हॉर्मोन द्वारा पौधे के जीवन चक्र का नियमन (Hormones as regulator of Plant Life Cycle)|hindi


हॉर्मोन द्वारा पौधे के जीवन चक्र का नियमन (Hormones as regulator of Plant Life Cycle)

हॉर्मोन द्वारा पौधे के जीवन चक्र का नियमन (Hormones as regulator of Plant Life Cycle)|hindi

पादप हॉर्मोन्स, जन्तुओं में बनने वाले हॉर्मोन्स की भाँति विशिष्ट नहीं होते हैं। इनका प्रभाव सभी ऊतकों व अंगों में समान होता है। अभी तक ज्ञात लगभग सभी पादप-हॉर्मोन्स मुख्यतः पौधों के वृद्धि कर रहे भागों में उत्पन्न होते हैं, जैसे—जड़ व तने के विभज्योतकी ऊतक (meristematic tissues), वृद्धि कर रही तरुण पत्तियाँ तथा विकसित हो रहे बीज व फल, आदि में। पौधों की कोई भी क्रिया केवल एक हॉर्मोन्स से नियन्त्रित नहीं होती। हॉर्मोन्स वास्तव में समाकलनी कर्मक (integrating agents) होते हैं, जो पौधों में किसी विशेष प्रतिक्रिया (reaction) के लिये आवश्यक हैं, जैसे- साइटोकाइनिन (cytokinin), कलिकाओं की प्रसुप्ति (dormancy) दूर करने के लिये आवश्यक है, परन्तु उससे आगे की वृद्धि को यह नियन्त्रित नहीं करता है। हॉर्मोन्स शायद ही अकेले रहकर कार्य करते हैं, पौधों में वृद्धि तथा विकास इनकी पारस्परिक क्रियाओं (interactions) का परिणाम है।


पादप - हॉर्मोन्स की क्रियाशीलता (Activity of Plant Hormones)

पादप हॉर्मोन्स की क्रियाशीलता के विषय में निम्नलिखित तथ्य प्रमुख हैं—
  1. पौधों पर यद्यपि एक हॉर्मोन के कुछ अपने विशिष्ट प्रभाव (characteristic effects) होते हैं, परन्तु इसके कुछ अन्य प्रभाव भी होते हैं। इस प्रकार एक हॉर्मोन से अनेक अनुक्रियाएँ हो सकती हैं।
  2. किसी हॉर्मोन के कारण विशेष अनुक्रिया (response) दूसरे कारकों पर निर्भर करती है, जैसे—दूसरे हॉर्मोन्स की उपस्थिति, ऊतक की उस हॉर्मोन के प्रति संवेदनशीलता (sensitivity) तथा हॉर्मोनरहित अन्य कारक (non hormonal other factors), आदि।
  3. पौधों के विभिन्न भागों में हॉर्मोन्स (hormones) का प्रभाव भी विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न होता है। 
  4. पौधों में वृद्धि एवं विकास विभिन्न हॉर्मोन्स द्वारा प्रभावित व नियन्त्रित होता है।
  5. पौधों में हॉर्मोन्स द्वारा होने वाली अनुक्रिया, किसी हॉर्मोन की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति की अपेक्षा, विभिन्न हॉर्मोन्स के बदलते अनुपात का परिणाम है।
  6. पौधों की कार्यिकी पर हॉर्मोन की सान्द्रता का सीधा प्रभाव होता है, जैसे—ऑक्सिन की कम सान्द्रता जड़ों में वृद्धि को बढ़ाती है, परन्तु अधिक सान्द्रता वृद्धि को घटाती है। इस प्रकार, एक हॉर्मोन वर्धक (promoter) तथा निरोधक (inhibitor) दोनों रूप में कार्य कर सकता है।

पादप हॉर्मोन्स का निर्माण स्थल एवं परिवहन (Formation Sites and Transport of Plant Hormones)

ऑक्सिन का निर्माण विभज्योतकी ऊतकों (meristematic tissues) में होता है। अन्य हॉर्मोन्स के विपरीत ऑक्सिन का स्थानान्तरण संवहन ऊतक से न होकर एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता हुआ नीचे की ओर आता है। यह सक्रिय स्थानान्तरण (active transport) है, जिसमें ऊर्जा प्रयुक्त होती है। यह क्रिया एकदिशीय (unidirectional) होती है तथा ऑक्सिन का प्रभाव भी मुख्यतः स्थानीय (localised) होता है।

जिबरेलिन का निर्माण तरुण पत्तियों, कलिकाओं, बीजों तथा जड़ों में होता है और इसका परिवहन जाइलम व फ्लोएम दोनों के द्वारा होता है। अतः यह पूरे पौधे को प्रभावित करता है। साइटोकाइनिन्स का निर्माण मुख्यतः जड़ शीर्ष (root tip) पर तथा विकसित हो रहे बीजों में होता है। अतः ये प्रायः जड़ों के जाइलम से होकर तने में आते हैं।

पौधों में एबसिसिक अम्ल (ABA) का संश्लेषण, कैराटिनॉयड्स (carotenoides) से होता है। एक बार बनने के बाद यह जाइलम, फ्लोएम तथा मृदूतक कोशिकाओं द्वारा पूर्ण पौधे में जाता है। इस प्रकार जिबरेलिन तथा साइटोकाइनिन्स की भाँति एबसिसिक अम्ल (ABA) का स्थानान्तरण भी अध्रुवीय (non-polarised) होता है।

इथाइलीन (ethylene) का निर्माण मिथिओनीन (methionine) नामक ऐमीनो अम्ल से होता है। आवृतबीजी पौधों के सभी भागों में इथाइलीन का निर्माण होता है, परन्तु यह वायु में विशेषतः जड़ों, प्ररोह शीर्ष विभज्योतक, पर्व, जीर्णावस्था वाले पुष्प तथा पक रहे फलों (ripening fruits) से मुक्त होती है। इथाइलीन का स्थानान्तरण वायु के माध्यम से होता है।

हॉर्मोन द्वारा पौधे के जीवन चक्र का नियमन (Hormones as regulator of Plant Life Cycle)|hindi



विभिन्न हॉर्मोन्स द्वारा पौधों की जीवन क्रियाओं का नियमन (Regulation of Plant Activities by Different Hormones)


विभिन्न हॉर्मोन्स पौधों के जीवन चक्र में निम्न महत्त्वपूर्ण क्रियाओं का नियमन करते हैं -


1.
वृद्धि (Growth) - पौधों में वृद्धि कोशिका-विभाजन (cell division) व कोशिका-विवर्धन (cell elongation) दोनों के फलस्वरूप होती है। कोशिका-विभाजन को जिबरेलिन्स तथा साइटोकाइनिन्स दोनों ही प्रेरित करते हैं। ऑक्सिन का कार्य एक सहायक के रूप में होता है। साइटोकाइनिन के कारण कोशिका-चक्र में G2 प्रावस्था से M प्रावस्था जल्दी आती है। यद्यपि यह ऑक्सिन की उपस्थिति पर निर्भर करता है, जैसे—तम्बाकू कोशिकाओं के संवर्धन में साइटोकाइनिन अकेले कुछ नहीं कर सकता, कोशिका-विभाजन तब ही प्रारम्भ होता है, जबकि संवर्धन माध्यम में थोड़ा ऑक्सिन मिलाया जाये। जिबरेलिक अम्ल (GA) का प्रभाव कोशिका-विभाजन व कोशिका-विवर्धन दोनों पर होता है, तने की लम्बाई में इसका अधिक प्रभाव आनुवंशिक रूप से बौनी जातियों पर होता है। सामान्य आकार के पौधे पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।

ऑक्सिन (auxin) का प्रमुख प्रभाव कोशिका-विवर्धन पर होता है। यह प्रभाव कोशिका-भित्ति की प्रत्यास्थता (elasticity) के परिवर्तन के कारण होता है। अम्ल वृद्धि परिकल्पना (acid-growth hypothesis) के अनुसार ऑक्सिन अपना प्रभाव, अप्रत्यक्ष रूप से कोशिका-भित्ति को अम्लीय करके प्रदर्शित करता है। ऑक्सिन के प्रभाव से कोशाद्रव्य में उपस्थित H+ आयन, कोशिका-भित्ति में आते हैं। अम्लीय माध्यम में भित्ति में उपस्थित विकर (enzymes) सक्रिय हो जाते हैं, जिससे सेलुलोस फाइब्रिल्स (cellulose fibrils) के बीच क्रॉस बन्धन (cross-linkage) टूट जाता है और ये ढीले हो जाते हैं। इन परिवर्तनों से कोशिका-भित्ति अधिक खिंचाव वाली (extensible) हो जाती है। पादप कोशाएँ सामान्यतः बाह्य माध्यम के सापेक्ष अतिपरासारी (hypertonic) होती हैं, अतः परासरण द्वारा कोशिका में जल आता रहता है, कोशिका-भित्ति खिंचती जाती है और कोशिका का आयतन बढ़ता जाता है।

ऑक्सिन के दूसरे प्रभाव में कोशिका-भित्ति पर नये पदार्थों का एकत्र होना भी सम्मिलित है। यह धीमी प्रक्रिया है और कुछ जीन्स (genes) के सक्रिय होने पर निर्भर करती है। इसके कारण नये विशिष्ट संदेशवाहक RNA (m-RNA) संश्लेषित होते हैं, जिससे नये पॉलिसैकेराइड्स का निर्माण करने वाले विकर (enzymes) बनते हैं।


2. बीजों का अंकुरण (Seeds germination) – अनेक प्रकार की घासों (grasses) व अनाजों (cereals), आदि में बीजों के अंकुरण में जिबरेलिन्स का महत्त्वपूर्ण योगदान है। बीजों द्वारा जल के अन्तःशोषण (imbibition) के तुरन्त बाद ही अंकुरण (germination) प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। भ्रूण से जिबरेलिन्स का स्रावण होता है। यह जिबरेलिन फिर बीज के एल्युरोन (aleurone) स्तर की कोशाओं में जलीय अपघटक विकर (hydrolytic enzymes) बनाने वाली जीन्स के अनुलेखन (transcription) को प्रेरित करता है। यह ऐमिलेस m-RNA के ट्रान्सक्रिप्शन को भी प्रेरित करता है। विभिन्न जलीय अपघटक विकर भ्रूणपोष में डिक्ट्योसोम्स द्वारा स्रावित किये जाते हैं। ऐमिलेस विकर (amylase enzyme), स्टार्च के शर्करा में परिवर्तन को प्रेरित करता है, जो वृद्धि कर रहे नवांकुर (seedling) के लिये ऊर्जा स्रोत है। कुछ बीजों, जैसे—जौ (barley) व मक्का (maize) आदि में एल्युरोन परत पर जिबरेलिन (GA) का प्रभाव नहीं होता, ऐसे बीजों में बीजपत्र (scutellum) ही विकर (enzymes) का प्राथमिक स्रोत है।


कुछ बीजों को अंकुरण के लिये पहले कम तापक्रम तथा प्रकाश की आवश्यकता होती है। GA कुछ पौधों, जैसे तम्बाकू, सलाद (lettuce) तथा जौ (barley) में इन आवश्यकताओं को समाप्त करता है। जिबरेलिन के प्रभाव से भ्रूण कोशिकाएं लम्बाई में बढ़ती हैं और बीजावरण जल्दी फटता (rupture) है।

3. विलगन (Abscission) — पौधों में पुष्प कलिकाओं, फल तथा पत्तियों, आदि के विलगन (abscission) की क्रिया हॉर्मोन्स द्वारा नियन्त्रित होती है। सक्रिय रूप से वृद्धि कर रहे भागों, जैसे—पत्ती, फल, आदि में अधिक मात्रा में इण्डोल ऐसीटिक अम्ल (IAA) का संश्लेषण होता है। यह फिर तने व जड़ों में जाता है और साइटोकाइनिन तथा जिबरेलिन के साथ मिलकर जीर्णावस्था में विलम्ब करता है, इससे विलगन की क्रिया भी नहीं होती है।

अनेक वातावरणीय कारकों, जैसे-सूखा, घाव, पोषण में कमी तथा दिन की अवधि (day length) में कमी, आदि के कारण इण्डोल ऐसीटिक अम्ल (IAA) का निर्माण रुक जाता है। यह परिवर्तन एक 'संकेत कारक' (signal factor) का कार्य करता है और विलगन प्रदेश (abscission zone) में इथाइलीन के निर्माण को प्रेरित करता है। इसके कारण विलगन क्षेत्र की कोशिकाएं फैलती हैं और उनमें सेलुलेस व काइटिनेस एन्जाइमों का निर्माण हो जाता है। ये दोनों विकर (enzymes), मध्य पटलिका (middle lamella) का पाचन कर देते हैं। इसके कारण तथा कोशाओं के प्रसार के कारण विलगन क्रिया हो जाती है।

4. संवहन ऊतक का भिन्नन (Differentiation of vascular tissue) – तने के शीर्ष ( shoot apex) में ऑक्सिन, प्रोकैम्बियम की भिन्नता को प्रभावित करता है। शीर्ष की तरुण पत्तियाँ अधिक मात्रा में ऑक्सिन उत्पन्न करती हैं। यह ऑक्सिन तने में नीचे की ओर बढ़ता है और जिबरेलिन के साथ संवहन ऊतक का भिन्नन करता है। वास्तव में अधिक ऑक्सिन तथा कम जिबरेलिन का अनुपात जाइलम भिन्नन को बढ़ाता है, जबकि कम ऑक्सिन व अधिक जिबरेलिन से फ्लोएम का भिन्नन होता है। जिबरेलिन के अतिरिक्त अन्य कारक, जैसे—पत्तियों में बनने वाली शर्कराएँ भी ऑक्सिन की क्रिया को निम्न प्रकार से प्रभावित करती हैं-
  • ऑक्सिन के साथ सुक्रोस की कम मात्रा (2%) जाइलम भिन्नन (xylem differentiation) को बढ़ाती है।
  • ऑक्सिन के साथ मुक्रोस की प्रचुर मात्रा (3%) जाइलम व फ्लोएम की भिन्नता को बढ़ाती है।
  • ऑक्सिन के साथ सुक्रोस की अधिकता (4%) केवल फ्लोएम भिन्नन को बढ़ाती है।

यदि प्ररोह शीर्ष की तरुण पत्तियों को हटाकर वहाँ पर ऑक्सिन लगाया जाये तब भी प्रोकैम्बियम (procambium) का भिन्नन होता है। इसी प्रकार 'ऊतक संवर्धन' (tissue culture) प्रयोगों में कलस में ऑक्सिन जिबरेलिन अथवा ऑक्सिन / सुक्रोस, आदि की उचित सान्द्रता से संवहन ऊतक का भिन्नन किया जाता है।

5. किशोर प्रावस्था पर प्रभाव (Effect on juvenility) — अनेक पौधों की वृद्धि में किशोर अवस्था (juvenile stage) तथा वयस्क अवस्था (adult stage) भिन्न होती है, जैसे—यूकेलिप्टस ग्लोवुलस। ऐसे पौधों में दोनों अवस्थाओं की पत्तियों भिन्न आकार की होती है। किशोर अवस्था की पत्तियों कोमल तथा एक-दूसरे के विपरीत (opposite) होती हैं। इनमें खम्भ (palisade) मृदूतक केवल ऊपरी सतह पर होता है। वयस्क पत्तियाँ कठोर तथा सर्पिल क्रम (spirally) में व्यवस्थित होती हैं। इनमें दोनों सतहों की ओर खम्भ मृदूतक होता है। वयस्क शाखा की कलिकाएँ सामान्यतः वयस्क शाखा ही बनाती हैं, परन्तु जिबरेलिन के प्रभाव से वयस्क शाखा से किशोर शाखा उत्पन्न हो जाती है।

6. फलों का विकास (Fruit development) - फलों में उपस्थित बीज, ऑक्सिन का स्रोत है, ये ही फलों के विकास को बढ़ाते हैं। अनेक पौधों (जैसे—टमाटर तथा कुकुरबिटेसी कुल के पौधे) में यदि पुष्प के स्त्रीकेसर (carpel) को प्रारम्भ से ही ऑक्सिन उपचार (auxin treatment) दिया जाये तो अनिषेक फल (parthenocarpic fruit) बन जाता है। प्रायः पुष्पों में परागण (pollination) व निषेचन (fertilization) के बाद ही अण्डाशय, फल में परिवर्तित हो जाते हैं। सम्भवतः परागनली एक प्रकार के विकर (enzymes) का स्रावण करती है, जो ट्रिप्टोफेन नामक ऐमीनो अम्ल को ऑक्सिन में परिवर्तित कर देता है और इसके बाद अण्डाशय (ovary) फल में विकसित होता है।

7. लिंग निर्धारण (Sex determination) - कुछ पौधों में नर व मादा पुष्प अलग-अलग होते हैं, परन्तु एक ही पौधे पर उत्पन्न होते हैं। इनमें लिंग का निर्धारण इथाइलीन तथा जिबरेलिन द्वारा होता है। कुकुरबिटेसी कुल के पौधों में इथाइलीन के प्रभाव से कलिकाएँ मादा पुष्पों का विकास करती हैं और जिबरेलिन के प्रभाव से नर पुष्प उत्पन्न करती हैं।

8. बीजपत्रों पर प्रभाव (Effects on cotyledons) - बीजपत्रों में कोशिका विभाजन (cell division)प्रसार (expansion) दोनों ही साइटोकाइनिन (cytokinins) द्वारा बढ़ाये जाते हैं। कोशीय प्रसार का कारण केवल साइटोकाइनिन द्वारा कोशिका-भित्ति की प्रत्यास्थता में वृद्धि हैं, इसमें भित्तीय अम्लीकरण (wall acidification) नहीं होता है। इसके अतिरिक्त साइटोकाइनिन, कोशिकाओं में शर्कराओं की मात्रा भी बढ़ाता है, जिससे जल अधिक मात्रा में अन्दर आता है। और बीजपत्रों का प्रसार होता है।

9. जीर्णावस्था (Senescence) – साइटोकाइनिन, पर्णहरिम (chlorophyll) के निर्माण को रोकने वाली जीन्स को निष्क्रिय करता है, इसके अतिरिक्त यह पर्णहरिम (chlorophyll) के विघटन को भी रोकता है। अतः साइटोकाइनिन के प्रभाव से पत्तियाँ स्वस्थ रहती हैं और इनमें जीर्णावस्था नहीं आती। साइटोकाइनिन द्वारा उपचारित क्षेत्र एक 'सिन्क' (sink) का कार्य करता है जिसमें ऑक्सिन व पोषक पदार्थ एकत्रित होते रहते हैं। इथाइलीन के प्रभाव से जीर्णावस्था शीघ्र आती है। इथाइलीन पुष्प व पत्तियों में जीर्णावस्था के अतिरिक्त, अण्डप (carpel) की जीर्णावस्था को भी नियन्त्रित करती है। फूल मटर (garden pea) में सामान्यतः स्वयं परागण होता है, यदि इसमें पुंकेसरों को हटाकर स्वयं परागण रोक दिया जाये तो अण्डप कुछ समय बाद ही जीर्ण (senesce) हो जाता है। यह इथाइलीन के कारण ही होता है। यदि इस अण्डप को इथाइलीन क्रिया को inhibited करने वाले पदार्थ सिल्वर थायोसल्फोनेट से उपचारित किया जाये तो अण्डप की जीर्णावस्था टल जाती है।

कुछ पौधों, जैसे — ऑर्किड्स (orchids) में, परागकणों में उपस्थित ऑक्सिन पुष्पों में इथाइलीन के निर्माण को बढ़ाते हैं, यह इथाइलीन फिर पुष्पीय भागों की जीर्णावस्था (senescence) को बढ़ाती है।

10. पुष्पन (Flowering) - साधारणतः ऑक्सिन तथा इथाइलीन अनेक जातियों में पुष्पन की क्रिया को रोकते हैं, परन्तु कुछ पौधों, जैसे—अनन्नास (pineapple), में ये पुष्पन को तीव्र करते हैं। इसके अतिरिक्त इथाइलीन अनेक प्रदर्शनीय पौधों में भी पुष्पन क्रिया को तीव्र करती है।

11. स्पर्श संरचना विकास (Thigmo-morphogenesis) – अनेक प्रकार की यान्त्रिक बाधाएँ (mechanical disturbances), जैसे— हिलाना, तने की लम्बाई को घटाती हैं। इस क्रिया को स्पर्श संरचना विकास (thigmo morphogenesis) कहते हैं। यह क्रिया इथाइलीन के प्रभाव से होती है। किसी भी प्रकार की यान्त्रिक बाधा, इथाइलीन निर्माण को कई गुना बढ़ाती है। इससे कोशिका भित्ति के सेलुलोस माइक्रोफाइब्रिल्स (cellulose microfibrils) अनुलम्ब दशा में आ जाते हैं। यह परिवर्तन कोशाओं के लम्बाई में बढ़ने को कम कर देता है और कोशाएँ चौड़ाई में बढ़ने लगती हैं, फलस्वरूप तने छोटे व मोटे हो जाते हैं। यह प्रभाव ऑक्सिन के विपरीत होता है जो कोशाओं के माइक्रोफाइब्रिल्स को अनुप्रस्थ दिशा में प्रेरित करता है, जिससे कोशाएँ लम्बाई में वृद्धि करती हैं।

यद्यपि इथाइलीन का सम्बन्ध तने की लम्बाई के अवरोधन से है, परन्तु अनेक जल निमग्न (submerged) पौधों में यह तने व पर्णवृन्त की लम्बाई को बढ़ाती है।

12. बीजों में प्रसुप्ति (Dormancy of seeds) – अनेक बीजों व कलिकाओं में एबसिसिक अम्ल (ABA) उपस्थित होने के कारण अंकुरण क्रिया शीघ्र नहीं हो पाती है। वास्तव में ABA एक कैल्शियम विरोधी (calcium antagonistic) पदार्थ है। यह ∝-ऐमिलेस एन्जाइम के संश्लेषण को भी अवरुद्ध करता है। अतः यह सामान्य रूप से दूसरे हॉर्मोन्स के प्रभाव को समाप्त करता है। इस प्रकार की प्रसुप्ति (dormancy) को जिबरेलिन्स के उपचार द्वारा दूर किया जाता है।

13. घाव व दबाव की दशा में (During injury and stress) — घाव हो जाने पर तथा अन्य किसी दबाव (stress), जैसे—अत्यधिक शीतलन (chilling) की दशा पौधे में इथाइलीन के निर्माण को प्रेरित करती है। यह एक विशेष अनुकूलन है, क्योंकि इथाइलीन के प्रभाव से क्षत (injured) भाग का abscission हो जाता है अथवा यह जीर्ण (senesce) हो जाता है। इस प्रकार यह भाग पौधे की अन्य उपापचयी क्रियाओं से पृथक् हो जाता है, अन्य भाग सुरक्षित रहते हैं। और घाव के माध्यम से रोगाणु भी पौधे में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।

सूखे की दशा में पत्तियों में एबसिसिक अम्ल (ABA) का अधिक मात्रा में संश्लेषण होने लगता है। कुछ जातियों में यह कुछ ही मिनटों में 10 गुणा तक बढ़ जाता है। ABA के प्रभाव से रन्ध्र (stomata) एक या दो मिनट में ही बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार ABA का निर्माण, सूखे की दशा में एक संदेशवाहक (messenger) का कार्य करता है, ताकि पौधे अधिक पानी संरक्षित कर सकें। ABA सम्भवतः द्वार कोशाओं की प्लाज्मा भित्ति की बाह्य सतह की प्रोटीन से संयुक्त होते हैं। इससे प्लाज्मा झिल्ली अधिक धनात्मक आवेशित (more positively charged) हो जाती है और अन्य आयनों (ions) विशेष रूप से K+ आयन को द्वार कोशाओं से बाह्यत्वचा की कोशाओं में स्थानान्तरण को प्रेरित करती है। द्वार कोशाओं से K+ आयन निकलने के साथ ही जल पर-परासरण की क्रिया द्वारा अन्य कोशाओं में चला जाता है। इससे द्वार कोशाओं की भित्ति संकुचित होती है और रन्ध्र (stomata) बन्द हो जाते हैं।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पौधे के जीवन चक्र (life cycle) की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं का नियमन हॉर्मोन्स द्वारा होता है। वास्तव में विभिन्न हॉर्मोन्स के बीच, हॉर्मोन्स व अन्य पदार्थों के बीच अन्तः क्रियाओं (interactions) द्वारा ही इन क्रियाओं का संचालन होता है।




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