वृद्धिरोधक पदार्थ (Growth inhibitors) : परिचय, प्रकार|hindi


वृद्धिरोधक पदार्थ (Growth inhibitors) : परिचय, प्रकार
वृद्धिरोधक पदार्थ (Growth inhibitors) : परिचय, प्रकार|hindi

पौधों की वृद्धि एवं विकास के पूर्ण सन्तुलन एवं नियन्त्रण के लिए वृद्धिवर्धक (growth promotors) और वृद्धिरोधक (growth inhibitors) दोनों प्रकार के पदार्थ आवश्यक हैं। इन दोनों प्रकार के पदार्थों को हम वृद्धि-नियामक पदार्थ (growth regulators) कहते हैं।

ऑक्सिन, जिबरेलिन एवं साइटोकाइनिन वास्तव में कम सान्द्रता पर वृद्धिवर्धक का कार्य करते हैं। यद्यपि असामान्य (अधिक) सान्द्रता पर वे वृद्धिरोधक का कार्य भी कर सकते हैं परन्तु एबसिसिक अम्ल (abscisic acid) एवं इथाइलीन (ethylene) कम सान्द्रता पर भी वृद्धिरोधक का कार्य करते हैं, अतः इन्हें वृद्धिरोधक पदार्थ (growth inhibitors) कहा जाता है।



एबसिसिक अम्ल (ABSCISIC ACID = ABA)

कार्न्स एवं एडिकोट ने 1961-65 में कपास (Gossypium sp.) के पौधे की पुष्प कलियों (flowering buds) से एक पदार्थ निकाला जिसका नाम उन्होंने एबसिसिन (abscisin) रखा जो किसी भी पौधे पर छिड़कने पर शीघ्र ही पत्तियों का विलगन कर देता था। वेयरिंग (Wareing) ने 1963 में एसर नामक पेड़ की पत्तियों से एक पदार्थ निकाला जो कलियों की वृद्धि और बीजों के अंकुरण का रोधन करता था। उन्होंने इस पदार्थ का नाम डोरमिन (Dormin) रखा। बाद में यह सिद्ध हुआ कि एबसिसिन एवं डोरमिन एक ही पदार्थ हैं और उसका नाम एबसिसिक अम्ल (Abscisic acid) रखा गया।

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एबसिसिक अम्ल के कार्य (Role of Abscisic Acid)
  1. पत्तियों का विलगन (Abscission of leaves) —एबसिसिक अम्ल के विलयन को पत्तियों पर छिड़कने से उनका शीघ्र ही विलगन हो जाता है।
  2. कलियों तथा बीजों की प्रसुप्ति (Dormancy of buds and seeds) — एबसिसिक अम्ल कलियों की वृद्धि और बीजों के अंकुरण को रोकता है।
  3. जीर्णावस्था (Senescence) — यदि पत्तियों से काटे छोटे-छोटे भागों को एबसिसिक अम्ल के विलयन के ऊपर रखा जाये तब दो या तीन दिन में ये भाग पीले पड़ जाते हैं, अतः इनमें पर्णहरिम नष्ट हो जाता है। और साथ ही प्रोटीन एवं न्यूक्लीक अम्ल भी नष्ट हो जाते हैं।
  4. पुष्पन (Flowering) — कुछ पौधे जिनको पुष्पन के लिए लम्बे दीप्तिकाल की आवश्यकता होती है उनके पुष्पन को एबसिसिक अम्ल रोकता है।
  5. आलू में कन्द बनना (Tuberization in potato) – एबसिसिक अम्ल (ABA) आलू कन्द बनने में सहायता करता है।
  6. कोशा-विभाजन और कोशा-विवर्धन (Cell division and cell elongation) – एबसिसिक अम्ल (ABA) कोशिका-विभाजन एवं कोशिका-विवर्धन दोनों को अवरुद्ध करता है।
  7. α-ऐमिलेस विकर के संश्लेषण पर प्रभाव (Effect on the synthesis of a-amylase enzyme) — एबसिसिक अम्ल (ABA), α- ऐमिलेस विकर के संश्लेषण को अवरुद्ध करता है जिसके कारण अनाजों के दानों का अंकुरण रुक जाता है।
  8. वाष्पोत्सर्जन नियन्त्रण (Control of transpiration) — ABA, रन्ध्रों (stomata) को बन्द करता है जिस कारण वाष्पोत्सर्जन कम हो जाता है। अतः यह पदार्थ कम जल वाली भूमि में खेती करने के लिये बहुत उपयुक्त सिद्ध हुआ है।



इथाइलीन (ETHYLENE)

सन् 1960 तक इथाइलीन (H2C = CH2) को पादप हॉर्मोन के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता था परन्तु सन् 1962 में बर्ग (Burg) नामक वैज्ञानिक ने इथाइलीन को पादप हॉर्मोन सिद्ध किया। केवल यह हॉर्मोन ही गैस के रूप में होता है। इथाइलीन पादपों के उपापचय का एक प्राकृतिक उत्पाद (natural product) है।

इथाइलीन के कार्य (Role of Ethylene)

  1. तीन अनुक्रिया (Triple response) - इथाइलीन तने की लम्बाई का वृद्धिरोधक, तने के फूलने (swelling) में सहायक तथा गुरुत्वानुवर्तन (geotropism) को नष्ट करता है।
  2. पुष्पन (Flowering)— ऑक्सिन की भाँति इथाइलीन भी पुष्पी पौधों में पुष्पन को कम करता है, परन्तु ऑक्सिन के समान ही अनन्नास (Pineapple) में पुष्पन को तीव्र करता है।
  3. लिंग परिवर्तन (Sex modification) — इथाइलीन मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है और नर पुष्पों की संख्या को कम करता है।
  4. विलगन (Abscission) — इथाइलीन पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन को तीव्र करता है।
  5. फलों का पकना (Fruit ripening) — अब यह बात सर्वविदित है कि इथाइलीन ही फल पकाने वाला हॉर्मोन (ripening hormone) है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इथाइलीन पौधे के तने के अग्र भाग में बनता है और विसरित होकर फलों को पकाने में सहायता प्रदान करता है।
इथेफोन (2-chloroethyl phosphonic acid) से इथाइलीन गैस निकलती है जिस कारण से इस पदार्थ को फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के काम में लाया जाता है। आजकल भारत सहित अधिकांश देशों में फलों (आम, अंगूर, केला, इत्यादि) के पकाने के लिए इथेफोन का प्रयोग औद्योगिक स्तर पर किया जा रहा है। इस प्रकार से पके फल, रंग, रूप और सुगन्ध में प्राकृतिक फलों जैसे लगते हैं।



ब्रेसिनो स्टीरॉयड्स (BRASSINO STEROIDS)

परम्परागत रूप से पादप-हॉर्मोन्स की पाँच श्रेणियाँ मानी गयी हैं - ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, एबसिसिक अम्ल तथा इथाइलीन, परन्तु हाल ही में ब्रेसिनो स्टीरॉयड्स को छठी श्रेणी के रूप में माना गया है। पौधों की वृद्धि व विकास को प्रभावित करने में इन पदार्थों की सुनिश्चित भूमिका है। ब्रेसिनो स्टीरॉयड्स संरचना में जन्तुओं में पाये जाने वाले स्टीरॉयड्स हॉर्मोन की भाँति होते हैं। इस श्रेणी का एक सक्रिय पदार्थ ब्रेसिनोलाइड (brassinolide) है जिसे 1979 में ब्रेसिका नेपस (Brassica napus) के परागकणों से पृथक किया गया। अब तक पौधों की विभिन्न जातियों के परागकण, बीज, पत्ती, तना तथा पुष्पों आदि 40 से अधिक ऐसे पदार्थ प्राप्त किये जा चुके हैं। ब्रेसिनो स्टीरॉयड्स का पौधों पर व्यापक प्रभाव है, विशेष रूप से ये तने की लम्बाई बढ़ने, परागनलिका की वृद्धि तथा इथाइलीन के उत्पादन को प्रेरित करते हैं। इथाइलीन के उत्पादन के कारण ये जड़ो का वृद्धि रोधन करते हैं।

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