आर०एन०ए० अणुओं के प्रकार (Types of RNA Molecules)|hindi


आर०एन०ए० अणुओं के प्रकार (Types of RNA Molecules)
आर०एन०ए० अणुओं के प्रकार (Types of RNA Molecules)|hindi

प्रत्येक कोशिका (cell) में प्रोटीन संश्लेषण के संचालन हेतु RNA के तीन प्रकार के अणु होते हैं—
  1. राइबोसोमी आर०एन०ए० (ribosomal RNA- rRNA)
  2. संदेशवाहक आर०एन०ए० ( messenger RNA-mRNA)
  3. हस्तांतरण आर०एन०ए० (transfer RNA – tRNA)

1. राइबोसोमी आर०एन०ए० अणु (ribosomal RNAs—rRNAs) : ये RNA के ऐसे अणु होते हैं जो सभी कोशिकाओं में पाए जाने वाले राइबोसोम्स (ribosomes) नामक कोशिकांगों (cell organelles) की रचना तथा कार्यिकी में भाग लेते हैं। राइबोसोम्स उन निर्माण स्थलों या मंचों (workbenches) का काम करते हैं जिन पर प्रोटीन्स की पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं (polypeptide chains) का संश्लेषण होता है। इसीलिए, कोशिकाओं में इन्हीं कोशिकांगों की संख्या सबसे अधिक होती है। 

प्रत्येक prokaryotic कोशिका में इनकी संख्या लगभग 15,000 से 75,000 और प्रत्येक eukaryotic कोशिका में लाखों में होती है। प्रत्येक राइबोसोम का लगभग 65% भाग राइबोसोमी RNA (rRNA) के अणुओं का और शेष 35% भाग प्रोटीन अणुओं का बना होता है। इसीलिए, कोशिका के समग्र RNA में से लगभग 80 से 90% राइबोसोमी RNA होता है।

आर०एन०ए० अणुओं के प्रकार (Types of RNA Molecules)|hindi


Prokaryotic कोशिकाओं में तथा सारी Eukaryotic कोशिकाओं के प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिऑन (mitochondrion) तथा पादप कोशिकाओं के प्रत्येक प्लास्टिड (plastid) में उपस्थित प्रत्येक राइबोसोम में विभिन्न प्रोटीन्स के 55, परन्तु राइबोसोमी RNA के केवल तीन अणु होते हैं जिन्हें 5S (120 न्यूक्लिओटाइड्स), 165 (1542 न्यूक्लिओटाइड्स) तथा 23 S (2904 न्यूक्लिओटाइड्स) के सांकेतिक नाम दिए गए हैं। 

राइबोसोमी RNA (rRNA) के अणुओं के ये नाम इनके ultracentrifugal sedimentation coefficients, अर्थात् अवसादन की दरों पर रखे गए हैं जिन्हें “S मानक (S. values) या स्वेडबर्ग के मात्रक (Svedberg's units)" कहते हैं। Eukaryotic कोशिकाओं के साइटोसॉल में उपस्थित प्रत्येक राइबोसोम में 82 प्रोटीन्स के तथा 4 राइबोसोमी RNA के अणु होते हैं—5 S (120 न्यूक्लिओटाइड्स), 5.8S (160 न्यूक्लिओटाइड्स), 18 S (1874 न्यूक्लिओटाइड्स) तथा 28 S (4718 न्यूक्लिओटाइड्स)।

सारे राइबोसोमी RNA अणुओं की, लगभग एक ही प्रतिरूप (pattern) की त्रिविम (3-dimensional) आकृति होती है। इसमें मूल पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला को प्राथमिक संरचना (primary structure) कहते हैं। 

श्रृंखला में वलनों और लूपों के बनने से अणु की द्वितीयक (secondary) एवं तृतीयक (tertiary) स्तरों की संरचना बन जाती है। फिर राइबोसोम्स में प्रोटीन अणुओं से मिलकर ये अणु राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन सम्मिश्र (ribonucleoprotein complex) बनाते हैं जिसमें और अधिक वलन के कारण इनकी चतुर्थक संरचना (quaternary structure) बन जाती है।


2. संदेशवाहक आर०एन०ए० अणु (messenger RNAs or mRNAs) : ये RNA के वे क्रियात्मक (functional) अणु होते हैं जिनमें प्रोटीन संश्लेषण की संकेत सूचनाएँ DNA के जीन्स से transcription द्वारा स्थानान्तरित (transfer) होती हैं। फिर सन्देशवाहक RNA अणु साइटोसॉल में जाकर राइबोसोम्स पर जीन्स के अनुरूप प्रोटीन अणुओं की पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के संश्लेषण के लिए साँचों (templates) का काम करते हैं, अर्थात् DNA की न्यूक्लिओटाइड संकेत सूचनाओं का प्रोटीन अणुओं की ऐमीनो अम्ल सूचनाओं में अनुवाद (translation) करते हैं, या यह कहिए कि DNA की संकेत सूचनाओं के अनुसार लक्षणों के विकास से सम्बन्धित प्रोटीन्स के संश्लेषण का संचालन करते हैं। इन्हें संदेशवाहक RNA अणुओं (messenger RNAs-mRNAs) का नाम सन् 1961 में फ्रैंसिस जैकब (Francis Jacob) तथा जैक्यूस मोनोद (Jacques Monod) ने दिया।

संदेशवाहक RNA (mRNA) के अणु लम्बे, धागेनुमा होते हैं। केन्द्रक से साइटोसॉल (cytosol) में जाकर संदेशवाहक RNA अणु राइबोसोम्स से जुड़कर ऐसे साँचों (templates) का काम करते हैं जिन पर साइटोसॉल से ऐमीनो अम्लों के अणु आ-आकर, DNA की संकेत सूचना के अनुसार, एक-दूसरे के पीछे जुड़-जुड़कर प्रोटीन अणु की पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ बनाते हैं। 

पूर्वकेन्द्रकीय (prokaryotic) कोशिकाओं (जीवाणुओं-bacteria) में एक ही संदेशवाहक RNA अणु में प्रायः एक से अधिक पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बहुलकीकरण (polymerization) की सूचना होती है। अतः इन संदेशवाहक RNA अणुओं को पोलीसिस्ट्रोनिक (polycistronic) कहते हैं। इनके विपरीत, Eukaryotic कोशिकाओं में प्रत्येक संदेशवाहक RNA अणु में केवल एक ही पोलीपेप्टाइड श्रृंखला के बहुलकीकरण की सूचना होती है। इन्हें, इसीलिए, मोनोसिस्ट्रोनिक (monocistronic) कहते हैं। सिस्ट्रोन (cistron) शब्द का उपयोग प्रायः एक जीन के लिए ही किया जाता है।

पोलीपेप्टाइड्स के बहुलकीकरण के बाद, संदेशवाहक RNA अणुओं का शीघ्र ही अपघटन हो जाता है। अतः इनके बनने की दर अधिक होती है, परन्तु फिर भी कोशिका के कुल RNA का लगभग 2% ही संदेशवाहक RNA होता है।


3. हस्तान्तरण आर०एन०ए० अणु (transfer RNAs or tRNAs) : कोशिका के कुल RNA में से 16 से 18% हिस्सा tRNA का होता है । tRNA अणु औसतन 76 (54 to 100) न्यूक्लिओटाइड एकलकों अर्थात् मोनोमरों (nucleotide monomers) के बने सबसे छोटे और घुलनशील अणु होते हैं। अतः इन्हें घुलनशील RNA अणु (soluble RNA or sRNAs) भी कहा जाता है।

वलन (folding) के कारण इनके अणुओं में द्वितीयक (secondary) तथा तृतीयक (tertiary) स्तरों की संरचना होती है। इसके फलस्वरूप साइटोसॉल में इन अणुओं की तृतीयक स्तर की त्रिविम (3-dimensional) आकृति अत्यधिक कुण्डलित "L" जैसी होती है।

यदि इनका अकुण्डलन किया जाए तो प्रत्येक अणु की द्विविम (2-dimensional) आकृति मटर कुल के एक पौधे—तिपतिया चारा (Clover) की पत्ती (Clover leaf) जैसी होती है। क्लोवरलीफ आकृति के अणु में चार स्पष्ट द्विकुण्डलाकार (double helical) भुजाएँ (arms) होती हैं।
तीन भुजाओं के सिरे लूप-सदृश (loop-like) होते हैं। ये चारों भुजाएँ सभी  tRNA अणुओं में एक-सी होती हैं। एक छोटी-सी लूप-सदृश पाँचवीं भुजा भी प्रायः होती है, परन्तु यह समान नहीं होती।

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  • tRNA अणुओं में ऐमीनो अम्लों तथा mRNA के कोडोन्स, दोनों को पहचानने का प्रबन्ध होता है अतः ये प्रोटीन संश्लेषण में ऐमीनो अम्लों के उपायोजकों (adaptors) एवं समंजकों (fitters) का काम करते हैं।
  • ये साइटोसॉल में उपस्थित ऐमीनो अम्ल अणुओं को एक-एक करके अपने से जोड़ते हैं और फिर इन्हें बहुलकीकरण के लिए राइबोसोम्स से जुड़े mRNA के अणु पर पहुँचाकर निर्माणाधीन पोलीपेप्टाइड श्रृंखला में यथास्थान फिट करते जाते हैं तथा फिर वापस साइटोसॉल में लौट जाते हैं।
  • प्रत्येक tRNA अणु की दो विरोधी दिशाओं में स्थित भुजाएँ इसके इस कार्य के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती हैं। इनमें से एक को अंगीकार भुजा (acceptor arm) तथा दूसरी को ऐन्टीकोडोन भुजा (anticodon arm) कहते हैं।
  • acceptor भुजा को ऐमीनो अम्ल भुजा (AA arm) भी कहते हैं। इस भुजा के छोर पर लूप नहीं होता, वरन् भुजा की द्विकुण्डलिनी का एक सूत्र 5' सिरे वाला और दूसरा 3' सिरे वाला होता है।
  • 3' सिरे वाले सूत्र के छोर पर साइटोसीन साइटोसीन - ऐडीनीन (CCA) समाक्षारों वाले राइबोन्यूक्लिओटाइड्स का अनुक्रम होता है।
  • 20 में से किसी एक विशेष प्रकार का ऐमीनो अम्ल अणु, अपने कार्बोक्सिल समूह ( —COOH) द्वारा, साइटोसीन साइटोसीन-ऐडीनीन (CCA) की ऐडीनोसीन के 2' या 3' नम्बर के हाइड्रॉक्सिल समूह (OH) से सहसंयोजी बन्ध द्वारा जुड़ता है। यह ATP की सहायता से बनने वाला एक उच्च ऊर्जा एस्टर बन्ध (ester bond) होता है जिसका उत्प्रेरण एक मैग्नीशियमयुक्त (Mg²+) ऐमीनोऐसिल- tRNA सिन्थेटेज (aminoacyl- tRNA synthetase) नामक एन्जाइम करता है।
  • प्रत्येक प्रकार के ऐमीनो अम्ल को निर्दिष्ट tRNA से जोड़ने के लिए अलग सिन्थेटेज एन्जाइम होता है। अतः 20 प्रकार के ऐमीनो अम्लों के लिए 20 प्रकार के मिलते-जुलते सिन्थेटेज एन्जाइम्स होते हैं। निर्दिष्ट ऐमीनो अम्ल से जुड़े tRNA को ऐमीनोऐसिलेटेड tRNA (aminoacylated tRNA) कहते हैं।

ऐन्टीकोडोन भुजा के छोर पर लूप होता है। लूप के छोर पर तीन समाक्षारों का अनुक्रम (triplet base sequence) होता है जो mRNA अणु के उसी त्रिगुणी कोड (triplet code) का सम्पूरक (complementary) होता है जिसमें कि AA भुजा से जुड़े ऐमीनो अम्ल की संकेत सूचना होती है। इसीलिए, इस त्रिगुणी समाक्षार अनुक्रम को ऐन्टीकोडोन (anticadon) कहते हैं।

tRNA अणु की दो अन्य लूपयुक्त भुजाओं में से एक को DHU (dihydrouridine) भुजा तथा दूसरी को TΨC भुजा कहते हैं। DHU भुजा एक एन्जाइम से जुड़ती है। 
TΨC भुजा tRNA अणु को राइबोसोम से जोड़ती है।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि विविध प्रकार के tRNA अणुओं में अन्तर केवल पाँचवी भुजा तथा ऐन्टीकोडोन (anticodon) में होता है। प्रत्येक प्रकार के ऐमीनो अम्ल के अणुओं को हस्तान्तरित करने हेतु कम से कम एक प्रकार का tRNA अणु होता है, परन्तु अधिकांश (20 में से 18) ऐमीनो अम्ल अणुओं के लिए 2 से 6 प्रकार के tRNA अणु होते हैं। सभी tRNA अणुओं में प्रायः कुछ असामान्य समाक्षार वाले न्यूक्लिओटाइड्स भी होते हैं।

जैसा कि हम पहले पढ़ चुके हैं, rRNAs, mRNAs तथा tRNAs अणुओं में से केवल mRNA के अणु ही प्रोटीन संश्लेषण के लिए साँचों का काम करते हैं, rRNA तथा tRNA के अणु mRNA के कार्य में सहायता करते हैं। इसलिए mRNAs को संदेशवाहक (informational) तथा rRNAs एवं tRNAs को क्रियात्मक (functional) RNAs कहा जाता है।


इन तीन प्रकार के RNAs के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के RNA अणुओं का भी आधुनिक वैज्ञानिकों ने पता लगाया है। ये हैं—


1. जीनी आर०एन०ए० अणु (Genetic RNAs) : कुछ वाइरसों में DNA नहीं होता है। अतः इनमें RNA में ही आनुवंशिक संकेत सूचनाएँ होती हैं। RNA का इनमें केवल एक ही एकसूत्रीय या द्विसूत्रीय अणु होता है।

2. लघु (small) केन्द्रकीय आर०एन०ए० अणु (snRNAs) : ये 100 से लगभग 215 न्यूक्लिओटाइड एकलकों अर्थात् मोनोमरों (monomers) के बने छोटे RNA अणु होते हैं जो केन्द्रक में रहते हैं और DNA अणुओं के द्विगुणन तथा RNA अणुओं के संसाधन (processing) में सहयोग करते हैं।

3. उत्प्रेरक आर० एन०ए० अणु (Catalytic or Enzymatic RNAs) : 1980 के दशक में थोमस सेक (Thomas Cech) एवं सिडनी ऐल्टमान (Sydney Altmann) ने पता लगाया कि कुछ RNA अणुओं में जैव उत्प्रेरकों के गुण होते हैं। इन्हें राइबोजाइम्स (Ribozymes) कहा गया है। सबसे पहले विषमांगी केन्द्रकीय RNA अणुओं (heterogeneous nuclear hnRNAs) के विषय में पता लगा कि इनमें ऐसे राइबोजाइम्स होते हैं जो इन RNA अणुओं का संसाधन करके इन्हें वास्तविक परिपक्व RNA अणुओं में बदलते हैं। बाद में पता चला कि पूर्वकेन्द्रकीय (prokaryotic) कोशिकाओं के राइबोसोम्स के 23 S RNA अणु तथा सुकेन्द्रकीय (eukaryotic) कोशिकाओं के राइबोसोम्स के 28 S RNA अणु पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के संश्लेषण में पेप्टाइड बन्धों के बनने में उत्प्रेरकों का काम करते हैं।





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