बहुवर्षी (perennial) पौधों के तनों में द्वितीयक जाइलम की परतें संकेन्द्रित (concentric) रूप में बनती हैं। पौधे को अनुप्रस्थ काटने पर यह rings के रूप में दिखलायी पड़ती हैं। इनको वार्षिक वलय (annual rings) अथवा वृद्धि वलय (growth rings) कहते हैं। कुछ स्थानों की जलवायु में बहुत अन्तर पाया जाता है जिस वजह से उन स्थानों पर cambium की सक्रियता वर्ष भर एक-सी नहीं होती है।
बसन्त (spring) ऋतु में रस के संवहन की आवश्यकता अधिक होती है। इस समय cambium ring अधिक सक्रिय होता है। इसी कारण इस समय बड़े घेरे वाली वाहिकाएँ (vessels) बनती हैं। शरद् ऋतु में रस का संवहन कम होता है और एधा वलय (cambium ring) की क्रियाशीलता भी कम होती है। इस समय जो वाहिकाएँ बनती हैं वे बसन्त वाली वाहिकाओं से छोटी होती हैं । बसन्त तथा शरद् में बनने वाली लकड़ी को क्रमशः बसन्त काष्ठ (spring or early wood) तथा शरद् काष्ठ ( autumn or late wood) कहते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में एक बसन्त काष्ठ और एक शरद् काष्ठ बनती हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से वार्षिक वलय (annual ring) कहते हैं।
प्रत्येक वार्षिक वलय (वृद्धि वलय) एक वर्ष की वृद्धि को दर्शाता है। इस कारण से एक वृक्ष में उपस्थित वार्षिक वलयों को गिनकर उसकी लगभग आयु (age) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है उदाहरण-चीड़ (Pinus), शीशम (Dalbergia sissoo) आदि। बहुत-से कारणों से (विपरीत वातावरण, सूखा, पत्तियों का काटा जाना, विभिन्न रोग) एक वर्ष में एक से अधिक वृद्धि वलय भी बन सकते हैं। जिन स्थानों पर सम्पूर्ण वर्ष जलवायु (तापक्रम व वर्षा) समान रहती है वहाँ के पौधों में वार्षिक वलय नहीं पाये जाते, जैसे समुद्रतटीय भागों, भूमध्य रेखा के समीप के भागों तथा ऊँचे पर्वतों पर। कुछ पेड़ों में बसन्त काष्ठ (spring wood) की बड़ी वाहिकाएँ (vessels) एक ring में स्थित होती हैं। ऐसी काष्ठ को रिंग-पोरस (ring-porous) कहते हैं। कुछ दूसरे वृक्षों में वाहिकाएँ प्रायः एक जैसे व्यास की होती हैं और बसन्त काष्ठ में इधर-उधर बिखरी रहती हैं। इस प्रकार के काष्ठ को डिफ्यूज पोरस (diffuse porous) कहते हैं।
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