ऊतक तन्त्र (Tissue System) विभिन्न प्रकार के होते हैं और उनकी प्रकृति और कार्य भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। उत्पत्ति, कार्यिकी अथवा दोनों समानताओं के आधार पर ये ऊतक परस्पर मिलकर ऊतक तन्त्र का निर्माण करते हैं।
सैच्स (Sachs 1875) के अनुसार, ऊतक तन्त्र तीन प्रकार के होते हैं
1. बाह्यत्वचा ऊतक तन्त्र (Epidermal tissue system),
2. भरण (मूलभूत ऊतक तन्त्र (Ground or Fundamental tissue system),
3. संवहन ऊतक तन्त्र (Vascular tissue system)
1. बाह्यत्वचा ऊतक तन्त्र (Epidermal Tissue System)
➤ यह ऊतक बाह्यत्वचा कोशिकाओं का बना होता है और पौधे के सभी भागों (तना, जड़, पत्ती, फल और (फूल) में यह एक रक्षक आवरण बनाता है जो पौधे के आन्तरिक ऊतकों की अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल की हानि तथा दूसरे यान्त्रिक आघातों से रक्षा करता है। केवल कुछ स्थानों जैसे रन्ध्र तथा वातरन्धों को छोड़कर यह एक अविरत स्तर के रूप में सभी अंगों को ढके रहता है।
1. बाह्यत्वचा ऊतक तन्त्र (Epidermal tissue system),
2. भरण (मूलभूत ऊतक तन्त्र (Ground or Fundamental tissue system),
3. संवहन ऊतक तन्त्र (Vascular tissue system)
1. बाह्यत्वचा ऊतक तन्त्र (Epidermal Tissue System)
➤ यह ऊतक बाह्यत्वचा कोशिकाओं का बना होता है और पौधे के सभी भागों (तना, जड़, पत्ती, फल और (फूल) में यह एक रक्षक आवरण बनाता है जो पौधे के आन्तरिक ऊतकों की अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल की हानि तथा दूसरे यान्त्रिक आघातों से रक्षा करता है। केवल कुछ स्थानों जैसे रन्ध्र तथा वातरन्धों को छोड़कर यह एक अविरत स्तर के रूप में सभी अंगों को ढके रहता है।
➤ बाह्यत्वचा कोशिकाएं प्रायः एक स्तर की होती है परन्तु बहुत से पौधों में यह द्विस्तरीय अथवा बहुस्तरीय भी होती है, जैसे बरगद (Ficus bengalensis = Banyan), कनेर (Nerium odorum Oleander) और पेपेसेमिया (Peperomia)।
➤ बाह्यत्वचा कोशिकाओं की रचना भिन्न पौधों में विभिन्न प्रकार की होती है। ये कोशाएँ जीवित होती हैं और इनमें एक केन्द्रीय रिक्तिका के चारों ओर जीवद्रव्य की परत होती है। इनमें प्रायः रंगहीन और छोटे लवक पाये जाते हैं, परन्तु सूर्य के प्रकाश में उगने वाले पौधों के रन्ध्रों की guard cells में, जलीय पौधों तथा नमी और छाया में उगने वाले पौधों की बाह्यत्वचा में हरितलवक होते हैं।
➤ कभी-कभी म्यूसिलेज (mucilage), टैनिन (tannins), कैल्सियम कार्बोनेट के बने सिस्टोलिव (cystoliths), इत्यादि भी इन कोशिकाओं में पाये जाते हैं। बाह्यत्वचा कोशिकाओं की रचना कुछ अनिश्चित होती है। ये एक-दूसरे के इतने समीप होते हैं कि इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान नहीं पाये जाते हैं।
➤ बाह्यत्वचा कोशिकाओं की रचना भिन्न पौधों में विभिन्न प्रकार की होती है। ये कोशाएँ जीवित होती हैं और इनमें एक केन्द्रीय रिक्तिका के चारों ओर जीवद्रव्य की परत होती है। इनमें प्रायः रंगहीन और छोटे लवक पाये जाते हैं, परन्तु सूर्य के प्रकाश में उगने वाले पौधों के रन्ध्रों की guard cells में, जलीय पौधों तथा नमी और छाया में उगने वाले पौधों की बाह्यत्वचा में हरितलवक होते हैं।
➤ कभी-कभी म्यूसिलेज (mucilage), टैनिन (tannins), कैल्सियम कार्बोनेट के बने सिस्टोलिव (cystoliths), इत्यादि भी इन कोशिकाओं में पाये जाते हैं। बाह्यत्वचा कोशिकाओं की रचना कुछ अनिश्चित होती है। ये एक-दूसरे के इतने समीप होते हैं कि इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान नहीं पाये जाते हैं।
➤ बाह्यत्वचा कोशिकाओं की भित्तियाँ अनिश्चित प्रकार से मोटी होती हैं। भीतरी तथा अरीय (radial) भित्तियाँ पतली तथा बाह्य भित्तियाँ अपेक्षाकृत मोटी होती हैं। यह अतिरिक्त मोटाई सुबेरिन (suberin) तथा क्यूटिन (cutin) एकत्रित होने के कारण हो जाती है। भित्तियों का सुबेरीकरण (suberization) तथा क्यूटिनीकरण (cutinization) यान्त्रिक आघातों से बाह्यत्वचा की रक्षा करता है एवं अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन को रोकता है।
➤ बहुत-से एकबीजपत्री (monocotyledonous) पौधों की पत्तियों की बाह्यत्वचा की कुछ कोशिकाएं बड़ी, महीन- भित्तीय, बड़ी रिक्तिकायुक्त और गोलाकार (bulliform=bubble-like) हो जाती हैं। ये कोशिकाएं या तो पत्तियों के खुलने में या स्फीति (turgidity) में परिवर्तन के कारण वातावरण के अनुसार पत्तियों के खुलने व बन्द होने में सहायता करती हैं।
➤ जड़ों के बाह्य स्तर को मूलीय त्वचा या एपीब्लेमा (epiblema) अथवा पिलीफेरस परत (piliferous layer) कहते हैं। साधारणतया इस परत की अनेक कोशिकाएं नलिकाकार एककोशीय मूलरोम (root hairs) बनाती हैं जो भूमि से जल के अवशोषण में सहायता करते हैं। बाह्यत्वचा (epiblema) पर उपत्वचा (cuticle) नहीं होती है।
2. भरण (मूलभूत) ऊतक तन्त्र (Ground or Fundamental Tissue System)
इस तन्त्र में बाह्यत्वचीय तथा संवहन ऊतक के अतिरिक्त अन्य सब ऊतक सम्मिलित होते हैं। द्विबीजपत्री तनों तथा द्विबीजपत्री और एकबीजपत्री जड़ों में [जिनमें संवहन बण्डल, वलय (ring) में होते हैं] निम्नलिखित भाग आते हैं-
(1) वल्कुट (Cortex),
- अधस्त्वचा (Hypodermis)
- सामान्य वल्कुट (General cortex)
- अन्तस्त्वचा (Endodermis)
(2) परिरम्भ (Pericycle),
(3) मध्यक अथवा मज्जा या पिथ (Medulla or Pith)।
(3) मध्यक अथवा मज्जा या पिथ (Medulla or Pith)।
एकबीजपत्री तनों जिनमें संवहन बण्डल (vascular bundles) भरण ऊतक(ground tissue) में बिखरे रहते हैं] में भरण ऊतक, वल्कुट तथा मज्जा (pith) अलग-अलग स्पष्ट नहीं होते हैं।
(1) वल्कुट (Cortex)
बाह्यत्वचा के नीचे पाया जाने वाला भरण ऊतक (ground tissue) जो अन्तस्त्वचा (endodermis) तक फैला रहता है Cortex कहलाता है। इसमें निम्नलिखित भाग होते हैं-
➤ अधस्त्वचा (Hypodermis) — द्विबीजपत्री पौधे में बाह्यत्वचा के नीचे स्थूलकोण ऊतक (collenchyma tissue) तथा एकबीजपत्री पौधों में बाह्यत्वचा के नीचे दृढ़ ऊतक (sclerenchyma tissue) की एक या कुछ परतें पूरी पट्टी के रूप में अथवा छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित पायी जाती हैं। जिन पौधों में उभार (ridges) पाये जाते हैं, स्थूलकोण ऊतक(collenchyma tissue) इन उभारों में स्थित रहता है, जैसे कुकुरबिटेसी (Cucurbitaceae) कुल के पौधों के तनों में। ये परतें रक्षा का कार्य करती हैं।
➤ सामान्य वल्कुट (General cortex) — यह ऊतक Hypodermis के नीचे पाया जाता है। इसमें पतली भित्तियुक्त मृदूतक कोशाएँ (parenchyma cells) होती हैं। इनमें सुविकसित अन्तराकोशीय स्थान (intercellular spaces) पाये जाते हैं। प्रायः तरुण तने की वल्कुट की कोशिकाओं में हरितलवक पाये जाते हैं। इस प्रकार के मृदूतक क्लोरेनकाइमा (chlorenchyma) कहलाते हैं।
➤ Cortex की कोशिकाओं में मण्ड, टैनिन, स्फट तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थ भी पाये जाते हैं। जलीय पौधों में cortex में एक विशेष प्रकार का मृदूतक पाया जाता है जिसे वायूतक (aerenchyma) कहते हैं। इसमें कोष्ठकों के बीच में काफी बड़े वायु-स्थान (air-spaces) मिलते हैं। वल्कुट पौधों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता है और भोज्य-पदार्थ का संग्रह करता है।
➤ अन्तस्त्वचा (Endodermis) अथवा मण्डछाद (Starch sheath) — यह कोशिकाओं की एकरेखीय (uniseriate) परत है जो वल्कुट (cortex) को रम्भ (stele) से पृथक् करती है। यह परत ढोल-सदृश (barrel-shaped) कोशिकाओं की बनी होती है और इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान नहीं होते हैं। ये कोशिकाएं जीवित होती हैं और इनमें मण्ड, टैनिन म्यूसिलेज की अधिकता होती है। मण्ड की उपस्थिति के कारण ही इसे मण्डछाद (starch sheath) भी कहते हैं। तने में यह परत बहुत स्पष्ट नहीं होती, परन्तु जड़ों में स्पष्ट होती है।
➤ इन मोटी भित्ति वाली अन्तस्त्वचा कोशाओं के बीच अनेक जड़ों में कुछ पतली भित्ति वाली कोशिकाएं प्रोटोजाइलम (protoxylem) के अभिमुख (opposite) होती हैं। इन कोशिकाओं को मार्ग कोशिकाएं (passage cells) अथवा ट्रान्सफ्यूजन कोशाएँ (transfusion cells) कहते हैं। इन कोशाओं द्वारा मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल व खनिज पदार्थ जाइलम में जाते हैं।
Read more - दारु या जाइलम (Xylem)
(2) परिरम्भ (Pericycle)
यह परत Endodermis और संवहन बण्डलों के बीच पायी जाती है। द्विबीजपत्री तनों में यह प्रायः multilayered होती है। इस परत में मृदूतक अथवा दृढ़ोतक का बना पूर्ण घेरा हो सकता है अथवा इन कोशिकाओं के छोटे समूह हो सकते हैं। आवृतबीजी पौधों में Pericycle कोशिकाओं से पार्श्व जड़ों (lateral roots) की उत्पत्ति होती है तथा द्विबीजपत्री जड़ों में इससे कॉर्क कैम्बियम उत्पन्न होती है।
(3) मध्यक (Medulla) अथवा पिथ (Pith)
➤ द्विबीजपत्री तनों और जड़ों का मध्य भाग पिथ अथवा मध्यक कहलाता है। तने का पिथ मृदूतक का बना होता है तथा इसमें मण्ड संचित होता है। पिथ कोशिकाओं के बीच सुविकसित अन्तराकोशीय स्थान पाये जाते हैं।
➤ एकबीजपत्री तनों में पिथ नहीं होता है तथा द्विबीजपत्री जड़ों में यह कम और एकबीजपत्री जड़ों में अधिक होता है। अधिक आयु वाले कुछ तनों में पिथ के मध्य का भाग नष्ट हो जाता है और द्विबीजपत्री जड़ों में द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) के पश्चात् पिथ प्रायः समाप्त हो जाता है या बहुत कम मात्रा में शेष रह जाता है। कुछ एकबीजपत्री जड़ों में पिथ दृढ़ ऊतक कोशिकाओं का बना होता है।
Read more - पोषवाह या फ्लोएम (Phloem)
संवहन ऊतक तन्त्र (Vascular Tissue System)
रम्भ (stele) में पाये जाने वाले अनेक संवहन बण्डल (vascular bundle) मिलकर संवहन ऊतक तन्त्र (Tissue System) का निर्माण करते हैं। अन्तस्त्वचा से घिरे बेलनाकार भाग को जिसमें संवहन बण्डल, परिरम्भ, पिथ तथा पिथ किरणें आती हैं रम्भ (stele) कहते हैं।
➤ प्रत्येक संवहन बण्डल (vascular bundle) कैम्बियम सहित तथा कैम्बियम रहित जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (phloem) का बना होता है। संवहन बण्डल द्विबीजपत्री तनों में एवं दोनों प्रकार की जड़ों में एक या अधिक (कुछ द्विबीजपत्री तनों में) घेरों में और एकबीजपत्री तनों में बिखरी हुई अवस्था में पाये जाते हैं।
एक संवहन बण्डल के भाग (Elements of a Vascular Bundle)
- जाइलम अथवा काष्ठ (Xylem or wood)
- फ्लोएम अथवा बास्ट (Phloem or bast)
- कैम्बियम या एधा (Cambium)
➤ द्विबीजपत्री तनों में जाइलम का विकास रम्भ के भीतरी भाग की ओर से होता है अर्थात् प्रोटोजाइलम मध्य भाग की ओर बनता है तथा मेटाजाइलम (metaxylem) बाहर की ओर होता है। इसे अपकेन्द्री (centrifugal) जाइलम कहते हैं और यह अवस्था मध्यादिदारुक (endarch) कहलाती है। एकबीजपत्री तनों में भी इसी प्रकार का विकास होता है।
➤ जड़ों में जाइलम का विकास पौधे के रम्भ में बाहरी भाग की ओर से होता है। दूसरे शब्दों में प्रोटोजाइलम (protoxylem) बाहर (periphery) की ओर बनता है। इसे अभिकेन्द्री (centripetal) जाइलम कहते हैं तथा इस अवस्था को जाइलम की exarch अवस्था कहते हैं।
➤ जड़ों में जाइलम का विकास पौधे के रम्भ में बाहरी भाग की ओर से होता है। दूसरे शब्दों में प्रोटोजाइलम (protoxylem) बाहर (periphery) की ओर बनता है। इसे अभिकेन्द्री (centripetal) जाइलम कहते हैं तथा इस अवस्था को जाइलम की exarch अवस्था कहते हैं।
Read more - विभज्योतकी ऊतक (Meristematic Tissue)
(ब) फ्लोएम (Phloem)
➤ तनों में फ्लोएम मध्य से दूर, किनारे की ओर पाया जाता है और मेटाजाइलम के ऊपर स्थित होता है। द्विबीजपत्री तनों में चालनी कोशाएँ (sieve tubes), सह-कोशाएँ (companion cells), फ्लोएम मृदूतक एवं फ्लोएम तन्तु मिलकर फ्लोएम की रचना करते हैं।
➤ एकबीजपत्री तनों में फ्लोएम चालनी नलिकाओं, सह-कोशाओं तथा फ्लोएम तन्तु का बना होता है और इन पौधों में फ्लोएम मृदूतक नहीं पाया जाता है। प्रोटोफ्लोएम बाहर की ओर होता है और यह संकीर्ण चालनी नलिकाओं का बना होता है। भीतरी भाग मेटाफ्लोएम कहलाता है।
(स) कैम्बियम या एधा (Cambium)
➤ द्विबीजपत्री तनों में जाइलम तथा फ्लोएम के बीच प्राथमिक विभज्योतक (primary meristem) की एक पतली पट्टी पायी जाती है जिसे कैम्बियम (cambium) कहते हैं। कैम्बियम की कोशिकाएँ आयताकार (rectangular) तथा पतली भित्तियुक्त होती हैं। कैम्बियम पट्टिका एक पर्त की होती हैं। एकबीजपत्री पौधों में कैम्बियम नहीं पाया जाता है।
Read more - स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)
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संवहन बण्डलों के प्रकार (Types of Vascular Bundles)
(i) अरीय (Radial)
(ii) संयुक्त (Conjoint)
(iii) संकेन्द्री (Concentric)
(i) अरीय (Radial) — जड़ों में जाइलम और फ्लोएम एक-दूसरे के एकान्तरित (alternate) भिन्न अर्धव्यासों (radii) पर पाये जाते हैं और तने की तरह एक स्थान में एकत्रित नहीं रहते हैं। इस प्रकार के संवहन बण्डलों को अरीय (radial) संवहन बण्डल कहते हैं।
(ii) संयुक्त (Conjoint) - तनों के जाइलम और फ्लोएम एक अर्धव्यास (radius) पर साथ साथ पाये जाते हैं। इस प्रकार के संवहन बण्डलों को संयुक्त (conjoint) कहते हैं। ये दो प्रकार के हो सकते हैं-
- बहि:फ्लोएमी (Collateral)
- उभयफ्लोएमी (Bicollateral)
(iii) संकेन्द्री (Concentric) — इस प्रकार के संवहन बण्डलों में एक प्रकार के संवहन ऊतक (vascular tissue) दूसरे प्रकार के संवहन ऊतकों को पूर्णतः घेरे रखते हैं। संकेन्द्री (concentric) संवहन बण्डल दो प्रकार के होते हैं-
- पोषवाह केन्द्री (Amphivasal=leptocentric) — इसमें फ्लोएम मध्य में होता है तथा चारों ओर से जाइलम द्वारा में घिरा रहता है, जैसे ड्रैसीना (Dracaena) या यक्का (Yucca) के तनों में।
- दारुकेन्द्री (Amphicribral=hadrocentric) - इसमें जाइलम मध्य में होता है तथा चारों ओर से फ्लोएम द्वारा घिरा रहता है, जैसे फर्न के राइजोम में तथा फलों, फूलों और कुछ द्विबीजपत्री पत्तियों में छोटे संवहन बण्डल। इस प्रकार के बण्डल सदा बन्द (closed) होते हैं।
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