दीप्तिकालिता (Photoperiodism) : परिचय, प्रक्रिया, प्रकार|hindi


दीप्तिकालिता (Photoperiodism) : परिचय, प्रक्रिया, प्रकार
दीप्तिकालिता (Photoperiodism) : परिचय, प्रक्रिया, प्रकार|hindi

पौधों के फलने-फूलने, वृद्धि, प्रजनन एवं उनके भौगोलिक वितरण पर प्रकाश की अवधि (duration of light) का प्रभाव पड़ता है। पौधों द्वारा प्रकाश की अवधि तथा समय के प्रति अनुक्रिया को ही "दीप्तिकालिता” (photoperiodism) कहते हैं। दूसरे शब्दों में दिन व रात के परिवर्तनों के प्रति कार्यिकीय अनुक्रियाएँ (physiological responses) ही 'दीप्तिकालिता' कहलाती है। दीप्तिकालिता (photoperiodism) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गार्नर तथा एलार्ड (Garner and Allard, 1920) ने किया।

निर्णायक दीप्तिकाल या क्रान्ति दीप्तिकाल (Critical photoperiod) - अल्प-प्रकाशीय पौधों (short day plants) में क्रान्ति दीप्तिकाल प्रकाश की वह अवधि है जिस पर या जिससे कम अवधि पर पौधे पुष्प उत्पन्न करते हैं, परन्तु उससे अधिक अवधि के प्रकाश में पुष्प उत्पन्न नहीं कर सकते। दीर्घ-प्रकाशीय पौधों (long day plants) में क्रान्ति दीप्तिकाल से तात्पर्य उस प्रकाशीय अवधि से है जिससे अधिक अवधि के प्रकाश में पौधे पुष्प उत्पन्न करते हैं, परन्तु उससे कम अवधि के प्रकाश में पुष्प उत्पन्न नहीं करते। इस प्रकार अल्प-प्रकाशीय पौधों तथा दीर्घ-प्रकाशीय पौधों में विभेदन उनमें क्रान्ति दीप्तिकाल से कम अवधि पर पुष्पन होना अथवा अधिक अवधि पर पुष्प उत्पन्न होने के आधार पर किया जाता है।
दो जातियों के पौधे समान अवधि के प्रकाश में पुष्प उत्पन्न करते हैं, परन्तु उनमें एक अल्प-प्रकाशीय पौधा तथा दूसरा दीर्घ-प्रकाशीय पौधा हो सकता है। जैसे जैन्थियम (Xanthium) का क्रान्ति दीप्तिकाल 15% घण्टे है और हायोस्यामसे नाइजर (Hyocyamous niger) का क्र दीप्तिकाल 11 घण्टे है। दोनों पौधे 14 घण्टे की प्रकाशीय अवधि में पुष्प उत्पन्न कर सकते हैं। इस आधार पर जैन्थियम अल्प प्रकाशीय पौधा है (क्योंकि यह क्रान्ति दीप्तिकाल से कम प्रकाशीय अवधि में पुष्प उत्पन्न करता है) तथा हायोस्यामस नाइजर दीर्घ प्रकाशीय पौधा है (क्योंकि यह क्रान्ति दीप्तिकाल से अधिक प्रकाशीय अवधि में पुष्प उत्पन्न करता है)।

अल्प प्रकाशीय तथा दीर्घ प्रकाशीय पौधों में पुष्पन की क्रिया दिन की अवधि की अपेक्षा रात्रि अथवा अन्धकार अवधि से अधिक प्रभावित होती है। इस आधार पर अल्प प्रकाशीय पौधों को दीर्घ-निशा पौधे (long night plants) तथा दीर्घ प्रकाशीय पौधों को अल्प-निशा पौधे (short night plants) भी कहते हैं।

अल्प-प्रकाशीय पौधों में यदि अन्धकार अवधि के मध्य कुछ समय के लिये प्रकाश दिया जाये तो यह प्रकाश अन्धकार अवधि को दो छोटी अवधियों या भागों में बाँट देता है। यह अवधि अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन के लिये अपर्याप्त है, अतः पुष्पन क्रिया (flowering) रुक जाती है।

फ्लोरीजन विचारधारा (Florigen concept) — यह देखा गया है कि जो पौधे प्रकाश की अवधि के प्रति संवेदनशील होते हैं उनमें पुष्पन की क्रिया सम्भवतः पत्तियों द्वारा प्राप्त किये गये प्रकाश पर निर्भर करती है।

जैसे - यदि एक अल्प प्रकाशीय पौधे जैन्थियम की केवल एक पत्ती को अल्प- प्रकाशीय दशा (short day conditions) में रखा जाये और शेष सम्पूर्ण पौधा दीर्घ प्रकाशीय दशा में रखा जाये तो उसमें पुष्पन क्रिया हो जाती है। यदि पौधे की एक शाखा को दीर्घ प्रकाश दशा में तथा दूसरी ऐसी शाखा जिसमें केवल एक ही पत्ती है, को अल्प प्रकाशीय दशा में रखा जाये तो दोनों ही शाखाओं में पुष्प उत्पन्न होते हैं।
यदि पौधे की पत्ती-रहित शाखा को अल्प-प्रकाशीय दशा में तथा शेष पौधे को दीर्घ प्रकाशीय दशा में रखा जाये तब किसी भी शाखा में पुष्प उत्पन्न नहीं होंगे।

इन प्रयोगों से निष्कर्ष निकला कि पत्तियों में एक पुष्प प्रेरक पदार्थ (flower inducing substance) उत्पन्न होता है, जो पौधे में सभी दिशाओं में स्थानान्तरित होता है। चेलाख्यान (Chailakhyan, 1936) ने इसे फ्लोरीजन (florigen) नाम दिया। यद्यपि यह पदार्थ अभी तक पृथक् नहीं हो पाया है। सम्भवतः फ्लोरीजन में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं नहीं

(a) जिबरेलिन (Gibberellin) — यह पदार्थ तने की निर्माण व वृद्धि हेतु आवश्यक है।
(b) एन्थेसिन (Anthesin) — यह पदार्थ पुष्प निर्माण के लिये आवश्यक है।


प्रकाश का प्रकार तथा पुष्पन (Quality of light and flowering) - पौधों में पुष्पन क्रिया प्रकाश के प्रकार से भी प्रभावित होती है। अल्प-प्रकाशीय पौधों में यदि अन्धकार अवधि को कुछ समय के लिये साधारण प्रकाश के स्थान पर लाल रंग के प्रकाश (red light) से बाधित (interrupt) किया जाये तो इन पौधों में पुष्प उत्पन्न नहीं होते। यदि लाल रंग के पश्चात् सुदूर लाल (far-red) रंग का प्रकाश दिया जाये तो लाल रंग का प्रभाव समाप्त हो जायेगा और पुष्प उत्पन्न होंगे। यदि लाल व सुदूर लाल रंगों के प्रकाश को कुछ समय के लिये एक-दूसरे के बाद दिया जाये तो अन्तिम रंग के प्रकाश का प्रभावन (exposure) ही पुष्पन क्रिया का निर्धारण करता है।

फाइटोक्रोम विचारधारा (Phytochrome concept)बोर्थविक तथा हेन्ड्रिक्स (Borthwick and Hendricks) ने पादप ऊतकों में फाइटोक्रोम = पादप रंग (phytochrome = plant colour) नामक विशेष ग्राही वर्णक की उपस्थिति ज्ञात की जिसे बटलर (Butler, 1954) ने पृथक् किया। फाइटोक्रोम वर्णक एक चमकीले नीले या नीले-हरे रंग का प्रोटीन है जो निम्न दो अन्तरापरिवर्तनीय (inter-convertible) अवस्थाओं में रहता है -

  • P, या P660 अवस्था — यह अवस्था अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन के लिये उद्दीपन का कार्य करती है तथा दीर्घ- प्रकाशीय पौधों में पुष्पन को संदर्भित (inhibits) करती है। इस अवस्था का प्रकाश अवशोषण शीर्ष (light absorption peak) लाल रंग का प्रकाश होता है, अर्थात् यह लाल रंग के प्रकाश (660 mμ) का अवशोषण करता है।
  • Pfr या P730 अवस्था — यह अवस्था अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन को संदर्भित (inhibits) करती है जबकि दीर्घ प्रकाशीय पौधों में पुष्पन क्रिया के लिये उद्दीपन (stimulus) का कार्य करती है। Pfr अवस्था का प्रकाश अवशोषण शीर्ष सुदूर लाल (far-red) रंग का प्रकाश (730mp) होता है, अर्थात् यह सुदूर लाल रंग के प्रकाश का अवशोषण करता है।

दीप्तिकालिता (Photoperiodism) : परिचय, प्रक्रिया, प्रकार|hindi

ऐसा प्रतीत होता है कि दिन के समय पौधों में Pfr अवस्था संचित हो जाती है। जब पौधों को सुदूर लाल रंग का प्रकाश दिया जाता है तो यह अवस्था Pr(P660) में बदल जाती है। अन्धकार या रात्रि के समय में भी Pfr, अवस्था Pr में बदल जाती है अथवा अन्य निष्क्रिय पदार्थों में टूट जाती है। Pr, अवस्था अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन (flowering) को प्रेरित करती है। Pr, अवस्था सूर्य के प्रकाश या लाल रंग के प्रकाश को अवशोषित करके पुनः Pfr अवस्था में बदल जाती है और यह Pfr अवस्था अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन क्रिया को संदर्भित करती है। यही कारण है कि अन्धकार अवधि में कुछ समय के लिये दिया गया सामान्य प्रकाश या लाल रंग का प्रकाश अल्प-प्रकाशीय पौधों में पुष्पन क्रिया को संदर्भित करता है।



दीप्तिकालिता के आधार पर पौधों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
  1. दीर्घ-प्रकाशीय पौधे (Long day plants) — जो पौधे निर्णायक दीप्तिकाल (critical photoperiod) से अधिक अवधि पर पुष्प उत्पन्न करते हैं, जैसे हेनबेन तथा पालक (spinach), आदि ।
  2. अल्प-प्रकाशीय पौधे (Short day plants) — जो पौधे निर्णायक दीप्तिकाल (ritical photoperiod) से कम अवधि पर पुष्प उत्पन्न करते हैं, जैसे सोयाबीन तथा जैन्थियम, आदि ।
  3. प्रकाश - निलम्बित पौधे (Photoneutral plants = Indeterminate) — इन पौधों में पुष्प उत्पन्न करने के लिये दीप्तिकाल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे टमाटर तथा मिर्च, आदि ।
  4. मध्यवर्ती प्रकाशीय पौधे (Intermediate plants) — जिन पौधों में पुष्प उत्पन्न करने के लिये 13 से 15 घण्टे तक प्रकाश की आवश्यकता होती है, जैसे मिकेनिया ।
  5. एम्बिफोटोपीरियोडिक पौधे (Ambiphotoperiodic plants) — जो पौधे 12 घण्टे से कम या 16 घण्टे से अधिक प्रकाश में पुष्पन करते हैं, जैसे मीडिया एलीगेन्स।
  6. दीर्घ - अल्प- प्रकाशीय पौधे (Long-short day plants) — जिन पौधों में पुष्प उत्पन्न करने के लिये पहले कुछ समय के लिये दीर्घ दीप्तिकाल की और बाद में अल्प दीप्तिकाल की आवश्यकता होती है, जैसे ब्रायोफिल्लम।
  7. अल्प- दीर्घ- प्रकाशीय पौधे (Short long day plants) — जिन पौधों में पुष्प उत्पन्न करने के लिये पहले कुछ समय तक अल्प दीप्तिकाल की और बाद में दीर्घ दीप्तिकाल की आवश्यकता होती है, जैसे गेहूँ ।

पौधों के पुष्पन पर आधारित दीप्तिकाल के महत्त्व के ज्ञान से उचित प्रयोगों द्वारा किसी भी ऋतु में पुष्प पैदा किये जा सकते हैं। प्रकाश के आधार पर पौधों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. प्रकाश-प्रिय (Photophilous = Heliophilous = Sunloving) — वे पौधे, जो प्रकाश में भली-भाँति उगते हैं और छाया में अच्छी प्रकार से नहीं उगते, जैसे सूर्यमुखी (Sunflower), सागौन, चीड़, आदि ।
  2. छाया-प्रिय (Sciophilous = Heliophobous) — वे पौधे, जो केवल छायादार स्थानों में ही अच्छी प्रकार से उगते हैं, जैसे एबीस (Abies), पाइसिया (Picea), टेक्सस (Taxus) ।



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