जिबरेलिन (GIBBERELLINS) : खोज, परिचय, कार्य|hindi


जिबरेलिन (GIBBERELLINS) : खोज, परिचय, कार्य
जिबरेलिन (GIBBERELLINS) : खोज, परिचय, कार्य|hindi

जिबरेलिन की खोज (Discovery of Gibberellin)फॉरमोसा (Formosa) में धान (rice) के खेत में कुछ पौधे अधिक लम्बे हो जाते थे; पत्तियाँ लम्बी व पीली हो जाती थी तथा इन पौधों में दाना कम उत्पन्न होता था। धान का यह रोग एक फफूँद (Gibberella fajikurol - Fusarium moniliforme) द्वारा होता है। इस रोग को Foolish seedling disease” या “Bakanae” रोग कहा जाता है। इ० कुरोसावा (E. Kurosawa, 1926) ने प्रमाणित किया कि यदि कवक द्वारा स्रावित रस धान के स्वस्थ पौधों पर छिड़का जाये तो उनमें इस रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। Yabuta और Hayashi ने सन् 1939 में फफूँद के रस से एक वृद्धि नियन्त्रक पदार्थ पृथक् किया जिसे जिबरेलिन - A (GA) नाम दिया गया है। विभिन्न प्रकार के पौधों से अब तक 110 से अधिक जिबरेलिन (Gibberellins) पृथक् किये जा चुके हैं। जिबरेलिन्स को अपरिपक्व बीजों (विशेषतया द्विबीजपत्री), जड़ तथा तने के शीर्ष, तरुण पत्तियों तथा कवकों से पृथक् किया गया है। ये सम्भवतः शैवाल, मौस तथा फर्न आदि में भी पाये जाते हैं। श्वसन क्रिया में भाग लेने वाला प्रमुख यौगिक ऐसीटिल कोएन्जाइम A, GA के निर्माण में पूर्ववर्ती यौगिक का कार्य करता है ।

जिबरेलिन्स के कार्य (Role of Gibberellins)

1. बौनी प्रजातियों की लम्बाई में वृद्धि (Elongation of genetically dwarf varieties) - कुछ बौने (dwarf) पौधों में जैसे कि मक्का व मटर की कुछ प्रजातियों (varieties) में जिबरेलिन छिड़कने से पौधे विशेष रूप से लम्बे हो जाते हैं, क्योंकि जिबरेलिन (Gibberellin) के द्वारा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि होती है, परन्तु यह लक्षण उन्हीं पौधों तक ही सीमित होता है और सन्तति में नहीं जाता, क्योंकि GA के कारण उनकी जीन (gene) में परिवर्तन नहीं हुआ है।


जिबरेलिन (GIBBERELLINS) : खोज, परिचय, कार्य|hindi


2. पुष्पन पर प्रभाव (Effect of flowering) — कुछ पौधे जैसे हेनबेन (henbane) को साधारणतया पुष्पवृन्त बनने और पुष्प-उत्पत्ति के लिये पहले कम तापक्रम और बाद में दीर्घ प्रकाश-काल चाहिये। कुछ पौधे जैसे गाजर को पुष्पन के लिये कम तापक्रम चाहिये। कुछ पौधे जैसे प्रिमरोज (primrose) को पुष्पन के लिये केवल दीर्घ प्रकाश-काल चाहिये। यदि ऐसे पौधों में कम तापक्रम एवं दीर्घ प्रकाश-काल के स्थान पर जिबरेलिन छिड़का जाये तब उनमें पुष्पन हो जाता है। कम तापक्रम तथा दीर्घ प्रकाश-काल के स्थान पर उचित सान्द्रता का जिबरेलिन का विलयन छिड़कने से एक लम्बा पुष्पवृन्त निकलकर पुष्प उत्पन्न करता है। इसे बोल्टिंग (bolting) कहते हैं।

जिबरेलिन (GIBBERELLINS) : खोज, परिचय, कार्य|hindi


3. अनिषेकफलन (Parthenocarpy) — जिबरेलिन से कुछ पौधों में अनिषेकफलन (parthenocarpy) भी हो जाता है।

4. बीजों का अंकुरण (Seeds germination) — जिबरेलिन, बीजों में अंकुरण को प्रेरित करता है। कुछ वातावरणीय दशाएँ बीजों में एबसिसिक अम्ल (जो अंकुरण को रोकता है) का विघटन करती हैं इसके साथ ही जिबरेलिन संश्लेषण को प्रेरित करती हैं। अंकुरित हो रहे बीजों में जिबरेलिन कुछ विकरों (enzymes) के संश्लेषण को बढ़ाता है जिससे भ्रूणपोष व बीजपत्रों में संचित भोज्य-पदार्थ शर्करा, लिपिड व ऐमीनो अम्लों में बदलकर भ्रूण (embryo) को प्राप्त होते हैं।


अनाज के अंकुरित होते दानों में 0-ऐमिलेस का संश्लेषण (Synthesis of a-amylase in the germinating grains of cereals)

अनाज के दानों का भ्रूण (embryo) मृदा से जल का अवशोषण करके कुछ मात्रा में जिबरेलिन संश्लेषण करता है, जो ऐल्यूरोन कणों (aleurone grains) में प्रसरित हो जाता है। ऐल्यूरोन कणों में ऐमीनो अम्लों (amino acids), एस्पेराजीन (asparagine) एवं ग्लूटेमीन (glutamine) के लवण होते हैं जो सभी अन्न के दानों के बीजावरण (seed coat) के अन्दर की ओर स्थित कोशिकाओं की एक पर्त (layer of aleurone grains) में भरे रहते हैं। जिबरेलिन शीघ्र ही प्रोटिऐस व α- ऐमिलेस के निर्माण को प्रेरित करता है। प्रोटिऐस  एन्जाइम, निष्क्रिय  β- ऐमिलेस को सक्रिय अवस्था में बदल देता है। सक्रिय β-ऐमिलेस तथा  α-ऐमिलेस  मिलकर स्टार्च का ग्लूकोस में पाचन करते हैं। ग्लूकोस ऑक्सीकृत होकर भ्रूण की ऊर्जा आवश्यकता पूर्ण करता है। कुछ दूसरे विकर न्यूक्लिएस (nuclease), न्यूक्लीक अम्लों (nucleic acids) एवं प्रोटीन्स को विघटित करते हैं। इस क्रिया में साइटोकाइनिन (cytokinin) एवं ऑक्सिन (auxins) का संश्लेषण होता है, जो कोशिका के विभाजन एवं कोशा विवर्धन (cell division and cell enlargement) द्वारा भ्रूण की वृद्धि का भ्रूणपोष में गमन करते हैं।

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