वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) : परिभाषा, प्रकार, महत्व, उपयोग|hindi


वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) : परिभाषा, प्रकार, महत्व, उपयोग|hindi

पौधे जड़ों द्वारा पृथ्वी से बहुत अधिक मात्रा में जल लेते हैं, परन्तु लिये गये जल की सम्पूर्ण मात्रा उनकी वृद्धि और विकास में काम नहीं आती है। जल की कुछ मात्रा ही पौधों की वृद्धि और विकास में काम आती है तथा शेष जल पौधों से द्रव (liquid) अथवा वाष्प (vapour) के रूप में वातावरण में चला जाता है। जीवित पौधों के वायवीय भागों (aerial parts) से जल के वाष्प के रूप में उड़ने को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं।


वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Kinds of Transpiration)

वाष्पोत्सर्जन पौधों के प्रत्येक वायवीय भाग (aerial part) से होता है, परन्तु अधिकतर वाष्पोत्सर्जन पत्तियों द्वारा होता है। वाष्पोत्सर्जन निम्न प्रकार का होता है-

1. रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal transpiration)— पत्तियों की निचली सतह पर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जिनकों रन्ध्र (स्टोमेटा) [stomata] कहते हैं। इन्हीं रन्ध्रों से वाष्प विसरित (diffuse) होकर वातावरण में चली जाती है। इस प्रकार के वाष्पोत्सर्जन को रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (stomatal transpiration) कहते हैं। कभी-कभी रन्ध्र (stomata) पत्ती की ऊपरी सतह पर भी पाये जाते हैं। लगभग 80-90% वाष्पोत्सर्जन रन्ध्रों (stomata) के द्वारा होता है।

2. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular transpiration) — बाह्यत्वचा (epidermis) के ऊपर उपत्वचा (cuticle) पायी जाती है। इनका मुख्य कार्य वाष्पोत्सर्जन को कम करना है, परन्तु कुछ मात्रा में जल इनसे होकर वाष्प के रूप में वातावरण में चला जाता है। इस प्रकार के वाष्पोत्सर्जन को उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (cuticular transpiration) कहते हैं। इस प्रकार का वाष्पोत्सर्जन पौधों में बहुत कम (लगभग 3 से 9%) होता है।

3. वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Lenticular transpiration) — बहुत से काष्ठीय (woody) पौधों के तनों में वातरन्ध्र (lenticels) पाये जाते हैं। कुछ जल वाष्प के रूप में इन वातरन्ध्रों द्वारा उड़ जाता है। इसको वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (lenticular transpiration) कहते हैं। इस प्रकार का वाष्पोत्सर्जन भी पौधों में बहुत कम (लगभग 0.1%) होता है।

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रन्ध्रीय (स्टोमीय) वाष्पोत्सर्जन (Stomatal Transpiration)

मूलरोम (root hairs) द्वारा शोषित जल वल्कुट (cortex) में होता हुआ दारु वाहिकाओं (xylem vessels) एवं वाहिनिकाओं (tracheids) में पहुँच जाता है। ये वाहिकाएँ जल को जड़ से पत्तियों की xylem cells में पहुँचाती हैं। इस कारण xylem cells का स्फीति - दाब (turgor pressure) mesophyll cells से अधिक हो जाता है। इसलिए जल xylem cells से mesophyll कोशाओं में पहुँच जाता है। 

Mesophyll कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशीय स्थान (intercellular spaces) होते हैं। इन अन्तराकोशीय स्थानों में वायु भरी रहती है। जल mesophyll cells से वाष्पीकरण के बाद अन्तराकोशीय स्थानों में आ जाता है तथा रन्ध्रों (stomata) से होकर वातावरण में पहुँच जाता है। इस प्रकार वाष्पोत्सर्जन एक द्विचरणीय प्रक्रिया (two stage process) है-

प्रथम चरण में mesophyll कोशिकाओं की नम को कोशिका-भित्ति से जल वाष्पित होकर उपरन्ध्रीय गुहा (substomatal cavity) में आता है।

• दूसरे चरण में उपरन्ध्रीय गुहा से जलवाष्प वायुमण्डल में विसरित हो जाती है।

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) : परिभाषा, प्रकार, महत्व, उपयोग|hindi



वाष्पोत्सर्जन की नवीन विचारधारा (New concept of transpiration) 

यह एक आम धारणा है कि जल वाष्पन मुख्यतया उपरन्ध्रीय गुहा (substomatal cavity) के समीप स्थित पर्णमध्यक कोशिकाओं से होता है, परन्तु क्रेमर (Kramer 1983) के अनुसार, पानी का अधिकांश वाष्पन रन्ध्रों के समीप स्थित बाह्यत्वचा की कोशाओं की आन्तरिक सतह से होता है। इसे परिरन्ध्रीय वाष्पन (peristomatal evaporation) भी कहते हैं। 

इस मत का आधार यह है कि mesophyll कोशिकाओं की कोशिका भित्ति पर भी उपत्वचा (cuticle) की उपस्थिति ज्ञात हुई है, जिसके कारण इन कोशाओं से अधिक जल वाष्पन (water evaporation) सम्भव नहीं है। इसके अतिरिक्त टायरी तथा यिनोलिस (Tyree and Yianoulis, 1980) ने उपरन्ध्रीय गुहा के विसरण के गणितीय मॉडल (mathematical model) में ज्ञात किया कि लगभग 75% जल वाष्पन रन्ध्रों (stomata) के समीप के भाग से होता है।


वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व (Significance of Transpiration)

प्रत्येक जीवधारी के समान जल पौधों के लिये भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। फिर भी इसकी भारी मात्रा वाष्पोत्सर्जन में उड़ जाती है। जल की कम मात्रा मिलने पर तथा अधिक मात्रा में वाष्पोत्सर्जन होने पर पौधों के लिये एक बड़ी समस्या हो जाती है। 

बहुत से पौधे जल के अधिक उड़ने की हानियों से बचने के लिये अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया ही समाप्त हो जाती है अथवा काफी मात्रा में कम हो जाती है। कुछ वैज्ञानिकों के विचार में यह एक उपयोगी घटना है। कुछ का मत है कि यह हानिकारक है और कुछ इसको दोनों रूपों में देखते हैं, अर्थात् आवश्यक दुर्गुण (necessary evil) मानते हैं (Curtis 1926) ।


वाष्पोत्सर्जन की उपयोगिता (Importance of Transpiration)

1. जल का परिसंचरण (Circulation of water) - पौधे के मूल से चोटी तक लगातार जल की धारा वाष्पोत्सर्जन के द्वारा ही प्रवाहित होती है, परन्तु यह धारणा ठीक प्रतीत नहीं होती, क्योंकि यदि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की हानि नहीं होती तो जल के अधिक मात्रा में ऊपर चढ़ने की भी आवश्यकता नहीं होती।

2. खनिज तत्वों का अवशोषण तथा परिवहन (Absorption and distribution of mineral elements) — कुछ लोगों का मत है कि वाष्पोत्सर्जन खनिज अवशोषण एवं परिवहन में सहायता करता है, परन्तु यह सिद्ध किया जा चुका है कि जल-अवशोषण एवं खनिज अवशोषण एक-दूसरे से भिन्न क्रियाएँ हैं। खनिज परिवहन में वाष्पोत्सर्जन अवश्य सहायता करता है।

3. तापक्रम सन्तुलन (Regulation to temperature) — पत्तियों पर पड़ने वाले प्रकाश का केवल 12% भाग परावर्तित होकर वातावरण में चला जाता है, 83% प्रकाश पत्ती द्वारा शोषित किया जाता है तथा 5% प्रकाश पत्ती में से होता हुआ पार निकल जाता है। वाष्पोत्सर्जन में यह ऊर्जा काम में आ जाती है। इस प्रकार वाष्पोत्सर्जन तापक्रम सन्तुलन बनाये रखने में पौधों की सहायता करता है, परन्तु वाष्पोत्सर्जन का पत्तियों का तापक्रम कम करने में अधिक महत्त्व नहीं है, क्योंकि पत्ती का वाष्पोत्सर्जन रोकने पर अधिक-से-अधिक 5°C तक तापमान बढ़ता है जो विशेष हानिकारक नहीं है।


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