में एक से अधिक टाइलोसिस भी उत्पन्न हो जाती हैं। टाइलोसिस अन्तःकाष्ठ में पायी जाती हैं और उसकी आयु बढ़ाती हैं।
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सरन्ध्री (Porous) तथा अरन्ध्री (Non-porous) काष्ठ — किसी द्विबीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट में द्वितीयक जाइलम में वाहिकाएँ (vessels) बड़े छिद्रों के समान दिखाई देती हैं। वाहिकाओं के अतिरिक्त अन्य ऊतक समान माप का होता है। इस प्रकार के द्वितीयक जाइलम को सरन्ध्री काष्ठ (porous wood) कहते हैं। अनावृतबीजी (gymnosperms) पौधों जैसे चीड़ (Pinus) में वाहिकाओं का अभाव होता है । इस प्रकार के द्वितीयक जाइलम को अरन्ध्री काष्ठ (non-porous wood) कहते हैं।

3. काग एधा से रम्भ के बाहर द्वितीयक ऊतकों का निर्माण (Formation of Secondary Tissues by Cork Cambium in Extrastelar Regions)

रम्भ (stele) के अन्दर स्थित एधा वलय की सक्रियता के कारण तना मोटाई में बढ़ता रहता है। बहुत-से काष्ठीय पौधों में बाह्यत्वचा कुछ स्थानों पर फट जाती है और कुछ नये ऊतकों का निर्माण हो जाता है। इन नये ऊतकों को परिचर्म (periderm) कहते हैं। परिचर्म तीन परतों का बना होता है।


(i) कागजन (Phellogen) अथवा काग एधा (Cork cambium) — यह विभज्योतकी (meristematic) कोशिकाओं का बना होता है।

(ii) फेलेम (Phellem) अथवा काग (Cork) — इसमें कागजन (phellogen) द्वारा बाहर की ओर काटी गयी कोशाएँ होती हैं।

(iii) फेलोडर्म (Phelloderm) अथवा द्वितीयक वल्कुट (Secondary cortex) — इसमें कागजन (phellogen) द्वारा अन्दर की ओर काटी गयी कोशाएँ होती हैं।

ऊपर दी गयी तीनों परतों का निर्माण एवं लक्षण निम्नलिखित हैं-

(i) काग एधा (Cork cambium) अथवा फेलोजन (Phellogen) (Phellos=cork, gen= producing) — कॉर्क कैम्बियम की कोशिकाएं स्थायी ऊतकों से बनती हैं। अधिकतर पौधों में इसका निर्माण अधस्त्वचा (hypodermis) से होता है । परन्तु कुछ पौधों में यह दूसरे भागों से बन सकती है जैसे सेब में बाह्यत्वचा से, क्लीमेटिस में परिरम्भ से तथा वाइटिस में फ्लोएम से। ये कोशिकाएं अनुप्रस्थ काट में देखने पर आयताकार (rectangular) दिखलायी देती हैं और अरीय ढंग से एक दूसरे सटी रहती हैं। काग एधा पार्श्व विभज्योतक (lateral meristem) तथा द्वितीयक विभज्योतक (secondary meristem) है। इसकी कोशिकाएं बाह्यत्वचा के समानान्तर विभाजित होती हैं और दोनों ओर नये ऊतक बनाती हैं।


(ii) फेलेम (Phellem) अथवा काग (Cork) — cork  cambium बाहर की ओर cork का निर्माण करता है। ये कोशिकाएं आयताकार (rectangular) होती हैं तथा अरीय पंक्तियों में विन्यासित रहती हैं। इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान नहीं होते। परिपक्व होने पर इनका जीवद्रव्य समाप्त हो जाता है और इन कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इनकी कोशिकाएं मोटी भित्ति वाली तथा सुबेरिनयुक्त (suberized) होती हैं। इस कारण ये जल के लिये अपारगम्य (impermeable) हो जाती हैं। बोतलों में लगाने वाली कॉर्क क्वेर्कस सुबर (Quercus suber) नामक वृक्ष से उत्पन्न होती हैं।

(iii) द्वितीयक वल्कुट (Secondary cortex) या फेलोडर्म (Phelloderm) — ये cork cambium द्वारा अन्दर की ओर उत्पन्न हुई मृदूतक (parenchyma) कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं के मध्य में अन्तराकोशीय स्थान होते हैं। प्रत्येक कोशिका में क्लोरोप्लास्ट पाये जाते हैं। इसलिये ये प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण करती हैं।


बार्क (Bark) अथवा छाल — कैम्बियम के बाहर की ओर स्थित सभी कोशिकाएं मिलकर पौधों की छाल बनाती हैं। छाल एक घेरे में पायी जाती हैं। तरुण तने की छाल में परिचर्म (periderm), प्राथमिक वल्कुट (primary cortex), परिरम्भ (pericycle), प्राथमिक तथा द्वितीयक फ्लोएम (primary and secondary phloem) सम्मिलित होते हैं।

यद्यपि अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार छाल अथवा बार्क में ऊपर दिये गये विवरण के अनुसार सभी ऊतक आते हैं। परन्तु प्रायः बार्क शब्द का प्रयोग काग एधा के बाहर पाये जाने वाले सभी मृत कोशाओं वाले ऊतकों के लिये भी किया जाता है। तथा इनमें बाह्यत्वचा (epidermis), वातरन्ध्र (lenticels) कॉर्क तथा कभी-कभी अधस्त्वचा (hypodermis) और वल्कुट (cortex) का कुछ भाग आता है। इस परिभाषा के अनुसार उपरोक्त सभी भागों को बाहरी छाल (external bark) भी कहा जा सकता है और पहली परिभाषा के अनुसार परिरम्भ, द्वितीयक तथा प्राथमिक फ्लोएम को भीतरी छाल (internal bark) भी कहा जा सकता है। 

छाल में मृत कोशाओं वाले बाहरी भाग को रहाइटिडोम (rhytidome) कहते हैं। कुछ पौधों में काग एधा एक पूर्ण वलय के रूप में सक्रिय रहता है जिससे छाल एक पतली परत वाले घेरे के रूप में बनती हैं जैसे भोजपत्र (Betula utilis), प्राचीन काल में इसे ही कागज के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। कुछ पौधों में काग एधा पट्टियों में सक्रिय होता है जिससे छाल भी छोटे-छोटे शल्कों (scales) के रूप में उत्पन्न होती है। इसे शल्कीय छाल (scaly bark) कहते हैं जैसे अमरूद। छाल पौधों के अन्दर के ऊतकों की रक्षा करती है। पौधों के तनों से छाल उतार देने पर उन्हें हानि होती है क्योंकि छाल के साथ फ्लोएम भी उतर जाता है जिससे खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण बाधित होता है।

वातरन्ध्र (Lenticel) — ये छाल में उपस्थित छिद्र होते हैं जिनके द्वारा तना वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करता है। वातरन्ध्र (lenticel) रन्ध्र (stomata) के नीचे स्थित होते हैं। वातरन्ध्र के विकास के समय उपरन्ध्र गुहा के समीप पायी जाने वाली पैरेनकाइमा कोशाओं का पर्णहरिम (chlorophyll) नष्ट हो जाता है तथा कोशिकाएं अनिश्चित तलों में विभाजित हो जाती हैं। इन कोशाओं को पूरक या कम्प्लीमेण्टरी (complementary) कोशिकाएं कहते हैं। इस प्रकार ये कोशाएँ कॉर्क कैम्बियम द्वारा बाहर की ओर कॉर्क कोशाओं के स्थान पर बनती हैं। ये कोशिकाएं पतली, भित्तियुक्त, गोलाकार और अत्यन्त विकसित बहुत-से अन्तराकोशीय स्थानयुक्त होती हैं। इन कोशिकाओं की कोशा-भित्ति में सुबेरिन नहीं होती है। इन कोशिकाओं की संख्या बढ़ते रहने से बाह्यत्वचा फट जाती है और पूरक कोशिकाएं ऊपर की ओर उठकर छोटे-छोटे छिद्रयुक्त उभार बना लेती हैं इस प्रकार वातरन्ध्र (lenticel) बन जाते हैं।

वातरन्ध्र शीत ऋतु में कॉर्क कोशिकाओं के बनने के कारण बन्द हो जाते हैं परन्तु कॉर्क की यह परत नववर्ष में फेलोजन की सक्रियता के कारण नष्ट हो जाती है और रन्ध्र फिर से खुल जाते हैं।

तने को बाहर से देखने पर वातरन्ध्र छोटे-छोटे उभारों के रूप में दिखलायी पड़ते हैं।

एकबीजपत्री तनों में कैम्बियम की अनुपस्थिति के कारण द्वितीयक वृद्धि नहीं होती परन्तु ड्रेसीना (Dracena) तथा यक्का (Yucca) में असामान्य द्वितीयक वृद्धि (abnormal secondary growth) होती है।



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