जीवाणु कोशिका की रचना (Structure of Bacterial Cell)
जीवाणु एककोशिकीय (unicellular) सूक्ष्मजीव होते हैं। इनकी कोशिका प्रोकैरियोटिक (prokaryotic) प्रकार की होती है। इनमें कोशिका भित्ति स्पष्ट होती है तथा एक श्लेष्मी आवरण (slime layer) अथवा कैप्सूल (capsule) से ढकी होती है। इसकी संरचना का अध्ययन करने में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) व नयी विकसित स्टेनिंग तकनीकों से बहुत सहायता मिली है। आइए जानते हैं जीवाणु कोशिका की संरचना के बारे में विस्तार से:स्लाइम परत (Slime Layer)
स्लाइम की परत कोशिका भित्ति के बाहर एक आवरण के रूप में होती है। इसमें पानी की अधिकता होती हैं जिसके कारण आवश्यकता पड़ने पर यह जीवाणु कोशिका की पानी की कमी को पूरा करने में सक्षम होती है। इसकी संरचना जीवाणुओं की विभिन्न जातियों में अलग-अलग होती है। इसमें पॉलिसैकेराइड (polysaccharides), जैसे-डेक्सट्रान (dextrans), लेवान (levans) तथा एमिनो अम्ल (amino acids) से निर्मित पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला (polypeptide chain) होती है।एक मत के अनुसार, जब यह परत पॉलिसैकेराइड से बनी होती है तो स्लाइम परत कहलाती है। यदि इसमें नाइट्रोजन युक्त पदार्थ भी हैं तो यह कैप्सूल (capsule) कहलाती है। इससे जीवाणु की सुरक्षा होती है। इस परत को ग्लाइकोकेलिक्स (glycocalyx) कहते हैं।
रासायनिक रूप से यह भित्ति म्यूरीन (murein) या म्यूकोपेप्टाइड (mucopeptide) या पेप्टीडोग्लाइकान (peptidoglycan) की बनी होती है। इसमें एसीटिल म्यूरामिक एसिड (N-acetyl muramic acid) तथा एसीटिल ग्लूकोसामीन (N-acetyl glucosamine), बीटा 1, 4 लिंकेज (ẞ 1, 4 linkage) द्वारा जुड़े रहते हैं।
राइबोसोम (Ribosomes): ये प्रोटीन तथा RNA के बने होते हैं। जीवाणु कोशिका में राइबोसोम 70S type के होते है। यह 30S तथा 50S की दो उपइकाइयों (subunits) का बना होता है।
RNA : यह तीन रूपों में होता है: (i) mRNA, (ii) tRNA तथा (iii) rRNA.
जीवाणुओं में बैक्टीरियल गुणसूत्र के अलावा प्लाज्मिड (plasmid) भी पाये जाते हैं। ये अतिरिक्त वृत्ताकार DNA अणु होते हैं जिन पर जीवाणु-उपापचय के मुख्य जीन नहीं होते हैं, किन्तु इनमें स्वतन्त्र रूप से द्विगुणन (replication) की क्षमता होती है। जो प्लाज्मिड बैक्टीरियल गुणसूत्र से जुड़कर उनका अभिन्न भाग बनाते है, उन्हें एपीसोम (episome) कहते हैं।
जिन जीवाणुओं में फ्लैजेला अनुपस्थित होते हैं उनको एट्राइकस (atrichous) कहते हैं। ये अचल (non-motile) जीवाणु होते हैं, जैसे पास्चुरैला (Pasteurella)। जिन जीवाणुओं में फ्लैजेला मिलते हैं वे जीवाणु ट्राइकस (trichous) कहलाते हैं तथा गतिशील (motile) होते हैं। चल जीवाणु ये निम्न प्रकार के होते हैं।
(a) मोनोट्राइकस (Monotrichous) : जीवाणु कोशिका के एक सिरे पर एक ही फ्लैजेलम (flagellum) होता है, जैसे स्यूडोमोनास (Pseudomonas)।
(b) एम्फीट्राइकस (Amphitrichous) : जब जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर एक या एक से अधिक फ्लैजेला हो तो उसे एम्फीट्राइकस कहते हैं, जैसे नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas)।
(c) लोफोट्राइकस (Lophotrichous) : इसमें जीवाणु कोशिका के एक सिरे पर फ्लैजेला गुच्छे के रूप में होता हैं, जैसे स्पाइरिलम वाल्यूटेन्स (Spirillum volutans)।
(d) पेरीट्राइकस (Peritrichous): जब कोशिका के चारों तरफ फ्लैजेला उपस्थित हों तो इस प्रकार के विन्यास को पेरीट्राइकस कहते हैं, जैसे क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium)।
जीवाणु फ्लैजेला अनेक सूक्ष्म तन्तुओं के सर्पिलक्रम में व्यवस्थित होने से बनते हैं। इनमें मिलने वाली छोटी उपइकाइयों (subunits) का व्यास 40Å-50Å तक हो सकता है।
फिम्ब्री की संख्या 300-400 प्रति कोशिका होती है। इनकी चौड़ाई 3-10 nm तथा लम्बाई 0.5-1.5 mm होती है। ये जीवाणु को परपोषी के ऊतक से चिपकने में सहायता प्रदान करते हैं। इनकी सहायता से जीवाणु आपस में तथा ठोस सतह से चिपक सकते हैं। फिम्ब्री की उत्पत्ति पर nucleoid gene का नियन्त्रण होता है।
जीवाणुओं में कोशिका भित्ति (Bacterial cell-wall)
कोशिका भित्ति की संरचना यूकैरियोटिक (eukaryotic) कोशिका से भिन्न होती है तथा कोशिका भित्ति दृढ़ (rigid) होती है।रासायनिक रूप से यह भित्ति म्यूरीन (murein) या म्यूकोपेप्टाइड (mucopeptide) या पेप्टीडोग्लाइकान (peptidoglycan) की बनी होती है। इसमें एसीटिल म्यूरामिक एसिड (N-acetyl muramic acid) तथा एसीटिल ग्लूकोसामीन (N-acetyl glucosamine), बीटा 1, 4 लिंकेज (ẞ 1, 4 linkage) द्वारा जुड़े रहते हैं।
एसीटिल म्यूरामिक एसिड से एक छोटी पेप्टाइड चैन (peptide chain) जुड़ी होती है जिसमें L- एलेनीन (L-alanine), D-ग्लूटामिक एसिड (D-glutamic acid), डाइएमिनोपामिलिक एसिड (diaminopimalic acid) तथा D-एलेनीन (D-alanine) हो सकते हैं। ग्राम पोजिटिव जीवाणु की कोशिका में दो पंक्तियों की पेप्टाइड चैन, आपस में पेन्टाग्लाइसिन चैन (pentaglycine chain) से cross linked होती हैं।
कुछ जीवाणुओं, जैसे एसीटोबैक्टर जायलिनम (Acetobacter xylinum) तथा जायमोसारसीना वेन्टीकुलाई (Zymosarcina venticuli) में कोशिका भित्ति सेलुलोस (cellulose) की बनी होती है।
कुछ जीवाणुओं, जैसे एसीटोबैक्टर जायलिनम (Acetobacter xylinum) तथा जायमोसारसीना वेन्टीकुलाई (Zymosarcina venticuli) में कोशिका भित्ति सेलुलोस (cellulose) की बनी होती है।
जीवद्रव्य कला (Plasma Membrane)
यह लिपोप्रोटीन की बनी होती है। यह membrane पोषक पदार्थों (nutrients) तथा उत्सर्जी पदार्थों के आदान-प्रदान पर नियन्त्रण रखती है। यह झिल्ली अर्धपारगम्य (semipermeable) होती है। इसके infoldings से मीसोसोम (mesosomes) बनते हैं।कोशिका भित्ति तथा जीवद्रव्य कला के बीच के स्थान को पेरीप्लाज्मिक स्थान (periplasmic space) कहते हैं। इसमें लगभग 60% प्रोटीन, 30% लिपिड तथा 10% कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
जीवाणु कोशिका में माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria), एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम (endoplasmic reticulum), गॉल्जी बॉडीज (Golgi bodies), सेन्ट्रोसोम (centrosomes) नहीं पाए जाते हैं। इसके क्रोमेटिन या केन्द्रक क्षेत्र (chromatin or nuclear area) में DNA अधिक तथा शेष भाग में RNA अधिक पाया जाता है। प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में क्रोमेटोफोर (chromatophores) मिलते हैं किन्तु यूकैरियोटिक कोशिका मे मिलने वाले क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) नहीं मिलते हैं।
मध्यकाय (Mesosomes)
अधिकांश मीसोसोम ग्राम पोजिटिव जीवाणुओं में पाए जाते हैं। इनके कई आकार सम्भव हो सकते हैं। आमतौर पर ये नलिकावत् (tubular) या वेसीकुलर (vesicular) होते हैं। इनकी रासायनिक संरचना जीवद्रव्य कला के समान होती है। इनमें श्वसन के लिए आवश्यक enzymes पाए जाते हैं। इनके कार्य की तुलना यूकैरियोटिक कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया से की जा सकती है। कोशिका विभाजन व अन्तः बीजाणु (endospore) बनने के समय क्रॉस भित्ति बनाने में इनका योगदान महत्त्वपूर्ण होता है।कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
कोशिकाद्रव्य में जल (water), प्रोटीन (protein), एमिनो अम्ल (amino acid), एन्जाइम्स (enzymes), न्यूक्लीक अम्ल (nucleic acids: DNA and RNA both), कार्बोहाइड्रेट्स, लिपिड, विटामिन्स (vitamins), खनिज तत्त्व (mineral elements) मिलते हैं। इसमें स्टार्च (starch), ग्लाइकोजन (glycogen) तथा वाल्युटिन (volutin) के कण (granules) भी संचित रहते हैं। कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं में सल्फर (sulphur) तथा आयरन भी पाए जाते हैं।जीवाणु कोशिका में माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria), एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम (endoplasmic reticulum), गॉल्जी बॉडीज (Golgi bodies), सेन्ट्रोसोम (centrosomes) नहीं पाए जाते हैं। इसके क्रोमेटिन या केन्द्रक क्षेत्र (chromatin or nuclear area) में DNA अधिक तथा शेष भाग में RNA अधिक पाया जाता है। प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में क्रोमेटोफोर (chromatophores) मिलते हैं किन्तु यूकैरियोटिक कोशिका मे मिलने वाले क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) नहीं मिलते हैं।
राइबोसोम (Ribosomes): ये प्रोटीन तथा RNA के बने होते हैं। जीवाणु कोशिका में राइबोसोम 70S type के होते है। यह 30S तथा 50S की दो उपइकाइयों (subunits) का बना होता है।
RNA : यह तीन रूपों में होता है: (i) mRNA, (ii) tRNA तथा (iii) rRNA.
केन्द्रकाभ (Nucleoid)
जीवाणु कोशिका में केन्द्रक नहीं होता है। इनमें आनुवंशिक पदार्थ एक गोलाकार DNA अणु के रूप में होता है। इसके साथ हिस्टोन प्रोटीन नहीं होते हैं। यह कोशिकाद्रव्य में नग्न DNA के रूप में पड़ा होता है और RNA पॉलिमेरेज व नॉन-हिस्टोन प्रोटीन के साथ कुण्डलित रहता है। इसे प्रोक्रोमोसोम (prochromosome) भी कहते हैं।इसके चारों ओर केन्द्रक कला नहीं होती है और न्यूक्लिओलस भी अनुपस्थित होता है। इस प्रकार के अपूर्ण केन्द्रक को आरम्भी केन्द्रक (incipient nucleus) अथवा न्यूक्लिओइड (nucleoid) कहते हैं।
जीवाणुओं में बैक्टीरियल गुणसूत्र के अलावा प्लाज्मिड (plasmid) भी पाये जाते हैं। ये अतिरिक्त वृत्ताकार DNA अणु होते हैं जिन पर जीवाणु-उपापचय के मुख्य जीन नहीं होते हैं, किन्तु इनमें स्वतन्त्र रूप से द्विगुणन (replication) की क्षमता होती है। जो प्लाज्मिड बैक्टीरियल गुणसूत्र से जुड़कर उनका अभिन्न भाग बनाते है, उन्हें एपीसोम (episome) कहते हैं।
कशाभ या फ्लैजेला (Flagella)
फ्लैजेला फ्लैजेलिन (flagellin) नामक प्रोटीन के बने होते हैं। इनके द्वारा जीवाणु में Locomotion होता है। इनमें यूकैरियोटिक फ्लैजेला की तरह (9 + 2) की संरचना नहीं मिलती है। जीवाणुओं में फ्लैजेलम तीन भागों से मिलकर बना होता है: (a) बेसल ग्रेन्यूल (basal granule), (b) हुक (hook) तथा (c) मुख्य तन्तु (main filament)।जिन जीवाणुओं में फ्लैजेला अनुपस्थित होते हैं उनको एट्राइकस (atrichous) कहते हैं। ये अचल (non-motile) जीवाणु होते हैं, जैसे पास्चुरैला (Pasteurella)। जिन जीवाणुओं में फ्लैजेला मिलते हैं वे जीवाणु ट्राइकस (trichous) कहलाते हैं तथा गतिशील (motile) होते हैं। चल जीवाणु ये निम्न प्रकार के होते हैं।
(a) मोनोट्राइकस (Monotrichous) : जीवाणु कोशिका के एक सिरे पर एक ही फ्लैजेलम (flagellum) होता है, जैसे स्यूडोमोनास (Pseudomonas)।
(b) एम्फीट्राइकस (Amphitrichous) : जब जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर एक या एक से अधिक फ्लैजेला हो तो उसे एम्फीट्राइकस कहते हैं, जैसे नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas)।
(c) लोफोट्राइकस (Lophotrichous) : इसमें जीवाणु कोशिका के एक सिरे पर फ्लैजेला गुच्छे के रूप में होता हैं, जैसे स्पाइरिलम वाल्यूटेन्स (Spirillum volutans)।
(d) पेरीट्राइकस (Peritrichous): जब कोशिका के चारों तरफ फ्लैजेला उपस्थित हों तो इस प्रकार के विन्यास को पेरीट्राइकस कहते हैं, जैसे क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium)।
जीवाणु फ्लैजेला अनेक सूक्ष्म तन्तुओं के सर्पिलक्रम में व्यवस्थित होने से बनते हैं। इनमें मिलने वाली छोटी उपइकाइयों (subunits) का व्यास 40Å-50Å तक हो सकता है।
रोम तथा फिम्बी (Pili and Fimbriae)
ग्राम नेगेटिव जीवाणुओं की कुछ जातियों में फ्लैजिला के अलावा कोशिका भित्ति से अनेक सूक्ष्म, दृढ़ तथा सीधे, नलिकाकार, रोमाकार उपांग निकलते हैं। इनको फिम्ब्री कहते हैं।
ये पीली (pili) प्रोटीन के बने होते हैं जो सेन्ट्रल कोर के चारों तरफ कुण्डलित रहते हैं। पीली फिम्ब्री की अपेक्षा अधिक लम्बे होते हैं। ये प्रति कोशिका में एक से चार तक हो सकते हैं।
Pili दाता जीवाणु कोशिका (donor bacterial cell) के DNA को ग्राही जीवाणु कोशिका (recepient bacterial cell) में स्थानान्तरित करने के काम आती हैं। इनको लिंगी रोम (sex pili) भी कहते हैं।
इनकी लम्बाई 0.5-20 nm तथा चौड़ाई 30-80 Å तक होती है। पीली की उत्पत्ति पर fertility factor का नियन्त्रण होता है।
फिम्ब्री की संख्या 300-400 प्रति कोशिका होती है। इनकी चौड़ाई 3-10 nm तथा लम्बाई 0.5-1.5 mm होती है। ये जीवाणु को परपोषी के ऊतक से चिपकने में सहायता प्रदान करते हैं। इनकी सहायता से जीवाणु आपस में तथा ठोस सतह से चिपक सकते हैं। फिम्ब्री की उत्पत्ति पर nucleoid gene का नियन्त्रण होता है।
रोम तथा फिम्ब्री के कार्य
- ये आसंजक अंग (adhesive organ) की तरह कार्य करते हैं।
- ये संयुग्मन में आनुवंशिक पदार्थ के स्थानान्तरण में सहायक होते हैं।
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