सरल पत्ती की संरचना (Structure of a Simple Leaf)
प्रारूपिक सरल पत्ती के मुख्यतः निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-
(1) पर्णाधार (Leaf base)
(2) पर्णवृन्त (Petiole)
(3) पर्णफलक (Leaf blade or lamina)
(1) पर्णाधार (Leaf base) - पर्णाधार पत्ती का वह भाग होता है जो तने के साथ जुड़ा रहता है। कुछ पौधों की पत्तियों में Leaf base पर विशेष संरचनाएँ (पाश्वर्वीय) होती हैं जिन्हें अनुपर्ण (stipules) कहते हैं। ये कक्षस्थ कलिका की सुरक्षा करते हैं। ऐसी पत्तियाँ जिनके पर्णाधार पर अनुपर्ण उपस्थित होते हैं, अनुपर्णी (stipulate) कहलाती हैं तथा ऐसी पत्तियाँ जिनके पर्णाधार पर अनुपर्ण नहीं पाए जाते, अनुपर्णरहित या अननुपर्णी (exstipulate) कहलाती है।
(2) पर्णवृन्त (Petiole) - यह पत्ती का डण्ठल होता है। यह पत्ती के प्रमुख भाग को वायु तथा प्रकाश के लिए साधता है। ऐसी पत्तियाँ जिनमें वृन्त होता है, सवृन्त (petiolate) कहलाती हैं तथा जिनमें वृन्त नहीं होता है, वे अवृन्त (sessile) कहलाती हैं।
(3) पर्ण फलक (Leaf blade or lamina) - यह पत्ती का प्रमुख भाग होता है। यह सामान्यतः चपटा, हरा भाग है। पर्व सन्धि में दो सतह (तल), एक शीर्ष तथा दो तट होते हैं। इनका अपना विशेष आकार होता है।
अनुपर्णों के प्रकार (Types of Stipules)
Stipules का वर्गीकरण उसकी स्थिति, संलाग, अभिलाग, परिमाप अथवा आकृति के आधार पर किया जाता है। इनमें निम्नलिखित प्रकार प्रमुख हैं-(i) मुक्त पार्श्व (Free lateral)- यह कोमल, पतली, अलग-अलग दो शल्कीय संरचनाएँ होती है; जैसे-गुड़हल (china rose), कपास, भिण्डी आदि में।
(ii) संलग्न (Adnate or adherent) - यह पर्णवृन्त के साथ कुछ दूरी तक जुड़े रहते हैं, जैसे-गुलाब (rose) में।
(iii) अन्तःवृन्ती (Intrapetiolar) -दोनों Stipules अपने भीतरी तट से जुड़कर संयुक्त अनुपर्ण बनाते हैं; जैसे- गार्डनिया (Gardenia), हाउटिनिया (Houttuynia) आदि में।
(iv) अन्तरावृन्तक (Interpetiolar) - एक पर्वसन्धि (nodes) की दो पत्तियों के एक-एक अनुपर्ण (Stipule) अपने बाहरी किनारे से दोनों ओर जुड़ जाते हैं। इस प्रकार दो संयुक्त अनुपर्ण पत्तियों के साथ पर्वसन्धि पर एकान्तर क्रम में होते हैं; जैसे- इक्जोरा (Ixora) में।
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v) ऑक्रिऐट (Ochreate)- एक पत्ती के दोनों अनुपर्ण जुड़कर ऊपरी पर्व पर एक नलिका बना लेते हैं; जैसे-जंगली पालक (Rumex), नरा या पॉलिगोनम (Polygonum) में। कभी-कभी यह नलिका खुली होती है; जैसे-ऐस्ट्रागैलस (Astragalus) में।
अनुपर्ण सामान्यतः पत्ती की उम्र तक लगे रहते हैं, तो उन्हें अपाती (persistent) जैसे-मटर, गुलाब आदि में, यदि पत्ती के खुलने के पहले ही गिर जाते हैं तो उन्हें आशुपाती (caducous) जैसे- चम्पा में और यदि पत्ती खुलने के कुछ समय बाद तक लगे रहते हैं तो पर्णपाती (deciduous) उन्हें कहते हैं जैसे- डिलेनिया में।
कुछ पौधों में अनुपर्ण कुछ विशेष कार्य करने हेतु अपना स्वरूप बदल लेते हैं, इन्हें रूपान्तरित अनुपर्ण (modified stipules) कहा जाता है। जैसे-
(vi) पर्णिल (Foliaceous) - यह अनुपर्ण हरे तथा पत्ती जैसे होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं जैसे-मटर, जंगली मटर आदि ।
(vii) शल्की (Scaly) - यह अनुपर्ण छोटे, रंगहीन या भूरे, शुष्क होते हैं जो कलिका की सुरक्षा करते हैं जैसे-पीपल, बरगद (शीघ्र गिर जाते हैं)।
(viii) कंटक (Spiny) - यह अनुपर्ण काँटों के रूप में बदल जाते हैं जो जल की हानि को रोकते हैं जैसे-बेर, बबूल आदि ।
(ix) प्रतानी (Tendrillar) - अनुपर्ण प्रतान (tendrils) के रूप में होते हैं। यह पौधे के आरोहण में सहायक होते हैं जैसे-चोभवीनी (Smilax)।
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(क) पर्णाभवृन्त (Phyllode) - ऑस्ट्रेलियन बबूल में पर्णवृन्त हरी, लम्बी, चपटी पत्तियों में रूपान्तरित हो जाता है। नवोद्भिद पादपों (budding plants) में पत्ती पूर्ण होती है, किन्तु परिपक्व होने के बाद इसका फलक गिर जाता है और केवल पर्णवृन्त ही शेष रह जाता है। यह प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है।
(ख) सपक्ष पर्णवृन्त (Winged Peti- ole) -नींबू, सन्तरा आदि की पत्तियों में पर्णवृन्त पंख रूपी संरचना बनाता है।
पर्णवृन्त के रूपान्तरण (Modifications of Petioles)
पत्ती का डण्ठल पर्णवृन्त (Petioles) कहलाता है। यह नीचे की ओर पर्णाधार (Leaf base) से तथा ऊपर की ओर पर्णफलक (leaf blade) से जुड़ा रहता है। कुछ पौधों की पत्तियों में पर्णवृन्त रूपान्तरित हो जाता है जैसे-(क) पर्णाभवृन्त (Phyllode) - ऑस्ट्रेलियन बबूल में पर्णवृन्त हरी, लम्बी, चपटी पत्तियों में रूपान्तरित हो जाता है। नवोद्भिद पादपों (budding plants) में पत्ती पूर्ण होती है, किन्तु परिपक्व होने के बाद इसका फलक गिर जाता है और केवल पर्णवृन्त ही शेष रह जाता है। यह प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है।
(ग) प्रतानी पर्णवृन्त (Tendrillar Petiole) - कुछ आरोही पौधों में पर्णवृन्त प्रतान में रूपान्तरित होकर आरोहण में सहायक होते हैं जैसे-क्लीमेटिस, नैस्टर्शियम आदि।
(घ) प्लवन पर्णवृन्त (Floating Petiole) -जलकुम्भी, सिंघाड़ा आदि में पर्णवृन्त स्पंजी हो जाता है और floating में सहायता करता है।
पत्तियों के आकार (Shapes of Leaves)
पत्तियाँ विभिन्न आकार एवं आकृति की होती हैं जैसे-1) सूच्याकार (Acicular) - इसमें पत्ती का आकार सुई जैसा पतला तथा नोकदार होता है।
(2) रेखाकार (Linear) - इसमें पत्ती लम्बी एवं पतली होती हैं जैसे-दूबघास, धान, गेहूँ।
(3) भालाकार (Lanceolate) -भालाकार पत्ती का पर्णफलक बीच में मोटा तथा सिरों पर नुकीला होता है; जैसे—कनेर तथा बाँस।
(4) आयत रूप (Oblong) -इसमें पत्ती लगभग आयत के समान होती है जैसे- केला।
(5) अण्डाकार (Ovate) - इसमें पत्ती अण्डाकार होती है, परन्तु सिरे की अपेक्षा आधार का भाग अधिक चौड़ा होता है जैसे- पीपल तथा बरगद।
(6) हृदयाकार (Cordate) -हृदयाकार में पत्ती का पर्णफलक हृदय की आकृति का होता है। इसमें पत्ती का आधार हृदय जैसा चौड़ा एवं खाँचयुक्त होता है जैसे-पान।
(7) बाणाकार (Sagitate) -इसमें पत्ती का आकार बाण जैसा होता है। नीचे की ओर पत्ती पर्णवृन्त के दोनों ओर दो नुकीली पालियाँ बनाती है जैसे-सेजीटेरिया।
(8) भालाभ (Hastate) - यह बाणाकार पत्ती के समान होता है, परन्तु पत्ती के नीचे की पालियों के सिरे बाहर की ओर झुके रहते हैं जैसे—करेमुआ (Ipomea reptans)।
(9) वृक्काकार (Reniform) -इसमें पर्णवृन्त (Petiole) की ओर से पर्णफलक (Leafblade) अन्दर की ओर धँस जाता है। देखने में इसकी आकृति गुर्दे के समान होती है जैसे-ब्राह्मी।
(10) नवचन्द्राकार (Lunate) -इसमें पत्ती का आकार अर्द्धचन्द्राकार होता है जैसे- एडिएण्टम फर्न।
(11) अधोमुख अण्डाकार (Obovate) - यह अण्डाकार का उल्टा होता है। इसमें पत्ती के आधार की अपेक्षा सिरे का भाग चौड़ा होता है जैसे-कटहल और बादाम।
(12) अधोमुख हृदयाकार (Obcordate) - यह हृदयाकार का उल्टा होता है अर्थात् पत्ती का ऊपरी सिरा चौड़ा एवं खाँचयुक्त होता है जैसे- कचनार।
(13) स्पैचुलाकार (Spatulate) -इसमें पत्ती का ऊपरी भाग चौड़ा एवं गोल तथा आधार पतला होता है। इनकी आकृति चम्मच जैसी होती है जैसे- डेजी।
(14) फनाकार (Cuneate) - इसमें पत्ती का आकार सर्प के फन जैसा होता है तथा पर्णफलक की चौड़ाई आधार से ऊपर की ओर क्रमानुसार बढ़ती जाती है; जैसे-जलकुम्भी।
(15) दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) -इसमें पत्ती की आकृति अण्डाकार होती है, परन्तु पत्ती की चौड़ाई, लम्बाई से कुछ कम होती है जैसे- अमरूद।
(16) चक्राकार (Round) -इसमें पत्ती गोलाकार होती है जैसे- नैस्टर्शियम और कमल।
पर्णफलक का किनारा या तट (Leaf Margin of Leaf blade)
पत्तियों के किनारे चिकने या विभिन्न आकृतियों में कटे-फटे होते हैं। किनारे के कटानों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में विभक्त करते हैं-(1) अछिन्न तट (Entire margin) - इसमें पत्ती का किनारा चिकने तथा एकसमान होते हैं जैसे-आम, बरगद तथा कटहल की पत्तियाँ ।
(2) तरंगित तट (Wavy or Repand) - जब पत्ती के किनारे लहरदार होते हैं तो उसे तरंगित कहते हैं जैसे- अशोक की पत्ती।
(3) आरावत् (Serrate) - इसमें पत्ती के किनारे आरी के दाँतों के समान कटे होते हैं तथा सभी दाँत पत्ती के शिखर की ओर झुके रहते हैं जैसे-गुड़हल एवं गुलाब की पत्तियाँ।
(4) श्वदन्ती (Dentate) - इसमें पत्ती के किनारे आरावत् किनारे वाली पत्ती के समान होते हैं, परन्तु दाँत बाहर की ओर तथा पत्ती के किनारे के साथ समकोण बनाते हैं जैसे - खरबूजा तथा जलकुम्भी की पत्तियाँ।
(5) कुंठदन्ती (Crenate) - इसमें पत्तियों का कटाव दाँतों की भाँति गोल होता है जैसे- अजूबा और ब्राह्मी की पत्तियाँ।
(6) शूलमय (Spiny)- शूलमय पत्ती के किनारे अनेक पतले काँटों के रूप में बदल जाते हैं जैसे-परभण्डा (Argemone mexicana) की पत्ती।
(7) पालिकायुक्त (Lobed) - इसमें पत्ती के किनारे छोटी-छोटी पालियों में विभक्त हो जाते है, परन्तु पत्तियों के किनारों पर दाँत नहीं पाए जाते हैं जैसे-सरसों, मूली आदि की पत्तियाँ।
पर्णफलक का शीर्ष या अग्रक (Leaf Apex of Leaf blade)
पर्णफलक का शीर्ष निम्नलिखित प्रकार का होता है-(1) निशितान (Acute) - इसमें पर्णफलक का सिरा नुकीला एवं न्यूकोणीय होता है जैसे-आम तथा गुड़हल आदि ।
(2) लम्बान (Acuminate) - लम्बाम में पर्णफलक का सिरा लम्बा एवं पतला होता है जैसे-पीपल ।
(3) प्रतानी (Tendrillar) - इसमें पत्ती के आगे का हिस्सा प्रतान में परिवर्तित हो जाता है जैसे-ग्लोरिओसा।
(4) गोलाकार (Obtuse)- इसमें आगे का हिस्सा गोलाकार होता है जैसे बरगद।
(5) कंटकी (Spiny) -इसमें अग्रक तेज एवं नुकीला होता है जैसे-खजूर तथा केवड़ा।
(6) खाँचाग्री ( Retuse)- खाँचामी में आगे का हिस्सा गोल तथा इसके मध्य में एक खाँच होती है जैसे-पिस्टिया।
(7) गर्ती (Emerginate) - यह खाँचामी के समान होता है। इसमें खाँच गहरी होकर आगे के हिस्से को दो पालियों में विभक्त कर देती है जैसे कचनार एवं खट्टी-बूटी।
(8) रुण्डित (Truncate) - इसमें आगे का ऊपरी सिरा कटा प्रतीत होता है जैसे-साबूदाना ।
(9) संतन्तु (Cirrhose) - इसमें अग्रक एक पतले डोरे जैसी रचना में समाप्त हो जाता है जैसे केला।
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शिराविन्यास (Venation)
पत्ती की ऊपरी सतह पर धागे जैसी पतली-पतली रचनाएँ दिखाई देती है इन्हें शिराएँ (veins) कहते हैं। इनका सम्बन्ध पर्णवृन्त (Petiole) द्वारा तने के संवहन बण्डलों से होता है अर्थात् ये संवहन बण्डलों के शाखान्वित भाग हैं। शिराओं में दारू (xylem) एवं फ्लोएम (phloem) संवहन ऊतक पाए जाते हैं।भिन्न-भिन्न पौधों की पत्तियों में शिराओं के फैलने की व्यवस्था अलग-अलग होती है। पर्णफलक में शिराओं के वितरण की व्यवस्था को शिराविन्यास (venation) कहते हैं। शिराविन्यास दो प्रकार का होता है-
(क) जालिकारूपी शिराविन्यास
(ख) समानान्तर शिराविन्यास
(क) जालिकारूपी शिराविन्यास (Reticulate Venation)
इस प्रकार के शिराविन्यास में शिराएँ अनेक शाखाओं में बँटकर पर्णफलक के अन्दर जाल बनाती हैं। पर्णफलक में पाई जाने वाली मध्य शिराओं के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त करते हैं-(1) एकशिरीय (Unicostate) जालिकारूपी शिराविन्यास - इस प्रकार के शिराविन्यास में पर्णफलक के मध्य भाग में एक मोटी मध्यशिरा होती है। इससे अनेक पतली-पतली शिराएँ निकल कर फलक के किनारे या सिरे पर पहुँचती हैं जैसे-पीपल, अमरूद, आम आदि की पत्तियों में।
(2) बहुशिरीय (Multicostate) जालिकारूपी शिराविन्यास - इसमें पत्ती के पर्णवृन्त के सिरे से अनेक मोटी-मोटी मध्य शिराएँ निकलती हैं। यह अग्रलिखित दो प्रकार का होता है-
(i) अपसारी रूप (Divergent type)- इसमें पत्ती के पर्णवृन्त से निकली हुई मोटी-मोटी शिराएँ पर्णफलक के किनारों की ओर फैल जाती हैं जैसे-कुम्हड़ा, पीपल तथा रेंडी आदि की पत्तियों में।
(ii) अभिसारी रूप (Convergent type)- इसमें पर्णवृन्त से निकली हुई मोटी-मोटी शिराएँ पर्णफलक से होती हुई आगे चलकर फलक के सिरे पर पुनः मिल जाती हैं जैसे दालचीनी, बेर, तेजपात आदि की पत्तियों में।
(ख) समानान्तर शिराविन्यास (Parallel Venation)
समानान्तर शिराविन्यास में शिराएँ पर्णफलक में एक-दूसरे के साथ समान्तर फैली रहती हैं। पर्णफलक में पाई जाने वाली मध्य शिराओं के आधार पर यह दो प्रकार का होता है-(1) एकशिरीय (Unicostate) समानान्तर शिराविन्यास- इसमें पर्णफलक के मध्य में केवल एक मोटी मध्य शिरा होती है जिसके दोनों ओर समानान्तर शिराएँ निकल कर फलक के किनारे या सिरे पर पहुँचती हैं जैसे केला तथा अदरक आदि की पत्तियों में।
(2) बहुशिरीय (Multicostate) समानान्तर शिराविन्यास - इसमें पत्ती के आधार से अर्थात् पर्णवृन्त के सिरे से कई मध्य शिराएँ (मोटी शिराएँ) निकलती हैं। यह दो प्रकार का होता है-
(i) अपसारी रूप (Divergent type) - इसमें पर्णवृन्त के सिरे से निकलने वाली मोटी-मोटी समानान्तर शिराएँ पर्णफलक के किनारों की ओर फैल जाती हैं जैसे ताड़ की पत्ती में।
(ii) अभिसारी रूप (Convergent type)- इसमें पर्णवृन्त के सिरे से निकलने वाली मोटी-मोटी समानान्तर शिराएँ पर्णफलक में फैलकर पुनः सिरे पर मिल जाती हैं जैसे बाँस, धान तथा घास आदि की पत्तियों में।
शिराविन्यास का महत्त्व (Importance of Venation)
(1) जल, घुलित लवण तथा भोज्य पदार्थों का संचार करना- शिराएँ जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा घुलित लवण को तने के दारू (xylem) ऊतकों से लेकर, पर्णफलक की विभिन्न कोशिकाओं में पहुँचाती हैं और पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थों को फ्लोएम ऊतकों तक पहुँचाती हैं जिससे भोज्य पदार्थों का पौधों के विभिन्न भागों में वितरण हो सके।
(2) पर्णफलक को दृढ़ता प्रदान करना-शिराएँ पर्णफलक को कंकाल की भाँति दृढ़ता प्रदान करती है।
पत्ती का पर्णविन्यास (Phyllotaxy of Leaf)
तने की पर्वसन्धि पर पत्तियों की व्यवस्था एक विशेष क्रम में होती है। इस क्रम को पर्णविन्यास (phyllotaxy) कहते हैं। कभी एक पर्वसन्धि पर एक पत्ती होती है, कभी दो अथवा कभी दो से अधिक पत्तियाँ। इस प्रकार पर्णविन्यास अग्रलिखित तीन प्रकार के होते हैं-(1) एकान्तर (Alternate) - जब एक पर्वसन्धि पर एक पत्ती होती है तथा अगली और पिछली पर्वसन्धि पर लगी पत्ती से इसकी दिशा विपरीत होती है जैसे-गुड़हल, सरसों आदि।
(a) अध्यारोपित (Superposed) -जब पत्तियों की दिशा प्रत्येक पर्वसन्धि पर एक ही होती है जैसे- अमरूद।
(b) क्रॉसित (Decussate) -जब दो पत्तियों की दिशा प्रत्येक पर्वसन्धि पर पिछली तथा अगली पर्वसन्धि की अपेक्षा समकोण पर होती है जैसे-आक।
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FAQs
1. सरल पत्ती कितने प्रकार की होती है ?
सरल पत्ती दो प्रकार की होती है:
a. आकार के आधार पर - सरल पत्ती को उसके आकार के आधार पर निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है:
• विभाजित पत्ती - ऐसी पत्ती जिसमें पर्णफलक (leaf blade) दो या दो से अधिक भागों में विभाजित होता है। उदाहरण: आलू, पपीता, मक्का, आदि।
b. शिराविन्यास के आधार पर - सरल पत्ती को उसके शिराविन्यास (Venation) के आधार पर निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है:
• समांतर शिराविन्यास - ऐसी पत्ती जिसमें शिराएँ समांतर रूप से होती हैं। उदाहरण: आलू, पपीता, मक्का, आदि।
2. पत्ती के कितने भाग होते हैं ?
पत्ती के निम्नलिखित भाग होते हैं:
- पर्णफलक - यह पत्ती का मुख्य भाग है जो प्रकाश संश्लेषण करता है।
- पर्णवृन्त - यह पत्ती को तने से जोड़ता है।
- मुकुल - यह पत्ती के आधार पर स्थित होता है और नए तने या शाखा को जन्म देता है।
- कक्ष - यह पत्ती के आधार पर स्थित होता है और नई पत्तियों को जन्म देता है।
3. सरल पत्ती और संयुक्त पत्ती क्या है ?
सरल पत्ती में एक ही पर्णफलक होता है, जबकि संयुक्त पत्ती में दो या दो से अधिक पर्णफलक होते हैं। संयुक्त पत्ती को निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है:
• पंचपर्ण (Panchaparna) - ऐसी पत्ती जिसमें पाँच पर्णफलक होते हैं। उदाहरण: गुड़हल, आदि।
• त्रिपर्णक - ऐसी पत्ती जिसमें तीन जोड़े पर्णफलक (Leaf blade) होते हैं। उदाहरण: बरगद, आदि।
• पंचपर्णक (Pentacle) - ऐसी पत्ती जिसमें पाँच जोड़े पर्णफलक होते हैं। उदाहरण: नीम, आदि।
4. सरल पत्ती के दस उदाहरण क्या हैं ?
सरल पत्ती के दस उदाहरण निम्नलिखित हैं: नीम, आम, गुलाब, आलू, पपीता, मक्का, घास, केला, पीपल
5. पत्ती का मुख्य कार्य क्या है ?
पत्ती का मुख्य कार्य प्रकाश संश्लेषण करना होता है। प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पत्ती कार्बन डाइऑक्साइड और जल से ग्लूकोज और ऑक्सीजन का निर्माण करती है। ग्लूकोज पौधे के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जबकि ऑक्सीजन पौधे और जीवों के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, पत्ती वाष्पोत्सर्जन के द्वारा पौधे से अतिरिक्त जल को बाहर निकालती है। वाष्पोत्सर्जन पौधे के लिए आवश्यक है क्योंकि यह जल की गति को बनाए रखने में मदद करता है।
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