बसन्तीकरण जल अवशोषित बीजों (water soaked seeds), थोड़े अंकुरित बीजों अथवा नवांकुरों (seedlings) को कुछ समय के लिये दिया गया निम्न ताप उपचार (low temperature treatment) है, जिसके कारण उनमें पुष्पन का समय शीघ्रता से आता है। चोआर्ड (Chouard, 1960) के अनुसार पौधों में द्रुतशीतल उपचार (chilling treatment) द्वारा पुष्पन क्रिया के शीघ्रता से होने की क्षमता को बसन्तीकरण (vernalization) कहते हैं। बसन्तीकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टी०डी० लइसेन्को (T.D. Lysenko, 1928) ने 'येरोवाइजेशन' (yarovization or jarovization = springi fication) के रूप में किया। मेल्वर्स (Melchers, 1936-37) के अनुसार बसन्तीकरण की क्रिया में वर्जेलिन (vernalin) नामक पदार्थ बनता है यद्यपि यह पदार्थ अभी तक पृथक नहीं हो पाया है।
लॉंग तथा मेल्वर्स (Lang and Melchers, 1947) ने हेनबेन पौधे में देखा कि यदि द्रुतशीतल उपचार के पश्चात् अधिक तापक्रम (30°C या इससे अधिक) दिया जाये तो बसन्तीकरण क्रिया नहीं होती, अर्थात् द्रुतशीतल उपचार का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस क्रिया को डीवर्नेलाइजेशन (devernalization) कहते हैं। यह प्रभाव गेहूँ तथा राई आदि पौधों में भी देखा गया है।
बीज के अंकुरण, पौधों की वृद्धि, फूलने-फलने एवं बीज के पकने के समय, विभिन्न तापमानों की आवश्यकता पड़ती है। छोटे पौधे पाले व सूखे के कारण शीघ्र समाप्त हो जाते हैं, परन्तु बड़े पौधों में सहनशीलता अधिक होती है।
कुछ पौधों के बीजों को अंकुरण के लिए शीत एवं ताप में थोड़ी-थोड़ी देर रखना पड़ता है। कुछ पौधों के बीजों के अंकुरण व कलियों के प्रफुल्लित होने के लिये कुछ समय के लिये शीतलता की आवश्यकता होती है।
उत्तरी अक्षांशों के कुछ देशों में दो प्रकार का गेहूँ बोया जाता है। 'शीत गेहूँ' अक्टूबर-नवम्बर में बोये जाते हैं। इनके छोटे-छोटे पौधे सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं और गर्मी आने पर जैसे ही बर्फ पिघलता है पौधे पुनः वृद्धि करते हैं और गर्मी की ऋतु में उनका बीज पककर तैयार हो जाता है।
'बसन्ती गेहूँ' सर्दियों के अन्त में बोया जाता है और गर्मियों में उनका बीज पकता है। 'शीत गेहूँ' की पैदावार 'बसन्ती गेहूँ' से अधिक होती है, परन्तु ये पुष्प बनने और बीज के पकने के लिए अधिक समय तक पृथ्वी पर रहता है।
'शीत गेहूँ को ग्रीष्म ऋतु में बोने योग्य बनाने के लिए भीगे हुये बीज को 10 या 12 दिन तक 3°C ताप पर रख दिया जाता है और फिर सर्दियों के अन्त में 'बसन्ती गेहूँ' के साथ ही बो दिया जाता है और उसका दाना 'बसन्ती गेहूँ' के साथ ही पककर तैयार हो जाता है। बीज की इस प्रक्रिया को बसन्तीकरण ( vernalization springification) कहते हैं।
पाला अथवा अतिशीत, पौधों को दो प्रकार से हानि पहुँचाता है-
- अन्तराकोशीय स्थानों (intercellular spaces) में बर्फ जमने लगता है, जिससे कोशाओं के अन्दर का जल बाहर आ जाता है और कोशाद्रव्य (cytoplasm) में जल की कमी पड़ने से जैविक-क्रियाएँ रुक जाती हैं और पौधों की मृत्यु हो जाती है।
- कभी-कभी अतिशीतता से कोशिका के अन्दर बर्फ के क्रिस्टल बनने से जीवद्रव्य नष्ट हो जाता है।
बीज व बीजाणु शीत से उतने प्रभावित नहीं होते, जितना, उनसे निकला हुआ अंकुर तथा शिशु पौधा प्रभावित होता है। पौधों के तनों अथवा पत्तियों पर घने छोटे रोम एवं मोम की परत होने पर उन पर शीत का प्रभाव कम पड़ता। कभी-कभी छोटे पौधों को धीरे-धीरे कम पानी देने और थोड़े समय के लिये शीत में रखने पर उन पौधों के बड़े हो जाने पर पाला व सूखे का प्रभाव कम हो जाता है। इस क्रिया को दृढ़ीकरण (hardening) कहते हैं।
पौधों का भौगोलिक वितरण भी ताप से प्रभावित होता है। ध्रुव की ओर अथवा पहाड़ों की अधिक ऊँचाई पर अतिशीतता के कारण जीवद्रव्य नष्ट हो जाता है। पर्वतों पर ध्रुव की ओर वाले ढालों से भूमध्यरेखा की ओर वाले ढाल गर्म होते हैं। जैसे-जैसे हम भूमध्यरेखा से ध्रुव की ओर जाते हैं, पृथ्वी पर पहुँचने के लिये सूर्य की किरणों का मार्ग लम्बा हो जाता है, इस कारण ऐसे स्थानों पर सूर्य की ऊर्जा कम मात्रा में प्राप्त होती है और ये स्थान अपेक्षाकृत ठण्डे रहते हैं। अतः ऐसे स्थानों पर केवल वही पौधे जीवित रहते हैं जो कम प्रकाश तथा अतिशीत को सहन करने की क्षमता रखते हैं। तापक्रम के आधार पर संसार की वनस्पतियों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है-
- महातापी (Megatherms) — वे पौधे, जिन्हें अपनी वृद्धि एवं विकास के लिये लगातार अधिक तापक्रम चाहिये। उदाहरण - उष्णकटिबन्ध (tropical zone) में उगने वाले पौधे।
- मध्यतापी (Mesotherms) — वे पौधे, जो कम तापक्रम को कुछ समय (सर्दियों में) तक सह सकते हैं। उदाहरण उष्णकटिबन्ध (tropical zone) में उगने वाले कुछ पौधे तथा उपोष्णकटिबन्ध (subtropical zone) में उगने वाले अधिकतर पौधे ।
- न्यूनतम तापी (Microtherms) – वे पौधे, जो कम तापक्रम में अपनी वृद्धि एवं विकास करते हैं। इनमें गर्मी या अधिक तापक्रम को सहने की सामर्थ्य नहीं होती है। उदाहरण-3,600 मीटर की ऊँचाई तक पाये जाने वाले पौधे।
- महान्यूनतम तापी (Hekistotherms) — वे पौधे, जो केवल पर्वतीय (alpine) एवं उत्तरी ध्रुव (arctic) प्रदेशों में और उष्णकटिबन्ध में केवल 4,800 मीटर की ऊँचाई से ऊपर तथा शीतोष्णकटिबन्ध (temperate zone) में 3,600 मीटर की ऊँचाई से ऊपर उगते हैं। इन पौधों में बहुत कम तापक्रम अर्थात् लम्बी सर्दियों को सहने की सामर्थ्य होती है।
कुछ पौधों को सम्पूर्ण वर्ष अपेक्षाकृत स्थिर तापक्रम की आवश्यकता होती है, इन्हें स्टर्नोथर्मल (sterothermal) कहते हैं, जैसे पाइसिया (Picea) तथा एबीज (Abies)। इसके विपरीत कुछ पौधे पूरे वर्ष में तापक्रम में होने वाले परिवर्तनों को सह लेते हैं, इन्हें यूरिथर्मल (eurythermal) कहते हैं, जैसे आर्टीमिसिया (Artimesia)।
No comments:
Post a Comment